२२, अगस्त २०११
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है | अष्टमी इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह वास्तविकता के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्वरुप के संतुलन को दर्शाती है, जो प्रत्यक्ष सांसारिक दुनिया और अप्रत्यक्ष आध्यात्मिक स्वरुप है |
भगवान श्री कृष्ण का अष्टमी के दिन जन्म होना उनकी आध्यात्मिक और सांसारिक दुनिया में श्रेष्ठ होने का प्रतीक है | वे महान गुरु और आध्यात्मिक प्रेरणा स्रोत हैं और परिपूर्ण राजनीतिज्ञ भी हैं | एक ओर वे योगेश्वर हैं (योगियों के परमेश्वर - यह वह अवस्था है जिसे प्रत्येक योगी प्राप्त करने की कामना करता है) ओर दूसरी ओर वे शरारती चोर हैं |
भगवान श्री कृष्ण का सबसे अद्भुत गुण यह है कि वे संतों से भी अधिक पवित्र हैं और फिर भी एक शरारती व्यापारी हैं | उनका आचरण दोनों चरम सीमाओं का संतुलन हैं | शायद इसलिये भगवान श्री कृष्ण के व्यक्तित्व के गहन कों समझना कठिन है | एक अवधूत सांसारिक दुनिया से बेखबर होता है ओर एक सांसारिक व्यक्ति, राजा या राजनीतिज्ञ आध्यात्मिक दुनिया से बेखबर होता है | लेकिन भगवान श्री कृष्ण द्वारकाधीश और योगेश्वर दोनों हैं |
भगवान श्री कृष्ण का ज्ञान आज के समय के लिये भी अत्यंत यथार्थ है क्योंकि वह किसी व्यक्ति को पूरी तरह सांसारिक दुनिया में फँसने नहीं देता और पूरी तरह से आपको विरक्त भी नहीं होने देता | वह आपके जीवन को पुनः प्रज्वलित करता है और निराश और तनावपूर्ण व्यक्तित्व को अधिक केंद्रित और गतिशील होने के लिये परिवर्तित करता है | भगवान श्री कृष्ण आपको भक्ति कौशल के साथ सिखाते हैं | गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाने का तात्पर्य है कि विरोधाभासी परन्तु फिर भी अनुकूल गुण आपके व्यक्तितिव में स्थापित हो सकें और वह आपके जीवन में प्रदर्शित हो सके |
जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का सबसे प्रामाणिक तरीका यह समझना है कि आपको दोहरी भूमिका निभानी होगी | इस गृह पर जिम्मेदार नागरिक बन कर और उसी समय यह अनुभव करना होगा कि आप सभी घटनाओं से परे हैं, और अप्रभावित ब्राह्मण हैं | आपके जीवन में थोडा अवधूत और गतिशील होने को विकसित करना ही जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का महत्त्व है |
© The Art of Living Foundation
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है | अष्टमी इसलिये महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह वास्तविकता के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष स्वरुप के संतुलन को दर्शाती है, जो प्रत्यक्ष सांसारिक दुनिया और अप्रत्यक्ष आध्यात्मिक स्वरुप है |
भगवान श्री कृष्ण का अष्टमी के दिन जन्म होना उनकी आध्यात्मिक और सांसारिक दुनिया में श्रेष्ठ होने का प्रतीक है | वे महान गुरु और आध्यात्मिक प्रेरणा स्रोत हैं और परिपूर्ण राजनीतिज्ञ भी हैं | एक ओर वे योगेश्वर हैं (योगियों के परमेश्वर - यह वह अवस्था है जिसे प्रत्येक योगी प्राप्त करने की कामना करता है) ओर दूसरी ओर वे शरारती चोर हैं |
भगवान श्री कृष्ण का सबसे अद्भुत गुण यह है कि वे संतों से भी अधिक पवित्र हैं और फिर भी एक शरारती व्यापारी हैं | उनका आचरण दोनों चरम सीमाओं का संतुलन हैं | शायद इसलिये भगवान श्री कृष्ण के व्यक्तित्व के गहन कों समझना कठिन है | एक अवधूत सांसारिक दुनिया से बेखबर होता है ओर एक सांसारिक व्यक्ति, राजा या राजनीतिज्ञ आध्यात्मिक दुनिया से बेखबर होता है | लेकिन भगवान श्री कृष्ण द्वारकाधीश और योगेश्वर दोनों हैं |
भगवान श्री कृष्ण का ज्ञान आज के समय के लिये भी अत्यंत यथार्थ है क्योंकि वह किसी व्यक्ति को पूरी तरह सांसारिक दुनिया में फँसने नहीं देता और पूरी तरह से आपको विरक्त भी नहीं होने देता | वह आपके जीवन को पुनः प्रज्वलित करता है और निराश और तनावपूर्ण व्यक्तित्व को अधिक केंद्रित और गतिशील होने के लिये परिवर्तित करता है | भगवान श्री कृष्ण आपको भक्ति कौशल के साथ सिखाते हैं | गोकुलाष्टमी का उत्सव मनाने का तात्पर्य है कि विरोधाभासी परन्तु फिर भी अनुकूल गुण आपके व्यक्तितिव में स्थापित हो सकें और वह आपके जीवन में प्रदर्शित हो सके |
जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का सबसे प्रामाणिक तरीका यह समझना है कि आपको दोहरी भूमिका निभानी होगी | इस गृह पर जिम्मेदार नागरिक बन कर और उसी समय यह अनुभव करना होगा कि आप सभी घटनाओं से परे हैं, और अप्रभावित ब्राह्मण हैं | आपके जीवन में थोडा अवधूत और गतिशील होने को विकसित करना ही जन्माष्टमी का उत्सव मनाने का महत्त्व है |
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