प्रश्न : प्रिय गुरूजी, रूद्र पूजा का असली अर्थ क्या है और इसकी
क्या महत्ता है? और इससे लोगों और जगह पर क्या प्रभाव पड़ता
है?
श्री श्री रविशंकर : रुद्राभिषेक
एक बहुत प्राचीन मंत्रोच्चारण विधि है जो आकाश से आई है, जब पहले के समय में ऋषि मुनि ध्यान में बैठते
थे, वे सुनते थे और
जो वे सुनते थे, वह लोगों को बताते थे| रुद्राभिषेक
सकारात्मक ऊर्जा को बढाता है और नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है, रुद्राभिषेक के बारे में बहुत कुछ कहा गया
है| जब रुद्राभिषेक
होता है तब प्रकृति फलती-फूलती है, प्रसन्न होती है| मुख्य बात उस स्पंदन व उस लहर की है, अगर आप मुझे पूछेंगे कि क्या मुझे सब मन्त्रों
के अर्थ पता हैं, तो मैं कहूँगा कि नहीं, मुझे भी
नहीं पता| इन मन्त्रों की
एक सपंदन, एक लय है जो प्रमुख
है|
इसमें २ भाग हैं, पहला है
जिसमें है "नमो, नमो,
नमो.."
मन का अर्थ है मस्तिष्क, अंग्रेजी
का शब्द mind संस्कृत के शब्द
मन से आया है, नम का उल्टा है
मन| जब मन अपने स्रोत की ओर जाता है तब उसे नम कहते हैं| जब मस्तिष्क बाहर की दुनिया की ओर जाता है तब उसे मन कहते
हैं| तो नम अर्थात मन का अपने स्रोत की ओर जाना|
जब यह अपने स्रोत की ओर जाता है तब वहां क्या मिलता है? कि सब कुछ एक ही आत्मा से बना है|
अब वैज्ञानिक क्या कहते हैं, ईश्वर तत्व
- जिस से सब बना है| हजारों साल पूर्व ऋषियों ने भी यही कहा था
कि सब कुछ एक से बना है जिसे ब्रह्म कहते हैं,
ब्रह्म न तो स्त्री है न पुरुष, ये और कुछ
नहीं बस एक तत्व है, तत्व माने मूल तत्व, आधार| एक मूल तत्व जिससे सब बना है ओर वे इसे ब्रह्म कहते हैं, जब यह ब्रह्म जब निजी हो जाता है तब इसे
शिव तत्व - एक भोला /मासूम देव कहते हैं,और वह ही सब कुछ
है, इसलिए ही हम नमो
नमो कहते हैं| पेड़ों में, हरियाली में, चिड़ियों में यहाँ तक कि चोर- डाकू में सब जगह यही एक मूल है|
फिर दूसरे भाग में कहते हैं, 'चमे चमे
चमे' आपने सुना है न! इसका अर्थ है "सब कुछ मुझ में ही है"|
अंग्रेजी का me शब्द संस्कृत के
मा शब्द से आया है जिसका अर्थ है मेरा| मा मा मायने
मेरे लिए, मुझ में, इसलिए सब कुछ मेरे अर्थ में ही है, दूसरे भाग का अर्थ है सब कुछ मेरे लिए है, मेरे ही अर्थ में है| यहाँ तक कि नंबर के लिए भी हम कहते हैं "एकाचमे", जिसका अर्थ है कि १,
२, ३,
४, ये सब मेरे ही रूप
हैं, ऐसे ही "सुगुमचमे", अर्थात
मेरे लिए ख़ुशी!
