बेंगलोर आश्रम २ अगस्त २०११
क्या आप लोगों ने उन योजनाओं के बारे में सोचा जिसे हमें करना हैं ? क्या आपको अनेक विचार आये? इसे जिम्मेदारी लेना कहते हैं | आपने यह नहीं कहना चाहिए कि गुरूजी आपने मुझे यह नहीं कहा विचारों को बास्केट में रख दीजिये, और आपने सिर्फ यही कहा कि अपने नाम लिखकर दीजिये | ऐसा नहीं करना हैं | सबसे पहले आप अपने बारे में सोचते हैं कि यह कार्य करना हैं और उसके लिये आप को क्या करना हैं | आप सोचते हैं फिर वैसा करते हैं |
अपने स्वयं की पहल के द्वारा कार्य करना श्रेष्ठ होता हैं और दूसरों के बताने पर किया हुआ कृत्य औसत श्रेणी का माना जाता हैं | और किसी के बताने पर भी कृत्य नहीं करना सबसे खराब श्रेणी में आता हैं | इसलिये आप आज यह निर्णय करें कि आप किस श्रेणी में आना चाहते हैं | ‘मुझे करना हैं’ , और ‘मैं इसे करूंगा’ और १००% करूंगा, यह मनोभाव सर्वश्रेष्ठ हैं | मैं इसके बारे में सोचूंगा कि इसे कैसे करना हैं | किसी योजना को अपनी स्वयं की समझकर उस पर कार्य करना, सबसे श्रेष्ठ हैं |
प्रश्न :मृत्यु के उपरांत गरुड़ पुराण का क्या महत्व है ?
श्री श्री रवि शंकर: गरुड़ पुराण में मृत्यु के उपरांत के जीवन के बारे वर्णन किया गया हैं | आत्मा कहाँ और कैसे जाती है इसके बारे में बताया गया है | इसका एक निश्चित समय है जब आप इसे सुन सकते है (आत्मा के शरीर छोड़ने के कुछ दिन उपरांत ) इसे सुनने पर आपको यह मालूम पड़ता है कि स्वर्ग वासी आत्मा कहाँ गई और उसके साथ क्या हुआ | गरुड़ पुराण में ऐसी कई बातें है |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी षोडश संस्कार क्या होता हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: षोडश संस्कार! षोडश का अर्थ होता हैं, १६ | मानव जीवन १६ संस्कार होते हैं |
किसी पुरुष या महिला के जीवन में १६ ऐसी रस्मे या अनुष्ठान होते हैं जिसका जीवन पर प्रभाव होता हैं | वे क्या हैं ? इसकी शुरुआत गर्भाधान ( गर्भ का धारण ) होने से होती हैं | गर्भ धारण होने की एक प्रक्रिया हैं | गर्भ के धारण का एक पूरा संस्कार हैं, कैसे पुरुष और महिला को किस समय साथ में होना चाहिए और कब गर्भ(शिशु) को धारण होना चाहिए | इस ज्ञान को गोपनीय रखा गया हैं | यदि आप को पुत्री चाहिए तो किस दिन गर्भ को धारण होना चाहिए या यदि आपको पुत्र चाहिए तो गर्भ को किस दिन धारण होना चाहिए इत्यादि | गर्भाधान संस्कार गर्भ के धारण होने के बारे में हैं | इसे कुछ मंत्र और रस्मों के द्वारा किया जाता हैं | यह बिलकुल प्रचलन में नहीं हैं | इसे विवाह की रात्रि को ही कुछ मंत्रोचारण के उपरान्त संपन्न कर दिया जाता हैं, जैसे कि पूरी रस्म समाप्त हो गयी हो | पांचवे महीने में एक रस्म होती हैं जिसे पुमांसं कहते हैं और आठवें महीने में सीमंत की रस्म की जाती हैं | और स्त्री की सभी इच्छायें पूरी की जाती हैं और उसे जो कुछ भी चाहिए, वह दिया जाता हैं | उसे जो कुछ भी चाहिये वह उसे उपहार में यह कह कर दिया जाता हैं कि तुम अपने भीतर एक नए ब्रह्माण्ड की रचना कर रही हो और इस कारण उसे खुश किया जाता हैं | गर्भाधान, पुमांसं और सीमंत, यह तीन संस्कार हैं | फिर नामकरण संस्कार होता हैं जिसे जन्म के ११ दिन उपरांत किया जाता हैं | माता, पिता शिशु के लिये एक नाम चुनते हैं और उसकी जिव्हा पर शहद चटा कर उसके दायें कान में शिशु के नाम का उच्चारण करते हैं | फिर मुंडन संस्कार होता हैं जिसमे पहली बार शिशु के केश कटवायें जाते हैं, और इसे पहली से तीसरी वर्षगांठ के दौरान करवाया जाता हैं | चौल का अर्थ हैं प्रथम केश को काटना | जब पहले केश को काटा जाता हैं तब शिशु के कान भी छिदवायें जाते हैं | विज्ञानिक दृष्टिकोण से कान की लोलकी अधिक सजगता और बुद्धि प्रदान करती हैं | फिर आठवें और ११ वर्ष के मध्य में उपनयन संस्कार किया जाता हैं, जब बालक/बालिका को प्रथम बार विद्यालय शिक्षा के लिये ले जाया जाता हैं | जब वे बचपन से किशोर अवस्था में पहुँचने से पहले उन्हें उनकी जिम्मदारियों के बारे में समझाया जाता हैं जो उन्हें निभानी होती हैं | फिर उन्हें गायत्री मंत्र दिया जाता हैं | ब्रह्म उपदेश का अर्थ है “ आप यह हैं” ‘आप यहीं हैं” उन्हें यह उपदेश दिया जाता हैं | उपनयन के उपरान्त व्यक्ति शिक्षा के लिया विद्यालय जाता और गुरुकुल में गुरु के साथ रहता हैं | समवर्तन शिक्षा ग्रहण करने उपरान्त आता हैं, जब व्यक्ति कार्य करता हैं, इसके उपरान्त विवाह | इस तरह मृत्यु तक संस्कार निभाने पड़ते हैं | जीवन की अंतिम रस्म होती अंत्येष्टि संस्कार | यह सारे संस्कार जीवन का हिस्सा हैं | प्राचीन लोगों के पास इन सभी के लिये मंत्र होते थे |
प्रश्न - गायत्री मंत्र का क्या महत्त्व है ?
