१४, अगस्त २०११, बैंगलुरू आश्रम
प्रश्न: गुरूजी मैंने यस प्लस कोर्स किया है | दो वर्ष उपरांत मैं आश्रम आया हूँ और मैं यहां पर कुछ दिनों से हूँ, और मैं यहां से कभी वापस नहीं जाना चाहता हूँ | मैं अपने घर की जिम्मेदारियों और यहां पर रहने की इच्छा के बीच में कैसे संतुलन स्थापित करूं ?
श्री श्री रवि शंकर: दोनों को करे | आपको अपनी घरेलू जिम्मेदारी का ध्यान भी रखना है और यहां आने की प्रतिबद्धता को बनाये रखना है |
प्रश्न: गुरूजी मैं आश्रम पहली बार आया हूँ, और यहां मुझे अच्छा लग रहा है | मुझे ऐसा लगता है कि आपने मुझे यहां लेकर आये हैं | हमारी रोज की जिंदगी में हमें अच्छी और बुरी चीजों का सामना करना पड़ता है जिसके कारण हम इस पथ से भटक सकते हैं | मैं प्रतिदिन ध्यान और योग क्रिया करता हूँ | जब मैं एकांत में होता हूँ, तब केंद्रित रहना आसान होता है और सात्विक गुणों का पालन कर पाता हूँ | सब की तरफ से मेरा प्रश्न है कि इस शुद्धि को कैसे बरक़रार रखें जबकि इस संसार में हम पर सकारक और नकारक बातों का प्रभाव होता है ?
श्री श्री रवि शंकर: इस बात की सजगता ही आपको इसमें से निकाल देगी | ध्यान करें, सुदर्शन क्रिया करें, सत्संग में भाग लीजिये और अच्छे लोगों की संगत में रहें, इससे यह संभव हो जायेगा |
प्रश्न: गुरु और सद्गुरु में क्या अंतर है ?
श्री श्री रवि शंकर: सिर्फ गुरु के पहले सद् उपसर्ग लगा हुआ है | इससे कोई फर्क नहीं पड़ता | यह सिर्फ एक नाम है परन्तु दोनों सामान हैं |
प्रश्न: भगवद गीता में लिखा गया है कि धर्म के अनुसरण के चार कदम होते हैं | सत्य, तप, शुद्धि और करुणा | कृषि विभाग में प्रभारी पर्यवेक्षक होने के कारण मैं अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति करुणा का अनुसरण नहीं कर पाता हूँ क्योंकि मुझ पर वरिष्ठ अधिकारीयों से उत्पादन और कार्यक्षमता बढाने का प्रभाव दिया जाता है |
श्री श्री रवि शंकर: जो दुखी हैं उसके लिये दया दिखाई जाती है न कि उसके लिये जो अहंकारी हैं या जो बुरे कर्म करता है | ऐसे लोगों के साथ सख्ती से पेश आया जाता है ईमादारी का समझौता किये बिना | इन चार गुणों में : मित्रता, करुणा, मुदिता और उपेक्षा में आप सिर्फ यह कर सकते हैं कि वरिष्ठ अधिकारीयों से उपेक्षा करे और उदासीन रहे |
© The Art of Living Foundation
प्रश्न: गुरूजी मैंने यस प्लस कोर्स किया है | दो वर्ष उपरांत मैं आश्रम आया हूँ और मैं यहां पर कुछ दिनों से हूँ, और मैं यहां से कभी वापस नहीं जाना चाहता हूँ | मैं अपने घर की जिम्मेदारियों और यहां पर रहने की इच्छा के बीच में कैसे संतुलन स्थापित करूं ?
श्री श्री रवि शंकर: दोनों को करे | आपको अपनी घरेलू जिम्मेदारी का ध्यान भी रखना है और यहां आने की प्रतिबद्धता को बनाये रखना है |
प्रश्न: गुरूजी मैं आश्रम पहली बार आया हूँ, और यहां मुझे अच्छा लग रहा है | मुझे ऐसा लगता है कि आपने मुझे यहां लेकर आये हैं | हमारी रोज की जिंदगी में हमें अच्छी और बुरी चीजों का सामना करना पड़ता है जिसके कारण हम इस पथ से भटक सकते हैं | मैं प्रतिदिन ध्यान और योग क्रिया करता हूँ | जब मैं एकांत में होता हूँ, तब केंद्रित रहना आसान होता है और सात्विक गुणों का पालन कर पाता हूँ | सब की तरफ से मेरा प्रश्न है कि इस शुद्धि को कैसे बरक़रार रखें जबकि इस संसार में हम पर सकारक और नकारक बातों का प्रभाव होता है ?
श्री श्री रवि शंकर: इस बात की सजगता ही आपको इसमें से निकाल देगी | ध्यान करें, सुदर्शन क्रिया करें, सत्संग में भाग लीजिये और अच्छे लोगों की संगत में रहें, इससे यह संभव हो जायेगा |
प्रश्न: गुरु और सद्गुरु में क्या अंतर है ?
श्री श्री रवि शंकर: सिर्फ गुरु के पहले सद् उपसर्ग लगा हुआ है | इससे कोई फर्क नहीं पड़ता | यह सिर्फ एक नाम है परन्तु दोनों सामान हैं |
प्रश्न: भगवद गीता में लिखा गया है कि धर्म के अनुसरण के चार कदम होते हैं | सत्य, तप, शुद्धि और करुणा | कृषि विभाग में प्रभारी पर्यवेक्षक होने के कारण मैं अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति करुणा का अनुसरण नहीं कर पाता हूँ क्योंकि मुझ पर वरिष्ठ अधिकारीयों से उत्पादन और कार्यक्षमता बढाने का प्रभाव दिया जाता है |
श्री श्री रवि शंकर: जो दुखी हैं उसके लिये दया दिखाई जाती है न कि उसके लिये जो अहंकारी हैं या जो बुरे कर्म करता है | ऐसे लोगों के साथ सख्ती से पेश आया जाता है ईमादारी का समझौता किये बिना | इन चार गुणों में : मित्रता, करुणा, मुदिता और उपेक्षा में आप सिर्फ यह कर सकते हैं कि वरिष्ठ अधिकारीयों से उपेक्षा करे और उदासीन रहे |
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