ध्यान करने से आप भाग्यशाली बन जाते हैं!!!


१०
२०१२ बैंगलुरु आश्रम, भारत
जून
हमारा देश ऋषि और कृषि की भूमि है| देव पूजा से पहले हम बीज वापना और अंकुरार्पनाकरते हैं| जीवन और पूजा अलग अलग नहीं हैं| हमारा जीवन ही पूजा है| हम जहाँ भी चलें, वह प्रदक्षिणा बन जाए| हमें जीवन के प्रति ऐसी सोच रखनी चाहिये| जीवन में सात्विकता होनी चाहिये| जब सात्विकता होती है, तो मन शक्तिशाली होगा, बुद्धि तीक्ष्ण होगी और जीवन में उत्साह होगा| इसलिए, धरती में कोई बीज बोने के लिए भी, वे बिल्कुल उपयुक्त समय का इंतज़ार करते थे| वे बहुत श्रद्धा के साथ बीज बोते थे|
और, हमारे पूर्वज भोजन करने से पहले अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना करते थे, ‘अन्नदाता सुखी भव:’| इसका मतलब, ‘मुझे भोजन प्रदान करने वाला सदैव खुश रहे’| यह हम सबको करना चाहिये| क्या आप सब यह हर दिन करेंगे?
हमें भोजन प्रदान करने वाला सबसे पहला व्यक्ति किसान है| उसके बाद व्यापारी आते हैं| तीसरी हैं घर की महिलाएं|
किसान अन्ना उगाते हैं| व्यापारी निश्चित करते हैं, कि यह अन्न हम तक उपलब्ध हो, और घर की महिलाएं, माएँ इस भोजन को पकाती हैं और हमें परोसती हैं| हम यह प्रार्थना करते हैं, कि ये तीनों खुश रहें| अगर इनमें से कोई भी दुखी है, तो हमारा जीवन भी उससे प्रभावित होगा|
किसान बढ़िया फसल उगाते हैं, लेकिन अगर व्यापारी और वितरक किसानों को उसका सही मोल नहीं देंगे, या उसके वितरण की सही तरह से व्यवस्था नहीं करेंगे, तो वे बहुत बड़ी गलती कर रहें हैं|
इसी तरह किसानों को देखना चाहिये, कि वे धरती और पानी को रसायनों से दूषित नहीं कर रहें हैं| हमें कभी भी Genetically Modified (GM) फ़सल के लिये नहीं जाना चहिये| हमें रसायन-मुक्त खेती करनी चहिये| बहुत से लोग अब Zero Budget खेती कर रहें हैं| (http://www.artofliving.org/chemical-free-farming)
किसान बीज खरीदने के लिये पैसा खर्च करते हैं, और फिर रसायन से उन्हें दूषित कर देते हैं| अगर हम ऐसा करना बंद कर दें, और इसके बजाय खेतीबाड़ी के पुराने नुस्खे अपनाएं, तो किसान खुश रहेंगे| अगर व्यापारी बिना किसी लालच के अपना व्यापार करेंगे, तो वे भी खुश रहेंगे| और अगर घर की महिलाएं, खुश रहें, और खुश रह कर हमें खाना परोसें, तो हमारा पाचन भी बढ़िया रहेगा| अगर वे आँसू बहाते हुए खाना पकायेंगी, तो हमें भी उसे पचाने के लिए आँसू बहाने पड़ेंगे| हमारे शरीर में दर्द होगा, सिर दर्द, पेट दर्द और तरह तरह की बीमारियाँ|
इसलिए, ये तीनों सुखी रहें, इसके लिए ही हम प्रार्थना करते हैं, अन्नदाता सुखीभव| हर दिन भोजन करने से पहले इसका जाप करना चाहिये|
अच्छा, अब एक बुद्धिमान व्यक्ति का क्या लक्षण होता है?
बुद्धिमान लोगों का लक्षण होता है, कि वे बुरे से बुरे व्यक्ति में भी अच्छाई ढूँढ लेते हैं| हर एक इन्सान में अच्छाई छुपी होती है| बुद्धिमान लोग तो अपराधियों में भी अच्छे गुण निकाल लेते हैं| वे उनसे कहते हैं, जो भी कुछ तुमने भूतकाल में किया, उसे भूल जाओ| अब आगे से, अपने अंदर सिर्फ अच्छाई देखो| तुम्हारे अंदर अच्छाई है|
वे उन्हें ऊपर उठाने की कोशिश करते हैं|
मूर्ख लोगों का लक्षण है, कि वे लोगों को नीचे खींचने में लगे रहते हैं| वे अच्छे लोगों में भी बुराई ढूँढने लग जाते हैं| वे हर एक किसी में बुराई ढूँढ़ते हैं|
आप किस तरह एक अच्छे और बुरे दोस्त में अंतर कर सकते हैं? एक अच्छा मित्र वह है, जिसके साथ जब आप अपनी तकलीफें बांटें, तब वे आपको ऐसा महसूस कराएँगे जैसे आपकी परेशानी बहुत छोटी है| उनसे बात करने के उपरांत अगर आप जोश और उत्साह से भर जाते हैं, तभी वे आपके सच्चे मित्र हैं| लेकिन, अगर किसी से बात करके आपको ऐसा लगता है, कि आपकी परेशानी और अधिक बढ़ गयी हैं, तब वे आपके अच्छे मित्र नहीं हैं|
हमें यह देखना चाहिये, कि क्या हम लोगों को जोश से भर देते हैं, या हम उन्हें नीचे खींचते हैं? हम यह बिना जाने करते हैं| हमें इन बातों पर गौर करना चाहिये|
मेरे पास आपके लिए एक अच्छी खबर है| असम में १००० आतंकवादियों ने आर्ट ऑफ लिविंग का कोर्स किया और आत्म-समर्पण कर दिया| वे सब यहाँ (बैंगलुरु आश्रम) आयेंगे ट्रेनिंग के लिए| गृह-मंत्रालय उन्हें यहाँ भेज रहा है|

