२३
२०१२ बैंगलुरु आश्रम
मई
हमें ये समझने की ज़रूरत
है कि हमें ये पता होना चाहिए कि जीवन में हमें क्या चाहिए| आप इस इरादे से शुरुआत कीजिये, "मैं जो चाहता हूँ वो मेरे पास है" तब जो आप चाहते हैं वो आराम से मिल जायेगा|
ऐसा सोचना कि मेरे पास
है, एक बीज बोने के जैसे है,
एक बार आपने बीज बो दिया
बस अब उसमें पानी और खाद डालते रहो और वो अंकुरित हो जायेगा और उग जायेगा| तो मन में आप जानते हो कि बीज है, इसी तरह जब आप जीवन में कुछ पाना चाहें तो सोचें कि आप वही
हैं, और आपके पास वो है, अगर आप सोचेंगे कि आपके पास वो नहीं तो केवल कमी ही बढ़ेगी| यही वजह है कि जिनके पास पैसे हैं उनके पास और पैसा आता जाता
है| और जिनके पास नहीं है, उनके पास नहीं आता, क्योंकि वो लगातार ये ही कहते रहते हैं, "मेरे पास नहीं है, मेरे पास नहीं है," तो मन कमी की ओर ही बढ़ता है|
आप जानते हैं, जब घर पर कोई चीज़ नहीं होती थी या जब हम चोकोलेट मांगते थे
तब मेरी दादी माँ कहती थी, "बहुत सारी हैं, बहुत हैं, बस दुकान से जाके लानी है", कोई और जो इसे सुनता था उसको ये बात बहुत अटपटी सी लगती
थी| हमने उन्हें कभी ये कहते हुए नहीं सुना कि नहीं है|
इसलिए कमी की मानसिकता
को निकाल देना चाहिए और आपको प्रचुरता को महसूस करना चाहिए| इसलिए आप अपने जीवन में जो भी लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं, पहले ये मान लीजिये कि वो है| आप उसको पा चुके हैं और तब उसे पाने के लिए प्रयत्न कीजिये| प्रयत्न कीजिये,
लेकिन केवल प्रयत्न से
कुछ नहीं होगा, उस से पहले लक्ष्य का बीज होना
चाहिए| तो लक्ष्य तो पहले से ही साधक में है, लक्ष्य कहीं बाहर नहीं है और आपको उस तक पहुंचना है, नहीं! सिर्फ आराम से बैठें, लक्ष्य यहीं है,
अभी है| इसलिए ज्ञान आप में पहले से ही मौजूद है, अगर आपको लगता है कि आप में उसकी कमी है तो आप उसको कभी हासिल
नहीं कर पाएंगे, आप को ये पता होना चाहिए कि वो
आपके अन्दर एक बीज के जैसे मौजूद है|
आप को पता होना चाहिए कि
आप पहले से ही योगी हैं और योग करते रहे,
आपको उस में निपुणता मिल
जाएगी| लेकिन अगर आप सोचेंगे कि आप योगी नहीं हैं तब योग-निपुणता के लिए आपके प्रयत्न से कुछ नहीं होगा, इसलिए मान लीजिये
कि बीज तो आप में पहले से ही मौजूद है| इसलिए अगर आप व्यवसायी बनना चाहें
तो बीज डाल लें, मैं व्यापारी हूँ और तब एक व्यापारी
बनने के लिए काम करें| ये बहुत अजीब सा लगता है सुनने में| अक्सर लोग कहते हैं,
"मेरे पास ये नहीं और मुझे ये पाना है",
लेकिन कभी कभी ही उन्हें
वो मिल पाता है| सफलता का रहस्य ये समझने में है कि लक्ष्य पहले से ही
साधक में मौजूद है| तो आज आपको ज्ञान का बड़ा रहस्य मिल गया|
प्रश्न : प्रिय गुरुजी,
ऐसा कहा जाता है कि महाभारत
के समय तकनीक आज के समय से भी ज्यादा आगे थी,
फिर क्या हुआ? सब तरक्की और प्रगति कहाँ गायब हो गयी? हम पीछे की ओर कैसे चले गए?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, ये प्रकृति का चक्र है,
