बैंगलुरू , भारत, 15 नवंबर:
प्रश्न: जब सब कुछ भगवान की इच्छा है, तो आध्यात्म की क्या आवश्यकता हैं ?
श्री श्री: हम तत्व, और आत्मा दोनों से बने हैं| आत्मा को आध्यात्मिकता की आवश्यकता है! शरीर (तत्व ) की कुछ भौतिक चीजों की आवश्यकता होती है और हमारी आत्मा का पोषण आध्यात्म से होता है | आप जीवन को आध्यात्मिकता के बिना जी नहीं सकते | क्या आप शांति चाहते हैं? क्या आप खुशी चाहते हैं? क्या आप सुख चाहते हैं? हमें लगता है कि आध्यात्मिकता का अर्थ केवल मंदिर, गिरजाघर या मस्जिद जाना है| आध्यात्मिकता मानवीय मूल्यों का जीवन में समावेश है| मानवीय मूल्यों के बिना जीवन व्यर्थ है| यदि कोई प्रश्न करता है कि आपको मानवीय मूल्यों की आवश्यकता क्यों है, तो आप कहेंगे, यह एक मूर्खतापूर्ण सवाल है! जब आप मनुष्य हैं तो जानवरों जैसा जीवन जीने का कोई अर्थ नहीं हैं| मानवीय मूल्यों के साथ रहना मनुष्यता है|
मनुष्य की कुछ जरूरते होती है और वह जिम्मेदारियाँ लेता है | जब जरूरते कम और जिम्मेदारीया अधिक हो तो जीवन अच्छा होता है| जब जरूरतें अधिक और जिम्मेदारीया कम हों तो फिर जीवन इतना अच्छा नहीं होता| जब आपकी जरूरतें अधिक हों और आप बहुत ही कम जिम्मेदारी लेते हैं, तो आप दुखी हो जाते हैं| यह आध्यात्मिक जीवन नहीं हैं | भरथियार, कामराज और गांधीजी ने पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी ली और उन्होंने कैसा जीवन व्यतीत किया - उनकी जरूरतों कम से कम थी |
अधिक से अधिक जिम्मेदारी लें| यदि पिता अपने बच्चो और उनकी जरूरतों की जिम्मेदारी नहीं लेगा, तो क्या बच्चे उसकी सुनेंगे? जो लोग जिम्मदारी लेते हैं उन्हें ही अधिकार प्राप्त होते हैं | जो लोग राजनीती में हैं उन्हें तो पूरे राष्ट्र की जिम्मेदारी लेनी होगी| परन्तु यदि वे भ्रष्ट तरीको से सत्ता में आये हैं तो पतन निश्चित हैं| जब हम और अधिक जिम्मेदारी लेते हैं तो उसका प्रबंधन कैसे करे ? हमारी क्षमता से परे जिम्मेदारी लेना और उसका प्रबंधन करना आध्यात्म से आता है |
प्रश्न : ऐसा क्यों हैं जब मैं अच्छी बातो का पालन करता हूँ फिर भी बुरी बाते मेरा पीछा करती हैं ?
श्री श्री: यदि आप नीम के पेड़ को बोयेंगे तो क्या उस पर आम लगेंगे ? आपको बुद्धिमान होना होगा | आप अच्छे इंसान हो सकते हैं और फिर भी आप बुद्धिमान हो सकते हैं| यदि आप अच्छे इंसान हैं और आप आग में अपना हाँथ ड़ालते हैं , तो आपका हाँथ जलेगा ही | अपने बुद्धि का अच्छे से इस्तमाल करें| हम अपने बुद्धि का इस्तमाल सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए करते हैं ना कि एक अच्छे इंसान बनने के लिए | हम सोचते हैं कि हम अच्छे हैं और दुसरे बुरे हैं | यह ऐसा नहीं हैं | कुछ अच्छाई हर किसी में होती हैं | आध्यात्म से उसमे बढावा होता हैं | जब छोटी कठिनाइयाँ हों तो उनसे भी हमें गहराई मिलती है -. खुशी से विस्तार मिलता है, कठिनाइयो से गहराई मिलती हैं |
प्रश्न : हमारे युवायो के लिए आप की क्या सलाह हैं ?
