सत्य विरोधाभासी होता है

२०१२
जुलाई
बून, उत्तरी केरोलिना
प्रश्न : गुरूजी, क्या गुरु होना आपको अच्छा लगता है? क्या आप (स्वयं) हमारी सारी परेशानियों को पढ़ते है या कुछ लोग आपकी मदद करते हैं?
श्री श्री रविशंकर : कई लोग मदद करते हैं (एक शरारती मुस्कान के साथ) क्या आपको अपनी परेशानियों से छुटकारा मिला है? आप में से कितने लोगों को अपनी परेशानियों से मुक्ति मिली है? (बहुत सारे लोग अपना हाथ खड़ा करते हैं) यह देखिये!

प्रश्न : राजनीति के बारे में आपके क्या विचार हैं? क्या लोगों को राजनीति में जाना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : राजनीति क्या है? लोगों का ख्याल रखना, है न? राजनीति अर्थात वह जो लोगों के लिए खड़ा हो, जो लोगों की परवाह करे| सभी का ख्याल रखना जिनके स्वाभाव में है, उन्हें राजनीति में अवश्य आना चाहिए; वे नहीं जो लोभी हैं, बल्कि वे जो परवाह रखते हैं, हाँ! दुर्भाग्यवश, इन दिनों ऐसा नहीं हो रहा है| लोग राजनीति में इसलिए आते हैं ताकि वे स्वयं सत्ता का उपभोग कर सकें, वे लोगों को सशक्त बनाने के लिए या उनकी सेवा करने के लिए नहीं आते हैं| तो यदि आपका अंदेशा समाज की सेवा करने का है और आप ऐसा कर सकते हैं, तो ज़रूर करें| लेकिन यदि आप व्यवसायी हैं, और वही आपकी प्रवृत्ति है तो राजनीति में न जाएँ| यही बात एक दार्शनिक या चिकित्सक के लिए भी लागू होती है; तो आप अपना झुकाव देखें| यदि जनता, देश और विश्व के लिए आप एक बृहत दृष्टिकोण रखते हैं तो मै आपको राजनीति में जाने के लिए प्रोत्साहित करूँगा, विशेषकर युवावर्ग को राजनीति में शामिल होना चाहिए|

प्रश्न : गुरूजी, मेरे जीवन में एक ऎसी गलती हो चुकी है जिसका मुझे पछतावा है| लेकिन हर संभव मौके पर लोग (वे भी ऐसे लोग जिनका उससे कुछ लेना-देना नहीं है) मुझे उसकी याद दिलाने से चूकते नहीं हैं| कभी-कभी मै दुखी होकर यही सोचता हूँ कि शायद मेरे पास इस संसार को छोड़ देने के अलावा कोई रास्ता नहीं है| कृपया मदद करें|
श्री श्री रविशंकर : बिल्कुल नहीं! ऐसा कभी नहीं करें! यहाँ पर उपस्थित सभी लोग आपके साथ हैं, मैं आपके साथ हूँ, हम सब आपके साथ हैं| कोई बात नहीं! आपके अतीत में जो भी कुछ हुआ, इतना विश्वास रखें कि वर्तमान में आप मासूम हैं| गलतियाँ अज्ञानता के कारण होती हैं - ज्ञान की कमी से और जागरूकता की कमी से| अब वह समाप्त हो गया| ठीक उसी क्षण जब आपको गलती का एहसास हो गया, आप गलती से मुक्त हो गए| स्वयं के साथ बहुत कठोर न रहें; और जीवन समाप्त करने की तो सोचें भी मत, समझ गए?
और आपको यदि कोई दूसरा इस तरह का व्यवहार करता दिखे तो उन्हें भी यहाँ बेसिक कोर्स में ले आएँ; उन्हें यहाँ आकर कुछ साँस लेने दीजिए और ध्यान करने दीजिए - वे भी इस प्रवृत्ति से बाहर आ जाएँगे|

प्रश्न : गुरूजी, जब कोई मुझे परेशान करे, चाहे ऎसी उनकी मन्शा न ही हो, तब मैं क्या करूँ? मैं ना चाहते हुए भी दुखी हो जाता हूँ, और हालाँकि मैं पूरा प्रयास करता हूँ, लेकिन फिर भी काफी दिनों तक मेरे अंदर गुस्सा बना रहता है|
श्री श्री रविशंकर : ओह! भस्त्रिका करें! इससे आपका मूड बदल जाएगा| सुदर्शन क्रिया और भस्त्रिका, बस इससे आप बाहर आ जाएँगे|

