प्रश्न: समृद्धी कैसे बढ़ाई जा सकती है?
श्री श्री रवि शंकर: केवल पैसा होना ही धन नहीं है। आपके पास बड़ी बैंक राशि हो, बड़ी रियासतें हों पर यदि मुख पर तनाव झलकता हो तो आप इतने दुखी नज़र आते हैं कि कोई आपको समृद्ध नहीं कह सकता।
समृद्धि केवल ढ़ेर सारा धन जमा करना नहीं है, समृद्धि का अर्थ है जीवन की भव्यता को मान्यता देना, जीवन का सम्मान करना। व्यक्ति का सच्चा धन उसका मनोबल है। धन का जीवन में होने का प्रयोजन क्या है? यही कि उससे आपका मनोबल बढ़े।
जिस धन से मनोबल नहीं बढ़ सकता, वह धन ही क्या? जिस धन से बीमारी आये, तो वह धन ही क्या? जिस धन से विवाद बढ़े , वो धन ही क्या? ठीक है ना?
धन भी कई प्रकार के होते हैं जैसे - विद्या धन, ज्ञान धन, स्वास्थ्य धन, मनोबल धन, वीर्य धन इत्यादि। यदि आप में मनोबल है तो कोई भी कार्य सम्भाल सकते हो, हर प्रबंध को कुशलतापूर्वक कर सकते हो।
प्रश्न : लोग प्यार देना तो सीख गये हैं पर कैसे प्राप्त हो यह नहीं जानते तो भीतर जो इतना प्रेम समाया हुआ है उसका क्या करें? देने और पाने में सब उलट पुलट होता जा रहा है!
श्री श्री रवि शंकर: मैंने बहुत बार इस विषय पर चर्चा की है। जब कोई आकर प्यार का प्रदर्शन करे, तुमसे बार बार कहे- "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मैं तुमसे प्यार करता हूँ", तो तुम कान बंद करके वहाँ से भाग जाना चाहोगे, कहोगे ठहरो, यह बहुत हो गया, और तुम भाग निकलोगे!
हम प्रेम में भी सहज नहीं हो पाते क्योंकि स्वयं से अन्तर्मन की गहराई में नहीं मिल पाये हैं, नहीं पहचान पाये हैं कि हम कौन हैं? हमें यह पता ही नहीं कि हम जिस एक तत्व से बने हैं, वह है प्रेम। इसलिये जब तक हम स्वयं से नहीं जुड़ पाते, अन्य किसी से भी नहीं जुड़ पाते। सो कोई जब तुमसे सम्बंध बनाना चाहे और तुम्हें असहजता लगे तो वह यही दर्शाता है कि तुम स्वयं से नहीं जुड़े हो और इसी कारण प्रेम पाने में असमर्थ हो।
पहले स्वयं प्रेम का सम्मान करना सीखो, और जो प्रेम का सम्मान नहीं करते उन पर बिना समझे प्रेम न्योछावर मत करते फिरो। फिर प्रेम दर्शाना, प्रेम देना भी एक कला है। प्रेम देना यानि प्रेम करना। प्रेम कोई कृत्य नहीं है, अपने अस्तित्व की ही एक अवस्था है। तुम केवल वहाँ सहजता से, बिना किसी अपेक्षा से रहो और कहो - "मैं बिना किसी शर्त के तुम्हारे लिये हूँ, तुम जब चाहो उसे ले सकते हो।"
तुम्हारे में यह मनोबल रहते सब तुम्हें बेहतर समझ सकेंगे। और फिर एक बात, तुम किसी को जबरदस्ती नहीं समझा सकते कि तुम सच्चा प्रेम करते हो, तुम यह समय पर छोड़ दो उनको स्वयं समझने के लिये। ज़ोर जबरदस्ती से समझाने की कोशिश में बात ही उलटी पड़ सकती है!