वैज्ञानिकों ने ‘ईश्वर तत्व’ की खोज की है, जिसे वे Higgs Boson कह रहे हैं, और कह रहे
हैं कि सारा ब्रह्मांड इस तत्व से बना है| ये एक क्षेत्र
है, और ये ऊर्जा है, ये गृह, तारों और बाकी सब को एक आकार देती है|
ये उन लोगों को बहुत सुना सुना सा लग रहा होगा जिन्होंने वेदान्त पढ़ा है और या
जिन्होंने ध्यान का अनुभव किया है|
सारा ब्रह्मांड एक चेतना से बना है, ये सब एक
ही चेतना का खेल-तमाशा है, वैदिक ऋषियों ने भी यही कहा है, उन्होंने कहा कि पहले मूल तत्व को जानो ; उन्होंने इसे ब्रह्मन भी कहा है, परम, तत्व के रूप में है| तत्व माने मूल सिद्धांत| ईश्वर तत्व की ही तरह ब्रह्मन सिद्दांत|
सबसे पहला सिद्धांत क्या है? उन्होंने कहा -
तत्व; धरती, जल,
अग्नि, वायु, आकाश, और फिर मन, बुद्धि
- जैसे जैसे आप और सूक्ष्म की ओर बढ़ते
जाते हैं, वहां पहुँच जाते
हैंI
आकाश से सूक्ष्म मन है, उस से ज्यादा
सूक्ष्म बुद्धि है और वहां ज्ञान है| फिर उस से सूक्ष्म अहम्, और अहम् से सौ गुना अधिक सूक्ष्म है महत
तत्व - वह सिद्धांत जिसे
हम महत कहते हैं, वह क्षेत्र जिसे हम महत कहते हैं|
अहम् अपने आप में एक अणु है, लेकिन अहम्
से भी सूक्ष्म, बल्कि अहम् से परे, एक स्थान है, एक तत्व है जो महत तत्व कहलाता है| और उस से भी सूक्ष्म है
मूल प्रकृति – ‘मौलिक ऊर्जा ‘I
और इस मूल ऊर्जा से भी परे है ब्रह्मन,
जिस से सब कुछ बना है, जो इस समस्त
सृष्टि का आधार है, मूल हैI ब्रह्मन अनंत है, यह न कभी पैदा होता है, न ही कभी मरता हैI
ऋगवेद में एक सूक्त है जिसे नासद्य सूक्त कहते हैं, उसके दसवें मंडल, १२९वे अध्याय में लगभग ७ पद लिखे हैं| यह बहुत अद्भुत बात है कि जो बातें हम आज
क्वांटम भौतिकी और क्वांटम यांत्रिकी से जान चुके हैं, वे बातें उस वक़्त भी ‘सृष्टि की स्तुति’ के ७ पदों में मौजूद थी|
वैज्ञानिक जिसे Dark Matter और Dark Energy कह रहे हैं जो सब जगह मौजूद है, और जिसकी हम बात कर रहे हैं नासद्य सूक्त
एकदम यही बात कहता है|
नासादासिनो सदसित्तादानिम नासीद्रजो नो व्योम पारो यात
किमावरीवः कुहा कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरं
आकाश से परे, प्रारंभ में, न तो जीव था न
अजीव, न जन्म न मृत्यु, सब कुछ केवल ऊर्जा था, और इसके लिए कहते भी हैं कि ‘अंधकार के अन्दर
अंधकार था’| तीसरे श्लोक में कहते हैं कि ‘अंधकार ने अंधकार
को ढका हुआ था’|
तो ये सारे पद वही सब दर्शाते हैं जिसे आज के वैज्ञानिक खोज करने के बाद बता रहे
हैं|
मैं आपको इसका अनुवाद पढ़ के सुनाता हूँ :
सबसे पहले न जीव था न अजीव| न हवा, न उसके परे आकाश| इसने किसे ओढा हुआ था? कहाँ? किसकी सुरक्षा में था ये?
क्या वहां जल था, अगाध और
गहरा?
