‘मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं यहाँ आपके लिए हूँ'


किसी के भी जीवन में यह सबसे खूबसूरत घटना होती है जब कोई यह महसूस कर सके किे, ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं यहाँ आपके लिए हूँ।’ मुझे ऐसी किस्मत मिली है कि मै शुरु से ही यह कह सकता था। मेरी इच्छा है कि अधिक से अधिक लोग ऐसा ही महसूस करें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं समाज कैसा होगा जब हर कोई यही सोच रखेगा? यह गुण तो पहले से ही सब में है। पर यह कहीं छिप गया है।

जब एक राष्ट्र का नेता ऐसा महसूस करता है तभी देश प्रगति करता है। और जब उसका ध्यान देश और देशवासियों पर केन्द्रित होता है तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि उसकी ज़रुरतें ना पूरी हों। पर जब हम केवल अपनी ज़रुरतों पर ही ध्यान देते हैं तो हम अपने को और अपनी कुशलता को पूर्ण रूप से निखरने का मौका नहीं देते। हमे हमेशा यही चिश्वास रखना चाहिए कि हमारी ज़रुरते पूरी होंगी।

इसका मतलब यह नहीं है कि कोई ज़रुरत महसूस होती हो तो आप ज़बरदस्ती मन बनाए कि, ‘नहीं मेरी तो कोई ज़रुरत ही नहीं है।’ यह भाव पूर्णता की स्थिति में पनपता है, ना कि अपनी ज़रुरतों को दबा देने से या अनदेखा करने से। जब तुम सर्वोच्च ज्ञान की ओर ध्यान देते हो तो तुम्हारी ज़रुरतें समय से पहले ही पूर्ण हो जाती हैं।

यह बहुत खुशी की बात है कि आर्ट ऑफ़ लिविंग समाज के विभिन्न वर्गों  को एक साथ ला रहा है। किसी भी धर्म का केन्द्र प्रेम ही है और आर्ट ऑफ़ लिविंग भी इसी प्रेम के सिद्धांत पर आधारित है, ‘मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए, मैं यहाँ आपके लिए उपस्थित हूँ।’ दुनिया में अधिक से अधिक लोगों को ऐसी सोच अपनानी चाहिये।

अगर हर कोई ऐसा ही सोचने लगे तो यहे दुनिया स्वर्ग बन जायेगी। पर, हर कोई अगर यह सोचे कि वह दूसरों से क्या ले सकता है, तो दुनिया की मौजूदा हालत तो हम देख ही रहे हैं!

हम दुनिया को स्वर्ग बनाने में लगे हुए हैं, और इस काम को होता देख कर बहुत खुशी हो रही है। तो, हर दिन हम यह मान कर आगे बढ़ते हैं कि, ‘मैं आपका हूँ।’  इस ज्ञान से प्रेम, कर्म, मस्ती और उत्सव का उदय होता है।



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