जब हम बच्चे की तरह हो जाते हैं तो हम एहसास करते हैं कि हम में एक अमुल्य शक्ति है। यह हम सब में, हरेक में है। इसका आभास होना सबसे खूबसूरत है। सौंदर्य कपड़ों में नहीं है। सुन्दरता एक भीतरी गुण है। हम जैसे अपने को पेष करते हैं वो महत्व रखता है पर अगर क्रोध, ईर्ष्या या लालच से भरे हों तो वो हमारे व्यक्तित्व में झलकता है और सब सौन्दर्य गायब हो जाता है। उस भीतरी सुन्दरता में कैसे लौंटे जो हम में जन्म से ही थी? आप कहीं भी जाएं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर या दक्षिणी ध्रुव पर - हर जगह बच्चे बहुत सुन्दर होते हैं। बच्चों से प्रेम और आनंद झलकता है। हम जैसे जैसे बड़े होते हैं हम कई कौशल विकसित करते हैं पर कहीं हम अपनी उस भीतरी सुन्दरता को बनाए नहीं रख पाते। क्या हम सभी कौशल बनाए रखने के साथ साथ उस सुन्दरता को भी बनाए रख सकते हैं जो हम में जन्म से ही थी? मैं कहुंगा - हाँ, और आर्ट ऑफ़ लिविंग उसी के बारे में है - जीवन को उत्सव बनाना; तनाव मुक्त, हिंसा मुक्त, बीमारी से मुक्त शरीर, किसी भी दुविधा से मुक्त मन और दुख से मुक्त आत्मा। ऐसा कौन है जिसे यह सब नहीं चाहिए? यह संभव है। आर्ट ऑफ़ लिविंग के पिछले ३० सालों में हमने यही देखा है कि दुनिया के हर कोने में हर किसी को प्रेम चाहिए - वो प्रेम जो केवल कोई भावना नहीं है पर जो हमारा अस्तित्व है। और वही हम बांटते हैं।
रशिया के टुयर की बात करें तो मुझे यहाँ बिल्कुल घर जैसा लगता है। यहां बहुत अच्छे लोग हैं और मैं चाहुँगा कि यह अपनापन यहाँ बना रहे। पर युवा पीढ़ी में यह अपना पन कहीं खोता नज़र आता है।
युवाओं में अधिक तनाव जमा हो रहा है। और हमें यह देखना है कि हमारी युवा पीढ़ी तनाव और अवसाद से मुक्त हो। WHO के अनुसार यूरोप के ३० प्रतिशत लोग अवसाद से पीड़ित हैं। हम सब यह संकल्प लेते हैं कि हम आगे ऐसा नहीं होने देंगे। हम एक खुशहाल संसार देखना चाहते हैं। मैं हर आंसु एक मुस्कुराहट में बदलते देखना चाहता हूँ। और इसीलिए योगा, प्राणायामा और क्रिया तनाव से दूर होने के लिए इतने ज़रुरी हैं।
नृत्य के लिए एक पैर ज़मीन पर और एक हवा में होता है। व्यवहारिक और आध्यात्मिक जीवन में अच्छा आधार जीवन को उत्सव बनाता है। इन दो पहलुऒं में समता ही शक्ति का स्रोत है और जब हम यह समता खो देते हैं तो अपने को मुश्किल में पाते हैं।
प्राचीन आध्यात्म ने हर सभ्यता और धर्म को जोड़ा है। आपको नहीं लगता इसी की आज हमें ज़रुरत है? धर्म के नाम पर कितने युद्ध और आतंकवाद हो रहा है। इसका एक इलाज यही है कि सब आध्यात्म में वापिस आएं। उस खूबसूरती और शक्ति स्रोत में वापिस आएं जो भीतरी है। हम अपने शब्दों से कई अधिक अपने अस्तित्व से व्यक्त करते हैं।
मुझे जो कहना था मैं सब कह चुका हूँ और अब मैं आपके प्रश्न आमत्रित करता हूँ।
प्रश्नोतर अगली पोस्ट में...
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality
रशिया के टुयर की बात करें तो मुझे यहाँ बिल्कुल घर जैसा लगता है। यहां बहुत अच्छे लोग हैं और मैं चाहुँगा कि यह अपनापन यहाँ बना रहे। पर युवा पीढ़ी में यह अपना पन कहीं खोता नज़र आता है।
युवाओं में अधिक तनाव जमा हो रहा है। और हमें यह देखना है कि हमारी युवा पीढ़ी तनाव और अवसाद से मुक्त हो। WHO के अनुसार यूरोप के ३० प्रतिशत लोग अवसाद से पीड़ित हैं। हम सब यह संकल्प लेते हैं कि हम आगे ऐसा नहीं होने देंगे। हम एक खुशहाल संसार देखना चाहते हैं। मैं हर आंसु एक मुस्कुराहट में बदलते देखना चाहता हूँ। और इसीलिए योगा, प्राणायामा और क्रिया तनाव से दूर होने के लिए इतने ज़रुरी हैं।
नृत्य के लिए एक पैर ज़मीन पर और एक हवा में होता है। व्यवहारिक और आध्यात्मिक जीवन में अच्छा आधार जीवन को उत्सव बनाता है। इन दो पहलुऒं में समता ही शक्ति का स्रोत है और जब हम यह समता खो देते हैं तो अपने को मुश्किल में पाते हैं।
प्राचीन आध्यात्म ने हर सभ्यता और धर्म को जोड़ा है। आपको नहीं लगता इसी की आज हमें ज़रुरत है? धर्म के नाम पर कितने युद्ध और आतंकवाद हो रहा है। इसका एक इलाज यही है कि सब आध्यात्म में वापिस आएं। उस खूबसूरती और शक्ति स्रोत में वापिस आएं जो भीतरी है। हम अपने शब्दों से कई अधिक अपने अस्तित्व से व्यक्त करते हैं।
मुझे जो कहना था मैं सब कह चुका हूँ और अब मैं आपके प्रश्न आमत्रित करता हूँ।
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