श्री श्री रवि शंकर - ॐ सारी सृष्टि का सार है | ॐ सबसे महान मंत्र है, जिसमे सब कुछ मौजूद है और जब ॐ का विस्तार हुआ तो वह गायत्री मंत्र बना | फिर गायात्री मंत्र सारे वेदों का सार है | ऐसा कहा जाता है कि गायत्री मंत्र से श्रेष्ठ कोई मंत्र नहीं है | गायत्री मंत्र का अर्थ है मेरे सारे पाप नष्ट हो जाएँ और मेरी चेतना में दिव्यता का उदय हो, दिव्यता प्रेरित हो कर मुझ में अंतरज्ञान प्रदान करे | यह इसकी संक्षिप्त व्याख्या है और इसकी विस्तृत व्याख्या भी हो सकती है| अभी के लिये इतना पर्याप्त है |
प्रश्न – अधिकांश भारत में सिर्फ बुद्धिजीवी ही अष्टवक्र गीता के बारे में जानते है, जबकि सभी लोग भगवत गीता के बारे में जानते है - ऐसा क्यों है ?
श्री श्री रवि शंकर: यह बात सही हैं | अष्टवक्र गीता स्नातकोत्तर साधकों के लिये है | इसे समझना आसान नहीं हैं | इस ज्ञान को एक राजा को प्रदान किया गया था | भगवत गीता से शुरुवात करनी चाहिये | उसमे हर किसी को कुछ समझ में आयेगा | अष्टवक्र गीता राजा जनक को प्रदान की गयी जबकि भगवत गीता एक हताश युवा को प्रदान की गई , इसमें यही अंतर हैं | सामाज में सामान्य व्यक्ति उदासी में रहता हैं और उसमें सजगता नहीं होती | अष्टवक्र गीता राजा जनक को तब प्रदान की गयी जब वे सत्य और माया के ज्ञान के गहन में उतरने के लिये उत्सुक थे | आप के जैसे बहुत ही कम लोगों में ज्ञान को जानने की जिज्ञासा नहीं होती | इस पर विश्वास न करे कि इस वक्त यहां कोई उदास हैं ! कोई हैं क्या ?
श्रोताओं ने उत्साह के साथ उत्तर दिया, नहीं !!!!
सत्संग में कोई भी उदास नहीं रह सकता |
भगवत गीता एक निराश और दुखी युवा को प्रदान की गयी थी जबकी अष्टवक्र गीता सत्य और ज्ञान को जानने की जिज्ञासा रखने वाले व्यक्ति को प्रदान की गयी थी | इसीलिए यह थोड़ी कठिन और भिन्न है | भगवत गीता हर किसी व्यक्ति का ध्यान रखती है, यहां तक उनका भी जो दुखी, निराश और उदास है | जो जीवन का कुछ अर्थ समझना चाहता है और जीवन से कुछ प्राप्त करना चाहता है, यह उन सबके लिये है |
प्रश्न : गुरूजी भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग का क्या महत्त्व है ? क्या इनका दर्शन करना आवश्यक है ?
श्री श्री रवि शंकर: तीर्थ स्थानो का उद्देश्य लोगों को साथ में लेकर आना होता है और देश को कश्मीर से रामेश्वरम और कामाख्या से सोमनाथ तक जोड़ना भी है | भगवान शिव सिर्फ मंदिरों में ही निवास नहीं करते | वे आपके दिलों में भी निवास करते है | आप जहाँ पर भी है उनका स्मरण करें और वे प्रकट हो जायेंगे |
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