अपने पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहे !

२३, अप्रैल, २०११
आज विश्व पृथ्वी दिवस पर पर्यावरण का पोषण और उसका ध्यान रखने का संकल्प लीजिये !!!
विकास अनिवार्य है, परन्तु अल्प कालिक द्रष्टिकोण होने से वे अक्सर बड़े नुकसान का कारण बन जाते है | स्थिर विकास वे होते है जो किसी भी कार्यक्रम मे दीर्घकालिक प्रभाव एवं लाभ का ध्यान रखते है |

अल्प कालिक विकास सिर्फ आपदा होते हैं | प्राकृतिक साधनों का नाश बिना किसी दीर्धकालिक दृष्टिकोण होने से पारिस्थितिकी नष्ट हो जाती है, जो कि जीवन का स्रोत्र होती है | विकास का उद्देश्य जीवन को स्थिर बनाने के लिए सहायक होना चाहिये| एक बड़ा द्रष्टिकोण रखते हुये सारी विकास योजनाएं पारिस्थितिकी, समाजशास्त्र और मनोविज्ञान पर प्रभाव करती है| फिर किसी भी विकास की प्रक्रिया सजगतापूर्ण प्रयासों के द्वारा इस प्रथ्वी और उसके साधनों का संरक्षण करने के लिए हो जाते हैं | हमारे गृह का स्वस्थ्य सबसे महत्पूर्ण है !

मानव तंत्र मे पर्यावरण के प्रति समझ मौजूद होती है | सम्पूर्ण इतिहास मे भारत मे प्रकृति को पूजा जाता है जैसे ; पर्वत, नदी, सूर्य , चंद्र, वृक्ष को श्रद्धा के भाव से देखा जाता रहा है | विश्व के सारे प्राचीन संस्कृतियों ने प्रकृति के प्रति गहन श्रद्धा प्रकट की है | उनके लिए भगवान मंदिरों या गिरजाघरों मे नहीं होते थे परन्तु वह इस प्रकृति मे ही अंतर्निहित होता था | और जब हम प्रकृति से दूर जाने लगे तो हम इसे प्रदूषित करने लगे |प्रकृति का सम्मान और उसका संरक्षण करने की प्राचीन प्रथा को पुनर्जीवित करना आज के समय की गहन आवश्यकता है| कई लोगो का मत है कि पारिस्थितिकी की हानि तकनीकी प्रगति का अपरिहार्य उपोत्पाद है | परन्तु यह सही नहीं है,स्थिर विकास तभी संभव है, जब पारिस्थितिकी की सुरक्षा की जाये | विज्ञान और प्रौद्योगिकी को पर्यावरण विरोधी नहीं मानना चाहिये, और ऐसे साधनों की खोज करनी चाहिये जिससे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मे विकास करते हुये पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित हो सके | यह आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती है |

प्रकृति का अवलोकन करे, इसके पांचो तत्व एक दुसरे के विरोधाभासी होते है | जल अग्नि को नष्ट करता है,अग्नि वायु को नष्ट करती है| प्रकृति मे कई प्रजातिया होती है, जैसे पक्षी,सरीसृप, स्तनधारी; और यह सारी विभिन्न प्रजातिया एक दुसरे के विरोधाभासी होती परन्तु फिर भी प्रकृति इन सब मे संतुलन बनाकर रखती है | हमें प्रकृति से सीखना चाहिये कि कैसे वह अपशिष्ट पदार्थ का पाचन करके उसी से कुछ और भी सुन्दर पदार्थ का उत्पादन करती है | विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संकट पैदा नहीं होता है परन्तु विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रक्रियाओं से जो अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न होते है, वह संकट का कारण है |