प्रश्न : गुरूजी, आपने बताया कि ध्यान विश्राम है, एकाग्रता नहीं| यदि ध्यान के समय भी मन में विचार आते रहें तो क्या फिर भी वह विश्राम है?
श्री श्री रविशंकर : हाँ! जब आप विचारों के प्रति जागरूक हो जाते हैं तब आप एक गहरी सांस ले कर उन्हें जाने देते हैं, और फिर आप देखते हैं कि विचार तो जा चुके हैं|
ध्यान एकाग्रता नहीं हैं| आप जितना किसी विचार से पीछा छुड़ाने की कोशिश करेंगे, वह उतना ही वापिस आता रहेगा| इसलिए सबसे अच्छा यही है कि जो विचार आएँ उन्हें आप प्यार से 'गले लगाएं' और आप देखेंगे, कि वे एक बुलबुले की तरह गायब हो गयें हैं!
विचार इस तरह आते हैं, है न? (श्री श्री एक बबल-गन हाथ में ले कर उससे श्रद्धालुओं की ओर बुलबुले छोड़ते हैं) अब देखिये (हवा में बुलबुलों की और देखते हुए) ये कितने समय टिक पाते हैं? ये आते हैं और गायब हो जाते हैं| हमारी चिंताएं भी इसी तरह हैं| कोई बात नहीं यदि चिंताएं आएँ| ज़रा पीछे मुड़ कर देखें, क्या दस साल पहले आपने कोई चिंता नहीं की थी? फिर भी आप जिंदा है! आपको चिंता थी कि क्या आप सन्२०१२ देख पाएँगे, और सब देख ही रहे हैं! जब आप सिनेमा में देखते हैं कि २०१२ में सब कुछ समाप्त हो जाएगा तो मन में आता है, "हे भगवान्!" आप कितना परेशान हो जाते है; लेकिन मैं बताऊँ, सब-कुछ सामान्य ही रहेगा!
कभी-कभी हमें अपने आपको झकझोर देना चाहिये और बुलबुले कि तरह हल्का-फुल्का बनना पड़ता चाहिये!

प्रश्न : गुरूजी, इतने (सारे, अलग-अलग) धर्म क्यों हैं? मुझे मालूम है कि ये हमारी समझ और विश्वास बनाए रखने के लिए हैं, लेकिन कुछ लोग इतने कट्टर क्यों हो जाते हैं कि उनका ही मत सही है और सभी अन्य गलत हैं? हमें कैसे पता चले कि उनमे से कौन सही है?
श्री श्री रविशंकर : सभी को अपनी एक पहचान चाहिए और वे धर्म में अपनी पहचान देखने लगते हैं| एक बार अपने को एक धर्म के साथ जोड़ लेने के बाद, जो इसके 'सदस्य' नहीं होते, वे पराए लगने लगते हैं, सम्बंधित नहीं लगते; वे अन्य और अलग से लगने लगते हैं, इतिहास में संघर्ष और युद्ध इस तरह ही शुरू हुए|
मनुष्य को पहचान चाहिए और यह उनकी पहचान का ही संकट है - भाषा, धर्म और राष्ट्रीयता आदि सब अहंकार के खेल हैं! लोग एक धर्म को अच्छा इसलिए बोलते हैं क्योंकि वे उसके अनुयायी हैं, न कि इसलिए कि उस धर्म में अच्छाइयां हैं - "क्योंकि यह मेरा धर्म है, इसलिए यह अच्छा है"| अतः संकट पहचान का है, धर्म का नहीं!
सभी धर्म एक ही बात सिखाते है - प्रेम, भाईचारा, ईश्वर का अस्तित्व और प्रार्थना, मानवीयता पर विश्वास और मानव जाति के 'श्रेय' (अच्छाई) पर विश्वास|
लेकिन लोगों ने धर्म के आध्यात्मिक स्वरुप को छोड़ कर बाहरी छिलके को पकड़ रखा है, इसलिए वे झगड़ रहे हैं| ईसा मसीह एक थे, लेकिन ईसाइयों के आज ७२ संप्रदाय हैं, मोहम्मद एक थे, लेकिन आज इस्लाम के ६ संप्रदाय हैं, बुद्ध एक थे, और आज बौद्ध धर्म के ३२ संप्रदाय हैं और हिन्दुत्व के सम्प्रदायों की तो गिनती ही नहीं कर सकते|
मैं तो यही कहूंगा कि हमें इससे ऊपर उठ कर धर्म नहीं, आध्यात्मिकता को पहचानना होगा| आध्यात्मिकता अनुभव से है| उस परम शांति, स्थिरता, और प्रेम का अपने ही अन्दर अनुभव कर लेने पर पता चलता है कि सभी धार्मिक ग्रंथों में एक ही बात कही गयी है|
हमें एक चींटी की तरह बनना होगा - यदि चीनी और रेत का मिश्रण पड़ा हो तो चींटी क्या करेगी? रेत और चीनी को अलग करके रेत से बांबी बनाएगी और चीनी का उपभोग करेगी - हमें भी यही करना होगा| अपनी भेद और तर्क-शक्ति का उपयोग करना होगा|
(ज्यादातर) श्रद्धा-स्थलों में तर्क को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता, और जो अपनी तर्क-शक्ति पर फ़क्र करते हैं वे श्रद्धा का मूल्य नहीं समझते| दोनों में से किसी एक की कमी जीवन में बाधक बन सकती है - हमें श्रद्धा और तर्क दोनों की आवश्यकता है| और इसी को आध्यात्मिकता कहते हैं| आध्यात्मिकता में तर्क और श्रद्धा का दोनों का समन्वय होता है जिससे हृदय और मस्तिष्क दोनों समृद्ध होतें हैं|
यह आपको इतिहास में भी देखने को मिलेगा, पूर्व में या पश्चिम में| इसे दो तरह से देख सकते हैं| पश्चिम में मत था - "पहले विश्वास रखिए फिर एक दिन आपको अनुभव मिलेगा"। पूर्व में दृष्टिकोण अलग था - "पहले अनुभव कर लीजिए, फिर यदि अच्छा लगे तो विश्वास करिये" और शायद इसीलिए पूर्व में विज्ञान बहुत पनपा क्योंकि विज्ञान भी यह मानता है कि पहले अनुभव, फिर विश्वास| पूर्व में वैज्ञानिकों को कभी दण्डित नहीं किया गया क्योंकि श्रद्धा और विज्ञान के लिए मापदंड और दृष्टिकोण एक जैसे थे; परन्तु पश्चिम में इनमे टकराव रहा|

