गहन ध्यान मे जाने से आपकी अंतर्ज्ञान की क्षमता विकसित होती है

शुक्रवार , १ अप्रैल २०११
प्रश्न : संसार में आज इतना दुःख क्यों हैं?
श्री श्री रवि शंकर:
दुःख दो कारणों से होता है,पहले दुनिया के कुछ हिस्सों में साधनों का अभाव, आप उन्हें पानी और भोजन मुहैया करा दे तो वे खुश हो जायेंगे | दुनिया के अन्य हिस्सों मे आध्यात्म का अभाव भी इसका कारण है | एक तरफ शरीर भूखा है तो वहाँ दुःख है और दूसरी ओर आत्मा पीड़ित है तो वहाँ भी दुःख है | आर्ट ऑफ लिविंग को दोनों कृत्य करने होते है, शरीर को भोजन और आत्मा को सांत्वना देना और वही हम कर रहे है |

प्रश्न: तीसरा नेत्र खुलने का अर्थ क्या है और जब इसका मुझे अनुभव होगा तो मुझे कैसा लगेगा ?
श्री श्री रवि शंकर:
यह अंतर्ज्ञान का विकास है, ऐसा न सोचे कि कोई तीसरा नेत्र खुलने वाला है और सिर से कुछ बहार निकलने वाला है | या माथे से कुछ टकराने वाला है या उस पर कोई सुराग बनने वाला है, ऐसा कुछ नहीं होने वाला है | जब आप अपने नेत्र को बंद कर लेते है तो भी कुछ प्रकाश का अनुभव करते है ; या तो आप उसे देख सकते है या उसका एहसास कर सकते है,यह दोनों तरीको से संभव है | यदि आप से कोई कहे कि मै आपके तीसरे नेत्र को खोल सकता हूँ, तो आप इन सब बातों पर ध्यान मत दीजिये| मेरे मत से यह निश्चित ही ठगी है क्युकि मैंने ऐसे कई लोगो को देखा है जो तीसरे नेत्र को खोलने का दावा करते है, और वास्तव मे कुछ नहीं होता है और लोगो को सिर दर्द, असाध्य सिर दर्द और कई अन्य समस्या आ जाती है | हमारे पास ऐसे कई प्रकरण इलाज़ के लिए आये है, इसलिए यदि आपसे कोई कहे कि मैं आपका तीसरा नेत्र खोल दूंगा, तो आप उन्हें धन्यवाद करते हुए कहे, मैं अपने दो नेत्र के साथ ही खुश हूँ | गहन ध्यान मे जाने से आपकी अंतर्ज्ञान की क्षमता विकसित होती है!!