न तब वहां मृत्यु थी, न मृत्युहीनता
; न दिन और रात का कोई चिन्ह था|
‘वह एक’ बिना सांस के सांस
लेता था, अपने ही आवेग से|
और उस एक के अलावा कुछ नहीं था| अंधकार
ने अंधकार को घेरा हुआ था, निर्विशेष
जल था, निर्विशेष ऊर्जा|
तब वह जो शून्य से ढका हुआ था, वो उभरता
हुआ, उत्तेजना से, उत्साह की शक्ति से अस्तित्व में आया| प्रारंभ में प्रेम उभरा,
जो मन का प्रत्मिक मौलिक जीवाणु था|
दृष्टा ने अपने हृदय में ज्ञान को ढूँढ़ते हुए, अस्तित्व का अनस्तित्व से सम्बन्ध ढूँढ लिया| अस्तित्व एक आधी- तिरछी रेखा के माध्यम से अनस्तित्व से अलग
था|
उसके बारे में क्या समझाया गया? नीचे क्या
था? बीज वाहक थे और
दैविक ताक़त थी, नीचे से ऊपर की
ओर जोर लगा और ये आगे उभर के आ गया|
कौन सच में जानता है? कौन इसे बता सकता
है?
ये कब पैदा हुआ? किसने इसके अस्तित्व
को बनाया? यहाँ तक कि ईश्वर
भी इसके उभरने के बाद आये|
तब कौन बता सकता है कि ये कहाँ से आया?
ये कौन सी सृष्टि से पैदा हुआ, किसी से
आया भी या नहीं? जिसने इसका परीक्षण
किया वह सर्वोच्च स्वर्ग में है, वो इसके
बारे में जानता है या शायद नहीं भी जानता|
ये सबसे रोचक है, वह इसे
निश्चित रूप से जानता है या शायद नहीं जानता| - क्योंकि
जानने वाला भी इसी क्रिया का हिस्सा है|
तीन प्रकार के आकाश का वर्णन किया गया है| एक आकाश वह है जिसमें हम उन सब भौतिक वस्तुओं
को देखते हैं जो विद्यमान हैं – भूताकाश| फिर एक बीच का आकाश है जहाँ सब विचार एवं
भावनाएं तैरती हैं| इसे चित्ताकाश
कहते हैं -चित्त का आकाश| और फिर है चिदाकाश, शुद्ध चेतना या ऊर्जा का आकाश, जो इधर-उधर लगता है जैसे संगठित हो गयी है,
और द्रव्य बन गयी है| जो सच में पदार्थ दिखता है वह है नहीं, ये सब एक आतम या ऊर्जा है, एक ऊर्जा का क्षेत्र जिसे ब्रह्मन कहते हैं
और जो सब कुछ है, सब कोई है|
क्या ये बहुत Higgs Boson के जैसा
ही नहीं लगता?
तो ब्रह्मन या ईश्वर, पुरुष या स्त्री नहीं, ऐसा कहते हैं कि वो एक शक्ति है, एक क्षेत्र, एक आकाश, जो सबका आधार है और सब कुछ इसकी ही परछाईं
है| सब कुछ इसकी ही छाया, इसके ही प्रतिबिम्ब से बना है ये कोई वस्तु
या अवस्तु नहीं है|
और इसमें ऐसा भी कहा गया है कि भूत कल और भविष्य के वैज्ञानिको के द्वारा इसे जाना
जायेगा|
ऋषि मायने वो, जो खोज करता है| प्राचीन कल के वैज्ञानिक और नए समय के वैज्ञानिक
आने वाले समय में इसका पता लगायेंगे| और हो सकता
है कि वे भी इसे न जानते हो| कौन जानता
है कि वो इसे जानते हैं या नहीं जानते?
