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२०१२ बून, उत्तरी केरोलिना, अमरीका
जुलाई
प्रश्न : अधूरी इच्छाओं का क्या करें? सारी जिंदगी यही इच्छा रही कि
रिश्तों में कामयाबी मिले, और यह इच्छा पूरी नहीं हुई| जैसे जैसे समय बीत रहा है,
मैं निराश हो रहा हूँ, पछतावा महसूस कर रहा हूँ, और मेरी ऊर्जा खत्म होती जा रही
है| मैं इन इच्छाओं को कैसे पूरा करूँ, और उन्हें कैसे जाने दूं?
श्री श्री
रविशंकर : आप कह रहें हैं, कि यह आपकी सारी
जिंदगी की इच्छा रही है| क्या यह सच में जिंदगी भर की इच्छा है? जब आप बच्चे थे,
तब भी क्या आपकी यही इच्छा थी, या जब आप किशोरावस्था में थे?
ज़रा इसे एक
बार देखिये| आप जितना प्रयास और समय इसमें लगा रहें हैं, क्या यह इच्छा उसके लायक
है? या फिर क्या आपका जीवन किसी और तरह से ज्यादा लाभदायक हो सकता है? ये कुछ
बातें हैं, जिनपर आप गौर करें| जैसे जैसे आपकी ऊर्जा बढ़ती है, (इच्छाओं को)
त्यागते जाईये, और आप पाएंगे, कि इच्छाएं स्वयं ही आती हैं| आप जितना उनसे
चिपकेंगे, जितना उन्हें पकड़ेंगे और उनके पूरा होने की कामना करेंगे, उतना ही अधिक
समय वे लेंगी| यह तथ्य है|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मैं जानता हूँ, कि आप मुझे प्यार करते हैं,
लेकिन मैं अपने आप को प्यार नहीं करता| कितना अच्छा होता अगर मैं अपने खुद के साथ
और आसपास के लोगों के साथ ज्यादा सहज महसूस कर पाता| क्या करूँ?
श्री श्री
रविशंकर : आप बिल्कुल सही काम कर रहे हैं;
एडवांस कोर्स| कोर्स में हम सबसे पहले यही चीज़ करते हैं, खुद की तारीफ करते हैं,
और अपने पार्टनर की तारीफ करते हैं| क्या आपने ऐसा नहीं किया? उसे पूरी ईमानदारी
के साथ करिये| ऐसा मत सोचिये, कि यह सिर्फ एक अभ्यास है, और ये सिर्फ मुझे यूँही
तारीफ करने को कह रहे हैं, नहीं! इसे गंभीरता से करिये|
इनमें से कुछ
अभ्यास आपको ऊपर से मूर्खतापूर्ण लगेंगे, लेकिन दूसरे स्तर पर वे वाकई में हमारी
चेतना और अचेतन पर गहरा प्रभाव डालते हैं|
खुद को दोष
देना बंद करिये- यह आध्यात्मिकता का पहला नियम है| आप जितना अधिक दोष देंगे, आप
अपनी आत्मा से उतना अधिक दूर हो जायेंगे| इसलिए, आपको खुद को दोष देना बंद करना
है, और अपनी अच्छाईयों को पहचानना है| ऐसा करते रहिये, और ऐसा होने लगेगा|
कभी कभी इन
ढर्रों को, इन पुरानी आदतों को जाने में थोड़ा समय लगता है| जैसे जैसे आप और अधिक
सजग होते जाते हैं, ‘मुझे खुद को दोष नहीं देना है’, तब अचानक आपकी ऊर्जा बढ़ जाती है| और प्राणायाम करिये, यह
निश्चय ही सहायता करेगा| जब ऊर्जा अधिक होती है, तब ऐसा संभव ही नहीं है, कि आप
खुद को दोष दें, ऐसा हो ही नहीं सकता|
प्रश्न : मैं अपने डर से कैसे मुक्ति पाऊँ? मुझे हर चीज़ से डर है| सब
कुछ डरावना है| हारने का डर, भविष्य का डर, मौत का डर, उड़ने से डर| सब कुछ! कृपया
मेरी मदद करिये|
श्री श्री
रविशंकर : डर केवल एक भावना है, केवल एक
संवेदना जो हमारे शरीर में उठती है| इसे अलग अलग चीज़ों से जोड़ने की या सम्बंधित
करने की ज़रूरत नहीं है|
जब आप उन
ढर्रों को, और आपके अंदर जो ऊर्जा पैदा होती हैं, उनको पहचानने लगेंगे - तब आप
देखेंगे, कि वह डर, प्रेम और नफरत – ये सब एक ही क्षेत्र में