श्री श्री: आधुनिक और प्राचीन दोनों से सीखे , और आगे बढे. | आध्यात्म हमारी परंपरा और संस्कृति की बुनियाद हैं | उसकी पत्तियाँ और शाखाए विज्ञान हैं| कभी कभी अध्यात्म के नाम पर, हम अंधविश्वासों का पालन करते यां यह सोचते हैं कि हम वैज्ञानिक हैं, और हम अपनी परम्पराओं को अनदेखा करते हैं | यह ठीक नहीं हैं| आपने मध्यस्त मार्ग लेना चाहिए | हमें अपनी परंपरा का सम्मान करना चाहिए, वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना चाहिए और दूसरों के लिए हम जो भी कुछ अच्छा कर सकते हैं उसे करते रहना चाहिए |
प्रश्न : मनुष्य का सर्वोच्च कर्तव्य क्या है?
श्री श्री: जब कर्तव्य को प्रेम से करते हैं तो बोझ नहीं लगता। कभी कभी आप सिर में दर्द महसूस करते हो क्युकि आपको कर्त्तव्य बोझ लगता है| यदि आप कुछ प्रेम से करते हो तो वह उत्तम है| जब आप कोई जिम्मेदारी प्रेम से लेते हैं तो वह आपके लिए बोझ नहीं रहती| वह पूजा के जैसे हो जाती है और वह उत्तम है| यदि आप पूजा को ही कर्त्तव्य समझने लगते हैं तो उसे करने से कोई लाभ नहीं हैं| वो प्रेम का भाव ज़रुरी है।
यदि कोई पिता सोचे कि मुझे अपनी बेटी की शादी करनी हैं और किसी तरह अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा मिले तो फिर वह बोझ बन जाता हैं| परन्तु यदि वह उसकी शादी को प्रेम से लेता है तो फिर सारा कार्यक्रम उत्सव बन जाता हैं और सबको प्रसन्नता होती है| इसलिए ज़िम्मेदारी को प्रेम से लीजिए और सारे विश्व की जिम्मेदारी लिजिये| छोटे कदम के साथ शुरू करें | पहेले अपना परिवार, पडोसी, समाज, गाँव – आपके गाँव में किसी को दुखी नहीं होना चाहिए! ऐसे दृष्टिकोण से आपका दिल खिल उठेगा | और जब जब दिल खिलता है तो वहाँ पर खुशहाली होती है| ईश्वर खिले हुए दिल में वास करते हैं| आपको कही जाकर ईश्वर को खोजने की आवश्यता नहीं हैं| उनका निवास आपका दिल है|
प्रश्न : आपदाये और प्राकृतिक आपदाये क्यों होती हैं?
श्री श्री: हम इस ग्रह का शोषण कर रहे हैं, परमाणु बमों का इस्तेमाल करके , उनका विस्फोट पानी के नीचे कर रहे हैं - इस तरह कई परमाणु हथियारो का परिक्षण चुपके से पानी के निचे किया जा रहा है। पृथ्वी इसे सहन नहीं कर सकती | इस सब को बदलना होगा – हमें रसायन रहित कृषि के तरीको को प्रोत्साहन देना चाहिए | हमारे देश का मक्का छोटा है| आयातित मकई बडी है| हमारे चावल के दाने छोटे हैं, आयातित अनाज/चावल बड़े होते हैं| लेकिन हमारे अनाज अधिक स्वास्थ्य होते हैं| हमें अपने स्वदेशी बीजों की रक्षा करना चाहिए| हमारे गाय के गोबर और गौमूत्र में औषधीय गुण है| देशी गायो और बीजो की रक्षा करनी होगी! आयातित संकर बीज (Imported hybrid seeds)पहले दो या तीन साल में अच्छी उपज देते हैं पर वे भूमि/मिटटी को पूरी तरह से बर्बाद कर देते हैं | महाराष्ट्र के कई हजार कृषको ने इस वजह से आत्महत्या कर ली| हमें कृषि के प्राकृतिक तरीकों को प्रोत्साहित करना चाहिए|
प्रश्न:मैं ऐसा क्या करूँ जिससे मैं जो भी इच्छा करू वह पूरी हो जाये ?