जैसे-जैसे वे आगे बढ़ते हैं, उन्हें ये अज्ञेय
लगता है|
यह बहुत रोचक है- Higgs Boson, इसकी
धारणा भूत काल से आयी
है|
दरअसल, जब लोग कहते थे, "अँधेरा अंधकार से ढका हुआ है", ये सुतोक्तियाँ कुछ समझ में नहीं आती थी, और संस्कृत और वैदिक ज्ञाता इसे अर्थ देने
के काम में लगे हुए थे| ये पूरी तरह से
बिना अर्थ का लगता था, "न ये है न वो है, इसका अस्तित्व है या इसका अस्तित्व नहीं
है"|
इस तरह के शब्द किसी को उलझाने के लिए काफी हैं| मुझे लगता
है कि Higgs Boson की खोज के बाद आप
इसे अच्छे से समझ पाएंगे क्योंकि इसे खुद ही अस्तित्व की स्तुति कहा गया है| और ये इतना सरल नहीं है कि एक पुरुष था, एक नारी थी, उन्हें प्यार हो गया, और उनका वंश आगे बढ़ा - ये ऐसा नहीं है| अस्तित्व की स्तुति स्वयं में रहस्यवादी और गुप्त है|
इसका रहस्य यह है कि इसके शुरुआत में कहा गया है, कि ‘न तो जीव था, और
ना ही अजीव था| न तो तत्व था, न ही अतत्व था, और सब कुछ आकाश के परे था’|
तो सबसे पहले आपको आकाश को समझना होगा, और उसके बाद ही आप आकाश के परे को समझ पाएंगे|
हमेशा, उन्होंने कहा है, कि ब्रह्मन ‘परमे व्योमन’ है| आपको आकाश के परे जाना है| और आकाश पूरे सृष्टि
को अपने में समाये हुए है|
उन्होंने तीन तरह के आकाशों के बारे में भी बात करी है – भूताकाश, चित्ताकाश
और चिदाकाश; तीन तरह के आकाशों का विश्लेषण करना और फिर उन्हें खोजना|
वैज्ञानिक कभी भी किसी चीज़ का अंतिम निष्कर्ष नहीं निकलते, बल्कि वे हमेशा आगे
के अनुसन्धान के लिए गुंजाइश छोड़ते हैं| वे हर एक बात में गुंजाइश छोड़ते हैं, और वेदों में भी यही है| वे वहीँ
छोड़ देते हैं| शायद कोई ढूँढ ले, शायद किसी को पता हो, या न पता हो| यह बहुत ही ज्यादा
रोचक और अद्भुत है| इसलिए हमें इन वेदों को एक नए नज़रिए से देखना होगा, एक पारंपरिक
पुराने ढंग से नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से| आपको इन्हें एक वैज्ञानिक दृष्टि
से भेदना होगा, और फिर शायद आपको इनमें से कुछ आईडिया मिलेंगे, या शायद नहीं|
प्रश्न : अश्राव्य
श्री श्री रविशंकर : हाँ, क्योंकि ‘ईश्वर तत्व’ Dark Energy में ही है| Dark Energy के बाहर कुछ भी
नहीं है| केवल Dark Matter और Dark Energy का ही अस्तित्व है, और ये सब हलके बुलबुले
कागज़ के टुकड़े पर बूंदों के जैसे हैं|
मान लीजिए कि आपके पास के प्लास्टिक का पतला कागज़ है, और आप उस पर पानी की कुछ
बूँदें डाल दें, तो वह अपने आप ही गोल आकर ले लेती है| ऐसा क्यों है? ऐसा उस कागज़ के
कारण है| इसी तरह, यह पूरा ब्रह्माण्ड Dark Matter और Dark Energy से ढाका हुआ है,
और यही कहा गया है, ‘तमा असितमासा
गुधामग्रे’|
शुरुआत में, अंधकार, एक बहुत ही रहस्यमय तरीके से एक दूसरे अंधकार से ढाका हुआ
था, और ये सब जो आप देख रहें हैं, ये सब ऊर्जा था – सलिलं|
सलिलं का शाब्दिक अर्थ है पानी, वह जो द्रव्य है| लेकिन इसका दूसरा अर्थ है ऊर्जा
– जो हिल
सकती है| क्योंकि पानी हिल सकता है, इसीलिये इसे सलीलं भी कहते हैं| हवा हिल सकती है,