प्रश्न : गुरूजी, क्या जीवन को सही तरह से जीने के कई तरीके हो सकते है? क्या सदैव सही काम ही करना चाहिए या कभी-कभी गलत करना ठीक है? क्या बहुत सारे सही रास्ते हैं?
श्री श्री रविशंकर : अपने अंतःकरण को सुनें| आपकी अंदर की आवाज़ कहेगी नहीं, यह सही नहीं है|’ आखिर गलत क्या है? जो आप चाहते है कि अन्य लोग आपके साथ न करें, वह गलत है| यदि अन्दर कुछ चुभे, तो वह चीज़ न करें|  

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, अष्टावक्र गीता में ऋषि अष्टावक्र कहते हैं कि हम कर्ता नहीं हैं, और योग वशिष्ट के अनुसार आत्मानुभूति के लिए हमें आत्म-नियंत्रण की आवश्यकता है, यह थोड़ा विरोधाभासी लगता है| क्या आप कृपया इस पर थोड़ा प्रकाश डाल सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : सत्य विरोधाभासी होता है| सत्य बहु-आयामी होता है| यह विरोधाभासी लग सकता है, पर वास्तव में होता नहीं है|
किसी स्थान से यहाँ पहुँचने के लिए कोई कहे "सीधा जा कर बाएँ मुड़ो", और किसी दूसरे स्थान से यहीं पहुँचने के लिए यह दिशा निर्देश "सीधे जाकर दाएं मुड़ो" - वह भी सही है|
मैं आपको एक वृत्तांत बताना चाहता हूँ| आयतुल्लाह खोमैनी, जो ईरान के (वरिष्ठ नेता) थे, उनके एक सहयोगी १०-१५ साल पहले बंगलोर आये थे| वे उस समय लगभग ७८ वर्ष के बुजुर्ग सज्जन थे| उन्होंने मुझसे पूछा: "गुरुदेव, मेरे पास एक गंभीर प्रश्न, गहन दुविधा है, इस प्रश्न का उत्तर मैंने अपने पूरे जीवन भर पूछा है लेकिन अब तक मुझे अपना उत्तर नहीं मिला| आशा है आप इसका जवाब देंगे|"
मैंने कहा, ‘हाँ, कृपया पूछिए|’
उन्होंने कहा: "एक ही प्रश्न के कई ठीक उत्तर कैसे हो सकते हैं? यदि सत्य एक ही है तो उत्तर भी एक ही हो सकता है; और यदि उत्तर एक ही है तो इतने सारे धर्मों का क्या औचित्य है? तब सिर्फ एक ही धर्म ठीक हो सकता है| इस विश्व में इतने सारे धर्म हैं, सारे पथ और सारे ग्रन्थ सही कैसे हो सकते हैं? उनका तर्क ठोस मालूम पड़ता था|
मैंने उनसे कहा: "देखिये, इस स्थान तक पहुंचने के लिए बहुत से रास्ते हैं, और वे सारे रास्ते सही हैं| एक निर्देश हो सकता है, कि आप बिल्कुल सीधा जाएँ| दायें-बाएं न मुड़े, आप सही जगह पर पहुँच जायेंगे|
एक दूसरा निर्देश हो सकता है, जो कहे, कि सीधा जाईये और दायें मुड़ जाईये| कोई और निर्देश हो सकता है कि सीधा जाएँ, और बाएं मुड़ जाएँ| एक ही स्थान पर पहुँचने के लिए ये सभी अलग अलग निर्देश अपने आप में सही हैं|
इसलिए हमें अपनी सोच वृत्तीय (गोलाकार) रखनी पड़ेगी|
उन्हें अनायास ही समझ आ गया कि (सत्य) इस बात पर निर्भर है कि हम अभी कहाँ हैं| मैंने आगे उन्हें बताया कि भारत में एक पुरानी सोच है कि "हे प्रभु, मुझे ज्ञान सभी दिशाओं से मिले|" यहाँ कट्टरता को कभी प्रोत्साहन नहीं दिया गया| सत्य एक ही है, परन्तु इसे कई मायनों में समझना और जानना चाहिए|
"एकं सत विप्र बहुधा वदानी", अर्थात, सत्य तो एक ही है, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति इसकी अभिव्यक्ति अनेक तरह से करते हैं|
वे बहुत प्रसन्न हुए| जब वे धन्यवाद के लिए झुके तो उनकी आँखों में आंसू थे|
वे बोले, आपको बहुत बहुत धन्यवाद|