"अभ्याचमे", अर्थात निडरता, ख़ुशी, स्वास्थ्य, और बाकी
ब्रह्माण्ड की सब अच्छी चीज़ें मेरे पास आ जायें ओर वे मेरा ही हिस्सा हैं| बस यह है|
और जब यह सब उच्चारित किया जाता है तब ज़्यादातर दूध एवं पानी को क्रिस्टल पर बूँद
बूँद करके डालते हैं| यह एक पुरातन
प्रथा है| यह पानी से और आग में भी किया जाता है|
उसके लिए वे अग्नि रखते हैं और अलग अलग मंत्रो के साथ अलग अलग तरह की जड़ी बूटियाँ
आग में डालते हैं| और या फिर आप क्रिस्टल
पर पानी की एक धार डालते हुए यह मंत्रोच्चारण सुनें – यह प्राचीन तरीका है|
और अगर सोमवार को करते हैं तब और खास हो जाता है, सोमवार चंद्रमा का दिन है और चाँद एवं मस्तिष्क जुड़े हुए हैं| मंत्र, चाँद और मन ये सब कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं, इसलिए भारत में सब आश्रम में ये प्रथा है, वहां ये मंत्रोच्चारण होता है, हमारे आश्रम में भी हर सोमवार को यह होता
है|
पूजा में सभी ५ तत्व उपयोग किये जाते हैं,
पूजा का अर्थ है सभी तत्वों का सत्कार करना, पूजा मायने सभी तत्वों के प्रति पूर्णता से उनका सम्मान करना| इसलिए अग्नि, जल,
अगरबत्ती, फल, फूल,
चावल, आदि जो भी प्रकृति
ने हमें दिया है, उन सब का प्रयोग
करते हुए पूजा की जाती है और मंत्रोच्चारण किया जाता है| इसमें बहुत गहराई है और इसका बहुत गहरा अर्थ
है, आप जाकर इसपर शोध
कर सकते हैं, और अधिक चीज़ें आपके सामने आएँगी|
मुख्य रूप से इस से और अधिक सकारात्मकता उत्पन्न होती है और ऐसा और भी ज्यादा होता
है जब लोग ध्यान करते हैं|
सिर्फ एक रीति के जैसे इसे पूरा करना इतना प्रभावशाली नहीं होता क्योंकि ऐसा कहा
जाता है कि वेद-मंत्रो का प्रभाव
तब अधिक होता है जब लोग अन्दर से जागृत हो,
तब इन मंत्रो का एक अलग अर्थ होता है, इसलिए ये
आपको ध्यान में गहरा उतरने में मदद करते हैं|
प्रश्न : मैं आपके ज्ञान की सत्यता को समझता हूँ, मुझे पूजा, भजन और आपके आस पास होने वाले सभी भारतीय
रीति-रिवाज़ अच्छे लगते
हैं, लेकिन जब मैं अपने
दोस्तों के साथ होता हूँ, तब इन सब
के बारे में बात करना बहुत मुश्किल होता हैं,
विशेषकर एक गुरु की बात को सुनना| हमें अपने
मस्तिष्क की बात माननी सिखाई जाती है किसी गुरु की नहीं| आर्ट ऑफ़ लिविंग और अधिक स्वीकार्य बनें,
इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?
श्री श्री रविशंकर : क्या आप
जानते हैं, जब आज से ३० साल
पहले मैंने आर्ट ऑफ़ लिविंग कि शुरुवात की थी तब भी यह बहुत कठिन था| योग सिखाने का मतलब था कि कहीं कोई है, जो दीवाना है वह ही योग करता है, लेकिन आज लोग योग को पसंद करते हैं|
मैं आपको एक बात कहना चाहता हूँ, आपको पूजा, मंत्रोच्चारण, और ये सब उसको नहीं बताना चाहिये जो इसके
बारे में नहीं जानता| सिर्फ सुदर्शन क्रिया,
पार्ट १ कोर्स, और ध्यान की बात
करिए, इतना काफी है| और
मैं कहता हूँ कि लोगों के विचार आज पहले के मुकाबले ज्यादा खुले हैं|
विश्व में आज बड़े बड़े प्रोग्राम हो रहे हैं, बौद्ध लोग मंडल पूजा करते हैं, और सब इस रस्म को देखने के लिए इकठ्ठा होते
हैं| बौद्ध धर्म में भी इस प्रकार के मंत्रोच्चारण
हैं और लोग उन्हें सुनना बहुत पसंद करते हैं|
इसलिए कभी कभी ये केवल हमारा मन होता है जो बाधाएँ खड़ी करता है|
New York जैसे शहर में संस्कृत
के मंत्रोच्चारण की बहुत सी कक्षाएं होती हैं,
और ये सब एकदम भरी हुई होती हैं|
NewYork में हमारे खुद के सेण्टर में क्रिया और ध्यान के ३-४ चरण होते हैं, हर रोज़ बहुत से लोग वहां आते हैं|
तो आज पश्चिम केवल पश्चिम और पूर्व केवल पूर्व नहीं है, आपको पूर्व में भी अनीश्वरवादी, किसी को न मानने वाले मिल जायेंगे और पश्चिम
में भी अनुयायी मिल जायेंगे| इसलिए लोग
आज ज्यादा खुले हुए हैं और पहले से कहीं कम पक्षपाती हैं, अगर आपको कोई पक्षपाती व्यक्ति मिले तो आप
उसको ऐसे बोलें, “कि आपको पक्षपाती नहीं होना चाहिए, आपको अंतर-राष्ट्रीय नागरिक होना चाहिए, आपको बहुसांस्कृतिक होना चाहिए, बहुसांस्कृतिक धार्मिक त्योहारों के बारे
में सहज होना चाहिये; वरना आप
लोग पुरानी संस्कृति के लोगों जैसे रह जायेंगेI
आप उदार-हृदयी नही हैं, आप के मन-मस्तिष्क बहुत संकीर्ण हैं| और जब कहीं कुछ भी अच्छा हो, आपको उसको अपना लेना चाहिएI”
आपको यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि आप एक गुरु को मानते हैं और यह सब कुछ|
मैं सबको मार्गदर्शक बनाता हूँ| मैं पीछे रहता हूँ और आपको आगे जाने के लिए जोर
लगाता हूँ| एक सिखाने वाले की ज़रूरत सब जगह होती है, भले ही वह खेल कूद हो,
संगीत हो या खाना बनाना हो| एक प्रशिक्षक
के बिना आको अच्छा खाना बनाना कौन सिखाएगा?