इसीलिये उसे समीर कहते हैं|
इसलिए, सलिलं मतलब कि ऊर्जा स्थिर नहीं है, लेकिन गतिशील है, हिलती है| और पूरा
ब्रह्माण्ड केवल ऊर्जा था, जो बहुत गतिशील था|
अफ़सोस तो इस बात का है, कि जो लोग वेद जानते हैं, वे विज्ञान के बारे में कुछ नहीं
जानते, और जो लोग विज्ञान के बारे में जानते हैं, वे वेदों के बारे में कुछ नहीं जानते|
यह एक बहुत बड़ा फासला है| वेदों के जानकारों का विज्ञान में स्नातक होना बहुत कठिन
होगा| लेकिन आसान यह होगा कि आज के वैज्ञानिक थोड़ा बहुत वेदों के बारे में जानें| अगर
वे इन किताबों के पन्ने पलटें, चाहे सिर्फ टाइम-पास के लिए ही, तो हो सकता है कि उन्हें
कुछ ऐसे आईडिया मिलें, जो उनके किसी काम आ सकें|
ऐसा कहा गया है, कि इस आकाश का हर एक कण ज्ञान से ओत-प्रोत है, सूचना से भरा हुआ
है|
चित्ताकाश – यह आकाश
सूचना से भरा हुआ है, आकाशिक रिकॉर्ड| वह सब जो भूतकाल में हुआ, वह सब जो भूतकाल में
किसी ने भी कहा है, यह सब आकाश में मौजूद है| और जो होने वाला है, और जो कोई भविष्य
में बोलने वाला है, वह भी आकाश में मौजूद है| यही वे कहते हैं| अगर आप आकाश तक पहुँच
सकें तो|
जो लोग थोड़े मानसिक होते हैं, या जिन्हें पूर्वाभास होता है, इस सबका उत्तर है
– चित्ताकाश
का क्षेत्र|
और चित्ताकाश से भी परम है – चिदाकाश – संचालक|
चित्ताकाश तो केवल एक संग्रहालय है, जैसे आपने कोई SMS टाइप किया, और भेजने का
बटन दबाया| और यह इलेक्ट्रोनिक तरीके से निर्धारित नंबर पर पहुंचा देता है| इसी तरह,
जब आप किसी को ईमेल भेजते हैं या किसी की ईमेल आपको आती है, तो आप उसे डाउनलोड कर पाते
हैं| यह अपलोडिंग और डाउनलोड चित्ताकाश में होते हैं – चित्त का आकाश|
लेकिन इससे एक कदम ऊपर है चिदाकाश|
चिदाकाश ज्ञान और बुद्धिमता का क्षेत्र है|
चिदाकाश कलाकार है, और चित्ताकाश कला है| और जब आप योग और ध्यान करते हैं, और उसमें
गहरे उतारते हैं तब आप इन तीनों आकाशों में उतरते हैं| भूताकाश, जहाँ आपको शुरुआत में
शून्य मिलता है, और आपको लगता है कि यह शून्य ही सब कुछ है| नहीं! आप उसके परे जायी,
वहां चित्ताकाश है, और उसके भी परे है चिदात्मा – आत्मा, चिदाकाश और वही शिव तत्व है – चिदाकाश|
देखिये, जब आप ध्यान में बैठते हैं, तो सबसे पहले आपको जो अनुभव होता है वह है,
विचार, और फिर उन विचारों से आप शून्य का अनुभव करते हैं| और फिर शून्यता से आगे आप
ऊर्जा का अनुभव करते हैं – ज़बरदस्त ऊर्जा, है न? आपमें से कितने लोग गहरे ध्यान में ऊर्जा
का अनुभव करते हैं? (बहुत लोग अपना हाथ उठाते हैं)
हाँ, यही चिदाकाश है|
तो किसी ने पूछा, ‘आत्मा कैसी होती है?’
यह आकाश की तरह खाली होती है, और समुद्र की तरह पूर्ण होती है|
प्रश्न : ऐसा कौन सा कर्म है जिससे यह निर्णय होता है कि हमें किस तरह का शारीरिक कष्ट होगा ?जैसे ,अगर
किसी को इस जन्म में आँख की बीमारी होती है तो क्या यह इसलिए कि उन्होंने पिछले जन्म में किसी की आँखों में कष्ट पहुँचाया था?
श्री श्री रविशंकर : नहीं!
