२७
२०१२ बैंगलुरु आश्रम
मई
बुद्धिमान
व्यक्तियों की पहचान यह है कि वे बुरे लोगों में भी अच्छे गुण खोज निकालते हैं। और
मूर्ख लोगों की पहचान यह है कि उन्हें संतों में भी दोषी दिखाई देता है। वे अच्छे
लोगों में भी दोष खोज लेते हैं। जबकि, बुद्धिमान लोग एक अपराधी में भी वाल्मीकि
(एक डाकू जो एक संत बने और रामायण के रचयिता है) को खोज लेते हैं।
अपने आप को
परखें, देखें कि आपमें कितनी बुद्धिमत्ता है और कितनी मूर्खता, कितनी बार आप दूसरों के भीतर से अच्छे गुण खोज निकालते हैं और
कितनी बार आपको उनमें दोष दिखाई देते हैं।
प्रश्न :
ईश्वर का जन्म कैसे हुआ?
श्री श्री
रविशंकर :
यदि उसका जन्म हुआ है तो वह ईश्वर नहीं है। ईश्वर वो है जो न कभी पैदा हुआ और न ही
कभी मरता है।
प्रश्न : मेरे
बेटे ने बहुत से कोर्स किये हैं, पर वह बदलने के लिये तैयार नहीं है। वह बार-बार
कहने के बाद भी क्रिया नहीं करता। मुझे क्या करना चाहिये?
श्री श्री
रविशंकर :
हाँ, किशोरावस्था के दौरान बच्चों को सुधारना थोड़ा मुश्किल होता है। धैर्य रखें।
यह नहीं कहा जा सकता कि कोई भी बदलाव नहीं हुआ है। ये सब कोर्स करने के बाद उसमें
कुछ बदलाव तो अवश्य ही आया होगा।
प्रश्न: आर्ट
ऐक्सल और यस कोर्स आयोजित करने के बाद, हमें माता-पिता से ये शिकायत मिलती रहती है
कि बच्चे, जो कुछ भी उन्हें सिखाया जाता है, उसका अभ्यास नहीं करते। हम इस विषय
में क्या करें?
श्री श्री
रविशंकर :
फॉलो-अप सत्र लगातार होते रहने चाहिये। उन्हें गेम खिलवायें। अपनी तरफ से हर सम्भव
प्रयत्न करें। एक बार आप बीज बो देते हैं, तो फिर क्या देखते नहीं कि वह सही
प्रकार से विकसित हो रहा है या नहीं?
प्रश्न : क्या
प्रकृति के नियमों के विपरीत चमत्कार हो सकते हैं?
श्री श्री
रविशंकर :
हाँ। बहुत से होते हैं। बहुत से लोगों ने अपने जीवन में ऐसे चमत्कारों की अनुभूति
की है।
प्रश्न :
एसएसएलसी (दसवीं कक्षा) और पीयूसी (बारहवीं कक्षा) के नतीज़े घोषित हो चुके हैं। ये
परीक्षायें विद्यार्थियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं। आप विद्यार्थियों
को क्या संदेश देना चाहेंगे?
