मनुष्य का स्वभाव है। प्रेम के भाव की एक श्रेष्ठ झलक पेड़ का बीज बोने में है।
फ़िर हमे हमारे आसपास के लोगों का ध्यान रखना है। महिलाओं को पकाते समय एक मुठ्ठी
आहार निकाल लेना चाहिए और हफ़्ते यां महिने में किसी गरीब को खिलाना चाहिए। ऐसा कहा
जाता है कि २00 - ३00 साल पहले तक भारत में एक भी गरीब यां भूखा व्यक्ति नहीं था।
हमारा देश इतना पूर्ण और स्मृद्ध हुआ करता था।
एक भार फ़िर हमे अपने देश को उसी मुकाम पर लेकर जाना है।
आनंद के बिना जीवन,
दया के बिना दिल,
कल्पना के बिना मन,
और भीतर की आवाज़ सुनने में अस्मर्थ बुद्धि किसी भी काम की नहीं।
पूरा जीवन उतसव है। उत्सव तब होता है जब सब इकट्ठा होते हैं। और बिना उतसव के समाज
किसी काम का नहीं।
गुजरात पूर्ण उत्सव है। जितना नृत्य यहाँ होता है, शायद ही किसी और जगह हो। नवरात्रि
के दौरान पूरा गुजरात नाच उठता है। अब दीवाली का त्यौहार है।
एक दूसरे से गले मिलते हुए, गाते हुए और दीया जलाते हुए हम दीवाली मनाते हैं। जीवन में
केवल एक दीये से नहीं बात बनेगी। हर क्षेत्र में दीये जला कर रोशनी डालते हुए उत्सव
मनाते हैं। आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और सभी क्षेत्रों में रोशनी जगमगाती रहे -
यही दीवाली का संदेश है। रोज़मर्रा के व्यव्हार में किसी से कुछ मन मुटाव यां बात हो जाती
है और हम खुद को भी और औरों को भी दुखी कर देते हैं। मगर कब तक झेलते रहेंगे, वो सब
कुछ छोड़ देना चाहिए। एक नई शुरुआत - इसीलिए गुजरात में दीवाली के तुरंत बाद नया साल
शुरु हो जाता है। नए साल का भी शुभकामाना है - हम सबके जीवन में आध्यात्मिक रोशनी
जलती रहे, देश प्रेम का आग प्रज्वलित रहे और खुशियों की लहर उठती रहे। इसी कामना के
साथ मैं आप सबको बधाई देता हूँ - दीवाली स्वर्णिम गुजरात के साथ।
भारत सात क्षेत्रों में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध है| पहला, वस्त्रों मे विविधता, फिर
व्यंजनों की विशाल विविधता, इस के बाद आते हैं नृत्य और संगीत - भारत इन में भी
प्रसिद्धि हासिल कर रहा है| इस के बाद आते है - पर्यटन–प्रवास उद्योग, और IT उद्योग,
(सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग) | आध्यात्मिक ज्ञान के क्षेत्र में तो भारत का नाम सदैव रहा
ही है -
इस तरह भारत ने इन सभी सात क्षेत्रों में अपनी विशेष पहचान बना ली है|
हमे इसे और लोकप्रिय बनाना है, यह आज अत्यंत महत्वपूर्ण है, इन बांतो को विश्व की
विरासत द्वारा और अधिक पहचान और मान्यता प्राप्त हो, इसके लिए हमे और काम करना
है।
आज का विषय भोजन हैं : अन्न ब्रह्म: - हमारे सारे उपनिषद मे कहा गया हैं कि भोजन
ब्रह्म हैं , इसलिए हर किसी को उसका आदर करना चाहिए | जैसे वे कहते हैं कि "जैसा अन्न
वैसा मन" – आपका मन वही होता हैं जो आपका अन्न/भोजन होता हैं | शुद्ध शाकाहारी भोजन
आपके मन को परिपूर्ण, बुद्धि को तीव्र और शरीर को चुस्त रखता हैं | इसलिए आइनस्टाइन
जैसे कई वैज्ञानिक शाकाहारी रहे|
भोजन की विशाल विविधता जो भारत में है, हम उसके बारे मे सजग भी नहीं हैं | त्रिपुरा
से कन्याकुमारी और केरल से कश्मीर तक जो भी व्यंजन लोग खाते हैं वो सब आज यहाँ
उपलब्ध हैं|
हम भोजन से पहले प्रार्थना करते हैं! भोजन को सम्मान करने का अर्थ किसान का सम्मान
करना है, हमें
यहीं से विचारों का चक्र शुरु होता है | यह हमारी सुंदर परंपरा है जिसके पीछे गहरा विज्ञान
छुपा हुआ हैं |
इसी की साथ हम सब नाचते, गाते और ध्यान करते हुए दीवाली का त्यौहार मनाते हैं।
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