सब कुछ चक्र में चलता है| इस ग्रह पर पहले डायनासोर थे और बड़े बड़े पक्षी थे जिन्हें सिखाया
जा सकता था| इन बड़े पक्षियों की पीठ पर वो मंडप बनाया करते थे, और उन्हें प्रशिक्षित करते थे दूर जगह तक जाने को और वो उड़ कर
चले जाते थे| विशालकाय पक्षी डायनासोर के समय में हुआ करते थे, लगभग हवाई जहाज़ के आकार के| क्या आपने उन पर बनी कथा देखी
है? कुछ पक्षियों का वज़न ३००० किलो तक होता था, लोग उन पर घर बनाते थे|
रामायण में लिखा है कैसे
रावण सीता को लेकर जा रहा था और जटायु नाम के बड़े पक्षी ने उसका रास्ता रोका और रावण
ने उसका एक पंख काट दिया|
मुझे नहीं पता कि हमने
सब कैसे खोया और क्यों खोया लेकिन अभी हम अपनी आजादी खो रहे हैं| बड़ी मुश्किल से हमारे देश ने आज़ादी हासिल की है लेकिन अभी हम
देख रहे हैं कि बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार इस देश
के लिए दयनीय है हमें| चीजों को सही करना है|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी,
मैं व्यापार में बहुत सफल
हूँ किन्तु निजी जीवन में बहुत असफल हूँ,
मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहले तो ये लेबल हटा दो कि
मैं असफल हूँ, अगर आपको अहसास हो गया है कि आपने पिछले समय में बहुत
गलतियाँ की हैं, तब आप पहले से ही सही राह पर चल
रहे हो| दुर्भाग्य ये होता जब आपको अहसास ही नहीं होता कि आपने गलती
की या आप गलत हो| जब आपने गलती की और पता चल गया कि आपने गलत किया तब आप
उस में से बाहर आ गए, आराम से बेफिक्र होकर काम करे, चिंता न करे|
प्रश्न : प्रिय गुरुजी, कृपया डमरू, त्रिशूल एवं शिव जी के सिर पर अर्ध चन्द्र का महत्व समझाइए|
प्रश्न : प्रिय गुरुजी, कृपया डमरू, त्रिशूल एवं शिव जी के सिर पर अर्ध चन्द्र का महत्व समझाइए|
श्री श्री रविशंकर : शिव तत्व का अर्थ है वहां जहाँ
मन न हो, और चाँद मन को प्रदर्शित करता है, तो जब मन नहीं है तब कैसे इस न-मन की स्तिथि को दिखा सकते हैं और कैसे कोई उसे समझ सकता है? आपको थोड़ा सा दिमाग समझने,
अहसास करने एवं प्रदर्शित
करने को चाहिए होता है| इसलिए ये पूर्ण चन्द्र नहीं है, लेकिन सिर पर अर्ध-चन्द्र दिखा रहा है कि अकथनीय
को कहने के लिए सिर्फ थोड़े से दिमाग की ज़रूरत होती है| शिव तत्व अकथनीय है उसके मूल तक कोई नहीं जा सकता|
इस से जुडी हुई एक कथा
भी है, जिसमें ब्रह्मा सिर ढूँढने और विष्णु चरण ढूँढने गए लेकिन
उन्हें कुछ भी नहीं मिला, इस लिए अनंत को तब तक समझा नहीं
जा सकता जब तक दिमाग लगाते हैं| आप ध्यान में बैठते हो और शून्यता अनुभव करते हैं, लेकिन जब मन में विचार आता है कि मैं कितने सुन्दर ध्यान का
अनुभव कर रहा हूँ| तब अनुभव कौन कर रहा है? वो मन है, ये मन को अहसास होता है कि मुझे
बहुत अच्छी नींद आई या मुझे बहुत अच्छा ध्यान हुआ| इसलिए अकथनीय को कहने के लिए आपको
थोड़े से मन की ज़रूरत है इसीलिए थोड़ा सा मन अर्धचंद्र के रूप में सिर पर है| सिर संपूर्ण ज्ञान है,
ज्ञान मन से परे है लेकिन
उसको थोड़े से दिमाग से दिखाया जा सकता है इसलिए इसे अर्ध-चन्द्र से दर्शाया गया है|