होते हैं, और यह एक ही ऊर्जा है जो प्यार, नफरत या डर के रूप में प्रकट होती है|
जब आपके मन
में किसी चीज़ के लिए बहुत प्रबलता होती है, तब डर गायब हो जाता है| डर तब पैदा
होता है, जब आपको जीवन में किसी भी चीज़ के प्रति प्रबलता नहीं होती| क्या ऐसा अनुभव
नहीं है? सिर्फ तभी, जब आपके अंदर किसी चीज़ के लिए प्रबलता होगी, या आप किसी चीज़
से बेहद नफरत करते हैं, तब डर गायब हो जाता है| डर तब गायब होता है, जब आप या तो
किसी चीज़ को बेहद प्यार करते हैं, या बेहद नफरत| अगर इनमें से कुछ भी नहीं है, तब
मन में एक डर आ जाता है| लेकिन आप और अधिक ‘खाली और खोखला ध्यान’ करें, प्राणायाम करें, सेवा के कार्य में संलग्न रहें, इन
सबसे आप उसे मिटा पायेंगे|
प्रश्न : अगर गलती से किसी को बच्चा हो जाता है, और उसकी शादी नहीं
हुई है; तब उस बच्चे को और उसकी माँ को अपनाना और बच्चे को बड़ा करना, जबकि आप उसकी
माँ को प्यार नहीं करते; क्या सिर्फ एक भूल के कारण अपने असली प्यार को भुला देना
ठीक है? क्या करना चाहिये? क्या बस यही है?
श्री श्री
रविशंकर : सुनिए, आगे बढ़िए| आगे बढ़िए! मैं बस
इतना ही कह सकता हूँ| बस इस बारे में बैठ कर सोचिये मत, ठीक है? बस आगे बढ़िए|
जिंदगी इससे कहीं ज्यादा है| आपको बहुत से किरदार निभाने हैं|
सबसे पहले, आप
इस सुन्दर ग्रह के सुन्दर नागरिक हैं| यह पहचानिये| आप एक सार्वलौकिक प्रकाश के
अंग हैं, यह पहचानिये, और फिर आपको बहुत से किरदार निभाने हैं, एक माँ का, बेटे
का, या बेटी का या जो भी कुछ और|
आप निर्णय
लीजिए, ‘मुझे कुछ भी झुका नहीं सकता| मुझे जो
भी किरदार निभाना है, उसे मैं १०० प्रतिशत निभाऊंगा|’ बस इतना ही; यह अपने आप होने लगेगा|
प्रश्न : पिछले साल मेरी माता जी का देहांत कैंसर के कारण हो गया था|
मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ, लेकिन मैं अपने आपको इससे मुक्त नहीं कर पा रहा हूँ,
क्या करूँ?
श्री श्री
रविशंकर : समय सब घाव भर देता है| अपनी सोच को
और विस्तृत करें|
प्रश्न : मैं और अधिक शुद्ध कैसे हो सकता हूँ? मैं सेवा, साधना और
सत्संग करता हूँ, लेकिन मैं (फिर भी) अंदर से अपने को शुद्ध महसूस नहीं करता| जब
मैं ऐसे लोगों को देखता हूँ, जो हठी हैं, अशिष्ट और घमंडी हैं, खास तौर पर आर्ट ऑफ
लिविंग के लोग, तो मुझे बहुत दुःख होता है| मैं इससे कैसे छुटकारा पाऊँ?
श्री श्री
रविशंकर : आप दो बातें कह रहें हैं| एक तो यह,
कि बाकी लोग घमंडी हैं, कि बाकी लोग ठीक नहीं हैं; और दूसरा यह कि आप खुद भी ठीक
नहीं हैं| यह तो सिर्फ आईना देखना है, आप दोनों बातों में खुद को ही आईने में उतार
रहें हैं|
मैं कहूँगा,
कि यदि आपको लगता है कि आप अशुद्ध हैं, तो प्राणायाम और उपयुक्त भोजन आपकी सहायता
करेगा| अगर आपको फिर भी लगता है कि आप ठीक नहीं हैं, तब फिर कुछ दिनों के लिए केवल
फल और सब्जियों का आहार करिये, और बस गाईये, जाप करिये| जब आप सत्संग में बैठे
हैं, और भजन गा रहें हैं, तब आप यह कैसे कह सकते हैं, कि आप अशुद्ध हैं? ऐसा हो ही
नहीं सकता| आपको ऐसा नहीं लगता, कि जब आप सत्संग में बैठे होते हैं, तब आपके मन
में जो भी अशुद्धि हो, वह सब अपने आप ही खत्म हो जाती है?
आपमें से
कितने लोगों को ऐसा लगता है? (बहुत लोग अपना हाथ उठाते हैं) देखिये!