‘गहना
कर्मणो गतिः’ – कर्म के नियमों को समझना बहुत कठिन है |इसमें
मत पड़िए ,बिल्कुल
परेशान मत होईये |किस तरह का कर्म किस तरह की परेशानी ला सकता है ,यह
बहुत बड़ी बात है |बेहतर
है कि आप इसके अंदर ना जायें ,इससे और ज्यादा डर ही बढ़ेगा|
जो भी कर्म है ,ज्ञान
उस सबको जला सकता है ,आप बस उसे छोड़ दीजिए ,और
आगे बढ़िए |नहीं
तो यह ऐसे होगा ,जैसे
एक कचरे के ढेर में आप चुन रहें हैं ,कि कौन सा कचरा सुबह का है ,कौन
सा कल का है ,या
तीन दिन पहले का |क्या
फ़र्क पड़ता है ?सारे कर्मों को छोड़ दीजिए ,और
बस आगे बढ़िए|
प्रश्न : गुरूजी ,भगवान
ने हमें पाँच इन्द्रियां क्यों दी ,जब
सारे ज्ञानी लोग कहते हैं कि हमें उनपर नियंत्रण करना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : जिससे आप उनसे भी बेहतर कुछ व्यक्त कर सकें|
आप जानते हैं ,छोटे बच्चों को टॉफी दी जाती हैं ,लेकिन
जब वे थोड़े से बड़े हो जाते हैं ,तब
कोई भी टॉफी या कैंडी नहीं चाहता |वे थोड़ी सी बड़ी खुशी के लिए जाते हैं, कुछ
और बेहतर अनुभवों के लिए|
देखिये ,हमारी इन्द्रियों के अनुभव करने की क्षमता सीमित है ,लेकिन
जब इच्छाएं असीमित होती हैं तो असंतुलन होता है |बस तभी आपको चौकस हो जाना है!
उदाहरण के लिए ,बुलीमिया को ही ले लीजिए, आप
कितना भोजन खा सकते हैं ?
इतना (अपने हाथों
से अंजलि बनाते हुए) बुलीमिया उसे
कहते हैं ,जब आप खाते हैं ,लेकिन आपको तृप्ति नहीं मिलती |तब
फिर आप कहते हैं ,‘अरे चलिए ,थोड़ा इन्द्रियों पर काबू करिये’ ,क्योंकि ऐसा न करने पर आपके खुद के शरीर को हानि होगी|
ऐसा हमारी सारी इन्द्रियों के साथ होता है ,क्योंकि
उनका अनुभव करना हमें थका देता है |यदि आप थोड़ा खाना खाते हैं ,तो वह आपको ऊर्जा देता है ,लेकिन अगर आप ज़रा भी ज्यादा खा लेते हैं ,तो
वह आपको थका देता है |आपमें से कितने लोगों को इसका अनुभव हुआ है ?आपको
ऊर्जा देने के बजाय उसने आपको थका दिया है|
इसीलिये ,वे कहते हैं,‘तेन त्यक्तेन भुन्जिथा’ – अर्थात ,उसका अनुभव करिये ,मगर
उसके परे भी जाईये |आप
साँस अंदर ले सकते हैं ,लेकिन आप केवल उसे अंदर ही नहीं लेते ,आपको उस साँस को बाहर भी निकालना होता है ,नहीं
तो आप मर जायेंगे ,है
न?
इसलिए ,जब आप अंतर्मुखी होते हैं ,जब
अप योग में जाते हैं ,तब आप कहीं ज्यादा आनंद का अनुभव कर पाएंगे |योग
से ऊर्जा का संरक्षण होता है ,नहीं
तो केवल ऊर्जा का खर्च ही होता है|
अगर बच्चे खर्चा करते हैं, तो कोई परवाह नहीं करता, माता-पिता कहते हैं, ‘ठीक है, खर्च करो|’ लेकिन अगर कोई किशोर खर्चा करता है, या कोई ऐसा जो किशोरावस्था को पार कर गया है, तब माता-पिता कहते हैं, ‘थोड़ा ध्यान से खर्च करना| साथ
