१३ मार्च २०११, बैंगलुरू आश्रम
आपको पता है, हम आर्ट ऑफ लिविंग के ३० वे वर्ष में प्रवेश कर रहे है , एक तरफ यह अत्यंत प्यारा अनुभव है,परन्तु दूसरी ओर यह अत्यंत दुखद है, कि विश्व के जापान देश मे गहरा संकट आया हुआ है | आपने इस समाचार के बारे मे इंटरनेट और टेलीविजन पर सुना होगा | एक तरफ हम खुश है,कि हम समाज मे मानवीय मूल्यों की वृद्धि कर रहे है, हम लोगो को आध्यात्म के ओर ला रहे है, और उन्हें जीवन का विशाल दृश्य दिखा रहे है और दूसरी तरफ हमे देखना है कि व्यतिगत स्थर पर प्राकृतिक आपदाओ से हुए नुक्सान को कम करने के लिए हम कैसे सहयोग कर सकते है|
आज जापान की बारी है, कल कही और हो सकती है, इसलिए जाकर लोगो की सहायता करना और उन्हें साधन मुहैया कराना पर्याप्त नहीं है, लेकिन हमें यह देखना है कि कैसे यह विश्व द्वेष रहित और प्राकृतिक शोषण रहित होगा | सारी पृथ्वी एक जीव है, इसलिए वह हमारी सुनती है | प्रकृति का भी जीवन होता है इसलिए हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और मुझे लगता है कि प्रार्थना,ध्यान समाज मे बदलाव लाने मे काफी महत्वपूर्ण होंगे | इसलिए हम सब को इसे बड़े सन्दर्भ से, जीवन के विशाल परिप्रेक्ष्य से, इस ब्रह्माण्ड और हमारे आस्तित्व के नज़रिए से देखना होगा और आध्यत्म यही सब कुछ सिखाता है | हमें अधिक से अधिक आध्यात्मिक ज्ञान लोगो को देना होगा | हम सब इस गृह से हमारी अनावश्यक खपत को कम कर सकते है, सरल जीवन जीये और उच्च विचार रखे और समाज के लिए जो भी कर सकते है उसे करे|
अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्मलेन वह प्रार्थना सभा है, जिसे हम जर्मनी मे आयोजित करेंगे,और उसमे हम इसके लिए सजगता लाने के लिए तत्पर रहेंगे | जीवन छोटा होता है, और आपको नहीं पता होता है,कि कब सब कुछ समाप्त हो जायेगा इसलिये जब तक हम यहाँ पर है हमें हमारे समय , ऊर्जा और जीवन का सबसे उत्तम उपयोग करना चाहिए और अधिक से अधिक लोगो के जीवन मे मुस्कराहट और खुशी लानी चाहिए और प्रकृति को भी यही रुख पसंद होता है| यह इसलिये है, क्युकि लोग अपने दिल और मन से इतने कठोर हो गए है, इसलिये प्रकृति भी निर्दयी और कठोर बन गयी है | जब लोगो के रुख और मन में बदलाव आता है, और उनके तनाव के स्थर में कमी आती है, तो फिर प्रकृति भी उसी रूप में आपना रुख हमारे लिए करती है | यह सही है, कि विनाश सृष्टि का अंश है, चीजों का सृजन होता है और उसका विनाश होता है, परन्तु मानवो द्वारा बनायी गयी आपदा वे है, जिसमे प्रकृति की रचना में मानवो का हस्तक्षेप, जो कि सबके लिए चिंता का सबसे बड़ा विषय है, ठीक है ना ?
इसलिये मैं चाहूँगा कि हर देश ने आगे बढ़कर आगे आना चाहिये और अपने स्वयं के देश में आधात्मिक ज्ञान, शांति , सांत्वना और प्रेम को बढ़ावा देना चाहिए | हमें सोचना चाहिए कि कैसे हम सभी नगर, प्रांत में लोगो को प्राचीन ज्ञान दे सके और उन्हें साथ में लाकर यह अहसास करा सके कि हम सब एक वैश्विक मानव परिवार का हिस्सा है | मैं आप को बर्लिन में देखना चाहता हूँ,बर्लिन आने की योजना बनाए और अपने साथ अपने मित्र और परिवार को भी लाये और सब को आने के लिए कहे | सब कोई आये और विश्व शांति के लिए हम एक विशाल ध्यान करेंगे | आपको पता है, हमने एक छोटा सा नारा लिखा है, “जिस शान्ति की हम तलाश करते है, मौन को उसे अभिव्यक्त करने दे, दिव्य प्रेम का अनुभव करे क्युकि हर चमकता हुआ तारा आपको बताता है, कि इस विशाल संरचना में आप कौन है”|
यदि आपके कोई प्रश्न, निवेदन या चिंता है तो आप उसे मुझे ई मेल से भेज सकते है | आज १२० सत्संग समूह यहाँ पर मौजूद थे, अधिकतर यूरोप से | आप सब लोग मिल कर तय करे कि बर्लिन में ३० साल पूरे होने के उत्सव में आप क्या उपहार देंगे और हम सब मिलकर प्रत्येक राज्य में ध्यान,जीवन को दिल की सतह और गहराई से जीने के लिए कैसे सजगता ला सकते है |