श्री श्री
रविशंकर :
वो लोग जो पास हो चुके हैं, अधिक उत्साह के साथ आगे बढ़ें। और जो पास नहीं हो पाये,
अपनी प्रसन्नता और उत्साह को खोये नहीं। यह कोई बड़ी बात नहीं है कि आप असफल हो गये।
केवल एक परीक्षा पास न कर पाने पर विद्यार्थी मानसिक रूप से अशांत हो जाते हैं। ऐसी
बहुत सी घटनायें हुई हैं जबकि छात्रों ने केवल इसलिये आत्महत्या कर ली क्योंकि वे
परीक्षा में पास नहीं हो पाये।
जो विद्यार्थी
सफल नहीं हो पाये उनके लिये मेरा संदेश है कि यह कोई बड़ी बात नहीं है। हर सफलता के
पीछे असफलता छिपी होती है और हर असफलता के पीछे भी एक सफलता छिपी होती है। इसलिये,
चिंता न करें, फिर से पढ़ना शुरु करें और आगे बढ़ें।
यह न सोचें कि आपका एक वर्ष खराब हो गया है; यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं
है। केवल एक परीक्षा में सफल न होने पर यह न समझें कि कि आपने समय व्यर्थ गँवा
दिया। जीवन स्वयं ही शिक्षा है, एक कला है। जीवन की हर अवस्था में, हम सफलता व
असफलता से कोई न कोई सबक सीखते ही रहते हैं। सफलता व असफलता दोनों से सीखें, अपने
मन को संतुलित रखें, अपने उत्साह को न खोयें और आगे बढ़ते रहें।
बहुत से बड़े उद्योगपति
हैं,जिनकी कक्षा में उच्च श्रेणी नहीं आती थी। ऐसे भी उद्योगपति हैं जोकि दूसरी
कक्षा में ही असफल हो गये थे और आज बड़ा व्यापार सम्भाल रहे हैं। जब मैं
सूरत(गुजरात,अहमदाबाद) की यात्रा पर गया तो आठ उद्योगपतियों, जोकि भाई थे, ने मुझे
‘पद पूजा’ के लिये आमंत्रित किया।
उन्होंने बताया कि उनके परिवार में कोई भी आठवीं कक्षा से अधिक नहीं पढ़ा है। उनमें
से अधिकतर दूसरी से चौथी कक्षा तक ही पढ़े हुये थे। फिर भी उनका कहना था कि विश्व में बिकने वाले दस हीरों में से
नौ अहमदाबाद में निकलते हैं और चाहे उन्होंने ठीक प्रकार से पढ़ाई नहीं की है, फिर
भी वह बड़ा व्यापार सम्भाल रहे हैं, हज़ारों लोगों को आजीविका प्रदान कर रहे हैं और
सुखी जीवन जी रहे हैं। इसलिये, केवल एक परीक्षा में सफल न होने पर अवसादग्रस्त न
हों और कोई गलत कदम न उठायें।
मैं पिछले कुछ
महीनों से बीस शहरों और चौदह देशों में गया हूँ। जब मैं जापान गया तो वहाँ के
प्रधानमंत्री ने बताया कि जापान में हर वर्ष लगभग ३०,००० युवा आत्महत्या करते हैं।
इतनी बड़ी संख्या में लोग आत्महत्या कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास पैसा नहीं
है। हर एक के पास अत्यधिक पैसा है। हर एक के पास टीवी, वाहन और काफी धन है। फिर भी
ऐसे देश के युवा आत्महत्या कर रहे हैं। अगर वे निर्धन होते तो बात अलग होती। पर
यहाँ ऐसा नहीं है। धनी लोग आत्महत्या कर रहे हैं। इसलिये, उन्होंने कहा कि केवल
मैं ही इस विषय में कुछ कर सकता हूँ। मैंने बताया कि भारत की आध्यात्मिक लहर ही
वहाँ खुशी लाने का एकमात्र तरीका है। इसलिये हम देश के विभिन्न भागों में पार्ट-१ कोर्स
और नवचेतना शिविर आयोजित कर रहे हैं। इसी प्रकार, बहुत से देशों में यह समस्या है।
हमारे देश में यह इतने बड़े स्तर पर नहीं है, क्योंकि लोगों में मानवीय मूल्यों व
आध्यात्म में दिलचस्पी के बीज अभी भी विद्यमान हैं। इसलिये, हम सब का यह कर्तव्य
बनता है कि हम इसे सुरक्षित रखें और यह निश्चित करें कि यह विकसित होता रहे। अपने
बच्चों को प्रोत्साहित करते रहें। यदि वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं तो यह कोई
बड़ी बात नहीं है। हमें अच्छे से पढ़ाई करनी चाहिये, पढ़ाई में दिलचस्पी रखनी चाहिये
और जीवन में विकास करते रहना चाहिये।
प्रश्न :
मैंने पिछले माह अपनी माँ को खो दिया और आपने कहा था कि २०१२ सबके लिये अच्छा है।
क्या अच्छा है? मैं समझ नहीं पा रहा।
श्री श्री
रविशंकर : जीवन
और मृत्यु अटल हैं। मृत्यु निश्चित है। कभी कभी यह थोड़ी पहले आ जाती है। और जब भी
ऐसा होता है, तो यह निश्चित ही कष्टदायी होता है। इसलिये, जब भी हम दु:खी होते हैं
तो इसके पीछे कारण खोजने के स्थान पर, सबसे अच्छा यह है कि हम
प्रार्थना करें और अपने मन को शांत रखें।
‘यह क्यों हुआ? ईश्वर ने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?
