सबसे पहली चीज़ है आध्यात्मिक सम्पत्ति।

कुरुक्षेत्र सत्संग, १९ मार्च २०११

आज आर्ट ऑफ़ लिविंग संस्था के ३० वर्ष हो गये हैं । इन ३० वर्षों में चाहे आप दक्षिण ध्रुव के आखिरी शहर में चले जायें तो उधर भी आपको मिलेंगे लोग प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया करते हुए, या आप उत्तर ध्रुव के आखिरी शहर त्रोम्बसे, नोर्वे में चले जायें तो वहाँ भी मिलेगा भारत का आध्यात्म, भारत का गर्व।

जब मैं इराक गया था और वहाँ के प्रधान मंत्री से मिला था तो यहाँ के एक पत्रकार जो हमारे साथ गये थे उन्होंने प्रधान मंत्री से पूछा - "आपने गुरुजी को बुलाया है, आप भारत से क्या चाहते हैं?"
तो इराक के प्रधान मंत्री ने कहा , "भारत की आध्यात्मिकता जिसने कितने अलग अलग लोगों को एक सूत्र में बाँध रखा है, वह आध्यात्मिकता हमारे देश के लिये बहुत जरूरी है। हमारी तीनों कौमों में यहाँ इतना झगड़ा है। भारत में कितनी भाषाएँ हैं, कितने धर्म हैं, पर मैं समझता हूँ भारत की जिस आध्यात्मिकता के कारण आप लोग एक होकर रह रहे हैं, वैसी ही चीज़ हमें यहाँ चाहिये।
फिर दूसरी बात, हमारे युवकों को आप इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी (आई. टी.) में ट्रेनिंग दीजिये। और तीसरी बात, मैं चाहता हूँ कि भारत के व्यवसायी यहाँ आकर तेल निकालने के अपने प्लान्ट लगायें, हम उनका स्वागत करेंगे। मगर ये बाकी सब दूसरी बातें तो गौण हैं , प्रमुख बात तो है- भारत की आध्यात्मिकता।"

फिर ५० युवकों को उन्होंने भेजा हमारे पास बंगलौर में, जहाँ उन्हें ट्रेनिंग दी गई शान्ति दूत होने की और अब वे सब जगह जगह शान्ति दूत जैसे कार्य कर रहे हैं।

भारत की सबसे महत्वपूर्ण चीज़ है आध्यात्मिक सम्पत्ति। दूसरा यहाँ का प्रवासोद्यम (टूरिस्म) है। तीसरे नम्बर पर है यहाँ की वेश भूषा-पोशाक। भारतीय वेशभूषा की बहुत कदर है जगह जगह, पर हम बाहर की नकल करने लगे हैं । फिर है यहाँ के व्यन्जन (खाने पीने की चीज़ें), कितने तरह के व्यन्जन हैं हमारे देश में, पता है? अभी पिछले वर्ष ही हमने एक कार्यक्रम किया था, अहमदाबाद में, दिवाली के अवसर पर, जिसमें ५६०० तरह के शाकाहारी व्यन्जन तैयार किये गये थे। इतने तरह के विभिन्न व्यन्जन किसी भी देश में नहीं हैं । मगर हमारे देश की ऐसी अच्छाइयों का पूरा प्रसार-प्रचार नहीं होता है।
इसी प्रकार हमारे देश की कला, नृत्य, संगीत भी अद्भुत है। हर २००-३०० किलोमीटर में एक नये तरह का लोक नृत्य है, नया लोक संगीत है। इन सब का भी हमें प्रचार करना चाहिये।
फिर है हमारी इन्फोर्मेशन टेक्नोलोजी (आई. टी. ) इन्डस्ट्री। इंगलैन्ड में दो शोध कर्ताओं ने अपने १५ साल के शोध कार्य का परिणाम बताया कि भारतीय लोगों में व भारतीय भाषा में क्या बात विशेष है। अपने शोध कार्य से उन्होंने यह नतीज़ा निकाला कि जो भी लोग संस्कृत से निकली हुई भाषायें या संस्कृत भाषा पढ़ते हैं, उनका न्यूरो लिंग्विस्टिक सिस्टम सर्वोच्च होता है, वह मष्तिष्क गणित शास्त्र के लिये बहुत अच्छा होता है। ऐसे लोगों के लिये कोई भी भाषा सीखना फिर बहुत सरल होता है। इस शोध पत्र के छपने के बाद लंदन के तीन स्कूलों ने अपने स्कूलों में संस्कृत विषय का पढ़ना अनिवार्य कर दिया और यहाँ हमारे देश में, हम संस्कृत को भूले जा रहे हैं ।

बाबा साहब अम्बेडकरजी ने कहा था, " हमारी राष्ट्रभाषा संस्कृत होनी चाहिये और इस पर प्रस्ताव भी रखा था पर उनकी बात नहीं मानी गयी । कई जो बातें बाबा सहब अम्बेडकर की मानी नहीं गई थीं, पर जो मानी जानी चाहिये थीं, उनमें से एक थी- संस्कृत भाषा को अपनाना।

जब इसराइल ने हिब्रू भाषा को इतना लोकप्रिय बना दिया तो क्या स्वतंत्रता के बाद हम संस्कृत को लोकप्रिय नहीं बना सकते थे?
दक्षिण की भाषाओं में आप देखेंगे बहुत संस्कृत शब्द हैं। मलयालम में ८०% शब्द संस्कृत के हैं और कन्नड़ में ६०% । एक तमिल भाषा को छोड़कर बाकी सब भाषाओं में संस्कृत शब्द भरे पड़े हुए हैं । तमिल कुछ अलग भाषा है, उसमें १०% से कम संस्कृत शब्द हैं और ये समझते हैं कि तमिल भाषा भी उतनी ही पुरानी है जितनी कि संस्कृत भाषा ।
यदि हमारे देश में बच्चों को संस्कृत भाषा पढ़ाई जायेगी तो न्यूरो लिंग्विस्टिक सिस्टम अधिक अच्छा होने से वे पढ़ाई में आगे बढ़ सकते हैं, पर हम इस बात पर ध्यान ही नहीं देते हैं ।

कितने लोगों ने यहाँ गीता नहीं पढ़ी है कुरुक्षेत्र में, जहाँ गीता का प्रादुर्भाव हुआ, यहाँ रहते लोगों ने गीता नहीं पढ़ी है, यह सुन कर मुझे आश्चर्य हो रहा है! तो जिन लोगों ने अब तक गीता नहीं पढ़ी है, आप सब आज से ही शुरु करोगे घर जाकर, आज कुछ पढ़कर फिर सो‍ओगे। एक सप्ताह -१० दिन में पढ़ कर समाप्त करोगे, करोगे ना? वचन दो। साल में कम से कम एक बार पूरी गीता को पढ़ लेना चाहिये । हमारे यहाँ आचार्य हैं चतुर्वेदीजी ११३ साल के, जिन्होंने महात्मा गाँधी को भी गीता पढ़ाई थी। वे खुद गीता का अभ्यास करते थे और महात्मा गाँधी के साथ रहते थे और उन्हें भी गीता का ज्ञान बताया। तो हम गीता को पढ़ना न छोड़ें, गीता को जरूर पढ़ें ।
गीता के बारे कोई व्याख्याओ को पढ़ने की आवश्यकता नहीं, जो शुद्ध गीता का सरल अनुवाद हो, वह पढ़ लेना भी ठीक है।
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