प्रश्न : हम बुरी आदतों से कैसे बाहर आयें? ये विचार बार बार हमें आते रहते हैं|
श्री श्री रविशंकर : बुरी आदतों से बाहर आने के लिए, और अधिक प्राणायाम करिये| यह इस पर भी निर्भर करता है, कि हम कैसे लोगों के साथ समय व्यतीत करते हैं| अगर आपके पास बहुत अधिक खाली समय होता है, तब बुरी आदतें आपके मन में आती हैं| अगर आप समाज-सेवा में अपने आपको लगा लें, तो ये बुरी आदतें खुद-ब-खुद चली जायेंगी|

प्रश्न : क्या गुरु चुनने से पहले गुरु दीक्षा लेनी आवश्यक होती है?
श्री श्री रविशंकर : आपको गुरु चुनने की कोई ज़रूरत नहीं है| आप जीवन में जो भी अच्छी बातें सीखते हैं और जहाँ से भी सीखते हैं, उन सबमें गुरु तत्व मौजूद है|
आपकी माँ आपकी प्रथम गुरु है| जैसे जैसे आप बड़े होते हैं, आपको शिक्षा देने वाले गुरु मिलते हैं| इसी तरह, जीवन के हर मोड़ पर आपके जीवन में एक गुरु होते हैं| गुरु तत्व तो हमेशा आपके साथ रहता है| तो जब भी आपके मन को लगता है, कि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए कोई हमारी सहायता कर रहा है, इसका मतलब कि गुरु तत्व मौजूद है|

प्रश्न : ऐसा कहा जाता है कि हमें राहु-काल के समय कोई पूजा नहीं करनी चाहिये| लेकिन फिर भी आश्रम में हमारा रविवार का सत्संग क्यों हमेशा राहु-काल में ही होता है?
श्री श्री रविशंकर : ऐसा नहीं कहा गया है, कि राहु-काल के समय हमें कोई पूजा नहीं करनी चाहिये| बल्कि, राहु-काल के समय पूजा करना तो शुभ माना जाता है| हाँ, शादियाँ और गृह-प्रवेश इस समय नहीं करना चाहिये|
केवल इतना ही कहा गया है, कि हमें कोई सांसारिक कार्य इस समय नहीं करने चाहिये; यह नहीं कि इस समय भगवान को याद नहीं कर सकते, या सत्संग नहीं कर सकते| बल्कि, राहु-काल में सत्संग करना अच्छा रहता है|
ग्रहण और राहु-काल के समय सत्संग करना अच्छा होता है| सत्संग करने के लिए तो हर समय अच्छा होता है| दूसरे लोगों की मदद करने के लिए, और भगवान को याद करने के लिए हमें किसी शुभ समय की ज़रूरत नहीं है| इसके लिए तो चौबीसों-घंटे बढ़िया होते हैं|

