आध्यात्म रस, रोमांच,जोश और आनंद से परिपूर्ण हैं


प्रश्न:गुरूजी जब भगवान श्री कृष्ण थे तो क्या गोपियों ने भी ध्यान किया ?
श्री श्री रवि शंकर: क्या गोपियों ने ध्यान किया ? उन्होंने ध्यान किया या नहीं इससे क्या फर्क पड़ता हैं? यह एक पुरानी बात हैं| ध्यान जीवन का दूसरा रूप हैं, जब आप चलते, बैठतें और बात करते समय भी ध्यान की अवस्था में होते हैं | भगवान श्री कृष्ण प्रतिदिन प्रातःकाल में ध्यान करते थे, अपने दिनचर्या में वे प्रातः ४ बजे उठकर एक घंटा ध्यान करते थे और फिर वे विद्वानों का सम्मान करते थे और ८ बजे वे नगर का दौरा करते हुये आम जनता से मुलाकात करते थे और संध्या काल में वे अपने तरह से उत्सव मनाते थे (शरारत के साथ ) |

प्रश्न: क्या वैराग्य और लालसा साथ में चल सकते हैं ?
श्रीश्री रवि शंकर: उनको साथ में ही चलना होता हैं, यही विवेक हैं | लालसा और वैराग्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | जब वैराग्य न हो तो लालसा कड़वाहट में परिवर्तित हो जाता हैं | जब सिर्फ वैराग्य ही हो तो जीवन में रस नहीं रह जाता हैं और और जीवन जीने के लिये रस,रोमांच और विनोद आवश्यक हैं | आध्यात्म रस, रोमांच,जोश और आनंद से परिपूर्ण  हैं | यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि आध्यात्म को मंद,उबाऊ, नीरस और गंभीर विषय माना जाता हैं , यह ऐसा बिलकुल नहीं हैं | दिव्यता और आध्यात्म रस से परिपूर्ण हैं | इसलिये जो भी दिव्यता या स्रोत के निकट चला जाता हैं, वह रसमय बन जाता हैं और रूखा नहीं रह पाता |

प्रश्न: सारा संसार मन की क्रीड़ा हैं, इसका एहसास कैसे किया जा सकता हैं ?
श्री श्री रवि शंकर:आपको इसका एहसास अभी तक नहीं हुआ ? अच्छा यह बताये कि कितने बार आपके निर्णय या राय गलत साबित हुई ? कई बार? ८०% से ९०% आपके निर्णय या राय गलत साबित हुई ?(उत्तर ७०% से ८०%)| जब कभी भी आप किसी लिये राय बनाते हैं, तो वह गलत ही निकल जाती हैं | उससे आपको क्या सीख मिलती हैं कि यह सब कुछ माया ही हैं? आपका मन आपको सिखाता हैं कि सब कुछ माया हैं | आपको कभी कभी भय, आशंका  और कल्पनायें होती हैं और फिर अचानक आप पाते हैं कि वह सब गलत हैं | यह सब आपके मन की ही देन हैं | उस क्षण आपको एहसास होता कि यह मन माया हैं और यह उसकी क्रीड़ा हैं | अपने मन का अवलोकन करे, किसी व्यक्ति को देखे और उनके लिये राय बनाये और आप पायेंगे कि वह सही नहीं हैं | सारी गलत धारणायें, समझ, धारणायें, गलत कल्पनायें और राय आप को यह बताने के लिये पर्याप्त हैं कि मन माया या मिथ्या हैं |

प्रश्न: जीवन में कर्म की क्या भूमिका हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: सब कुछ कर्म हैं ! आप एक प्रश्न कर रहे हैं वह कर्म हैं;कर्म का अर्थ हैं कृत्य | और आपके प्रश्न को सुनना मेरा कर्म हैं | परन्तु आपके कर्म या प्रश्न का उत्तर देना की नहीं यह मेरा चुनाव हैं, समझ में आया ?  सबकुछ कर्म हैं |

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