‘नही ज्ञानेन सदृशं पवित्रं इह
विद्यते| तत् स्वयं योग सम्सिध्हः क्लेन आत्मनि विन्दति||’ (भगवद्गीता, अध्याय ४, छंद ३८)
पुरानी कहावत
है – आपके मन, आपकी भावना और आपकी आत्मा
को ज्ञान से अधिक और कोई शुद्ध नहीं कर सकता| ज्ञान शुद्धि करता है|
आप बैठकर २०
मिनट या आधा घंटा अष्टावक्र गीता सुनिए; आप बेहतर महसूस करेंगे|
आपका यह सोचना
कि बाकी लोग घमंडी हैं – तो यह अच्छा है कि ये लोग
मेरे पास आये हैं, यहाँ, आर्ट ऑफ लिविंग में| मुझे इस बारे में खुशी है, और मेरे
अंदर धैर्य भी हैं, आप भी धैर्य रखिये| मैं धैर्यतापूर्वक इन्तज़ार कर रहा हूँ|
वहां बाहर दुनिया में जाकर, ये लोग कितनी परेशानियां खड़ी कर सकते थे, और कितने
लोगों को परेशान कर सकते थे| कम से कम यहाँ वे कम मुश्किलों में हैं, और साथ ही वे
आपको भी पहले नियम का अभ्यास करने में मदद कर रहे हैं – लोग जैसे भी हैं, उन्हें वैसा स्वीकार करें|
और हाँ, मैं
आपको बताना चाहूंगा, कि आर्ट ऑफ लिविंग में जो लोग हैं, वे कहीं किसी दूसरे ग्रह
से नहीं आये हैं, वे इसी दुनिया के आम लोग हैं, और उनके अंदर वे सभी गुण हैं, जो
दुनिया में रहने वाले लोगों के अंदर होते हैं| वे अलग नहीं हैं|
हाँ, आपकी
अपेक्षा आर्ट ऑफ लिविंग के लोगों से इसलिए ज्यादा होती है, क्योंकि आपको लगता है
कि वे ज्ञान में डूबे हुए हैं, कि वे प्रेम में हैं, वे लोगों की सेवा करते हैं|
इसलिए आपकी अपेक्षा इनसे कहीं ज्यादा हैं, क्योंकि आपको दिख रहा है कि वे बहुत
भाग्यशाली हैं| यह सही है! लेकिन आप शुरुआत अपने आप से करिये, कि आप कितने
भाग्यशाली हैं, कि आपके अंदर लोगों को स्वीकार करने का धैर्य है|
लोग मुझे सवाल
करते हैं, कि ‘आपने ऐसे लोगों को अपना टीचर क्यों
बनाया है जो इतने हठी हैं, जो हमेशा गुस्से में रहते हैं’, और यही सब|
मैं उनसे कहता
हूँ, कि मुझे हर तरह के लोग चाहिये, हर जाति के, हर प्रजाति के| मैं उन्हें साथ
लेकर चलता हूँ, और सब लोग मेरे साथ सहज महसूस करते हैं, और मैं भी उनके साथ सहज
महसूस करता हूँ| मेरे अंदर धैर्य है, कि मैं उन्हें विकसित होते हुए देखूं| इसी
तरह आर्ट ऑफ लिविंग इतनी बड़ी हुई है|
अगर मैं हर
जगह पूर्णता और उत्तमता को ही ढूँढ रहा होता, तो मैं आपसे कहूँ, कि हम आज यहाँ ना होते|
हम आज यहाँ ना बैठे होते| मैं कहीं और होता, और आप कहीं और होते| हमें धैर्य की
ज़रूरत है|
ये ऐसे ही है,
जैसे स्कूल में, आप ये उम्मीद नहीं कर सकते कि सभी बच्चे एक ही क्लास में हों| और
ऐसा भी नहीं है, कि एक क्लास दूसरी क्लास से बेहतर है| ऐसा तो नहीं है कि नर्सरी
क्लास के बच्चे प्राइमरी क्लास के बच्चों से श्रेष्ठ हैं| यहाँ कोई श्रेष्ठता नहीं
है, ये ऐसे ही होता है, जैसे होना चाहिये| सिर्फ एक समय होता है, और अपनी गति होती
है, कि वे एक क्लास से दूसरी क्लास में जाते हैं, एक स्तर से दूसरे स्तर में
पहुँचते हैं| लोग आगे बढ़ते रहते हैं, उनका विकास होता रहता है, हमें धैर्य चाहिये|
और मैं आपसे कहता हूँ, कि यह आपके धैर्य की परीक्षा है, और यह अच्छा है|
प्रश्न : अगर मैं आपसे पूरी श्रद्धा, तीव्र इच्छा और पूरे दिल से
प्रार्थना करूँ, तब क्या आप मेरी प्रार्थना सुन सकते हैं, और उनका उत्तर दे सकते
हैं, जबकि मैं आपसे शारीरिक तौर पर कोसों दूर हूँ?
