प्रश्न : लोगों को क्रोध से कैसे दूर किया जा सकता है, क्योंकि क्रोध करने वालों के साथ रहना कभी कभी बड़ा मुश्किल हो जाता है?
श्री श्री रविशंकर : केवल ज्ञान के द्वारा! विवेक, ज्ञान और ध्यान से।
प्रश्न: हमारी चेतना के किसी स्तर पर, जैसे कि स्मृति पर किसी सदमे या अन्य दुख से प्रभाव पड़ा हो तो उसका कितना असर रहता है और उससे उभर कर वापिस अपने आनंदस्वरूप में कैसे लौटा जा सकता है?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान द्वारा! जैसे अभी तुम कर रहे हो। योग, प्राणायाम और ध्यान से सब ठीक हो जाता है। हम अपने शरीर के साथ इतना दुर्व्यवहार करते हैं कि अगर हम इसका इस्तेमाल लंबे समय के लिए करना चाहतें हैं तो इस तरह का ध्यान देना आव्श्यक हो जाता है। इसी तरह हमने अपनी साँस का उपयोग और दुरुपयोग किया है। इन सबसे हमारा मन, बुद्धि, पूरा शरीर और जीवन्क्रम - सब उलट-पुलट होकर कष्टदायक हो जाता है और इन सबके अनुभव हमारी स्मृति में जमा हो जाते हैं। पर याद रहे, ये सब ध्यान द्वारा ठीक किये जा सकते हैं। एक बार अपनी आत्मा से साक्षात्कार होने से, स्मृति की परतों में पड़े घाव भी भर जाते हैं। एक बार जब तुम्हें अपनी चिन्ता, दुख या किसी सदमे के कारण का आभास हो जाता है, तब तुमहें यह पता चलता है कि तुम किसी भी अनुभव से बहुत ऊपर हो। और फिर यह भी सोचो, इस दुनियाँ में कितने करोड़ों लोग हैं और इन सब के कितने अनुभव हैं।
अब देखो पाकिस्तान में क्या हुआ?- बाढ़ आयी, कितने लोगों को आघात लगा। भारत के लेह लद्दाख में क्या हुआ?-अचानक बादल फटने से कितनी तबाही हुई- लोगों का घर बार, सब कुछ मिट गया! और फिर देखो, ये आतंकवादी, तालिबान व अन्य दल कितना आतंक फैला रहे हैं लोगों में। टाइम्स पत्रिका का आवरण पेज देख कर तो दिल दहल जाता है! अफ़गानिस्तान में महिलाओं के नाक काटे हैं तालिबान ने। इन सब अनुभवों के साथ रहते हुए भी लोग जिंदा हैं और जी रहे हैं। और हम परेशान हो रहे हैं अपनी छोटे मोटे दुखद अनुभव से! हर व्यक्ति को कुछ ना कुछ दुखद अनुभव होता ही है जीवन में, पर होश में आने पर पता चलता है कि ये छोटा सा दुखद अनुभव अन्य बातों की तुलना में कुछ भी नहीं है। तो यदि तुम दुनियां की अन्य बड़ी समस्याओं पर गौर करो तो तुम्हें अपनी समस्या कुछ भी नहीं लगेगी, ठीक है ना?
प्रश्न : मेरा एक सवाल है। जहाँ यह सब प्रकोप पाकिस्तन में हुआ, वही जगह आतंकवाद से भी सबसे ज्यादा प्रभावित है। क्या इसका लोगों के कर्मों से और प्रकृति के प्रकोप से कोई सम्बंध है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसे वक्त लोगों को यह कहना ठीक नहीं कि वे अपने कर्मों के कारण ये प्राकृतिक यातनाएं सह रहे हैं। यह विपत्ति प्राकृतिक कारण से हुई । शास्त्रों में तीन तरह की यातनायें बतायी गयी हैं।
ये तीन तरह की विपदायें हैं-
पहली- आदि भौतिक, जो प्राकृतिक कारण से होती है,
दूसरी- आदि दैविक विपदायें जो मनुष्य द्वारा उत्पन्न होती है, या कह सकते हो मनुष्य के अपने दुष्कर्मों के कारण पैदा करी हुई यातनायें,
और तीसरी विपदा है आध्यात्मिक- जिसे शायद आप ईसाई धर्म में, ’डार्क नाइट औफ़ सोल’ (आत्मा की काली रात) के नाम से कहते हो। इसमें सब कुछ होते हुए भी यातना महसूस होती है। धन दौलत, पदवी ,नाम-शौहरत सब कुछ हासिल करने के बाद भी मन पर एक उदासी और अंधकार की छाया का आभास होता रहता है। छटपटाहट होती रहती है, इस अंधकार को कैसे काटें? आत्मा में एक बेचैनी और अकुलाहट सी लगती है, एक आन्तरिक शून्यता का आभास होता है-जहाँ कोई सुख महसूस नहीं होता, सब कुछ मरा- मरा सा और बेकार लगता है।
इन तीन यात्नाओं को ’तापात्रिय’ कहते हैं। ताप यानि-दुख, कष्ट, पीड़ा, यात्ना और मनुष्य जीवन इन्हीं तीन प्रकार के कष्टों से प्रभवित होता है। तो इनसे उभरने का उपाय कैसे हो?- तपस से!
’तपस’- यानि सहनशीलता, ज्ञान, बोध, ध्यान, योग, प्राणायाम- ये सब। और तपस से इन तीन बताये गये तापों को मिटाया जा सकता है।
प्रश्न : कई बार हम अपने आप को आपसे जुड़ा नहीं पाते हैं, इसको कैसे सुधारें?
श्री श्री रवि शंकर : कभी कभी ना? तुम थोड़े समय दूर रहने के बाद फिर वापस जुड़ाव महसूस करने लगते हो, है ना। कोई बात नहीं।
प्रश्न : प्राकृतिक प्रकोप केवल कुछ ही स्थानों में क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर : कुछ स्थानों में ही प्राकृतिक प्रकोप क्यों होता है, मुझे नहीं मालूम, आपको इसके लिये धरती माता को पूछना होगा! हाँ, एक बात मैं बता सकता हूँ कि इस धरती का हम बहुत शोषण कर रहे हैं। प्रतिदिन इतना बारूद जो इसकी गोद में ड़ाला जाता है, विस्फोट किए जाते हैं तो उससे फिर धरती कंपन नहीं करेगी क्या? खान खोदना आज कल एक नया व्यापार बन गया है। दुनिया भर में, ५-६ कम्पनियाँ मिल कर बस खुदाई और खुदाई ही किये जा रही हैं और जितना धरती दे सके उससे ज्यादा की मात्रा में उसकी सामग्री को खत्म किये जा रहे हैं।
शेष अंश अगली पोस्ट में..
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