श्री श्री: ध्यान से सोचे! यदि आप जो चाहते वह सब कुछ पूरा हो जायेगा तो आप बहुत जल्द ही पूछेंगे 'क्यों ऐसा हुआ" | एक राजा ने भगवान से वरदान माँगा कि - वह जिसे भी छुए वह सोने का हो जाये | भगवान ने उसकी इच्छा पूरी करी और वह बहुत खुश था परन्तु सिर्फ कुछ मिनटों के लिए | वह प्यासा था और उसे पानी चाहिए था | जैसे ही उसने उसे छुआ वह सोना बन गया | उसका भोजन और उसकी छोटी बेटी सब सोना बन गयी जैसे ही उसने उन्हें छुआ| राजा बहुत परेशांन हो गया और उसने प्रार्थना करी कि वरदान को वापस कर दिया जाये |
थोडा पीछे देखो और याद करो – एक बालक के रूप में आप क्या बनना चाहते थे? इंजन ड्राइवर? आजकल बच्चो के पास बहुत सारे खिलौने होते हैं | ३० से ४० साल पहेले बच्चे सिर्फ इंजन ड्राइवर या पायलट बनना चाहते थे | कई चीजे जो आपको पहले पसंद थी, वो आपको अब पसंद नहीं हैं| जो आपके लिए सबसे उत्तम हैं ईश्वर आपको वही देगा | अपने विश्वास के साथ आगे बढे | यदि आपकी कोई इच्छा हैं , तो यह मत सोचे कि उसके लिए प्रार्थना नहीं करनी हैं | सिर्फ सोचे – मुझे यह मिल जाए या इससे कुछ बेहतर मिले |
प्रश्न: साम्यवाद आध्यात्म का विरोध क्यों करता हैं ?
श्री श्री: आप जिस भी दिशा में जायेंगे, आपको कोई बिंदु मिलेगा क्युकि पृथ्वी गोलाकार है | साम्यवाद और आध्यात्मिकता एक दूसरे के विरोधी लगते हैं, लेकिन अंत में वे साथ में मिल ही जायेंगे|
क्या आपको पता है कि चीन की सरकार ने चीन के संविधान में आध्यात्म की आवश्यकता को सम्मलित किया है| चीन में हर व्यक्ति को समृद्धि, विकास और आध्यात्म उपलब्ध कराई जायेगी |
क्या आपको पता है कि बहुत ही कम लोग आध्यात्म से नफरत करते हैं | अपने दिल की गहराई में देखे | ईश्वर के प्रति आपके मन में श्रद्धा या तो भय होगा | साम्यवाद का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत क्या है? यह की सबको सबकुछ मिलना चाहिए | आध्यात्म भी वही कहता है| दूसरों को स्वयं के रूप में देखे| सब में अच्छाई को देखे |
प्रश्न: यदि सब भगवान के बच्चे हैं, तो लोगों के बीच में अंतर क्यों है?
