कर्म की गति अद्भुत होती है!!!


२०१२ बैंगलुरु आश्रम
जून

आप में से कितनों ने ऐसा महसूस किया है कि बिना किसी को नुकसान पहुंचाए, बिना कुछ गलत किये हुए भी लोग आपके दुश्मन बन जाते हैं| (बहुत से लोगों ने अपना हाथ उठाया) बहुत से! अब मुझे बताइए कि आपने कुछ लोगों से साथ कुछ भी अच्छा नहीं किया होता, उनका कुछ काम नहीं किया होता तब भी वो आपके दोस्त बन जाते हैं| आपमें से कितनों ने ऐसा भी अनुभव किया है? (बहुत से लोगों ने हाथ उठाया) ये देखिये!
आपने किसी के साथ कुछ गलत नहीं किया तब भी वो आपके दोस्त बन गए और कुछ भला नहीं किया तब भी वो आपके बहुत अच्छे दोस्त बन गए| कर्म कि गति बहुत अद्भुत होती है| इसीलिए ऐसा कहा जाता है कि कर्म कि गति अगाध है, अज्ञेय है| "होने वाले कर्म और करने वाले कर्म में बहुत फर्क है|"
आपके कार्यों के अलावा जिन घटनाओं ने होना है वो होती ही रहती हैं| इसलिए कहा जाता है कि  कर्म की गति बहुत अद्भुत है| इसलिए ही मैं आपसे कहता हूँ कि  दोस्तों और दुश्मनों को एक तरफ रखो और आराम से बैठो, विश्राम करो और अपना ध्यान ईश्वर पर रखो|
इसलिए ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, "समः शत्रु मित्रे तथा मनापमानायोह्सितोश्ना - सुखः दुखेशु - समः - विवेर्जितः|"
अपने मन के साम्य को मत खो, आपको नहीं पता कि कब, कहाँ, क्या होगा| कब एक दोस्त एक दुश्मन बन जाये, और कब एक दुश्मन दोस्त बन जाये| कोई इस संसार के बारे में नहीं जानता, इसलिए अपना ध्यान सत्य पर रखो और अपने कर्तव्य पूरी ईमानदारी से करो और पूरी निष्ठा से ध्यान करो|

प्रश्न : गुरुजी ऐसा कहा जाता है कि गुरु से पूर्णिमा के दिन मिलना बहुत शुभ होता है|
श्री श्री रविशंकर : हाँ, क्या आप जानते हो की चंद्रमा समुद्र पर प्रभाव डालता है? पूर्णिमा के दिन समुद्र की लहरें बहुत ऊंची होती हैं| चाँद जल पर प्रभाव डालता है,ये हम सब जानते हैं| हमारा शरीर जल से बना है, हमारा शरीर लगभग ६० % जल से बना हुआ है| और इसमें नमक मिला हुआ होता है, समुद्र के जैसे| इस तरह आपका शरीर समुद्री जल का एक छोटा सा प्रतिरूप है, इसलिए चंद्रमा का शरीर पर प्रभाव पड़ता है और जो कुछ भी शरीर पर प्रभाव डालता है, वो मन पर भी प्रभाव डालता है| इसिलए जो लोग उन्मादित हो जाते हैं उन्हें मूर्ख कहा जाता है, ये शब्द स्वयं ही कहता है मूर्खता पूर्ण| और इसलिए ही हमारे पूर्वज एकादशी (ग्यारहवे चाँद के दिन ) को उपवास रखने को कहते थे, ऐसा इसलिए कहते थे क्योंकि जब पेट खाली होता है तब शरीर का विष साफ़ हो जाता है| उपवास का शरीर पर एक साफ़ कर देने वाला प्रभाव पड़ता है, और ये सब बिना हज़म हुए भोजन, विष आदि को साफ़ कर देता है| इसलिए अगर आप पूर्णिमा से दिन पहले उपवास रखते हो तो आपको पूर्णिमा के दिन कोई बीमारी नहीं होगी, ऐसा माना जाता है| ऐसा ज़रूरी नहीं कि आप को एकादशी के दिन उपवास करना ही है, लेकिन अगर साल में २-३  दिन उपवास करें तो अच्छा है|

प्रश्न : मैं आपके जैसा शक्तिशाली कैसे बन सकता हूँ? इस संसार में ताक़त सभी को प्रिय है|
श्री श्री रविशंकर : सबसे बड़ी ताक़त है विश्राम, गहरा विश्राम, और प्यार| अगर जीवन में ये चीज़ें हैं तो बाक़ी सब जाता है, ये अपने आप होगा| देखो अभी मैं आपका हूँ और आप मेरे हो तो आपको प्रचुरता महसूस करनी चाहिए| मान लो कि आपके पास सब कुछ है और किसी चीज़ की कमी नहीं है| अगर आपको खुद में कोई कमी या दोष नज़र आये तो ध्यान करो, साधना करो| आपके अभ्यास से वो सब दूर हो जायेगा|

