३१ जुलाई, २०११
प्रश्न: नकारक विचारों को कैसे टाला जाये ?
श्री श्री रवि शंकर: नकारक विचारों को आप क्यों टालना चाहते है ? उन्हें आने दीजिये और वे चले जायेंगे | उसे टालने का अर्थ हैं कि आपने उसे पकड़ने का प्रयास कर रहे है | यदि वे आते हैं उन्हें कहे “ओह आप आ गये हाय! बाय बाय!” और वे चले जायेंगे |
प्रश्न: जय गुरुदेव ! पिरामिड में ध्यान करना क्या किसी अन्य स्थान पर ध्यान करने से भिन्न है ?
श्री श्री रवि शंकर: पिरामिड एक बाहरी वातावरण है | परन्तु ऐसा नहीं है कि पिरामिड में आपका कुछ विशेष ध्यान लगेगा, नहीं | किसी गुम्बद (डोम) में आपका अच्छा ध्यान लग सकता है और खुले आकाश के नीचे आपका और अधिक अच्छा ध्यान लगेगा | आत्मशक्ति किसी भी आकार और रूप से अधिक शक्ति शाली होती है | आकार और रूप के प्रभाव का सीमित दायरा होता है और मंत्र की ध्वनि अत्यंत प्रभावकारी होती है | मंत्र आकार और रूप की तुलना में कई गुना अधिक प्रभावकारी होता है और मौन मंत्र से और अधिक प्रभावकारी होता है | और यह सब तभी प्रभावकारी हो सकते है जब ध्यान लग सके |
प्रश्न: श्रोताओं में से किसी ने यह प्रश्न किया परन्तु आवाज़ धीरे होने से सुना नहीं जा सका ?
श्री श्री रवि शंकर: आध्यात्म में होने से आपके मित्र आपका मजाक उड़ाते है ? मुस्कुराते हुये आप उनसे कहे कि “तुम को नहीं पता कि तुम कितनी महान चीज़ से वंचित हो रहे हो” | “वैसे भी एक दिन तुम भी इस पथ पर आ ही जाओगे, यह सिर्फ समय की बात है” | “पाँच वर्ष उपरान्त तुम भी ज्ञान के इस पथ पर आ जाओगे” | “मैं हर बार सबसे पहला व्यक्ति हूँगा, मैं पहले स्वाद लेता हूँ और फिर जो बच जाता है तुम उसे लेते हो” | यदि आपका कोई मज़ाक उड़ाता है फिर भी आप मुस्कुराते रहें और अपनी मुस्कराहट को न खोएं | उनसे कहे कि “यह सिर्फ कुछ वर्षों की बात है, तुम भी यही सब करोगे” | “तुम्हे तो बासा खाना खाने का शौक है, और मैं अभी ताज़े भोजन का लुफ्त उठा रहा हूँ |
© The Art of Living Foundation
प्रश्न: नकारक विचारों को कैसे टाला जाये ?
श्री श्री रवि शंकर: नकारक विचारों को आप क्यों टालना चाहते है ? उन्हें आने दीजिये और वे चले जायेंगे | उसे टालने का अर्थ हैं कि आपने उसे पकड़ने का प्रयास कर रहे है | यदि वे आते हैं उन्हें कहे “ओह आप आ गये हाय! बाय बाय!” और वे चले जायेंगे |
प्रश्न: जय गुरुदेव ! पिरामिड में ध्यान करना क्या किसी अन्य स्थान पर ध्यान करने से भिन्न है ?
श्री श्री रवि शंकर: पिरामिड एक बाहरी वातावरण है | परन्तु ऐसा नहीं है कि पिरामिड में आपका कुछ विशेष ध्यान लगेगा, नहीं | किसी गुम्बद (डोम) में आपका अच्छा ध्यान लग सकता है और खुले आकाश के नीचे आपका और अधिक अच्छा ध्यान लगेगा | आत्मशक्ति किसी भी आकार और रूप से अधिक शक्ति शाली होती है | आकार और रूप के प्रभाव का सीमित दायरा होता है और मंत्र की ध्वनि अत्यंत प्रभावकारी होती है | मंत्र आकार और रूप की तुलना में कई गुना अधिक प्रभावकारी होता है और मौन मंत्र से और अधिक प्रभावकारी होता है | और यह सब तभी प्रभावकारी हो सकते है जब ध्यान लग सके |
प्रश्न: श्रोताओं में से किसी ने यह प्रश्न किया परन्तु आवाज़ धीरे होने से सुना नहीं जा सका ?
श्री श्री रवि शंकर: आध्यात्म में होने से आपके मित्र आपका मजाक उड़ाते है ? मुस्कुराते हुये आप उनसे कहे कि “तुम को नहीं पता कि तुम कितनी महान चीज़ से वंचित हो रहे हो” | “वैसे भी एक दिन तुम भी इस पथ पर आ ही जाओगे, यह सिर्फ समय की बात है” | “पाँच वर्ष उपरान्त तुम भी ज्ञान के इस पथ पर आ जाओगे” | “मैं हर बार सबसे पहला व्यक्ति हूँगा, मैं पहले स्वाद लेता हूँ और फिर जो बच जाता है तुम उसे लेते हो” | यदि आपका कोई मज़ाक उड़ाता है फिर भी आप मुस्कुराते रहें और अपनी मुस्कराहट को न खोएं | उनसे कहे कि “यह सिर्फ कुछ वर्षों की बात है, तुम भी यही सब करोगे” | “तुम्हे तो बासा खाना खाने का शौक है, और मैं अभी ताज़े भोजन का लुफ्त उठा रहा हूँ |
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