ईश्वर इतना दयाहीन क्यों है?’
ऐसे प्रश्नों
का कोई उत्तर नहीं है और न ही कोई अर्थ है। सृष्टि में ये सब चीज़ें तो हर समय होती
रहती हैं।
इस भीषण
आवश्यकता की घड़ी में अपने विश्वास को मज़बूत करने के स्थान पर यदि हम अपने विश्वास
पर संदेह करेंगे तो यह हमें कहीं भी नहीं ले जा पायेगा। यह हमें केवल अवसाद, अधिक
उग्रता, व्यग्रता और अशांति की ओर ले जायेगा। इसलिये, इसे निश्चित बात के रूप में
स्वीकार करें।
प्रश्न: मुझे
आपसे शिकायत है। मैं जो कुछ भी माँगता हूँ, आप उसी समय दे देते हैं। मैं आप से पूँछना
चाहता हूँ कि क्या यह मुझे बिगाड़ देगा?
श्री श्री
रविशंकर :
बहुत बढ़िया। अब, जब आप यह जानते हैं कि आप जो भी चाहते हैं वो मिल जाता है तो बड़ी चीज़ें
माँगिये, छोटी छोटी नहीं। अपने लिये न माँगें;
देश के लिये माँगें, सबके लिये माँगें। प्रार्थना करें कि धर्म बढ़े और अधर्म का
नाश हो। न्याय बढ़े और अन्याय का नाश हो, अभाव खत्म हो और बाहुल्य की अधिकता हो। हर
एक के भले के लिये प्रार्थना करें।
प्रश्न : क्या
हमारे पिछले जन्म के कर्म ही सब कुछ निर्धारित करते हैं? और जो भी अब हम कर रहे हैं उसका हमारे जीवन पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ता?
श्री श्री
रविशंकर :
ऐसा किसने बोला? अगर आप ट्रैफिक के नियमों का
उल्लंघन करते हैं तो आपको नतीज़ा उसी समय भुगतना होगा। अगर आप आग में हाथ डालते हो
तो यह एकदम जला देगी।
प्रश्न :
मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद, क्या हमें कुछ अर्जित करना
होता है? जो अर्जित कर पाते हैं और जो नहीं
कर पाते हैं, उनका अंतिम परिणाम क्या होता है? क्या हर व्यक्ति के लिये
लक्ष्य का होना आवश्यक है?
श्री श्री
रविशंकर :
लक्ष्य के बिना जीवन सुखी जीवन नहीं होगा। लक्ष्य के बिना मन व बुद्धि सही दिशा
में नहीं चलेंगे। इसलिये जीवन में लक्ष्य की आवश्यकता है। और लक्ष्य यह है कि हम
उन्नति करें और दूसरों को हमारे से लाभ मिले।
प्रश्न : बैंगलुरु
को ‘एयर-कंडीशंड’ शहर कहा जाता था। जबकि, इन दिनों गर्मियां यहाँ अति गर्म हो
गई हैं। यदि यह इसी प्रकार चलता रहा तो हमारा भविष्य क्या होने वाला है?