श्री श्री: हम इसमें फर्क बना देते हैं | किसी को स्कूल में 'ए' ग्रेड या 'बी' ग्रेड मिलता है| हम में अलग अलग प्रतिभा और गुण हो सकते हैं | कुछ लोग 100 किलोग्राम, कुछ दस किलोग्राम, और कुछ दो किलोग्राम भी नहीं उठा सकते हैं|
प्रत्येक व्यक्ति कुछ न कुछ कर लेने में अद्भुत हैं परन्तु अन्य स्तर पर हर कोई सामान है | हर व्यक्ति के खून का रंग लाल है| गाय किसी भी नस्ल की हो उसके दूध का रंग सफेद ही होगा |
कोई भी दो लोगों के उँगलियों के निशान एक जैसे नहीं होते | यदि आप अपने गुण और प्रतिभा को देखें , तो हम सब अद्भुत हैं | प्रेम के स्तर पर हम सब सामान हैं | इसमें कोई अंतर नहीं है। एक छोटा बच्चा दस इडली नहीं खायेगा | यदि आप एक वयस्क, को छोटा कप और चम्मच देंगे, तो क्या वह ठीक होगा? क्षमता भिन्न हैं, फिर भी हर कोई सामान ही है|
प्रश्न: क्या यज्ञ और मंत्र कर्मो को साफ़ कर सकते हैं ?
श्री श्री: ध्यान और प्राणायाम कर्म को साफ़ कर देंगे | यज्ञ भी कर सकता है| हालांकि, बिना ध्यान की अवस्था में यज्ञ से भी समान लाभ नहीं मिलते|
प्रश्न: व्यक्ति को क्या सफल बनाता हैं : विज्ञान या अध्यात्म ?
श्री श्री: जब आप टीवी देख रहे होते हैं, तो क्या अधिक महत्वपूर्ण है? देखना या सुनना? आपको दोनों की आवश्यकता हैं| उसी तरह, जीवन में भी,हमें दोनों की आवश्यकता हैं |
प्रश्न: आध्यात्मिक गुरु ज्यादातर पुरुष क्यों होते हैं?
श्री श्री: आध्यात्म लिंग से परे होता हैं | पुरुष और महिलाये समान हैं | यहाँ पर कई महिलायों के लिए रिक्तिया हैं जो स्वामी बनना चाहती हैं | वे भी आगे आ सकती हैं
प्रश्न: मन और बुद्धि के बीच अंतर क्या है?
श्री श्री: यह मुझसे ऐसा पूछने के जैसा हैं कि कठल और केले के बीच में अंतर क्या है? यदि वे समान होते तो आप मुझसे यह सवाल नहीं करते| मन किसी एक स्थान पर नहीं है, वह पूरे शरीर के इर्द गिर्द फैला हुआ हैं |
प्रश्न: क्या सेवा करने से अहंकार को नष्ट होने में मदद मिलेगी?
श्री श्री: यदि आप में अहंकार है, तो उसे आप अपनी जेब में रख लें | उसे नष्ट करने की कोशिश मत करें, क्युकि वह प्रयास इसे और बढायेगा | एक शिशु के भांति स्वाभाविक रहें| यदि वह हैं, तो कोई बात नहीं | जब आप अपने और दूसरों के बीच अलगाव या दूरी महसूस करते हैं, तो अहंकार उत्पन्न होता है | हमें अपने परिवार के साथ या जो लोग हमारे करीबी हैं उनके साथ अहंकार नहीं होता है | उसी तरह जिन्हें हम बिलकुल ही नहीं जानते उनके साथ हमें अहंकार नहीं होता | यह सिर्फ लोगो के साथ होता हैं जिन्हें हम बहुत थोडा जानते हैं, हमारा अहंकार विकसित हो जाता हैं | यदि सब आपके हैं या कोई आपका नहीं हैं तो वहाँ पर अहंकार नहीं होता हैं |
