लोग कहते हैं ईश्वर दिखाई नहीं देता, हम कहते हैं ईश्वर के बगैर कुछ और दिखाई नहीं देता।

पंजाब , भारत १२, नवम्बर २०१०

(पंजाब को नशे से मुक्त कराने के लिए और कन्या भ्रूण हत्या को खत्म करने के लिए मौजूद लगभग ३०,००० लोगों ने शपथ ली)
गुरुओं की नगरी मे आकर हम धन्य महसूस कर रहे हैं। सिख परंपरा के १० गुरुओं ने मानवता के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया, और अपना जीवन बलिदान दिया। श्री गुरु नानक देव जी से श्री गुरु गोबिंद सिंग जी तक सब गुरुओं की कृपा इस पवित्र धरती पर चौबिस घंटे बरस रही है। कीर्तन करके हम उस पुरानी परंपरा को नमन करते हैं| प्रेम की आवाज़ को दृढ़/बुलंद करना आज अत्यंत महत्वपूर्ण है| जिनका दिल साफ़ है और जिनमें जोश है वही इसे कर सकते हैं। पंजाब पूरे भारत की भूमि का चेहरा है। लेकिन यह पवित्र भूमि नशीली दवाओं की लत/कैद और कन्या भ्रूण हत्या जैसी बुराइयों से पीड़ित है| इसे देखकर मेरे मन में यह संकल्प उठा कि पंजाब को नशीली दवाओं की लत/कैद से मुक्त कराना चाहिए। इसलिए सारे बच्चे, बुजुर्ग, और सब लोग व्यसनों से मुक्त हो जाये, और मन ईश्वर की ओर लगे - ऐसी कामना करनी है। मन की शान्ति और वास्तविक नशा परमात्मा में ही मिलता है। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा जिसे प्रकाश में लाना है - देशी बीजो को बचाना। कितने लोग शरीर के दर्द से पीड़ित है?(बहुत से लोगो ने हाथ उठाये) यह आहार में कीटनाशक सामग्री(Pesticide content) के उपयोग को ग्रहण करने से होता है| इसका उपाय स्थानीय बीजों का संरक्षण और जैविक कृषि को अपनाना है|
युवाओं को धर्म के वास्तविक सार के बारे मे जागृत करने की आवश्यकता है| हम कहीं आध्यात्मिकता या धर्म के वास्तविक विश्राम और सुखद पहलू को प्रस्तुत करने में असफल रहे हैं| यदि जड़ खराब हो जाए तो पेड़ मुर्झाने लगता है। हमे अपनी बुनियाद और परंपरा को सम्मान देने की ज़रुरत है|

जापानियों से टीम में काम करने की भावना, जर्मन लोगो से यथार्थता, अंग्रेजो से शिष्टाचार और अमरीकीयों से विपणन(Marketing) सीखने की जरूरत है| अमरीकी अमावस्या के दिन भी चाँद बेच सकते हैं! भारत मानवीय मूल्यों के लिए और मानवता के लिए है| प्रेम क्या है - यह केवल हिन्दोस्तान ही दुनिया को बता सकता है।

प्रेम भाषा से परे है| जब दिल को मार्ग मिल जाता है तो, भाषा की कोई बाधा नहीं रह जाती| परन्तु इसे महसूस करने के लिए मैं अप्रसन्न/दुखी हूँ यह बोर्ड दिल से हटाना है। हम इस लेबल को अपने ऊपर लाद लेते हैं और प्रोत्साहित करते रहते हैं| और हम ऐसा क्यों करते हैं? तनाव और उसके कारण पैदा होने वाले संघर्ष के कारण। हमें हर घर को तनाव से मुक्त करने के लिए कार्य करना होगा | परन्तु इसके पहले हमारे मन में जो द्वन्द चल रहा हैं, हमें उससे मुक्त होना होगा| यह आत्म ज्ञान है| जब तनाव होता है तो हम क्रोधित हो जाते हैं और खुद भी दुखी होते हैं और दूसरों को भी दुःख देते हैं| तनाव को जड़ो से निकालने के लिए हमें निरंतर कुछ समय ध्यान करना चाहिए| जब आप कीर्तन को सुनने के लिए बैठते हैं तो उसमे डूब जाये| पर अगर कीर्तन के दौरान भी मन भागता है तो प्राणायाम, योग और ध्यान इससे निकलने में सहायक हैं|

हिंसा मुक्त समाज, रोग मुक्त शरीर, कंपन मुक्त श्वास, भ्रम मुक्त मन, निषेध मुक्त बुद्धि, आघात मुक्त स्मृति, दुख मुक्त आत्मा, और अहंकार जिसमे यह सबकुछ सम्मलित हो, इस गृह के सभी लोगो का जन्मसिद्ध अधिकार है| हमें सदियों से ज्ञान उपलब्ध है और हमे इसके लिए शुक्र गुज़ार होना है। परन्तु दुःख कि बात यह है कि हम अपनी परंपरा को ही नहीं जानते| तामिलनाडु में दस गुरुओं के बलिदान के बारे में कोइ नहीं जानता। बच्चों ने केवल गुरु नानक देव और गुरु गोबिंद सिंह का नाम स्कूलो के पाठ्यक्रम में पढ़ा है। उसी तरह, यहाँ कोई नहीं जानता कि तमिलनाडु में 63 महान संत थे | पांच साल पहले, हमने दस गुरुओं के बारे में एक प्रदर्शनी आयोजित करी, जिससे लोगो में सजगता आई| . हमारी विरासत क्या है? हमारी जड़ें/ बुनियाद क्या हैं? आत्म ज्ञान हमारी प्राचीन परंपरा का आधार है| विज्ञान का आधार आध्यात्म है, जो प्राचीन ग्रंथों का ज्ञान है|