श्री श्री
रविशंकर : मैं
भी इस विषय में चिंतित हूँ। जब मैं पढ़ रहा था तो पंखों तक की आवश्यकता नहीं थी। १९८०
में, उत्तर भारत से कुछ लोग और कुछ अंतर्राष्ट्रीय भागीदार यहाँ आये थे। उन्हें
एयर-कूलर चाहिये था। हम ने पूरा शहर छान डाला, पर हमें एक भी कूलर नहीं मिला।
दुकानदारों ने बताया कि वे वो चीज़ नहीं रखते, जिसे कोई खरीदने वाला कोई न हो। न तो
एयर-कूलर और न ही एयर-कंडीशनर उपलब्ध थे। यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है।
अब हालत यह है
कि हर एक को एयर-कंडीशनर चाहिये। हम बहुत से वृक्ष काट रहे हैं। झीलें सूख रही हैं।
यदि हमने अपनी झीलें सूखने न दी होतीं और इतने वृक्ष न काटे होते तो मेरे विचार
में स्थिति यह नहीं होती।
प्रश्न : धर्म
क्या है?
श्री श्री
रविशंकर :
धर्म वह है, जो आपको खड़ा रखता है, आपको गिरने से बचाता है और आपको ऊँचा उठने में
सहायता करता है।
प्रश्न :
गुरुजी, आपने कहा कि जीवन अटल है और हमें यहाँ बार-बार आना पड़ता है? यह भी कहा जाता है कि यदि किसी के गुरु हैं तो उसे
जीवन-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है। जबकि आपने कहा है कि हमें आते रहना
होगा। तो क्या हमें आते रहना होगा या फिर हमें मुक्ति मिल जायेगी?
श्री श्री
रविशंकर :
दोनों ही बातें सत्य हैं। मैं आता रहूँगा। आपको आने की कोई मजबूरी नहीं है; अभी
मुक्त हो जाइये।
प्रश्न : ऐसा
क्यों होता है कि समाज उन लोगों को परेशान करता रहता है, जो कि ईमानदारी से काम
करते हैं? चाहे वह अपने लिये कुछ नहीं चाहते
और समाज के लिये काम करते हैं, फिर भी समाज उन्हें क्यों परेशान करता है?
श्री श्री
रविशंकर :
ऐसा आजकल के दिनों में हो रहा है। ऐसा कोई नियम नहीं है कि भविष्य में भी ऐसा ही
होता रहेगा। बड़ा काम करने के लिये, आपको अपनी ओर से कुछ तो त्याग करना पड़ता है। आप
यह नहीं सोच सकते कि, ‘मैं अच्छा काम कर रहा हूँ,
पर लोग मेरी आलोचना क्यों कर रहे हैं?’ यह उनका स्वभाव है। काँटे
का स्वभाव चुभना है और फूल का सुगंध फैलाना। विश्व में फूल और काँटे दोनों हैं।
यदि फूल काँटे से पूछता है कि, ‘तुम चुभते क्यों हो?’ तो काँटा उत्तर देगा, ‘यह मेरा स्वभाव है।’
प्रश्न : मुझे
भारत में एक व्यापार की देखभाल के लिये नियुक्त किया गया है, जबकि मैं भारत में
बहुत आरामदेह महसूस नहीं करता। मुझे क्या करना चाहिये?
श्री श्री
रविशंकर :
कभी कभी, हमें चीज़ें अच्छी नहीं लगती, पर यह आपका काम है, और आपको यह करना ही होगा।
मन के साथ न चलें, क्योंकि मन को कभी कुछ अच्छा लगता है और कभी नहीं। यदि आप अपना अभ्यास,
ध्यान, सत्संग और सेवा, करते रहेंगे तो आपको किसी भी स्थान पर रहना अच्छा लगेगा।
हमें किसी भी चीज़ के प्रति द्वेष नहीं रखना चाहिये और न ही प्रेम। यही वास्तविक योग है।