डमरू इस ब्रह्मांड का प्रतीक
है, जो हमेशा बढ़ता या घटता रहता है| एक फैलाव से ये फिर नष्ट होता
है और फिर से फैलता है ये प्रकृति का नियम है|
अगर आप अपने दिल कि धड़कन
को देखोगे तो पाओगे कि वो एक भी सीधी लाइन में नहीं है, वो एक लय में है जो ऊपर जाती है, नीचे आती है| सारा संसार और कुछ नहीं, एक लय
है| ऊर्जा बढ़ती है और घटती है कि फिर से बढ़ सके,
तो एक डमरू यही प्रदर्शित
करता है, डमरू का आकर देखो, बढ़े हुए से कम होता है और फिर से बढ़ जाता है| ये ध्वनि का चिन्ह भी है, ध्वनि लय है और ध्वनि ऊर्जा है| सारा संसार और कुछ नहीं बल्कि एक तरंगों का खेल है| यह और कुछ
नहीं एक लय है| परिमाण का भौतिक क्या कहता है? वो भी ये ही बात कहता है, सारा संसार और कुछ नहीं बल्कि तरंग है एक लय है| तो कोई दो बात ही नहीं, सिर्फ एक ही है “तरंग”, सिर्फ एक तरंग| यही बात आदि शंकराचार्य ने कही है कि सिर्फ एक ही चीज़ है|
हालाँकि आपको ऐसा लगता
है, ये बल्ब अलग है,
वो बल्ब अलग है, ये पंखा अलग है,
और तब आप उलझ जाते हैं, आप सच्चाई नहीं जानते| सच ये है कि सिर्फ एक ही बिजली
है, एक ही मुख्य बटन है और अगर वो चालू है तो बल्ब जलता है, अगर वो बंद है तो सब बंद हैं| तो एक ही चीज़ है जो सब जगह दौड़ती
है, वो है बिजली| इसलिए समस्त ब्रह्माण्ड एक ही
आत्मा है, एक ही ऊर्जा|
अब क्या बिजली अच्छी है
या बुरी? कुछ भी नहीं| अगर आप अपना हाथ साकेट में दाल
देंगे तो आपको झटका लगेगा, क्या वो अच्छा है? लेकिन साथ साथ अगर आपको झटका लगा तो क्या बिजली बुरी है? नहीं, ऐसा कहना मूर्खता होगी कि बिजली
बुरी है क्योंकि उस से बहुत से आराम मिलते हैं,
रौशनी, आवाज़, हवा, खाना, सब कुछ आज बिजली की मदद से बनता
है| लेकिन साथ ही बिजली नुकसानदायक भी है, अगर आपके घर के ऊपर से बहुत ज्यादा करंट की तार जा रही है तो
उस से बहुत विकिरण होता है जो बहुत बुरा है|
तो इस तरह से बिजली स्वयं
में अच्छी या बुरी नहीं है, ये बात हमें समझनी होगी| इसीलिए हम कहते हैं की ब्रह्मतत्व या जीवन अच्छे और बुरे से
परे है| अच्छा और बुरा हमेशा जुड़े हुए होते हैं, कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं है, वो इस से परे है,
वो केवल एक ही बात है जिसे
हम तत्वज्ञान कहते हैं, वास्तविक ज्ञान|
प्रश्न : प्रिय गुरुजी,
जब आपने कहा की अमीर और
अमीर होता जाता है और गरीब और गरीब जब वो कमी के बारे में सोचते हैं, क्या ऐसा कोई तरीका है जिस से प्रकृति इस तरह के असंतुलन की
कुछ क्षतिपूर्ति कर दे?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, ज्ञान के द्वारा, इसीलिए हमें हर एक को प्रोत्साहित
करना चाहिए कि वो स्वयं पर भरोसा कर सकें और इस तरह कि कमी की भावना से बाहर आ सकें| जिनके पास है उन्हें सेवा करनी चाहिए, और जिनके पास नहीं उन्हें ये समझना चाहिए कि उन्हें जो ज़रूरत
है वो उन्हें मिल जायेगा| बस उन्हें कड़ी मेहनत करनी है|
प्रश्न : आपको कब अहसास हुआ कि आपको एक गुरु बनना है?