प्रश्न : गुरूजी, कृपया यह बताएं कि आपने सुदर्शन क्रिया की खोज कैसे की?
श्री श्री रविशंकर : शायद उत्तर देना ही पड़ेगा! यह सब अनायास ही हुआ, जैसे कोई कविता लिख रहा हो| क्या आपमें से किसी ने कविता लिखी है? कविता कैसे लिखी जाती है? आप बस बैठते हैं और शब्द उमड़ पड़ते हैं, ठीक? सुदर्शन क्रिया के पहले भी मैं योगा और ध्यान सिखाया करता था, लेकिन मुझे लगता था कि कुछ तो कमी है| मुझे लगता था कि सभी एक-दुसरे से संबद्ध नहीं हो पा रहे हैं|
मैं सोचता था कि सभी प्रसन्न और प्रेम से ओत-प्रोत क्यों नहीं हैं? ऐसी कोई तकनीक होनी चाहिए ताकि लोग ऐसा अनुभव कर सकें, और ऐसा सोचते हुए मैंने केवल दस दिनों का मौन रखा, और फिर सब अपने आप होने लगा|
उसके बाद के पहले कोर्स में तीस लोग थे, कुछ हमारे साथ वाले और अन्य - शहर के वकील डॉक्टर आदि| सबने इसका बहुत आनंद लिया और अगले सप्ताह और लोगों को ले आये| इस तरह चलता गया और दस सालों तक तो हम केवल अनुशंसा पर ही आगे बढ़ते रहें|
फिर भारत में अमेरिकी दूतावास और संयुक्त राज्य के एजेंसियों ने मुझसे कहा कि उनके लिए हम यह प्रोग्राम दें| हमने दिल्ली में उन्हें यह कोर्स दिया जिसमे अमेरिका और इंग्लॅण्ड के दूतावास के लोग थे, इस प्रकार लोगों ने अपने ही शब्दों से प्रचार कर दिया और हम यात्राएं करते रहे| आज यह सभी जगह फ़ैल गया है.| शुरुवात में कोर्स लम्बे होते थे और सारा प्रशिक्षण मैं स्वयं देता था, फिर मुझे लगा कि इस गति से तो कई हज़ार साल लग जाएँगे सभी तक पहुंचने में; यह असंभव था; अतः मैंने और लोगों को टीचर बनने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू किया, ताकि मैं कई गुना हो जाऊं| तो हमने कई टीचर भी बनाए और कोर्स भी थोड़ा छोटा किया, और आज करोड़ों लोग इसका आनंद ले रहे हैं| फिर सबने कहा कि हमें युवाओं के लिए भी ऐसे कोर्स की आवश्यकता है, तो यस प्लस (YES+) और आर्ट एक्सेल (Art Excel) की शुरुवात हुई| बच्चों में सृजनात्मकता को बढ़ावा देना आवश्यक है; सृजनात्मकता ईश्वरीय गुण है| बच्चे या तो सृजनात्मक होते है या विध्वंसक: बीच का रास्ता उन्हें नहीं मालूम| सृजनात्मकता बहुत आवश्यक है, क्या आपको ऐसा नहीं लगता?