प्रश्न : गुरुजी, ऐसा कहा जाता है कि पथ पर रहते हुए सब कुछ समर्पण कर दो, और सभी प्रकार के लक्ष्य और उद्देश्यों से मुक्त हो जाओ| मैं एक व्यस्त प्रबंधक हूँ, बिना किसी उद्देश्य या लक्ष्य के मैं ज़िम्मेदारी कैसे उठा सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : देखिये दो बातें हैं, प्रवृत्ति और निवृत्ति, इन दो को मिलाइए नहीं| ये दो तरह के भाव हैं, जिन पर हमें ध्यान देना है| एक है, जब आप अन्दर की और जाते हो (निवृत्ति) और आपको लगता है कि सब ठीक है, मुझे कुछ नहीं चाहिए, इसे ध्यान कहते हैं| जब आप उस से बाहर आते हो और काम करते हो (प्रवृत्ति), तब हर छोटी छोटी बात में कौशल को देखो, अपना पूरा ध्यान वहां लगाओ और ज़िम्मेदारी उठाओ, भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का यही संदेश है| जब आप बाहर आते हो और कार्य करते हो (प्रवृत्ति), तब हर छोटी बात में निपुणता को देखो, जब भी आपको कुछ कमी दिखती है, उस पर पूरा ध्यान दो और उसको ठीक करो| और जब आपको बाहर आना हो तब कहो कि सब ठीक है, यह भाव आपको ध्यान में जाने में मदद करेगा| ये निवृत्ति का पथ है| इसलिए जिसे प्रवृत्ति और निवृत्ति के भेद का ज्ञान है, कहते हैं कि उसके पास सात्विक ज्ञान है, वो समझदार है|
ज्ञानी का दूसरा लक्षण क्या है? वो जो बुरे व्यक्ति में भी कुछ अच्छाई देख सकता है और जो सब में अच्छाई देखता है| आप जेल में जाओ, वहां आप सबसे बड़े अपराधी में भी कुछ अच्छाई ढूँढ सकते हैं| दोषी में अच्छाई को ढूँढना, ये समझदारी है| इसलिए एक समझदार व्यक्ति सबसे बुरे व्यक्ति में भी अच्छाई ढूँढता है और एक मूर्ख व्यक्ति सबसे अच्छे इंसान में भी कुछ बुरे ढूँढ लेता है, और ऐसे लोग हैं जो ऐसा करते हैं|
किसी ने अमेरिका में किसी पुस्तक में लिखा है कि रामकृष्ण परमहंस पागल थे , उसने ये साबित भी किया है कि उनमें कितनी सारी खराब बातें थी,और विवेकानंद में भी बहुत सारी बुराइयां थी, और सभी हिंदू संतो में कुछ कुछ बुरी आदतें थी, और उसने इससे एक पुस्तक भी बनायीं है| ये मूर्खता की निशानी है, और ज्ञानी की निशानी ये है कि वो एक बुरे व्यक्ति को भी उठा देता है|

प्रश्न : भगवान  श्रीकृष्ण के बहुत से रूप हैं, सौम्य, सुन्दर, असीमित, करुणामय लेकिन हम हमेशा उन्हें मन-मोहन ( सबसे मनमोहक) के रूप में ही क्यों पूजते हैं?
श्री श्री रविशंकर : नहीं, अगर आप गुजरात में जाओगे तो उन्हें रणछोड़ राय के रूप में पूजते हैं,कुछ उन्हें बाल-कृष्ण के रूप में पूजते हैं, तो जिस रूपमें वो आपको अच्छे लगते हैं उस रूपमें आप उन्हें पूज सकते हैं| भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिस रूपमें कोई मुझे पूजता है उस ही रूप में मैं उस के पास जाता हूँ| अब हम उन्हें भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं लेकिन भगवान श्रीकृष्ण के समय में ऐसे लोग भी थे जो उन्हें भला बुरा कहते थे, उस वक़्त बहुत कम लोग थे जिन्होंने उन्हें समझा|
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है "अवजानन्ति मम मुधा मनुसिम तनुम असृतम; परम भवम अज्नान्तो मम भूत महेस्वरम|"
"ये मूर्ख लोग मुझे नहीं समझते और मुझे इस शरीर के रूप में देखते हैं, वो मेरी अति-इन्द्रिय, गूढ़ स्वभाव को नहीं जानते; लोग सोचते हैं मैं सिर्फ एक साधारण मानव हूँ|" ऐसा वो कहा करते थे|
इसीलिए कहा जाता है कि ईश्वर सर्व व्यापी है| इस ब्रह्माण्ड के हर कण में, आप में, मुझ में, और सब में; क्योंकि वो सब में हैं इसलिए उन्हें परमात्मा (भगवान्) कहते हैं|