आध्यात्म की शुरूआत आनंद से होती हैं !!!


२३ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम 

प्रश्न : गुरुजी क्या अध्यात्म को विज्ञान के द्वारा समझाया जा सकता है ? कभी कभी मुझे इस सृष्टि पर आश्चर्य होता है जिसे अभी भी विज्ञान के द्वारा समझना शेष है | क्या वेद में इसका समाधान है ?
श्री श्री रवि शंकर: योग की शुरुआत आनंद से होती है, जब आप आनंदमय होते हैं  तो आप सत्य की खोज शुरू कर देते हैं और आपकी यात्रा की शुरुआत हो जाती है | यह भी ठीक है ‘विस्मयो योग भूमिका | आध्यात्म की शुरुआत आनंद से होती है और फिर वह हर समय मनोरंजन उद्यान मे रहने के सामान है | आप आश्चर्य चकित हो जाते हैं, ओह, यह ऐसा है ? यह संसार क्या है ? इसमें विभिन्न किस्म के वृक्ष पौधे, फूल, पत्तियां ,सब्जियां, फूल  और लोग है फिर यह सब क्या है ? जब इस प्रकार का विचार आप मे आते है, तो ज्ञान का उदय होता है |

प्रश्न : गुरुजी यदि हम परिस्तिथि जैसी है उसे वैसे ही स्वीकार करते , तो हम सृजनात्मक कैसे हो सकते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: यह आप ने आर्ट ऑफ लिविंग बेसिक कोर्स पार्ट १ मे समझा होगा, ठीक है ? स्वीकार करने का अर्थ कृत्य न करना नहीं होता है | वास्तव मे स्वीकार करने का अर्थ वर्तमान परिस्तिथि को समझना होता है
हर बच्चे को यह मालूम होना चाहिए की वह विश्व की हर परम्परा का अंश है | पाकिस्तान के कई पूर्वज हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म से थे और उनके कई पूर्वज इन प्राचीन संस्कृति से ही थे | कुछ तो पारसी भी थे | पाकिस्तान मे बच्चों को उपनिषद, थोडा योग और ध्यान सिखाया जाना चाहिए | योग का जन्म पाकिस्तान मे हुआ था | जन्म का तात्पर्य है की उसे वहां पर सिखाया और उसका प्रचार किया जाता था जिसे आज हम पाकिस्तान कहते हैं |
हजारों लोग सब किस्म के उपदेशों का पालन करते है क्योंकि उन्हें अध्यामिक ज्ञान के बारे मे पता नहीं है | इसीलिए हमारा यह महत्पूर्ण कर्त्तव्य है कि हम लोगों को अध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करें | क्या आप को ऐसा नहीं लगता ?
इसीलिए हम को और भी सक्रिय होना पड़ेगा कि समाज मे अच्छे काम करने के लिए कैसे कट्टरपन करुणा और प्रतिबद्धता मैं परिवर्तित हो सके |  इसके लिये हम सब को मिल जुल कर काम करना होगा |

प्रश्न : गुरु जी क्या सुदर्शन क्रिया से डी.एन.ए. में बदलाव आ सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: हां |

प्रश्न : गुरुजी आलोचना को स्वीकार करने के लिए मैं अपने आप को कैसे मजबूत कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: आप स्वीकार करें या ना करें आलोचना तो हो चुकी है, ठीक है ? आप के पास कोई विकल्प ही नहीं रह जाता | किसी के बोलने के बाद ही आप को यह समझ मे आता है कि उन्होंने आपकी आलोचना की है | उनके बोलने के पहले आप को इसके बारे मे कैसे मालूम पड़ेगा ? किसी की आलोचना करने से पहले इसके बारे मे मालुम नहीं होता है | उनके आलोचना करने के बाद वह घटना घट चुकी होती है | फिर आपके पास क्या विकल्प रह जाता है ? यदि आप उसे स्वीकार नहीं करते तो आप के साथ क्या होगा ? आप और दुखी हो जायेंगे | यदि आप बुद्धिमान है तो आप उसे स्वीकार करेंगे और यदि आप बुद्धिमान नहीं है तो आप उस पीड़ा से पीड़ित रहेंगे | इसका यही उपाय है और आप इसे कर सकते हैं |

प्रश्न: गुरूजी, मैने देखा है कि आपकी मुझ पर अपार कृपा है | मुझे जो कुछ भी चाहिए या मेरी कोई भी इच्छा हो तो आप उसे पूरा कर देते हैं | ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैने कुछ इच्छा की हो और वह पूरी नहीं हुई है | परन्तु मेरी मांगे ऐसी हैं कि उनका अंत ही नहीं हो रहा है, और मुझे अब अपने इस व्यहवार पर शर्म आने लगी है, इसके लिए मैं क्या करूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: अब आप इसके बारे में सजग हो गए हैं तो अब आप सही पथ पर आ गए हैं | अब आपकी गाड़ी सही मार्ग पर आ गयी है और उसने यू टर्न ले लिया है | कुछ बड़ा मांगो | आप कुछ छोटी चीज़ क्यों मांगते हैं ? और सिर्फ अपने लिए ही नहीं मांगे, सब के लिए मांगे | आप जो भी मांगेगे, वह आपको मिल जाएगा |

प्रश्न: जिस स्कूल में मेरा बालक पढ़ रहा हैं, उससे मैं खुश नहीं हूं | क्या मैं उसे उस स्कूल से निकाल कर अपने घर में ही शिक्षा प्रदान करूं ?
श्री श्री रवि शंकर: नहीं, क्योंकि स्कूल का वातावरण ठीक नहीं हैं, इसलिए घर में रहना भी ठीक नहीं हैं | फिर बच्चे मंद बन जायेंगे | हमको स्कूल की व्यवस्था में सुधार लाना होगा और यह कार्य हो रहा है | हम कई स्कूल शुरू कर रहे हैं | हमने भारत में अब तक करीब १०० स्कूल खोले हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मेरी सास दुसरे धर्मों के लोगो को प्रसाद वितरित नहीं करती | उनका तर्क हैं कि जिसे प्रसाद का महत्त्व नहीं समझता, उन्हें लाभ नहीं होगा | मैं कैसे उन्हें अन्यथा सोचने के लिए कहूं ?
श्री श्री रवि शंकर: कोई बात नहीं, यदि वो नहीं करती तो आप उसे हर किसी में वितरित करें | प्रसाद सामान्यतः स्वादिष्ट व्यंजन होता है | हर किसी की अपनी व्यक्तिगत राय होती है, उसे रहने दीजिए | आप अपनी राय रखे, इसमें कोई द्वंद नहीं है | आप वह करे जो आपको करना है |

प्रश्न: क्या महत्वपूण हैं: वेदांत, ज्ञान या प्रेम ?
श्री श्री रवि शंकर: वेदांत, ज्ञान और प्रेम हर समय साथ में चलते हैं | कभी किसी को महत्त्व दिया जाता है तो कभी किसी अन्य को महत्त्व दिया जाता है | इसलिए आपको तीनों को साथ में लेकर चलना होगा |
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