प्रश्न : गुरूजी, मुझे सेवा का महत्व तो पता है लेकिन इस वक़्त मेरे लिए खुद को जानना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, और सेवा मेरा ध्यान हटा देती है, मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : क्या एक बच्चा माँ को जानना चाहता है? क्या बच्चा माँ को जानने की कोई वस्तु समझता है? क्या कभी बच्चा माँ को यह कहता है, "माँ, आपने कहाँ पढ़ाई की है? पहले मुझे अपने बारे में सब बताओ, तब मैं आपसे प्यार करूंगा|"
हर एक बच्चे को अपनी माँ से प्यार होता है, हर जानवर को प्रकृति से प्यार होता हैI जो इतना विशाल होता है उसको जानने की विषय-वस्तु नहीं बनाया जा सकता| वेदान्तिक दर्शन में एक उदाहरण दिया है, एक चम्मच में समुद्र नहीं समा सकता लेकिन एक चम्मच समुद्र में समा सकती है|
हमारी समझ इतनी छोटी सी है लेकिन आत्मा या स्वयं इतना बड़ा है, बुद्धि से इतना बड़ा, तो वह छोटी सी बुद्धि आत्मा की गहराई को कैसे नाप सकती है, नहीं !! फिर कैसे?
आप इस में हो सकते हैं, और यह मौन में हो सकता है, आप मौन में हो सकते हैं, मौन को जान सकते हैं,  लेकिन मौन को पकड़ नहीं सकते, ठीक है?!
इसलिए स्वयं को या आत्मा को जानने का अर्थ, सिर्फ उसके बारे में ऐसे बैठ कर सोचना नहीं है, अगर आप जानते हैं कि आप सिर्फ विचार नहीं हैं, सिर्फ भावनाएं नहीं हैं, और यह कि वे सब तो आते -जाते रहते हैं, शरीर हर वक़्त बदलता रहता है, ये मैं नहीं, बल्कि कुछ और है, क्या है? मैं कौन हूँ? ये चिंतन खुद ही आपको एक ठहराव की स्थिति में ले जाने के लिए पर्याप्त है| एक बार जब आप ठहराव में गए तो खुद को जानने की कोई वस्तु मत बनाईये, यह संभव ही नहीं है| आप जानने वाले हैं, जानने की वस्तु नहीं| आप समझ रहे हैं कि मैं क्या कह रहा हूँ?
अगर यह बात सर के ऊपर से जा रही है, तब भी कोई बात नहीं, हम इसके बारे में बाद में बात करेंगे| लेकिन आप सिर्फ इस बारे में सोचिये, " मैं खुद को जानने की वस्तु नहीं बनाऊंगा, बस मैं हूँ, भले ही खुश या दुखी, मैं हूँ, अच्छा या बुरा, मैं हूँ!” और ये "मैं हूँ" की अवस्था और ज्यादा स्पष्ट होती है जब आपकी प्राण ऊर्जा अधिक होती है, जब आपकी प्राण शक्ति कम होती है, आप थकान महसूस करते हैं, आप कुछ कर नहीं पाते, आपका दिमाग साफ़ नहीं होता| और मन की शुद्धता, स्पष्टता आपको कब मिलती है? जब आपकी प्राण ऊर्जा अधिक होती है, और जब वह ज्यादा होती है, साफ़ पता चलता है, "मैं शरीर नहीं हूँ, आत्मा हूँ, मैं चमकती हुई आत्मा हूँ, मैं शक्ति हूँ, मैं उत्साह हूँ, मैं प्यार हूँ", ये अनुभव स्वतः ही हो जाता है| लेकिन अब इस अनुभव से भी जुड़ मत जाइये, इसमें भी अटकिये नहीं, समझे?
इसलिए सिर्फ सेवा करिये, आप जितनी ज्यादा सेवा करते हैं, उतनी ही योग्यता आप में आती है, जितनी योग्यता या खूबी आती है उतना ही आप अन्दर से शांत और निर्मल होते जाते हैं, यह तरीका है इसका|
सिर्फ एक कोने में बैठ कर ये सोचना कि मैं कौन हूँ, क्या हूँ, मुझे जानना है, इन सब से ऐसा नहीं होगा, इसके साथ कार्य और विश्राम दोनों ही आवश्यक हैं| साथ ही अगर आप बहुत ज्यादा कार्य करते हैं और विश्राम नहीं करते तब ये असंतुलित हो जायेगा, जो कि अच्छा नहीं है, आपको जीवन में संतुलन बना के चलना चाहिए, कार्य और विश्राम|
कभी कभी जीवन में बहुत कार्य करने होते हैं, कोई ऐसी आपात स्थिति होती है जब ज्यादा कार्य करना होता है, आप उसे करिए लेकिन बाद में कुछ समय निकालिए और शांत होकर विश्राम कीजिये, विश्राम के लिए समय निकालिए| यह अच्छा है कि आपमें खुद को जानने की प्रबल इच्छा है, आपको खुद को मुबारकबाद देनी चाहिए, यह अच्छा है लेकिन जल्दबाजी मत कीजिये, आराम से अपना समय लीजिये|

प्रश्न : गुरूजी, क्या हमें यहाँ आने के लिए आपने चुना था या ये हज़ एक इत्तेफाक से हो गया? हमारे जैसे और लोग यहाँ क्यों नहीं आकर लाभ उठा लेते?
श्री श्री रविशंकर : आप देखिये, यह कमरा पूरा भरा हुआ है, इस कमरे में और लोग नहीं सकते| इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैंने आपको चुना या आपने मुझे चुना, हम सब यहाँ है| हम सब आनंदित है और अच्छा समय बिता रहे हैं| इस ख़ुशी, इस प्राण शक्ति को बनाये रखने का रास्ता यह है कि इसको सब के साथ बांटा जाए, आप जानते हैं कि हम ख़ुशी को सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रख सकते, हमें इसे संसार में बांटने की ज़रूरत है, इसी से ख़ुशी बढ़ती है|

प्रश्न : गुरु जी, मुझे आपके जैसा धैर्यवान और शांत होने के लिए क्या करना होगा?
श्री श्री रविशंकर : आप ऐसे ही हैं, आईने में देखिये, आप भी शांत हैं, निर्मल हैं