श्री श्री
रविशंकर : आप जानते हैं, मोबाइल फोन फासलों को
नहीं जानते|
जब आप एक छोटे
से प्लास्टिक के डब्बे, जिसे मोबाइल फोन कहते हैं, उसके कुछ बटन दबा कर दुनिया भर
के लोगों से जुड़ पाते हैं, तो खुद अपने दिमाग, अपने दिल और अपनी भावनाओं को छोटा
क्यों समझते हैं? वे तो वैसे भी उस प्लास्टिक के खिलौने से कहीं ज्यादा ताकतवर
हैं|
मैं आपसे कहता
हूँ, ऐसा होता है, होता है न?
आपका कोई गहरा
मित्र कहीं दूर, जापान में, या पश्चिमी तट पर कुछ महसूस कर रहा है, और आपको भी वही
महसूस होता है| वे खुश हैं, और आप भी खुश हैं, वे दुखी हैं, और आप भी दुखी हैं,
क्या आपसे साथ ऐसा नहीं हुआ है?
आपमें से
कितने लोगों को ऐसा लगता है कि आपके साथ भी ऐसा हुआ है, बिना मुहँ से कुछ बोले
हुए, (आपने लोगों की बात समझी है)
(बहुत लोग
अपना हाथ उठाते हैं)
यही वह
वार्तालाप का तरीका है, जो होता है| यह एक बहुत ही सूक्ष्म और वायव्य संचार का
माध्यम है| हाँ, यह है| हालाँकि, कुछ लोगों के लिए यह मोबाइल फोन जितना साक्षात
नहीं है, लेकिन अगर आप गौर करेंगे, और पीछे मुड़कर देखेंगे, तो आप पाएंगे, कि यह
है|
प्रश्न : क्षमा का क्या अर्थ होता है? मैं किसी को क्षमा करने का
प्रयास कर रहा हूँ, लेकिन मुझे लग रहा है कि मैं यह १०० प्रतिशत नहीं कर पा रहा
हूँ| मैं इस पर बहुत समय और ऊर्जा व्यर्थ गवां रहा हूँ, लेकिन मैं इसके बारे में
सोचने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ| मुझे ऐसा क्या करना चाहिये, कि मैं सच में
क्षमा कर पाऊँ, और आगे बढूँ?
श्री श्री
रविशंकर : आप इस क्षमा करने की पूरी कहानी को
भूल जाईये| मुझे लगता है, कि आपके पास बहुत खाली समय है| आप किचन में जाईये, और
वहां बर्तन धोइए| अगर यह सेवा बहुत हल्की मालूम होती है, तो सीढ़ियों पर कम से कम
दस बार ऊपर-नीचे जाईये| जब आप शारीरिक रूप से थक कर चूर हो जायेंगे, तब आपका मन उस
व्यक्ति के बारे में भी सोचना छोड़ देगा|
अगर आप निरंतर
किसी के बारे में सोच सोच कर द्वेषपूर्ण, क्रोधित और प्रतिहिंसक महसूस कर रहें
हैं, तो इसका मतलब कि आपके अंदर किसी चीज़ के प्रति या तो बहुत प्रबल इच्छा है, या
बहुत प्रबल घृणा है, जो आपको ऐसा करने पर मजबूर कर रही है| आप कोई सेवा के काम में
जुट जाईये| मैं आपसे कहता हूँ, यह ज़रूर आपकी सहायता करेगा|
आप क्षमा मत
करिये, कोई बात नहीं| आप किचन में जाईये, और उस बर्तन को उठाईये जिसे बहुत ज्यादा
रगड़ने की ज़रूरत है, एक ब्रश लीजिए, और पूरी ताकत लगा कर उसे रगड़ते रहिये| अगर कहीं
पर फर्श गन्दा है, तो उस पर साबुन लगाईये, और उस व्यक्ति के बारे में सोचते हुए,
अपनी पूरी ताकत लगाकर फर्श को साफ़ करिये| उस व्यक्ति के प्रति आपके मन के अंदर भरे
हुए गुस्से को बाहर निकलने के लिए यह एक बहुत अच्छा तरीका हो सकता है|
मुझे नहीं
लगता कि यहाँ बहुत से नारियल हैं, नहीं तो मैं आपसे कहता, कि एक एक करके, आप
नारियल तोड़िये| नारियल को तोड़ने से शायद आपको कुछ शान्ति मिलेगी| मैं आपके लिए पता
करूँगा, कि कहीं कोई ऐसा बर्तन तो नहीं है, जिसमें खाना जल गया हो| (हँसते हुए) जले
हुए बर्तनों को रगड़ना, यह बहुत उमदा ख़याल है| अगर ऐसे बहुत से लोग होंगे, तो
बावर्चियों को उस हिसाब से बर्तन बाँटने पड़ेंगे|
प्रश्न : मैं अपने पति के साथ सात वर्ष से हूँ| पिछले दो वर्षों से उनके
परिवार के साथ मेरी समस्याएं चल रही हैं| मैं उनके पिता से घृणा करती हूँ| मैं
उनके परिवार से दूर रहने का प्रयत्न करती हूँ ताकि कोई परेशानी न हो पर उनके पिता
मेरा धैर्य समाप्त कर देते हैं| कभी मन करता है उनको मार डालूं| इस परिस्थिति से
कैसे जूझूं?