श्री श्री रविशंकर : रामायण में एक बहुत सुन्दर कथा
है, एक आवारा कुत्ता था, जो सड़क से जा रहा था कि एक व्यक्ति ने उसको पत्थर मारा और भागने की कोशिश की, तो वो कुत्ता दरबार में गया| ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम
के दरबार में जानवरों को भी इन्साफ मिलता था| तो वो कुत्ता दरबार में गया और
बोला कि सड़क सबके लिए है, ये कहीं पर भी नहीं लिखा कि कुत्ते
इस सड़क पर नहीं चल सकते, मैं सड़क पर से जा रहा था कि इस आदमी ने मुझे मारा, आपको इसे सजा देनी चाहिए| भगवान राम ने उस व्यक्ति से पूछा
कि क्या ऐसा सच है? वो आदमी झूठ नहीं बोल पाया और
उसने माना कि उसने कुत्ते को चोट पहुंचाई है| उन दिनों में पीड़ित से पूछा जाता
था कि अपराधी को क्या सजा दी जाए, तो जब कुत्ते से पूछा गया कि उस
आदमी को क्या सजा दी जाये तब उसने कहा कि इस आदमी को किसी धार्मिक संस्था का प्रमुख
बना दीजिये, किसी आश्रम का गुरु बना दीजिये| लोगो ने कहा कि ये तो बड़ी अजीब सी सजा है| कुत्ता बोला कि ऐसे क्यों कह रहे हैं, बस इसको ऐसा बना दीजिये|
मैं भी पिछले जन्म में
गुरु था और देखो क्या हाल हो गया! तब मरने से पहले मैंने सोचा कि
गुरु बनने से अच्छा तो मैं गली का आवारा
कुत्ता बन जाता, देखिये इसलिए ही आज मैं कुत्ता
बना हूँ| मैंने बहुत परेशानी झेली है, इसको भी किसी संस्था का, किसी आश्रम का प्रमुख बना दीजिये तब इसे पता चलेगा कि
जीवन में परेशानी क्या होता है, दर्द क्या होती है, तकलीफ क्या होती है|
रामायण में ये एक बड़ी
मज़ेदार कहानी है|
देखिये, जो सब जगह कहता रहता है कि मैं एक गुरु हूँ, वो एक गुरु बही बन जाता| गुरु तत्व ऐसे लोगो में प्रकट
होता है जो एक गुरु होने का दावा नहीं करते,
जो सरल और सहज रहते हैं,
वे सद्गुरु हैं| थोड़ा बहुत गुरु तत्व हर एक में मौजूद होता है| आप में भी है, आप भी यदा कदा किसी न किसी को कुछ न कुछ सलाह देते हैं, आप अपने आस पास के लोगों में प्यार और ख़ुशी बांटते हैं, है ना! हमें क्या करना है, हमें बिना किसी अपेक्षा के दूसरों को प्यार देना चाहिए, उनकी सेवा करनी चाहिए,
ये ज़रूरी है|
अक्सर हम सोचते हैं, मैंने उस व्यक्ति को इतना प्यार दिया और उसने बदले में मुझे
क्या दिया? इस तरह से हम दूसरे व्यक्ति को यह अहसास कराते हैं कि हमने उसको प्यार कर के उस
पर बहुत बड़ा अहसान किया है, हमें ये नहीं करना है|
प्यार आपका स्वभाव है, प्यार करने का अर्थ ये नहीं कि आप कहते रहें कि अरे मैं तुम्हे
बहुत प्यार करता हूँ, नहीं! प्यार करने का अर्थ है सरलता से, सहजता से, करुणा से, बड़प्पन से व्यवहार करना| हम इन सब गुणों के साथ ही पैदा
हुए हैं| अगर कभी आपको कठोर बनना है तो कठोर भी बनिए, आप केवल तभी नाराज़ हो सकते हैं जहाँ थोड़ा भी प्यार होता है|