प्रश्न : मैं कैसे अपने अत्यंत क्रोधी अवं गरम मिजाज़ युवा बच्चो को संभाल सकता हूँ? यहाँ तक की ART EXCEL और YES कोर्स करने के बाद भी वह भगवान में यकीन तक नहीं करता, वह बदलना ही नहीं चाहता|
श्री श्री रविशंकर : मैं जानता हूँ कि आप उसको जल्दी से बदलना चाहते हैं, धैर्य रखिये| आप जानते हैं, एक पुरानी कहावत है, जिसके हिसाब से जब आपके बेटा या बेटी युवा हो जाएँ तब आपको उनके दोस्त बनना चाहिए, ना कि अधिकार जताने वाले एक माता पिता, आप उनके दोस्त बन जाइये, उन्हें प्रभावित कीजिये और सब्र रखिये| ऐसा संभव ही नहीं की वे YES कोर्स करने के बाद भी बदले हो, ART EXCEL उन्होंने बहुत पहले किया होगा, वह युवाओ के लिए नहीं है, अगर आपके बच्चे युवा हो तो उन्हें YES कोर्स में डालिए, वे  वहां सुदर्शन क्रिया करेंगे और बाकी की प्रक्रियायें भी उन्हें बहुत मदद करेंगी|

प्रश्न : गुरूजी, ये डेटिंग websites के बारे में आपके क्या विचार हैं? क्या इस तरीके से किसी खास व्यक्ति से मिला जा सकता है?
श्री श्री रविशंकर : आप जानते हैं कि मैं केवल अपने अनुभव से बात करता हूँ, इस के बारे में मुझे कुछ नहीं पता, मैं इस क्षेत्र में बिलकुल अनजान हूँ| आप अपने आस पास किसी से पूछिए, यह ऐसा ही है कि किसी राशन कि दुकान में जाकर आप पेट्रोल के बारे में पूछें, आप एक कपड़े की दुकान में जाएँ और अटैची खरीदना चाहें, इस का कोई तुक नहीं है|
ऐसे बहुत से लोग होंगे जो डेटिंग websites में जा चुके होंगे, उनसे पूछिए, और उनके पास मत जाईयेगा जो सफल हुए हो, उनसे पूछियेगा जो असफल रहे हो क्योंकि उन्होंने बहुत बार कोशिश की होगी, वे आपको बता पाएंगे कि यह क्यों नहीं करना चाहिए, इसलिए उनसे सलाह लीजिये जो बहुत दिन से ढूँढ रहे हो|
जानते हैं, मैंने सुना कि एक महिला ने एक सेमिनार आयोजित किया "प्यार को कैसे जीवित रखा जाए", और उस महिला का बार तलाक हो चुका था! किसी ने कहा कि यह कितना अजीब है कि जिसकी खुद की शादी नहीं चली वह प्यार के ऊपर सेमिनार आयोजित कर रही है, मैंने कहा कि नहीं, वे सबसे ज्यादा काबिल है, क्योंकि वे, वे सब कमियाँ जानती है और वे कितनी बार असफल हुई हैं, क्यों Mikey? (Michael Fishman की तरफ इशारा करते हुए)
Mikey को लगा कि ये हंसने वाली बात है, लेकिन मेरे पास उस महिला का समर्थन करने का एक अलग तर्क था, देखिये वह तर्क काम करता है! और यही तर्क, यही बात से आप किसी का समर्थन कर सकते हैं और ये बात आपको कहाँ से कहाँ ले जा सकती है|
इसी तरह से ८० के दशक में जब मैं पहली बार कैलिफोर्निया आया था और कोर्स लिया था तब उस में लगभग १५ लोग थे, उनमें से आधे मेरे साथ यात्रा कर रहे थे और आधे नए थे| तब लोगो ने मुझे कहा, " गुरूजी यहाँ कैलिफोर्निया में बहुत ज्यादा सेमीनार होते हैं, कोई फायदा नहीं है, कोई भी आर्ट ऑफ़ लिविंग का कोर्स और सुदर्शन क्रिया करने वाला नहीं, आप वहां ध्यान केन्द्रित कीजिये जहाँ लोगो की रूचि है, यहाँ बहुत कुछ होता रहता है, जैसे कि 'How to Make Love Work ' जैसी सेमिनार जैसी चीज़ें", मैंने उनकी बात सिर्फ सुनी, मैंने उन्हें सुना लेकिन किया वही जो मैं करना चाहता था, मैं फिर से वापिस गया| अगली बार, कोर्स में थोड़े ज्यादा लोग थे, लगभग २५, लोगो ने कहा कि आप क्यों अपना पैसा और समय बर्बाद कर रहे हैं? उन दिनों यात्रा के लिए हमारे पास ज्यादा संसाधन नहीं थे, उन्होंने कहा कि यहाँ सब प्रकार के सेमीनार से लोग पहले से ही भरे हुए हैं| और मैं फिर से वहां गया, आज कैलिफोर्निया में बहुत से केंद्र हैं और बहुत से लोग इसका लाभ उठा रहे हैंI