श्री श्री रविशंकर : मैं चाहूँगा कि आप दो दिन का समय ले कर एक मानसिक
चिकित्सालय में सेवा करें| दो दिन बस मानसिक रोगियों के साथ व्यतीत करिये और वहां
कुछ काम आदि करिये| जब आप एक मानसिक चिकित्सालय में स्वयंसेवी बनेंगी, तो आप
जानेंगी पागल लोगों के साथ कैसे पेश आयें| यदि वो पागल हैं तो आप क्या करेंगे? आप उन्हें
धैर्य से संभालेंगे| आप जा कर उनको थप्पड़ नहीं मारते या गला नहीं दबा देते, है ना?
यह एक बहुत अच्छा उपाय है मानसिक आश्रय स्थल में जाना, सेवा करना एक दो दिन और
यदि यह कम हो तो एक सप्ताह तक| यह अच्छा है| तब आपको समझ आएगा कि ऐसे व्यक्ति घरों
में भी हैं और सब जगह हैं| दुनिया भरी हुई है पागल लोगों से, कुछ पागलखानों में
हैं, कुछ बाहर, बस उन पर ठप्पा नहीं लगा है| तब आप में बहुत शान्ति और धैर्य आ
जायेगा उन के साथ पेश आने के लिए| अपनी खातिर, कुछ ऐसा मत करिये जो आपको सलाखों के
पीछे डाल दे|
कभी कभी आपके अपने माता पिता कुछ कड़वी बात बोल देते हैं, पर आप उसे दिल पर
नहीं लेते| आप ने अपने माता पिता से बहुत सी कड़वी बातें सुनी हैं पर वो आपके साथ
बस एक दो दिन रहती हैं और फिर खत्म हो जाती हैं| पर यदि आपके ससुराल वाले उसका आधा
भी आपको कह दें तो वो आपके अंदर घर कर लेता है और आपको परेशान कर देता है, है न?
अब आपको विपरीत भूमिका निभानी है और सोचना है, यदि ये आपके अपने माता पिता होते तो
आप कैसा व्यवहार करते? इस से बहुत बड़ा अंतर आ जायेगा|
आमतौर पर मैं कहता हूँ कि सबको अपनी परेशानियां आश्रम में छोड़ कर खुशी खुशी घर
जाना चाहिए| एक महिला ने पूछा, “मैं अपनी सास को यहाँ छोड़ कर खुशी खुशी चली जाऊं?” मैंने कहा,” यदि आपकी सास ने भी यही कहा तो
मुझे दो कक्ष बनाने पड़ेंगे, एक सासों के लिए और एक बहुओं के लिए”|
मैंने उनसे पूछा, “क्या तुम्हारी आलोचना तुम्हारी माँ ने तुम्हारी सास से
अधिक नहीं की?” उन
महिला ने सोच कर कहा, “आप सही कह रहे हैं| मेरी माँ हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती हैं|
हर छोटी बात के लिए वो मुझ में गलती निकालती रहती हैं”|
मैंने कहा, “तो आप
उसे अलग तरह क्यों लेती हो? जब आपकी माँ आपकी आलोचना करती हैं तो आप उसे इतना गहरा
नहीं लेतीं पर आपकी सास के साथ आपका नजरिया अलग है”|
जब हम इन पहलुओं पर रोशनी डालते हैं, तो हमारा नज़रिया बदलता है और फिर हमारी
परिस्थितियाँ भी बदल जाती हैं|
प्रश्न : एक साथ जोश और वैराग्य कैसे रखें?
श्री श्री रविशंकर : यही असली कौशल है| जब स्वार्थ नहीं होता तो यह ज्यादा आसान
हो जाता है| जैसे जब आप सेवा करते हैं तो आप में जोश भी होता है और वैराग्य भी, है
ना? आप में से कितने लोग रसोई में सेवा कर रहे हैं, क्या जोश से नहीं कर रहे?