समाज मे आने वाले पीढ़ी के लिए हम कैसा समाज छोड़ना चाहते हैं? यदि हम उन्हें हमसे बेहतर समाज नहीं देते हैं, तो हम अपनी ज़िम्मेदारी से चूक रहे हैं| सत्श्रीकाल, उस ईश्वर रूपी सत्य का सम्मान करना जो समय से परे है और भीतर के अनमोल भंडार का सम्मान करना, एक विशेष अभिनंदन है| जब आप भीतरी आनंद को पहचानते हैं तो सांसारिक समृद्धि अपने आप आती है| आंतरिक समृद्धि तो है ही, लेकिन उस खजाने को पहचानना हैं| '' की ध्वनि - वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी की घूमने की आवृत्ति (Frequency) और ' ओम् ' की आवृत्ति समान है| दोनों आवृत्तियों के लिए जो ग्राफ बनाये गये वे समान थे | इसलिए जब भी हम ओम् का उच्चारण करते हैं तो वह पृथ्वी की प्राकृतिक आवृत्ति से मेल खाता है।

कुछ दिन पहले एक चिकित्सक ने अपना अनुभव बाँटा| वे स्वयं इतनी सारी दवाईयाँ ले रहे थे, लेकिन कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था | फिर उन्होंने एकदम से ओम् की ध्वानि वाला गीत गाना शुरु किया और वे ऐसा एक घंटे के लिए रोज़ करने लगे| वे कहते हैं कि मुझे आश्चर्य है कि मेरी समस्याएं कैसे दूर होती चली गई। उन्होंने ओम् ' शब्द के प्रयोग से संगीत चिकित्सा को भी शुरू कर दिया| हमारे प्राचीन ऋषियों द्वारा भी यही कहा गया है | महर्षि पातंजलि ने कहा है कि अगर आप दुख से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो उस दिव्य सिद्धांत/ईश्वर को याद करें जो परमानन्द है| 'जपजी साहिब' की शुरूआत - ओंकार से होती हैं ,वह एक ओंकार | ईश्वर के स्मरण से सारे दुःख समाप्त हो जाते हैं ,सारे संदेह समाप्त हो जाते है, और आप स्वास्थ्य के सिद्धांत को पाते हैं| इसलिए बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म और हिंदू धर्म में, ' ओम् ' को एक विशेष स्थान प्राप्त है| दाओइज़म और शिन्तोइस्म में भी ऐसा ही है| इस्लाम और ईसाई धर्म में भी हम ' ओम् ' की एक झलक अमीन में देखते हैं|
अब हम तीन बार ' ओम् ' का उच्चारण करेंगे , और दिव्य कीर्तन का आनंद लेंगे।

अब हम थोड़ी देर ध्यान करते हैं।
(16 मिनट का आनंदित ध्यान दो मिनिट की छोटी अवधि में ही निकल गया)

अब आपको को कैसा लग रहा हैं? आप में से कितने लोगो का शरीर का दर्द ठीक हो गया
(दर्शकों में से कई लोगों ने अपने हाथ उठाये )

जब हम तृप्त होते हैं और हम अपनी ज़रुरतों के पीछे नहीं भागते तो हम में आशिर्वाद देने की क्षमता आ जाती है, और हमें इस तृप्ति को पाने के कौशल को सीखना है। ऐसी तृप्ति केवल ध्यान करने से ही आ सकती है। हमारी यह सुन्दर परंपरा है कि हर उत्सव और त्यौहार में हम बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं। यह बहुत ही वैज्ञानिक है। कायदे से बड़ों मे आशीर्वाद देने की क्षमता होनी चाहिए| परन्तु आज यह कही गुम गया है | तृप्ति महसूस करने के लिए बुजुर्ग होने तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं हैं| मन में तृप्ति अभी विकसित होनी चाहिए| अपना कार्य करते रहे और तृप्ति महसूस करें। जीवन में कभी तो इस स्तर तक पहुँचना चाहिए कि, "मैं तृप्त हूँ" संतोष के बिना, आप के भीतर वह शक्ति नहीं जग सकती| कई लोग जिन्होंने ब्लेसिंग (आशीर्वाद) कोर्स किया है, उन्होंने अनुभव किया है कि वे जब भी दूसरों के लिए कुछ अच्छी इच्छा करते हैं तो वह पूरी हो जाती है| आप में से कितनो ने यह अनुभव किया है? (कई लोगो ने अपने हाथ उठाये)। अपने जीवन को उत्सव और आनंद के साथ बिताएं और साधना, सेवा और सत्संग करते रहे|

art of living TV
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality