१४
२०१२
सितंबर
|
लीमा, ब्राज़ील
|
तो आज हम किस
विषय पर चर्चा करें?
मैं आज वक्ता
का किरदार निभा रहा हूँ, और आप सब श्रोता हैं| मेरे लिए यह मालूम करना
कितना अच्छा होगा कि आज आप क्या जानना चाहते हैं|
आप किसी भी
विषय के बारे में सोच सकते हैं|
क्या आप जानते
हैं, कि किसी ऐसी बात के बारे में चर्चा करना जो आपके दिल के बहुत करीब हो; उसके लिए एक बहुत ही अनौपचारिक वातावरण होना चाहिये|
एक औपचारिक
वातावरण ज्ञान की चर्चा करने के लिए अनुकूल नहीं है, प्रामाणिकता के लिए उपयुक्त
नहीं है|
मेरी तो आदत ही
है सब कुछ एक अनौपचारिक माहौल में करने की|
तो चलिए, हम
थोड़ा आसपास मुड़ते हैं, और अपने आगे बैठे व्यक्ति का अभिवादन करते हैं, अपने बगल
में बैठे व्यक्ति का, और आपके पीछे बैठे व्यक्ति का भी| अपने आस-पास के सभी लोगों से परिचित हो जाएँ|
मैं आपसे एक
प्रश्न पूछना चाहता हूँ|
क्या आपने सच में
उस व्यक्ति का अभिवादन किया, या आपने सिर्फ एक औपचारिकता के रूप में किया?
ये बात आपको
अपने बगल में बैठे व्यक्ति को नहीं बतानी है| आपको उनसे ये नहीं कहना है,
कि ‘अरे, मैंने तो सिर्फ औपचारिकता
निभाने के लिए आपका अभिवादन किया था’|
मैं चाहता हूँ
कि यह प्रश्न आप अपने आप से करें, कि क्या आपने सच में उस व्यक्ति का अभिवादन किया
था?
आप जानते हैं
कि जब आप हवाई जहाज से उतरतें हैं, तब एयर होस्टेस आपका अभिवादन करते हुए कहतीं
हैं, ‘आपका दिन शुभ हो’, लेकिन उनका वह मतलब नहीं होता|
वह सिर्फ उनके
होठों से निकल रहे शब्द होते हैं|
लेकिन अगर यही
शब्द आपकी माँ के मुँह से निकलें, आपकी बहन या कोई गहरे दोस्त के मुँह से निकलें, तब उसके साथ कुछ
तरंगें होती हैं|
तो इसलिए, हम
अपनी तरंगों से ज्यादा व्यक्त करते हैं|
कोई आपको खड़े
होकर प्रेम के बारे में दो घंटे तक भाषण दे सकता है, मगर उससे वह व्यक्त नहीं हो
पायेगा, जो एक छोटा शिशु या कुत्ता आपको अपनी तरंगों के द्वारा व्यक्त कर देता है|
आप किसी ऐसी
जगह पर जाएँ, जहाँ लोग दुखी हैं, आप देखेंगे, कि बिना किसी वजह आप भी दुखी हो जाते
हैं| उसी तरह, अगर आप किसी ऐसी जगह जाएँ
जहाँ लोग बहुत खुश हैं, और आप अपने अंदर भी आनंद उमड़ता महसूस करेंगे|
यह पूरा संसार
केवल तरंगों से ही बना हुआ है; लहरें और सिर्फ लहरें|
हमारा मन
तरंगों से बना है, हमारा शरीर भी सिर्फ तरंगें ही हैं, हमारे विचार भी तरंग हैं और
हमारी भावनाएँ भी तरंग ही हैं| लेकिन हम इन तरंगों को,
हमारे भीतर की सकारात्मकता को, बेहतर बनाने के लिए कुछ भी नहीं करते, है न?
वह ‘कुछ’ जिसे करने से आपकी तरंगें
आनंदित हो जाती हैं, सकारात्मक और शांत हो जाती हैं; उसी
को ध्यान कहते हैं|
और साँस लेने
की प्रक्रियाओं के द्वारा और ध्यान के माध्यम से ये बहुत जल्दी हो सकता है|
आम तौर पर जब
कोई कहता है, ‘ध्यान’ तो
आपको ऐसा लगता है कि आपको सबकुछ छोड़ कर मछु पिछु (एक स्थान का नाम) या कहीं हिमालय
में जाना पड़ेगा| नहीं! ऐसा कुछ भी नहीं है| आप इसका अनुभव अपने घर में
भी कर सकते हैं|
और ध्यान करने
के क्या लाभ हैं? हमें ध्यान क्यों करना चाहिये? जैसा मैंने पहले कहा, कि इससे
हमारी तरंगें और अधिक सकारात्मक हो जाती हैं|
कभी कभी आप
किसी व्यक्ति से मिलते हैं, और आपको उससे घृणा सी भो जाती है और आप उनसे बात ही
नहीं करना चाहते| क्या आपने ऐसा अनुभव किया है?
और फिर कभी
कभी कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जिनसे आप बात भी करना चाहते हैं और उनके साथ और अधिक
समय व्यतीत करना चाहते हैं| एक बार फिर, ये तरंगें ही
हैं|
इसी तरह, आपको
कुछ विचार आते हैं, और वे एकदम सही निकलते हैं| और कभी कभी आपको ऐसे विचार
आते हैं जो बिल्कुल गलत होते हैं| ऐसा होता है न?
तो ये ऐसे हुआ
कि हम अंधकार में चल रहे हैं, और अपनी खुद की चेतना के बारे में कुछ भी नहीं
जानते|
यदि आप चेतना
को समझ लेते हैं, तब बहुत सी चीज़ें होती हैं, और आपका जीवन पहले से अधिक खुशहाल हो
जाता है| हमारा स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है,
और लोगों के साथ हमारे रिश्ते बेहतर हो जाते हैं|
आपने लोगों से
सुना होगा कि किस तरह उनके जीवन में हिंसक प्रवृत्तियां कम हो जाती हैं| और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हमारी इच्छाएं पूरी होने
लगती हैं|
चार प्रकार के
लोग होते हैं|
कुछ लोग
जिन्हें इच्छाएं होती हैं, और वे इच्छा पर इच्छा करते रहते हैं लेकिन कभी कुछ पूरा
नहीं होता|
फिर कुछ ऐसे
हैं, जो इच्छा करते हैं और उसके लिए बहुत कड़ी मेहनत भी करते हैं, और फिर एक बहुत
लंबे समय के बाद, वह इच्छा पूरी होती है|
और तीसरे
प्रकार के लोग, जो इच्छा करते हैं और वह फ़ौरन पूरी हो जाती है, बिना किसी मेहनत के|
और चौथी तरह
के लोग जिन्हें इच्छा करने की आवश्यकता ही नहीं होती, उनकी इच्छा जागृत होने से
पहले ही अपने आप काम हो जाता है|
तो आप किस
श्रेणी में होना चाहते हैं? चौथी श्रेणी में?
हाँ, वही सबसे
भाग्यशाली हैं| यह ऐसे हुआ, कि आपको प्यास भी नहीं
लगी, और वहां पहले से ही पानी आ गया|
भारत में एक
कहावत है जो कहती है, ‘जब आपके पास दांत थे, तब
आपको मूंगफली नहीं मिली, और जब आपको मूंगफली मिल गयी, तब आपके पास दांत नहीं थे’|
बहुत से लोग
इसी अवस्था में होते हैं| वे पूरी जिंदगी इतनी मेहनत
करते हैं, बहुत सा पैसा कमाते हैं, उसे बैंक में रखकर मर जाते हैं| और फिर उनके बच्चे माँ-बाप के उस पैसे के ऊपर लड़ते हैं|
दुनिया में,
७० प्रतिशत कोर्ट केस विरासत से सम्बंधित हैं|
अब देखिये,
कोई भी उस पैसे के लिए नहीं लड़ता जो उसने खुद कमाया है| तो आपने क्या किया है, आपने पैसा कमाया है, बैंक में डाल
दिया है और फिर अपने बच्चों को आपस में उस पैसे के लिए लड़वाया है| क्या ये कोई समझदारी का काम है?
हमने अपने आधे
स्वास्थ्य को इस पैसे को कमाने के लिए गवां दिया| और
फिर हम इस स्वास्थ्य को वापिस पाने के लिए अपने आधे धन को गवाएंगे|
बिल्कुल
समझदारी नहीं है! बिल्कुल किफायती नहीं है|
हमें ये जानने
की ज़रूरत है, कि जीवन किस ओर जा रहा है?
एक बार एक
अकलमंद बेवक़ूफ़ एक गधे पर बैठ कर कहीं जा रहा था, और गधा भाग रहा था| वह बार बार सड़क के गोल गोल चक्कर लगा रहा था| तो किसी ने इन
सज्जन से पूछा, ‘आप बार बार इसी सड़क पर चक्कर लगा
रहें हैं, आपको जाना कहाँ है?’
वे बोले, ‘मुझे नहीं पता गधे से पूछो!’
अधिकतर समय,
हमारे जीवन ऐसे ही हैं| हम बस काम करते रहते हैं
बिना ये जाने हुए कि ‘आखिर उद्देश्य क्या है!’ और ना ही हम प्रकृति के द्वारा उपलब्ध कराई गयी चीज़ों का
आनंद लेते हैं|
देखिये, जब मन
में कड़वाहट होती है, तब आपको दुनिया में कहीं भी खुशी नहीं मिल सकती| जब मन में मिठास होती है, तब आपको हर जगह मिठास ही दिखती है|
तो ध्यान का
अर्थ सिर्फ इतना ही है, कि अपने मन के भीतर की उस मिठास को ढूँढना| और जब वह आपको मिल जाती है, तब क्या आप जानते हैं, कि आप
क्या करना चाहेंगे? आप उसे सब लोगों में बांटना चाहेंगे|
लोग मुझसे
पूछते हैं, ‘आपकी प्रेरणा क्या है? आपको इससे
क्या मिलता है? आप क्यों हर समय दुनिया भर की जगहों में दौड़-भाग करते रहते हैं?’
मैंने उनसे
सिर्फ एक प्रश्न पूछा, ‘मान लीजिए, कि आप एक बहुत
अच्छी सिनेमा देखें, तो आप क्या करेंगे? क्या आप सिर्फ चुपचाप अपने कमरे में बैठ
जायेंगे? या फिर आप फोन उठाएंगे, अपने दोस्तों को फोन करेंगे और उन्हें बताएँगे, ‘ओह! ये बहुत अच्छी सिनेमा है, तुम्हें ज़रूर जाकर ये सिनेमा
देखनी चाहिये|’ अब आपको ऐसा करके क्या मिलेगा? क्या
सिनेमा के प्रोडयूसर आपको ऐसा करने के लिए कमीशन दे रहे हैं? या उसमें अभिनय
करने वाले हीरो हीरोइन आपको पैसे दे रहे हैं? आपको ये सारे फोन कॉल करके क्या
मिलता है? आप ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि आनंद का स्वभाव ही है; बांटना|’
आनंद का
स्वभाव है उसे बांटना|
दो तरह के
आनंद होते हैं, एक होता है छीनने का आनंद| जब हम बच्चे होते हैं, तो
हम इस प्रवृत्ति के साथ पैदा होते हैं| यदि आप किसी बच्चे को यहाँ
छोड़े देंगे, तो वह यहाँ जाएगा, इस फूल को नोचेगा, इस चादर को खींचेगा, वहां उस
कुर्सी को खींचेगा, सब चीज़ों को उलट पुलट कर देगा, और चीज़ों को पकड़ कर रखेगा|
वह किसी भी
चीज़ को पकड़ लेगा, चाहे वह चाकू ही क्यों न हो| बिना ये जाने, कि उससे हाथ
में चोट लग सकती है, बच्चा चाकू को पकड़ लेता है|
लेकिन, माएँ बहुत चालाक होती हैं, वे बच्चे के हाथ में कुछ और दे देती हैं, ताकि
चाकू से उसकी पकड़ ढीली हो जाए| ऐसा होता है न?
जब बच्चे किसी
चीज़ को पकड़ लेते हैं, तो ये अच्छी बात नहीं है, इसलिए आप उन्हें कुछ और दे देते
हैं|
तो ये एक
प्रकार का आनंद है, कुछ पाने का या कुछ मिलने का आनंद| यह बचकाना है, बच्चों की खुशी है| एक और तरह का आनंद होता
है, आनंद जो कि कुछ देने से आता है|
बहुत सी
महिलाएं जो यहाँ मौजूद हैं, जब आपके घर मेहमान आते हैं, या आपके बच्चे घर आ रहें
होते हैं, तो आप क्या करते हैं? आप तरह तरह के पकवान बनाते हैं, और उन्हें सजाकर
टेबल पर रख देते हैं| एक माँ होने के नाते, आपका आनंद
देने में है, है न!