फिर भी अपने सब गुणों को
समर्पित कर दीजिये और अन्दर से खाली हो जाइये| गुरु तत्व के समीप आने के लिए
यही आपको करना है, अपने सभी अच्छे और बुरे गुणों
को समर्पित कर दीजिये और खुश रहिये|
प्रश्न : गुरु जी पुराने समय में, ऐसा कहा जाता है कि लोग सालों तक समाधी में बैठते थे और अब सिर्फ २० मिनट में काम हो जाता है, क्या वो कहनियाँ सच हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, उन्होंने कथाएँ लिखी कि कैसे कोई समाधी में बैठा और उसके ऊपर बाम्बी उग आई, ऐसा नहीं है| ये इस बात को दिखाता है कि जब कोई ध्यान में बैठता है तब कुछ प्रकार की संवेदना होती हैं जैसे शरीर पर चींटियाँ चल रही हों| अगर आपके पास एक अच्छा गुरु है तब आप आराम से ध्यान में जा सकते हैं, बिना गुरु के समाधी का अनुभव नहीं किया जा सकता|
प्रश्न : गुरुजी, कुण्डलिनी क्या है और उसे कैसे जागृत किया जा सकता है?
श्री श्री रविशंकर : कुण्ड का अर्थ है शरीर, और कुण्डलिनी का अर्थ है शरीर में जागृत ऊर्जा, एडवांस कोर्स में ध्यान में जो भी होता है वो स्वयं कुण्डलिनी ही है, कुण्डलिनी को समझने का और कोई तरीका नहीं है| अगर ध्यान लगता है तो वो बिना कुण्डलिनी के जागृत हुए संभव ही नहीं| तो अगर आप ध्यान में जाते हैं मतलब आपकी कुण्डलिनी जागृत हो गयी है|
प्रश्न : गुरुजी, जैसा कि आपने कहा कि जो हम जीवन में चाहते हैं हमें ये मान के चलना चाहिए कि वो हमारे पास पहले से ही है, क्या ऐसा हम अपने जीवन में किसी व्यक्ति के लिए भी मान सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, ऐसा हो सकता है लेकिन इस बात को कोई गारंटी नहीं कि इस ही जन्म में हो जाये| अगले जन्म में हो सकता है या अगले किसी १० जन्म में हो सकता है| इसीलिए मैंने कहा है कि एक इच्छा, एक आकांक्षा अपने समय से फलीभूत होती है|
प्रश्न : गुरु जी, मेरा एक अच्छा पारिवारिक जीवन है, अच्छी जीविका है, आपस में अच्छे रिश्ते हैं और मैं संतुष्ट हूँ और जानता हूँ कि ईश्वर मुझ में ही है, क्या मुझे अब भी ध्यान करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : देखिये, ध्यान इसलिए है कि जो आपके पास है वो बना रहे| आपके पास सब अच्छा चल रहा है, क्या आप उसे बनाये रखना चाहते हैं? क्या आप अच्छी सेहत, अच्छे रिश्ते बनाये रखना चाहते हैं? तब आपको ध्यान करना चाहिए| ध्यान से तनाव घटता है वरना तनाव बढता रहता है और ५-१० साल बाद आप फटते हैं| ध्यान आपको संतुलित रहने में मदद करता है और जो कुछ भी आपके पास है उसको बनाये रखने में मदद करता है| अगर आपके पास कुछ है और आप उसको बना के रखना चाहते हैं तो भी ध्यान ज़रूरी है| अगर आपके पास कुछ नहीं है तो उसको पाने के लिए भी ध्यान ज़रूरी है|