प्रश्न : प्रिय गुरूजी, कृपया धार्मिक चरमपंथ के बारे में कुछ कहिये| क्यों आजकल लोग इस संकीर्ण और हठधर्मी स्थितियों के प्रति खिंच रहे हैं? अगर हमें उनसे बातचीत करनी ही हो तो कैसे करें?
श्री श्री रविशंकर : आध्यात्मिकता की कमी, अनुभव की कमी| इसलिए आज हमें उदार पंथी सोच और तर्कशीलता की आवश्यकता है|
भगवद गीता में, भगवन श्री कृष्ण ने सब पद कहने के उपरांत यह कहा "मैंने तुम्हें जो भी कहा उसमें तथ्य स्वयं ढूँढो, अगर तुम्हे समझ आये तब ही मानो"|
उन्होंने कभी नहीं कहा कि मैं कह रहा हूँ इसलिए मान लो और ऐसा करो| अगर यह बात तुम्हारे को ठीक लगता है तभी करो, तभी मानो| इसलिए जब कारण धुंधला हो तब कट्टरपन आता है, जब कारण को नकारा जाए तब लोग कट्टरपंथी हो जाते हैं|
इसलिए बौद्धिक प्रेरणा की ज़रूरत है और साथ ही साथ ज्ञान को अनुभव के आधार पर समझने की ज़रूरत है| उदारपंथी, खुली सोच की आवश्यकता है इसलिए बच्चो को विभिन्न प्रकार की संस्कृति, बहुत प्रकार के धर्मो की शिक्षा के बीच पालना ज़रूरी है, वरना वे चरमपंथी हो जाते हैं| कई बार मुझे उन लोगों के लिए बहुत दुःख होता है जो युद्ध में संलिप्त देशो में रहते हैं, उन्हें अपने छोटे से धर्मं, और धार्मिक विश्वासों से आगे देखने का कभी मौका ही नहीं मिला, वे अपनी मानसिकता कभी फैला ही नहीं सकते क्योंकि उन्हें ऐसा कोई मौका कभी मिला ही नहीं| इसलिए उन्हें एक मौका देना चाहिए, मैं आई टी (Information Technology) का शुक्रिया अदा करता हूँ जिसकी वजह से आप दुनिया भर में सब जगह कोई भी जानकारी गूगल, विकिपीडिया, आदि से पा सकते हैं, ये आज से १० साल पहले यहाँ तक की हमारी पीढ़ी में भी उपलब्ध नहीं था|
हमारी ज़्यादातर पीढियों को पुस्तकालय में जाकर चीजों के बारे में ढूँढना पड़ता था, आज आपको इस काम के लिए पुस्तकालय नहीं जाना पड़ता, बस सिर्फ एक बटन दबाने से सारी जानकारी मिल जाती है| इसलिए मुझे लगता है कि आज की पीढ़ी ज्यादा खुशकिस्मत है|
लेकिन फिर भी, बहुत सी जगह ऐसा नहीं है, जब मैं यह बात करता हूँ, तो अफगानिस्तान एकदम मेरे दिमाग में आता है, कितने सारा युवा, कितने सारे बच्चे बाहर की दुनिया के बारे में कुछ जानते ही नहीं हैं| इसलिए अगर दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा भी अनभिज्ञ रह गया तो विश्व सुरक्षित नहीं है| देखिये ओसामा बिन लादेन ने संपूर्ण विश्व के साथ क्या कर दिया, सारे हवाई अड्डो पर सबको जूते उतरने पड़ते हैं! दूसरी तरफ उसने बहुत से लोगों को काम दिया| मुझे याद है कि जब मैं पहले अमरीका जाया करता था तब इतनी सुरक्षा जांच नहीं होती थी, एक छोटी सी प्रक्रिया बस! और कई छोटे हवाई अड्डों पर तो वह भी नहीं था, आप सीधे जाकर हवाई जहाज़ में बैठ जाइये! इस सुरक्षा के ऊपर करोड़ो रूपये खर्च हुए, है ! ये सब चरमपंथियों का विश्व को उपहार है| और हमने कितने युवा खोये, कितने युवा जानें गँवा दी! यह बहुत दुःख दायक है| और यह सब सिर्फ इस वजह से क्योंकि एक खुली, उदार शिक्षा; बहु-संस्कृति और विभिन्न धर्मो की शिक्षा का अभाव है| चरमपंथियों को लगता है कि केवल वही स्वर्ग में जायेंगे और बाकी सब नरक में, और उन्होंने सबके लिए नरक बना दिया| हमें इसमें सुधार लाना है| किसी भी धर्म के लोग चरमपंथी बन सकते हैं अगर उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान का अनुभव नहीं है तो|