साथ कमाओ भी, सिर्फ खर्च ही नहीं कर सकते|’ अगर आप वयस्क हो गए हैं, तब
वे कहेंगे, कि
आपको कमाना भी चाहिये| लेकिन
शिशु तो नहीं कमाते, फिर
भी माता-पिता
कहते हैं, कि
‘जाओ, खर्च
करो|’
इसी तरह से, अपनी इन्द्रियों से हम अच्छा स्वाद, अच्छा दृश्य, अच्छी ध्वनि, सब कुछ का आनंद लेते हैं, लेकिन उसके बाद आईये, और अपनी ऊर्जा का संरक्षण करिये, गहरे ध्यान में बैठिये, और यह पहचानिये, कि
ध्यान में इससे भी बड़ा आनंद है, इससे भी बड़े खुशी है, और
उसे भी देखिये|
प्रश्न : गुरूजी ,कृपया
शाकाहारी होने के बारे में बताएं|
श्री श्री रविशंकर : आप जानते हैं ,अगर
आप गूगल पर जाएँ,और
ढूँढे ,तो आपको बहुत से कारण मिल जायेंगे |‘मुझे शाकाहारी क्यों होना चाहिये?’ या सिर्फ टाइप करिये ,‘शाकाहारी’ ,या टाइप करिये ,‘शाकाहारी भोजन के फायदे’ |आपको
अनगिनत पन्ने मिल जायेंगे |आपको
बहुत सारे वीडियो भी मिलेंगे ,जो डॉक्टरों ,वैज्ञानिकों ,और
पथ्य डॉक्टरों ने बनाये हैं|
प्रश्न : गुरूजी ,कृपया
तंत्र और खजुराहो मंदिरों के बारे में बात करें ?मैं अक्सर इन मंदिरों में अलग अलग ग्रुप में गया हूँ ,और
हर गाइड कुछ अलग ही बताता है ,और मुझे उसमे सच्चाई नहीं लगती|
श्री श्री रविशंकर : तंत्र मतलब तकनीक |तंत्र ,मन्त्र और तंत्र – ये तीन चीज़ें हैं|
मन्त्र ध्वनि है |यंत्र चित्र है |जैसे
‘Star of David’ है, यह एक यंत्र है जिसे यहूदी अपने प्रमुख प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं |और
तंत्र वह तकनीक है जिससे एक भौतिक चित्र या मुद्रा को ध्वनि के साथ जोड़ सकते हैं |यह तंत्र होता है – उसे करने का कौशल|
अब जैसा मैंने कहा ,तंत्र
एक तकनीक है |प्राचीन काल में ऋषियों ने यौन-क्रिया के बारे में भी लिखा था – काम सूत्र लिखा गया था ,अलग
अलग मुद्राएं ,तंत्र
के बारे में अलग अलग सिद्धांत और नियम |यह
आसक्ति से मुक्ति पाने के लिए थे|
यह मंदिर की बाहरी दीवारों पर क्यों है ,इसका
भी कारण है |तीर्थयात्रियों को कहा जाता है ,कि
वे पहले मंदिर के चारों ओर घूमकर सारी मूर्तियों को देख लें ,और
अगर कोई भी मूर्ति किसी भी तरह से आपको उत्तेजित करती है ,तो
आप वहां बैठ जाएँ ,और
उसे देखते रहें |जिस पल आप उसे एकटक निहारते हैं ,उत्तेजना
शांत हो जाती है| तो
जब मन में इन सभी मुद्राओं के लिए उत्तेजना खत्म हो जाती है ,तब आप अंदर जाते हैं |तब
आपका मन खाली और खोखला हो जाता है |मन
एक दम खाली हो जाता है ,और
तब आप अंदर के सूर्य (प्रकाश) को देख
पाते हैं |वह (खजुराहो का मंदिर) सूर्य का
मंदिर है|
अब आप पूछ सकते हैं, ‘कि सूर्य तो बाहर है ,तो
हम सूर्य को देखने के लिए मंदिर के अंदर क्यों जाएँ?’