अपशिष्ट पदार्थो को नष्ट करने के साधनो को हमें ढूँढना होगा और गैर प्रदूषणकारी प्रक्रियाओ को विकसित करना होगा;जैसे सौर उर्जा को उपयोग मे लाना होगा | परंपरागत पद्दति की ओर वापसी करते हुये हमें जैविक ओर रसायन रहित खेती को अपनाना होगा जिससे स्वस्थ्य विकास की पृष्ठभूमि तैयार हो सके | संस्कृति,प्रौद्योगिकी, व्यापार और सत्य वे चार सूत्र है,जिसे समय समय पर पुनर्जीवित करना होगा | जब तक वे पुनर्जीवित नहीं होंगे, तो जिस उद्देश्य से उनकी शुरुवात हुई थी वह अर्थहीन हो जायेगा | प्राचीन और आधुनिक पद्दतियो मे आपसी तालमेल लाना होगा | रसायन और उर्वरक के क्षेत्र मे प्रगति होने के बावजूद, प्राचीन भारतीय प्रौद्योगिकी मे गौमूत्र और गाय के गोबर का उपयोग अब भी फसल की खेती के लिए उत्तम उपाय है | कई शोध से यह पता चलता है, कि प्राकृतिक खेती से अधिक उपज प्राप्त होती है |

यह आवश्यक नहीं है कि सबसे आधुनिक तकनीक भी आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो या सबसे योग्य तकनीक हो | हमें गुणवक्ता पर ध्यान देना होगा, कोई चीज नवीन है इसलिये यह आवश्यक नहीं है कि वही अच्छी है, और कोई चीज पुरानी है इसलिये यह भी आवश्यक नहीं है, कि उसे बदलना होगा |
तनाव और हिंसा युक्त समाज मे स्थिर विकास संभव नहीं है|रोग रहित शरीर,तनाव रहित मन,हिंसा रहित समाज और विष रहित पर्यावरण स्थिर विकास के प्रमुख तत्व होते है | जैसे समाज का विकास होता है; और यदि हमें अधिक से अधिक अस्पताल और कारागार बनाने पड़े तो यह भी भविष्य के लिए कोई अच्छी बात नहीं है |अधिक अस्पतालों और कारागार का उपलब्ध होना विकास के लक्षण नहीं है |

स्थिर विकास का अर्थ है, सभी किस्म के अपराधों से मुक्ति | पर्यावरण का विनाश, पेडों की कटाई, विषम अपशिष्ट पदार्थो के ढेर, फिर से प्रयोग मे न आने वाले पदार्थो का उपयोग करना भी अपराध है | पर्यावरण हमारा पहला शरीर होता है, फिर भौतिक शरीर और मन, या मानसिक परत | आपको इन तीनो स्थरो का भी ध्यान रखना होगा |
वास्तव मे मनुष्य का लालच सबसे बड़ा प्रदूषक है |लालच मनुष्य को दूसरों के साथ बाँटने से रोकता है | लालच परिस्थिति के संरक्षण मे बाधा है ; मनुष्य इतना लालची होता है की उसे तुरंत लाभ और परिणाम चाहिये होते हैं; ऐसा नहीं है कि लालच सिर्फ ठोस भौतिक पर्यावरण को प्रदूषित करता हैं परन्तु वह सूक्ष्म पर्यावरण को भी प्रदूषित करता हैं ; यह सूक्ष्म मन मे नकारात्मक भावनाओं को उत्तेजित करता है | जब यह नकारात्मक स्पंदन बढ़ जाते तो समाज मे अशांति निर्मित हो जाती है | नकारत्मक भावनाये जैसे घृणा,क्रोध, ईर्ष्या विश्व की सभी आपदाओ और दुःख का मूल कारण होती हैं, चाहे उनका स्वरुप आर्थिक , राजनैतिक या सामाजित हो |

लोगो को इस गृह,पेड़ों, नदियों और स्वयं लोगो को भी पबित्र मानने के लिए और प्रकृति और लोगों मे भगवान को देखने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ! इससे संवेदनशीलता को प्रोत्साहन मिलता है और एक संवेदनशील व्यक्ति प्रकृति का ध्यान और उसकी देखरेख करता है | मूल रूप से यह असंवेदनशीलता ही होती है जो व्यक्ति को पर्यावरण के प्रति कठोर बनाती है | यदि व्यक्ति संवेदनशील है तो वह निश्चित ही पर्यावरण का पोषण करेगा, जिससे प्रदूषण समाप्त हो सकेगा |
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