प्रश्न : क्या अच्छे लोगों की रक्षा करना पुलिस का काम होता है या नागरिकों का?
श्री श्री रविशंकर : यह प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है|
आपको सचमें पुलिस वालों की तारीफ़ करनी चाहिये|
जब मैं झारखण्ड में था, तो झारखण्ड के पुलिस महानिरीक्षक मुझसे मिलने आये थे| उनकी आँखों में आंसूं थे| वे बोले, गुरूजी, मैंने पिछले साल अपने २०० आदमी खो दिए हैं| जब मैं और अन्य पुलिसकर्मियों को भर्ती करता हूँ, तो मेरे अंदर उनके परिवारों का सामना करने की शक्ति करने की हिम्मत नहीं होती, क्योंकि मैं नहीं जानता कि नक्सलवादियों के कारण कल को उन्हें क्या हो जाए|
पुलिसवाले अच्छे लोग हैं| वे अपने जीवन और समय का त्याग कर रहें हैं| वे कोई त्यौहार नहीं मना सकते| उन्हें अपनी ड्यूटी करनी है; रात हो या दिन| उनकी जाति जिंदगी बहुत मुश्किलों में रहती है| वे भले ही अपनी ड्यूटी कर रहें हो, लेकिन यह एक अकृतज्ञ नौकरी है|
लोग भी, और राजनेता भी, हर एक कोई पुलिस वालों को डाँटता है| वे बीच में फँस गए हैं, लेकिन मैं आपको बताता हूँ, कि आज वे ही हैं, जो हमारे समाज के कानून और व्यवस्था की रक्षा कर रहें हैं|
हालाँकि, जब कोई आमतौर पर पुलिस वाला शब्द कहता है, उसका मतलब बुरा व्यक्ति| हमें ऐसे नहीं सोचना चाहिये| हमें उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिये, कि वे एक अकृतज्ञ नौकरी कर रहें हैं|
मैं पिछले १५ सालों से पुलिसकर्मियों की दिक्कतों के बारे में सुन रहा हूँ| उन्हें अच्छा काम भी करना है, और लोगों से गाली भी खानी है| हमें पुलिसकर्मियों को अपने से अलग नहीं समझना चाहिये| वे हममें से ही एक हैं| हालाँकि वे जीवन में इतनी मुश्किलें उठाते हैं, वे फिर भी हमारी रक्षा करने के लिए काम कर रहें हैं| हमें उसके लिए उनका कृतज्ञ होना चाहिये, और उनकी निंदा नहीं करनी चाहिये|

प्रश्न : माता के चरणों और गुरु के चरणों में कितना फ़ासला है?
श्री श्री रविशंकर : माता में थोड़ा बहुत स्वार्थ हो सकता है, लेकिन एक गुरु में वह भी नहीं होता|

प्रश्न : हमारे देश में बारह ज्योतिर्लिंग हैं| कृपया हमें उनका महत्व बताएं|
श्री श्री रविशंकर : हमारे देश को एकजुट करने के लिए ही अलग अलग जगहों पर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गयी है| इस तरह लोग इन अलग अलग जगहों पर जायेंगे, और जब वे पूरे देश भर में घूमेंगे, तो वे पाएंगे, कि हमारा देश एक है|

प्रश्न : गुरूजी, आप कहते हैं, कि ध्यान करने से हमारी किस्मत चमक जाती है| ऐसा कैसे संभव है?
श्री श्री रविशंकर : ध्यान करने से आपकी तरंगें सकारात्मक हो जाती हैं| आपकी तरंगें जितनी अधिक सकारात्मक होंगी, उतना ही आपके जीवन में भाग्य अधिक होगा| यह सहज ही तो है|

प्रश्न : जीवन में बहुत द्वन्द्व है|
श्री श्री रविशंकर : उसे थोड़ा समय दें| द्वन्द्व स्वतः ही दूर हो जाएगा| जब हमारा मन द्वन्द्व में होता है, तब हमें लगेगा, कि हमारे सारे निर्णय गलत ही हैं| हमें यह ही लगेगा, कि हमें कुछ और करना चाहिये था|

प्रश्न : हम अहंकार को कैसे जीते?
श्री श्री रविशंकर : सहज रहिये| सबके साथ दोस्ती रखिये| अगर हम सहज रहते हैं, तब अहंकार स्वयं ही गायब हो जाता है| अहंकार मतलब आपने अपने और बाकी लोगों के बीच एक कृत्रिम दीवार खड़ी कर ली है| और आप यह सोचने लगते हैं, कि जो आप कह रहे हैं, केवल वही सही है| यह हमें भी नुकसान पहुंचाता है, और दूसरों को भी| अगर हम सहज रहें, और ऐसा महसूस करें कि सभी अपने हैं, और अपनी सोच में खुलापन रखें, तब हमारे मन में किसी तरह का दबाव नहीं रहेगा| मन हल्का रहेगा|
इसीलिये, हमें एक बच्चे की तरह सहज रहना चाहिये| यह कार्य-सिद्धि लाता है| हम जो भी इच्छा करते हैं, वह अपने आप पूरी हो जाती हैं|

प्रश्न : मैंने बायो-टेक्नोलॉजी में M.Tech किया है| मैं रसायन-मुक्त खेती के व्यापार में रूचि रखता हूँ| मैं रसायन-मुक्त खेती को किस तरह अपना रोज़गार बना सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : आजकल इसकी बहुत मांग है| अगर रसायन-मुक्त उत्पादन का ठीक तरह से वितरण हो, तो इससे काफी मदद मिलेगी| इसीलिये, हमने ‘Sri Sri Institute of Agricultural Sciences’ खोला है| आप उनसे बात करिये| हम निश्चित ही इसके बारे में कुछ कर पाएंगे|