तो हमारे प्राचीन लोगों ने कहा कि एक तो बाहरी सूर्य है ,और
एक आतंरिक सूर्य है – आत्मा|
आत्मा को देखने के लिए क्या बाधा है ?इन्द्रियों
में होने वाली उत्तेजनाएं |बाहरी
वस्तुओं के प्रति इन्द्रियों में जो उत्तेजनाओं का प्रवाह होता है ,वही हमारे मन को बहिर्मुखी रखता है ,जिसे
दरअसल अंतर्मुखी होना चाहिये|
इसलिए ,आप मंदिर के चारों ओर बहुत से चक्कर लगाते हैं ,और फिर उन मूर्तियों के सामने बैठ जाते हैं |यह
एक तरह की अश्लील फिल्म है ,लेकिन
उसमें भी एक तात्पर्य है |अश्लील फिल्मों से लोगों को उत्तेजित किया जाता है ,लेकिन
यहाँ इनसे लोगों को शांत किया जाता है |और
इसलिए काम-वासना
के प्रति आसक्ति के लिए यह एक चिकित्सा है|
काम-वासना के लिए आसक्ति कोई नयी चीज़ नहीं है ,यह
तो एक पुरानी बीमारी है |आप इसे बीमारी भी नहीं कह सकते ;यह
लोगों में एक विरासत की तरह है |और आपको कुशलतापूर्वक इसके परे जाना है ,ताकि
आप अपने अस्तित्व के प्रकाश को देख सकें|और
इसीलिये वे इन चीज़ों का प्रयोग करते थे |वे
किसी भी ऐसी चीज़ के साथ बैठते थे ,जो
उन्हें उत्तेजित करे ,या जोश में लाये ,और आप जितना अधिक उसे देखेंगे ,वह उत्तेजना चली जायेगी |मन शांत हो जाएगा|
मुझे किसी ने बताया था ,कि जो लोग अश्लील फिल्मों के व्यवसाय में हैं ,उन्हें
उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है |वे उत्तेजित नहीं होते |मैंने सिर्फ इस बारे में सुना है ,और
मुझे यह समझ में भी आता है ,क्योंकि आप वही चीज़ दिन-रात
देख रहें हैं |यह उनके लिए सिर्फ एक व्यवसाय है ,और
कुछ नहीं |यह
कुछ ऐसा नहीं है ,जिसका
उन्हें शौक है या जिसका वे आनंद उठाते हैं |बिल्कुल एक रसोईये की तरह जो भोजन का कभी मज़ा नहीं ले पाता ,क्योंकि
वह हर दिन इतने प्रकार के व्यंजन पकाता है| भोजन कभी भी एक रसोईये को मोहित नहीं करता |क्या
आप देख रहें हैं ,मैं
जो कह रहा हूँ?
यह एक रसोइये के लिए ‘अरे वाह!’ की भावना नहीं लाता क्योंकि वैसे भी हर दिन वह भिन्न भिन्न प्रकार के भोजन पकाता ही रहता है|
इसी तरह तंत्रों का प्रयोग होता था |लेकिन तंत्र का अभ्यास बहुत ही कठोर नेतृत्व में करना चाहिये ,नहीं
तो ये ऐसे होगा जैसा तलवार की नोंक पर चलना |जो
लोग वहां से गिर जाते हैं ,वे
बहुत नीच गिर जाते हैं ,और यह खतरनाक है |आमतौर पर लोग कहते हैं कि यह एक खतरनाक काम है|
तंत्र में भी ,सफ़ेद तंत्र ,काला तंत्र और बहुत कुछ होता है|योग
सबसे उत्तम है ,सुरक्षित और सुद्रढ़ मार्ग है आगे बढ़ने का |मन्त्र ,यंत्र
और योग – योग में तंत्र एक ऐसी तकनीक है जिससे मन शांत किया जा सकता है|
प्रश्न : गुरूजी ,मैं
आपके और करीब कैसे आ सकता हूँ?
श्री श्री रविशंकर : कुछ बातें आपको मान के चलनी पड़ेंगी |मेरी
तरफ से तो आप पहले से ही मेरे बहुत करीब हैं |और अगर आप मेरे और करीब आना चाहते हैं ,तो
बस आप यह प्रश्न करना छोड़ दीजिए कि आप मेरे करीब हैं या नहीं |सिर्फ
महसूस करिये ,कि
आप मेरे बहुत करीब हैं ,और बस! इस पर दोबारा प्रश्न कभी मत उठायियेगा|
प्रश्न : गुरूजी ,मेरा
परिवार टूट रहा है ,और
मैं अपने दो बच्चों के बारे में चिंतित हूँ |मेरे जीवनसाथी के साथ मेरा रिश्ता कड़वाहट से भरा जा रहा है ,हमारे बीच बहुत अविश्वास और गलतफहमी हो गयी है |मुझे
आपकी राय चाहिये|
श्री श्री रविशंकर : जीवन में कुछ कठिन समय आते हैं ,आप
धैर्य रखिये |कोई
भी निर्णय लेने की जल्दबाजी मत करिये |जब मन में बहुत ज्यादा कश्मकश और संघर्ष हो ,तब
आपको धैर्य रखना चाहिये|