एक बच्चे की तरह सहजता होना जरूरी है | जब हम अन्य लोगों के हमारे बारे में विचार के बारे में चितिंत हैं , तो वह अहंकार है | यहां तक कि जब आप कुछ अच्छा कर रहे हैं, तो भी कुछ लोग उसमे दोष निकालेंगे | उसी तरह कई लोग प्रशंसा करने के लिए भी होंगे चाहे वह व्यक्ति भ्रष्ट क्यों न हो| इसलिए इसकी चिंता मत करे| यदि आप गलती करते हैं तो उसे स्वीकार करे | यह बुद्धिमानी है| उसी तरह दूसरे लोग भी गलती कर सकते हैं| उनके माफी मांगने का इन्तज़ार मत करे | आप उन्हें माफ करे और आगे बढे| यदि कोई गलती हो गयी हैं तो उसे भूल जायें| पूर्व की गलतियों के बारे में न सोचे और उसे गोंद की तरह चिपका के मत रखें| यह कचरे के ढेर का मंथन करने की तरह हैं| आपको हर कीमत पर अपने मन को सुरक्षित रखना हैं|
यदि आप अपने मन को सुरक्षित रखते हैं , तो आप इच्छाओं और जरूरतों से मुक्त हो जायेंगे | तब आप दूसरों को आशीर्वाद दे सकते हैं, तो उनकी जरूरते पूरी हो जाती हैं| इसलिए लोग घर के बड़ो से आशीर्वाद लेते हैं| जैसे आप बड़े होते हैं तो आप और संतुष्ट हो जाते हैं | परन्तु यह बात हर समय नहीं रहती | जैसे लोग बड़े होते हैं , वे चिंताओ और इच्छाओं को इकट्ठा कर लेते हैं | जब आप चिंताओ और इच्छाओं से मुक्त रहते हैं तो आप में आशीर्वाद देने की क्षमता प्राप्त हो जाती है| किसी न किसी समय पर आपको यह कहना होता है, 'मैं संतुष्ट हूं.' | यह शक्ति आध्यात्म से ही आती है| जब आपको यह अनुभव हो जाता हैं कि आप कौन हैं तो आपकी सारी आवश्यकताये पूरी हो जाती हैं | आपका सबसे बड़ा दुश्मन आपका मन है, इसलिए मन को शांत रखने के लिए हम इतनी सारी चीजे करते हैं | आशीर्वाद लीजिए और खुश रहें|
बहुत से लोगों को सुदर्शन क्रिया से लाभ हुआ है और बहुत से लोग इसके लाभ का इंतज़ार कर रहे हैं।
ऐसा संकल्प लें कि जो आनंद आपको मिला, वो सारे विश्व को भी मिले।
प्रश्न: मैं अपनी पत्नी या गुरु किसकी सुनु ?
श्री श्री: यह फँसने वाला सवाल है, लेकिन मैं फँसने वाला नहीं हूँ! (हंसते हुए) यदि आपकी पत्नी कुछ कहेगी तो आप कहेंगे कि मुझे अपने गुरु से पूँछने दो और यदि आपके गुरु कुछ कहेंगे तो आप कहेंगे कि " मेरी पत्नी इससे सहमत नहीं हैं " | अंत में आप वही करोगे जो आप करना चाहते हैं| आदमी के साथ ऐसा हमेशा होता आया है ! इसलिए मैं कहता हूँ कि "चुनाव आपका है, और मेरा आशीर्वाद है"!
प्रश्न: कभी कभी सेवा करते समय मैं थक जाता हूँ और निराश हो जाता हूँ |
श्री श्री: यह हो सकता है | जब आप गतिविधि में हैं, तो शरीर में थकान हो सकती हैं और ऊर्जा का स्तर नीचे जा सकता हैं | कभी कभी यह समय के प्रभाव से भी होता हैं | हालांकि, हमें सिर्फ इसे जारी रखना हैं और रूकना नहीं हैं | थोडा प्राणायाम और ध्यान आपकी ऊर्जा के स्तर को बहाल कर आपको ताज़ा कर सकता है| इसके लिए सत्संग बहुत महत्वपूर्ण हैं | जब हम सत्संग में बैठते हैं तो हम उत्साहित हो जाते हैं और नई ऊर्जा के साथ सेवा कर सकते हैं|
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