(उत्तर – हाँ!) पर साथ ही आपको
स्वयं उस से कुछ फर्क नहीं पड़ता, है न? जोश भी है और संयम भी| यहाँ(आश्रम में)
सबसे बढ़िया बात जो है, वह है सेवा - यातायात सेवा, गृह (हाऊसिंग) सेवा, वह गाड़ी जो
ऊपर से नीचे आ जा रही है, आधी रात तक बिस्तर लगाये जा रहे हैं| मैंने आधी रात के
आस पास एक चक्कर लगाया तो देखा कि ये लड़के और महिलाएं गद्दे ले कर बिस्तर लगा रहे
थे, ताकि सब आराम से रह सकें| वे यह सब मान्यता प्राप्त करने के लिए नहीं कर रहे
थे| वे इसलिए भी यह नहीं कर रहें थे, क्योंकि उन्हें उससे कुछ मिलने वाला था| वे
यह भी नहीं सोच रहे थे कि उनको कुछ बड़ी सराहना मिलेगी| बस क्योंकि यह काम करने की
आवश्यकता थी सो उन्होंने कर दिया| वहां जोश भी था और वैराग्य भी|
मैंने कहा, “आप सब
अब सो जाईये| यह सब कल हो जायेगा|” वे सब गए और खुशी और आराम से सो गए| यह सब के साथ है| मैं आपको
बस एक उदाहरण दे रहा हूँ; ऐसा सब सेवकों के साथ है| जोश भी है, वैराग्य भी| सेवा
सबसे उत्तम उदाहरण है दोनों को एक साथ देखने का|
प्रश्न : क्या किसी व्यक्ति के एक से अधिक गुरु हो सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : एक ही संभालना कठिन है! यदि आप किसी गुरु के साथ किसी और पथ
पर चले हैं, तो जान लें कि उनके आशीर्वाद ही आपको आज यहाँ तक लाए हैं| यह उनके ही
कारण है कि आपने एक कदम उठाया और आप यहाँ आये| अब यदि आप मुझसे तकनीक के बारे में
पूछेंगें, तो मैं कहूँगा कि तकनीकों का मिश्रण न करें| जैसे, यदि आप क्रिया कर रहे
हैं तो आप साथ ही कुछ और भी करना शुरू कर दें तो सब खिचड़ी बन जायेगी| तो आप पहले
कुछ कर रहे थे, आप उसे समाप्त कर चुके हैं और अब आप यह कर रहे हैं| अब आपको अपना
१०० प्रतिशत प्रयत्न इस में डालना चाहिए|
प्रश्न : गुरूजी, मेरे पास सब कुछ है पर फिर भी जीवन में खालीपन है| कृपया
बताएं मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : यह अच्छा है, यह पहला कदम है| पहले आप सब खाली कर दें और
फिर आप पूर्ण बनें| सत्संग और ज्ञान खालीपन को सबसे बेहतर भर सकते हैं|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, मैं कैसे जानूं कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है,
मेरा धर्म क्या है?
श्री श्री रविशंकर : सेवा, सेवा, सेवा| हमारा धर्म है कि अपने आस पास के लोगों
के लिए हम जो भी कर सकते हैं वह करें| यदि आप बैठ कर यही सोचते रहेंगे कि, “मेरा क्या होगा? मेरा क्या होगा?” तो यह तरीका है उदास और दुखी
होने का| यदि आप “मैं
(दूसरों के लिए) क्या कर सकता हूँ? मैं कैसे योगदान दे सकता हूँ? मैं कैसे और अधिक
काम आ सकता हूँ?” के
स्थान से आयेंगे, तो यह आपके लिए बहुत से रास्ते खोल देता है और जीवन में कितनी
परिपूर्णता लाता है|
प्रश्न : सही व्यवसाय का चुनाव कैसे करें?
श्री श्री रविशंकर : आपको देखना चाहिए कि आपका शौक क्या है, और आपका झुकाव किस
ओर है|
कार्य संतुष्टि जैसी कोई चीज़ नहीं है| यह शब्द शब्दकोष से निकाल देना चाहिए|
संतोष केवल सेवा से आता है| आप समझ रहे हैं? सेवा अलग चीज़ है| पर अपने रोज़गार के
लिए आपको कोई व्यवसाय करना है| कोई भी व्यवसाय जो आपको ठीक लगता हो, आपके लिए
उपयुक्त हो, और उसके साथ साथ अपनी समाज सेवा, आध्यात्मिक कार्य, ज्ञान वर्धन, और
अपने शौक के काम भी करिये| कई बार लोग अपने शौक को अपना पेशा और अपने पेशे को अपना
शौक बनाने का प्रयास करते हैं| ऐसे में न शौक रह जाता है, न पेशा| यदि संगीत आपका
शौक है तो उसे शौक ही रखिये|
जो आप यहाँ कर रहे हैं, वह एकदम उत्तम है, अर्थात, अंदर से और खाली और खोखले
हो रहे हैं और फिर सही वस्तु सही समय पर आ कर गिरेगी| ऐसा हो रहा है ना? कितने
लोगों के लिए ऐसा हो रहा है? सही वस्तु सही समय पर स्वतः ही आपके पास आ जाती है,
और सब कुछ आसान हो जाता है|
प्रश्न : प्रश्न टोकरी में कुछ प्रश्न हैं उन लोगों के बारे में जो दूसरे
लोगों पर भावनात्मक रूप से निर्भर हैं| ऐसे में क्या करें?
