बैंगलौर, भारत
सितम्बर १९ २०१०
जीवन जीव जगत नश्वर - अष्टावक्र
यहाँ पर बैठे सालों साल बीते जा रहें हैं। यहाँ सब कुछ खतम हो जाता है। अच्छा समय भी
चला जाता है और बुरा समय भी चला जाता है। यह याद करके खुश रहो। जीवन और साधना
अलग नहीं हैं, हमारा जीवन ही साधना है। साधना का अर्थ है पूर्ण विश्राम। तुम क्या
जानना चाहते हो? यहाँ सबकुछ नश्वर है। सब कुछ बदल रहा है - तुम्हारा शरीर, तुम्हारी
बुद्धि। सब कुछ विलीन हो जाएगा। ३० साल पलक झपकते ही निकल गए। काल इतनी
तेज़ी से भाग रहा है। अगर तुम्हे लगता है कि कुछ नहीं बदल रहा है तो वो है चेतना। वहाँ
अड्डा जमा लेते हैं। अब इस समय का अच्छे से उपयोग करें। जीवन को साधना मानो।
साधना वही है जिसमें श्रम नहीं है। श्रम से साधना से शरीर मज़बूत, कुछ हद तक मन और
कुछ कुशलता आएगी। उदाहरण के लिए, सितार, कम्प्यूटर, व्यायाम। पर साधना विश्राम से
ही होता है। विश्राम से हमे बोद्ध प्रेम प्राप्त होता है। श्रम से प्रेम नहीं प्राप्त होता।
विश्राम से सुख आता है, भाव जगता है और बुद्धि तीक्ष्ण होती है - कविता लिखी, साहित्य
उमड़ा, योग्यता मिलती है।
विश्राम माने जड़ता का विश्राम नहीं। सुबह क्यों योगासन करें? नहीं ऐसा नहीं। कुछ परिश्रम
के बाद ही विश्राम मिलता है। आलस्य मिट जाए, ऐसी इच्छा जागे की आलस्य मिट जाए।
कामना में उलझे रहना और फ़िर नींद में गए - तम से रज और रज से तम में घूमते रहते हैं।
यह बंधन है। सतोगुण विश्राम और ज्ञान से प्राप्त होता है। अष्टावक्र का सार - जाग्रित
अवस्था में सुखपूर्वक विश्राम, सात्विक विश्राम। वो विश्राम सच्चा विश्राम है। उस में मोह
माया छूटी।
शिव को महाकाल कहते हैं। समय के दोष को हरने वाला। समय का कुछ नियम है, कुछ तरीका
है। कुछ मनचाही, कुछ अनचाही बातें होती रहती हैं। प्रकति बार बार हमे यही सिखाती है,
विरोधाभास मूल्य एक दूसरे के पूरक हैं।
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