आप दादा-दादी
को ही देखिये, उन्हें बच्चों को उपहार देने में कितना आनंद आता है, है न! देने में
भी आनंद है, और यही एक परिपक्व आनंद है|
हम केवल ‘कुछ मिलने से’ प्राप्त होने वाले आनंद के
साथ ही जीवन व्यतीत नहीं कर सकते, हमें ये भी जानना चाहिये, कि देने में भी आनंद
है|
यदि एक बार
आपने ‘देने’ से
मिलने वाले आनंद का थोड़ा सा भी रस चख लिया, तब आप पाएंगे कि जीवन जीने के लायक है,
कि जीवन परिपूर्ण है|
इसलिए, और
अधिक मुस्कुराईये!
आप जानते हैं,
एक शिशु दिन में ४०० बार मुस्कुराता है, एक किशोर केवल १७ बार मुस्कुराता है और एक
वयस्क कभी कभी ही मुस्कुराता है|
और यदि आप कोई
अफसर या राजनेता बन गए, तब तो भूल ही जाईये| आपकी मुस्कुराहट तो कहीं खो
ही जाती है, उड़ जाती है| मुस्कुराहट बनावटी नहीं होनी
चाहिये, वह भीतर से आनी चाहिये| ये तभी हो सकता है, जब आपके
मन का तनाव मिट जाये, और हम ध्यान में और गहन हो जाएँ|
यदि कोई कह
रहा है कि, ‘मैं ध्यान कर रहा हूँ’ इसका अर्थ यह है, कि वे अधिक मुस्कुराते हैं, वहां शान्ति
है, संवेदनशीलता है, बुद्धिमानी है और आध्यात्मिकता है|
आध्यात्मिकता
का अर्थ ही है – बुद्धिमानी, संवेदनशीलता, मिठास और
मुस्कुराहट, इन सबको साथ में लेकर चलना|
प्रश्न: मैं क्या करूँ यदि तनाव बाहर कहीं से आ रहा है| ये ऐसा है जिस पर मेरा कोई काबू नहीं है, या ये मुझसे परे है| ऐसे में मैं शान्ति कैसे संचालित करूँ?
श्री श्री
रविशंकर: इसीलिये हमें लोगों को ये सिखाने की ज़रूरत है कि वे अपने तनाव से कैसे
मुक्त हों| यदि एक परिवार में एक व्यक्ति ठीक
नहीं है, तो क्या उससे पूरे परिवार को फ़र्क नहीं पड़ता? हाँ, फ़र्क पड़ता है| उसी तरह, यदि समाज में कुछ चंद लोग मानसिक तौर पर अस्वस्थ
हैं, तब समाज में हिंसा बढ़ती है|
इसी तरह जेल
में कुछ लोग हैं, जो कहते हैं, ‘ओह, अब मैं किसी तरह की
हिंसा में रहना नहीं चाहता|’ लेकिन ऐसे बहुत से लोग बाहर
हैं जो समाज में परेशानियां खड़ी कर रहे हैं, और इसीलिये हमें इस आध्यात्मिक ज्ञान
को लोगों तक पहुँचाना है|
हमें लोगों को
यह सिखाने की आवश्यकता है, कि शांत कैसे रहें, किस तरह आपनी नकारात्मक भावनाओं पर
काबू करें, और कैसे अपने मन को संभाले, क्योंकि न तो घर पर और ना ही स्कूल में
किसी ने भी हमें यह सिखाया कि हम अपने मन को कैसे संभालें|
इसलिए, जब
गुस्सा होता है, ईर्ष्या या नफरत, और जब आप इन भावनाओं के साथ रहते हैं, तब आप
इनसे प्रेरित होकर कर्म करते हैं| आप नहीं जानते कि इनसे
मुक्त कैसे होते हैं| आप उन्हें पकड़ लेते हैं और फिर उनके
मुताबिक काम करते हैं, और फिर बाद में पछताते हैं| यही
समस्या है|
ये अभ्यास और
यह ज्ञान, यही इसका समाधान हैं|
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