श्री श्री रविशंकर : जीवन बहुत चीज़ों पर निर्भर है| जब हम पैदा होते हैं, हम
निर्भर होते हैं| जब हम बूढ़े हो जाते हैं, तब भी हम निर्भर होते हैं, आत्मनिर्भर
नहीं| इन दोनों अवस्थाओं के बीच, इन कुछ वर्षों में, हम सोचते हैं हम बहुत
आत्मनिर्भर हैं| यह एक भ्रम है| उस समय भी हम कितने सारे लोगों पर निर्भर होते हैं
कितनी बातों के लिए| तो, इस नज़रिए से, पूरा जीवन निर्भरता से बना है| दूसरी ओर,
यदि आप अपनी आत्मा पर दृष्टि डालें, शरीर नहीं, केवल आत्मा, चेतना, वह सदैव आज़ाद
रही है| यह बहुत ही सूक्ष्म बात है; हो सकता है अभी आपके समझ के ऊपर से चली जाए| पर
केवल सुनिए, और कुछ समय बाद जब आप इसके बारे में सोचेंगे तो आप देखेंगे कि हम मेल
हैं दोनों का, निर्भरता और स्वछंदता – शरीर और आत्मा| जबकि आत्मा उन्मुक्त है, शरीर हमेशा निर्भर
है| शरीर वातावरण पर निर्भर है हर चीज़ के लिए – कपड़े, पानी, बिजली, शिक्षा, कुछ भी|
यदि आपके अच्छे अध्यापक नहीं होते, तो आज आप जहाँ भी हैं, नहीं होते, है न? इस
लिए, मैं कहूँगा, जीवन को एकदम नए दृष्टिकोण से देखिये| कुछ लोग भावनात्मक रूप
में निर्भर होते हैं, कुछ शिक्षा और ज्ञान के लिए, कुछ शारीरिक रूप से| निर्भरता
के बहुत से स्तर हैं| जीवन के इस बदलते और प्रासंगिक पहलू पर ध्यान देने की जगह उस
पहलू पर ध्यान केंद्रित करिये जो स्वछन्द है, अनंत है, और निरंतर एक सा है| आप समझ
रहे हैं जो मैं कह रहा हूँ?
कुछ ऐसा है आप में, जो सतत है, अविरल है, परस्पर एक सा है| वहां ध्यान डालिए
और आप देखेंगे कि जीवन और शक्तिशाली, और स्वछन्द, और संतोषजनक बन रहा है| ये सारे
पहलू, आपके सारे इरादे निरंतर समृद्ध होंगे| बिना प्रयत्न के ही समृद्ध होंगे|
प्रश्न : लगभग पांच वर्ष पहले मुझे एक अनुभव हुआ था| वह एक दिन तक रहा|
श्री श्री रविशंकर : अनुभवों को भूल जाइये| उसकी चिंता मत करिये; आपको अनुभव
हुआ होगा, तो क्या? वह चला गया है और जो चला गया वह अचल नहीं है| जो अचल है, वह
आपको छोड़ कर कभी नहीं जाएगा, कभी नहीं गया है, और अब भी है|
हमें अनुभूतियों और अनुभवों के पीछे नहीं भागना है| अनुभव भी क्षणिक हैं| वे
आते हैं, जाते हैं| मधुर या कड़वे, अच्छे या बुरे, सब अनुभव क्षणिक हैं, आते हैं, और
चले जाते हैं| आप वह नहीं हैं!
