आश्रम एक ऐसी जगह होती है जहां श्रम ना हो। प्रमाद के रहते तुम बिना श्रम के नहीं रह सकते हो! मन शांत हो और दिव्य शक्ति तुम्हारे भीतर संचरित होती रहे तो वहां श्रम नहीं होता। ऐसा कब होता है? जब तुम अपने साथ और अपने वातावरण के साथ सामंजस्य का अनुभव करते हो। और, आश्रम का यही महत्व है - यह तुम्हारा घर है। यहां तुम अपने साथ और अपने वातावरण के साथ सामंजस्य का अनुभव कर सकते हो।
आज आश्रम की तीस्वीं सालगिरह है। पहले ये बंजर भूमि थी। यहां पत्थरों के सिवा कुछ नहीं था। देखो, इतने सालों में यह जगह कितनी सुंदर हो गई है! इतने सारे हरे भरे पेड़, जीव-जंतु, चिड़ियां, ध्यान करने के सभा कक्ष - यह सब इसलिये संभव हुआ है क्योंकि हम सब यहां मिलकर ध्यान, सत्संग और सेवा करते आये हैं। हमारे वातावरण और मन पर संगीत और भजन का बहुत प्रभाव पड़ता है।
जब तुम्हें सत्य का अनुभव हो जाता है तो या तो तुम्हारे लिये आश्रम का महत्व घट जाता है, या फिर सभी स्थान तुम्हारे लिये आश्रम ही बन जाते हैं। पर ऐसा होने तक तुम्हारे लिये आश्रम का बहुत महत्व है। आश्रम का वातावरण, यहां की ऊर्जा तुम्हारे लिये उपयोगी है। तो, आश्रम की इस तीस्वीं सालगिरह पर, इसे अपना घर जानो, और अपने भीतर शांति और सामंजस्य का अनुभव करो। तुम जहां भी हो, उस स्थान को आश्रम बना दो। हर घर आश्रम बन जाये, हम सब ऐसी कामना करें!
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