प्रश्न : गुरूजी, मुझे क्या करना चाहिए अगर मेरा जीवन साथी बार बार गलती करता है और उसे मानने से इन्कार करता है, यह जानते हुए भी कि उसके इन कार्यों से उसको कोई अच्छा परिणाम नहीं मिल रहा और घर में भी झगड़े हो रहे हैं|
श्री श्री रविशंकर : आप जानते हैं, कई बार हम दूसरो को बताते हैं कि वे गलती कर रहे हैं क्योंकि उनकी इस गलती से हमें तकलीफ हो रही होती है, जब हम यह करते हैं तब वे कभी भी नहीं सुधरते क्योंकि वे आपकी सलाह सुन ही नहीं रहे होते| लेकिन अगर आप उन्हें यह बताएं कि वे जो कर रहे हैं उससे किसी और को नुकसान होने से कहीं ज्यादा उन्हें खुद को नुकसान हो रहा है, तब वे सुनना शुरू करते हैं| अगर करुणा की वजह से आप उन्हें अपनी गलतियों से उबरना चाहते हैं तो उसकी सम्भावना ज्यादा होती है| लेकिन फिर भी बताते हें, कोशिश करें और धैर्य रखें| लोग रातों रात नहीं बदलते, उन्हें बदलने के लिए एक समय चाहिए|

प्रश्न : अच्छे लोगो के साथ बुरी घटनाएं क्यों होती हैं?
श्री श्री रविशंकर : बुरी घटनाएं वजह से होती हैं, एक हमारे पूर्व कर्म और एक हमारी अभी की बेवकूफी| अगर आप अच्छे हैं लेकिन मूर्ख हैं तब आपके साथ बुरी घटनाएं होगी| आप यह नहीं कह सकते "मैं अच्छा हूँ फिर मेरी ऊँगली क्यों जली"? अगर आप अपनी ऊँगली आग में रखेंगे तब वह जलेगी ही| या आपने आज कोई गलती नहीं की लेकिन कुछ दिन पहले आपको एक गाड़ी तेज़ चलाने से नोटिस मिला था तब आज आपको उसका भुगतान करना होगा| आपने कल गाड़ी गतिसीमा से तेज़ चलायी और आज आपको उसके लिए जुर्माना भरना है| आपको हालात का सामना तो करना ही होगा, यह पूर्व कर्म हैं|
अच्छे लोगों ने भी पहले किसी समय कुछ गलत कार्य किये होंगे, यह पहली वजह है| दूसरी वजह- अच्छे लोगों के पास यदि कौशल नहीं है, बुद्धि, या बुरी घटनाओं से बचने की समझदारी नहीं है| एक को कर्म कहते हैं और दूसरे को कौशल की कमी|
इसलिए आपको जीवन में दोनों ही चाहिए, पहली आज़ादी और दूसरा प्यार, बिना आजादी के प्यार भी नहीं होता| हमें अन्दर से आजादी चाहिए - आजादी हमारी अपनी भावनओं से, अपने विचारों से, दूसरों से नहीं| आजादी, प्यार, कौशल और प्राण शक्ति, समझे? इसलिए जब भी किसी अच्छे व्यक्ति के साथ कुछ बुरा हो तब ये मत कहिये, "ओह बेचारा! तुम्हारे साथ यह नहीं होना चाहिए था"| और ही यह कहिये कि तुम इस ही लायक हो, इसलिए तुम्हारे साथ यह हुआ " या " तुम में अक्ल नहीं है, तुम मूर्ख हो"| नहीं!!
इन में से कुछ मत कहिये,उनके साथ रहिये, मुस्कुराते हुए उनको सहारा दीजिए| देखिए आप कैसे उनको इस वर्तमान स्थिति से, बिना किसी प्रकार की विशेष टिपण्णी के उबार सकते हैं|

प्रश्न : प्रिय गुरु देव, मैं Boone आश्रम पहले भी बहुत बार सेवा के लिए चूका हूँ, पहले जब मैं सेवा करता था, मुझे बहुत शांति मिलती थी, ऐसा लगता था जैसे मैं छुट्टियों पर आया हूँ, मुझे बाथरूम साफ़ करना, रसोई में काम करना बहुत पसंद आता था लेकिन अब यह सब मुझे बोझ सा लगता है| मेरे जीवन साथी की बीमारी की वजह से मेरे अन्दर से सेवा से मिलने वाली शांति और आनंद चला गया है| मैं सेवा से मिलने वाले उस सुकून, उस शांति को वापस पाना चाहता हूँ| मैं जानता हूँ कि अच्छे वक़्त में हमें सेवा करनी चाहिए और बुरे वक़्त में सब आपको समर्पण करना चाहिए, लेकिन इस समय यह ज्ञान भी कार्य नहीं कर रहा है| कृपया मेरी मदद कीजिये|
श्री श्री रविशंकर : आप जानते हैं कि जब आप दुखी होते हैं तब ज्यादा काम नहीं करना चाहिए, सिर्फ विश्राम करिए, यहाँ आराम से बैठिये और ध्यान कीजिये| आत्मिक शांति और सुकून स्वयं ही जायेगा और इससे सब का सामना करने और समर्पण करने की शक्ति भी स्वतः ही जाएगी, ठीक है? मैं आपके साथ हूँ और यहाँ पर सब आपके साथ हैं|