प्रश्न: गुरूजी यह तीसरे नेत्र का खुलने का सम्बन्ध इच्छाओ के विनाश से क्यों है ?
श्री श्री रवि शंकर:
तीसरे नेत्र का सम्बन्ध सजगता और सतर्कता से होता है | जब आप सतर्क, सजग, और ज्ञान में होते है, तो यह स्वाभाविक है कि ऊर्जा का प्रवाह निचले चक्र से उपरी चक्र की ओर हो गया है | फिर छोटी छोटी बातों में आपकी रूचि नहीं रह जाती है | जब आप अत्यंत सतर्क और सजग होते है तो आपकी यौन उर्जा चेतना के भिन्न स्थर की गुणवक्ता में परिवर्तित हो जाती है | यौन उर्जा तब होती है जब आपके मस्तिष्क के पिछला भाग सक्रीय होता है | जब मस्तिष्क का आगे का भाग सक्रीय होता है तो सतर्कता, संवेदन और सजगता होती है, और
पिट्यूटरी ग्रंथि और पीनियल ग्रंथि सक्रीय हो जाती है |मस्तिष्क में भी यह एक दुसरे के विपरीत दिशा मे होते है | पौराणिक कथाओ के अनुसार भी जब तीसरा नेत्र खुल जाता है तो छोटी छोटी इच्छाये लुप्त हो जाती है,यह कोई बुरी बात नहीं है परन्तु फिर इनका कोई मायना नहीं रह जाता है| इसलिए बुद्धिजीवी और गहन आध्यात्मिक साधक अपने माथे पर चन्दन का लेप लगाते है, क्युकि वे केंद्रित होते है और योग और ध्यान करते है, और माथे तो ठंडा रखने के लिए वे उस पर चन्दन का लेप लगाते है |
जब मस्तिष्क का आगे का भाग अधिक सक्रीय और सतर्क हो जाता है,तो फिर विचार,बुद्धिजीवक कृत्य, सृजनता, स्मृति मे वृद्धि होती है क्युकि यह सब मस्तिष्क के आगे भाग मे होते है और सारे सांसारिक सुख मस्तिष्क के पीछे के भाग मे होते है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, बौद्ध संप्रदाय मे ऐसा कहा जाता है कि भगवान या सृष्टिकर्ता के जैसा कुछ भी नहीं है और ईसाई संप्रदाय मे पिता,पुत्र और पवित्र आत्मा की मान्यता है | इसलिए मैं सोच रहा हूँ कि भगवान क्या है?
श्री श्री रवि शंकर:
भगवान गौतम बुद्ध ने कभी यह नहीं कहा कि भगवान नहीं है, उन्होंने इस पर कहने से इनकार कर दिया क्युकि उन दिनों कई संप्रदाय हुआ करते थे | वैदिक और जैन संस्कृति सक्रीय थी |कई और संस्कृति मौजूद थी और लोगो को किताबो के माध्यम से वह सब कुछ पता था और वे शांति और ध्यान पर महान व्याख्या कर सकते थे, परन्तु वे ध्यान का अनुभव करना भूल गये | इसलिए भगवान गौतम बुद्ध विवादो मे पड़ना नहीं चाहते थे, जैसे हम भी विवादो मे पड़ना नहीं चाहते है | हमारा सिर्फ सरल सन्देश यह है कि शान्ति पाने का यह मार्ग है | इस श्वास प्रक्रिया को करे और आपको शान्ति प्राप्त हो जायेगी |
इसलिए भगवान गौतम बुद्ध ने कहा कि मैं भगवान के बारे मे नहीं कहूँगा परन्तु मैं दुःख के बारे मे कहूँगा और दुःख से मुक्ति पाने का उपाय है | दुःख से मुक्ति संभव है | उनका केंद्र बिंदु अत्यंत व्यावहारिक और सरल था | उन्होंने मुक्ति और मोक्ष के बारे मे कहा जो हिंदू धर्म के विभिन्न संप्रदायों मे सामान है |
भगवान श्री कृष्ण के समय के ढाई हज़ार वर्ष उपरांत ज्ञान मे सुधार करने वाला कोई नहीं था, इसलिये गौतम बुद्ध आये और उन्होंने सुधार लाया |उसके उपरान्त बुद्ध धर्म के भी कई संप्रदाय बन गये | भगवान गौतम बुद्ध के ५०० वर्ष उपरान्त उस पूरे ज्ञान की गलत व्याख्या होने लगी, और वे सब को साधु सन्यासी बनाने लगे और पूरा संप्रदाय बिखरने लगा और फिर आदि शंकराचार्य ने ज्ञान की पुनर्स्थापना करी | इसलिये बार बार ऐसा कहा जाता है, कि जब लोग ज्ञान को भूलने लगते है, तो प्रकृति लोगो को इस ज्ञान के प्रकाश मे वापस लाने के लिये किसी को यहाँ पर भेजती है | और यह होता रहता है,और यीशु मसीह ने वही त्रिदेव की बात कही जो प्राचीन सत्य है और वेद मे भी कहा गया है | यीशु मसीह ने वही बात कही कि भगवान प्रेम है, जो वेद और उपनिषद मे कही गयी है |
विभिन्न संप्रदायों मे सामंजस्यता को ढूँढना सबसे आवश्यक है| संस्कृति एक बात है,परन्तु आध्यात्म और मानवता सबसे महत्वपूर्ण है | कुछ भी ठीक नहीं होगा, यदि हिंदू,वैदिक, इस्लाम,ईसाई और बुद्ध धर्मो मे मानवता, मानवीय मूल्य और आध्यात्मिक मूल्य मौजूद नहीं होंगे |

प्रश्न : अंतर्ज्ञान और इच्छाधारी सोच मे क्या अंतर है?
श्री श्री रवि शंकर:
जब कोई घटना घट जाती है तो आपको पता होता है कि वह अंतर्ज्ञान या इच्छाधारी सोच थी | समय आप को बतायेगा कि वह अंतर्ज्ञान या इच्छाधारी सोच थी | इसको समझने का कोई निश्चित मापदंड नहीं है | इच्छाधारी सोच इच्छा से प्रेरित होती है, जबकि अंतर्ज्ञान अपने आप हो जाता है|

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