उस व्यक्ति पर ध्यान दीजिए, जिसे अनुभव हुआ है| कौन अभी अनुभव कर रहा है? और
किसने तब अनुभव किया था? वह व्यक्ति आज भी है, अभी, और वह अचल है| जिस व्यक्ति को
अनुभव पाने की ललक है वह उस अनुभव से अधिक महत्वपूर्ण है| आपके एक दिन के अनुभव का
कोई मूल्य नहीं है, अच्छा है कि वह एक दिन में चला गया| जो सत्य नहीं है, वह आता
है और चला जाता है| वह जो सत्य है, आपके अंदर है और हमेशा रहता है; वही असली अनुभवकर्ता
है|
प्रश्न : मुझे अपने जीवन के लगभग हर पहलू में अनिश्चितता रहती है| इस लिए,
मेरा आत्मविश्वास भी कम हो जाता है| कृपया इसका कोई समाधान बताइए|
श्री श्री रविशंकर : यह मेरा काम नहीं है| मेरा काम है और शंकायें पैदा करना|
शंकाएं बेकिंग सोडा की तरह होती हैं, वे आपको और पकाती हैं, तो आप और अधिक
पकिये!
एक बार मैं स्वीडन में एक सत्संग में था| तभी एक पत्रकार मेरे सामने आ कर खड़े
हो गए और बोले, “गुरूजी, आप हमेशा बात घुमाते रहते हैं, प्रश्न का सीधा उत्तर नहीं देते| मैं आपसे
एक सीधा प्रश्न पूछ रहा हूँ| आप मुझे सीधा जवाब दीजियेगा, अन्यथा मैं आप को छोड़ कर
नहीं जाऊँगा|”
मैंने कहा, “ठीक
है”| उन्होंने पूछा , “क्या आप आलोकित हैं?”| मैंने उन्हें देखा, और
मुस्कुरा कर कहा, “नहीं”| क्यों उसे सिद्ध करने का सरदर्द
मोल लेना? जब आप नहीं कह देते हैं तो मामला खत्म हो जाता है| वार्तालाप समाप्त हो
जाता है| अतीत में कभी भी, कोई भी किसी को विश्वास नहीं दिला पाया, या विश्वास
दिलाने का प्रयत्न भी नहीं किया| अगर किसी ने ऐसा कहा होता, तो वे मुश्किलों में
पड़ जाते, किसी सूली पर चढ़ाये जाते और कहीं डाल दिए जाते| इस लिए, मैंने बस ‘ना’ कहा, पर वे पत्रकार हिले ही
नहीं| बोले, “आप बस मुझे बहला रहे हैं, आप मुझे सत्य बताइए”| मैंने कहा, “नहीं”| वे बोले, “नहीं, मैं नहीं मानता, मुझे सच
बताइए”|
मैंने कहा, “इसका
कोई अर्थ नहीं होगा, यदि मैं हाँ कहूँ और तुम सहमत न हो; पर जब मैंने ना कहा, तो
आप कैसे कह सके हैं कि आप मेरे साथ सहमत नहीं हैं? इसका अर्थ है कि आपके मन में
कुछ है जो कह रहा है कि और भी कुछ बात है| अपने मन कि सुनो फिर, आप मुझसे क्यों
पूछ रहे हो?”
इस लिए, एक बुद्धि का स्तर है, और एक दूसरा स्तर है; अंतर्ज्ञान, जो कहता है, “हाँ, यही सही उत्तर है, यही सत्य
है”|
प्रश्न : मैं कैसे दरवाज़ा जोर से खटखटाऊं? मैं बाहर था, बारिश में बिना
बरसाती के, कांपता हुआ| क्या टीचर ट्रेनिंग अगला स्वाभाविक कदम है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, कर लीजिए| आप जानते हैं, प्री-टी.टी.सी (Pre-TTC) बहुत
बढ़िया है; वह बहुत स्फूर्ति और जोश लाता है| सबको प्री-टी.टी.सी करना चाहिए| चाहे
आप टीचर ट्रेनिंग करना चाहें या नहीं, वह तो अगला कदम है| पर यह दो सप्ताहांत बहुत
अच्छे हैं, आप बहुत कुछ सीखते हैं| आपकी क्षमता, आपके कौशल, बहुत कुछ सामने आ सकता
है| प्री-टी.टी.सी के बाद आप निर्णय ले सकते हैं कि आपको टी.टी.सी करना है या
नहीं| आपके शिक्षक भी आपको बता देंगे|
प्रश्न : हम कहाँ से आये हैं? जीवन का उद्देश्य क्या है? और हमें कहाँ जाना
है?
श्री श्री रविशंकर : उत्तम! मेरा काम हो गया| मेरा काम है इन प्रश्नों को आप
में जागरूक करना, नाकि इनका उत्तर देना| आपको ये प्रश्न आये हैं, अब मेरा काम पूरा
हो गया| अब आपकी गाड़ी बढ़ सकती है, इसमें पेट्रोल आ गया है| ये प्रश्न पूछते रहिये,
वापिस आते रहिये - ध्यान करने, और बाकि कोर्स करने, यह बहुत अच्छा है|