आप प्रमाणित भी करार नहीं किये जा सकते|
इसलिए योग के लिए, किसी व्यायाम
के लिए यहाँ तक कि फूटबाल के लिए भी, आपको एक
प्रशिक्षक की आवश्यकता होती है, इसी तरह
से आध्यात्म के लिए, जो कि अमूर्त है, आपको एक प्रशिक्षक कि आवश्यकता है, जो आपको सिखा सके| एक गुरु यह कभी नहीं कहता कि अपना दिमाग
बंद करो और मत सोचो, वे आपको स्वतंत्रता
से सोचने को प्रोत्साहित करता है, और ये ही
आपको चाहिए| आर्ट ऑफ़ लिविंग
तर्क और विश्वास दोनों को बढावा देती है| विश्वास और तर्क ये देखने में विरोधाभासी
लगते हैं, पहले ऐसा हुआ भी
है, Spanish Inquisition की यही
वजह थी, पहले यदि चर्च ने
कुछ कहा तो आपको उस पर कोई सवाल नहीं करना है|
इसलिए रूस में यह सारा विद्रोह हुआ क्योंकि साम्यवाद आरम्भ हुआ और तर्क को बंद
कर दिया, लेकिन पूर्व में
ऐसा कभी नहीं हुआ, पूर्व हमेशा कहता
है, "अपने तर्क, अपने सिद्धांत का आदर करो|"
भगवद गीता में भगवन कृष्ण ने अर्जुन को सारा ज्ञान दे दिया और बाद में उसको कहा, "तुम तर्क करो, विचार करो, अगर मैंने जो भी कहा वह तुम्हें ठीक लगे
तब ही तुम इसको अपनाओ, अगर तुम्हे
ठीक न लगे तो जो मैंने कहा है उसको मत अपनाओ|”
बुद्ध ने भी यही बात कही, "आपके पास
तर्क और समर्पण दोनों होने चाहिए, विश्वास रखिये"|
अगर आप कहें कि मैं पहले तैरना सीखूंगा फिर पानी में जाऊँगा तब एक प्रशिक्षक आपको
कहेगा, "पानी में उतरो मैं
तुम्हे बताऊँगा की तैरना कैसे है"|
तो यह एक के बाद दूसरा नहीं हैं, हाँ! जैसे ही आप पानी में उतरते हैं आपको उसी
वक़्त तैरना होता है, आपको दोनों
काम साथ साथ करने होते हैं| इसलिए ही
जीवन में तर्क और सिद्धांत दोनों ज़रूरी हैं|
आप हवा में तैराकी सीख कर पानी में नहीं जा सकते| तब आपको तैराकी नहीं आएगी, जब आप पानी में उतरते हैं, तभी आप तैराकी सीख पाते हैं, ठीक है न!! और आपके पास एक लाइफ जैकेट होती है, गुरू एक लाइफ जैकेट के जैसे होते हैं, वे आपको तैरना सिखाते हैं, और जब आप तैरना सीख जाते हैं, तब आपको उसकी महत्ता का एहसास होता है, है न!!
तो लोगों की बातों का जवाब कैसे दें? आपको हर
सवाल का जवाब देने की दरकार नहीं है, कभी कभी
केवल मुस्कुरा दीजिये| आपको इस
बात की कीमत नहीं पता, एक बार
चखिए और तब उनको बताइए| हो सकता
है कोई कहे, अरे! तुम मंत्रोच्चारण सुन रहे हो? तब कहिये, "अरे! आपको मंत्रोच्चारण की कीमत नहीं पता, यह बहुत अच्छी है, एक बार सुन कर देखिये, आपको खुद ही पता चल जायेगा|"
यही है जिसे हम बांटना चाहते हैं| हम हर एक के साथ सबसे अच्छी बातें बांटना चाहते
हैं, ऐसा नहीं कि भारत
में सब कुछ अच्छा है या बेहतर है, नहीं! वहां बहुत सी चीज़ें बेकार भी हैं, लेकिन हमने अच्छी चीज़ें चुनी और दुनिया से
बाँट रहे हैं| ऐसे ही हर एक सभ्यता
में, हर एक संस्कृति
में कुछ कुछ अच्छा है, सुन्दर
है, हमें वह बांटना
चाहिए, कट्टरता और संकीर्ण
मानसिकता नहीं| आप क्या कहते हैं? हम सब जगह से अच्छी बातें चुन के उन्हें
सबके साथ बांटे, उन्हें बढावा दें
और देखें की सबको उनका लाभ हो| है या नहीं?
योग में भी बहुत सी बातें हैं जो वैज्ञानिक नहीं हैं| हठ योग में अपने शरीर को सुई से छेद देते
हैं, वे बहुत सी ऐसी
चीज़ें करते हैं जो की ग्रन्थ में नहीं हैं,
लेकिन लोग उनका अभ्यास कर रहे हैं, हम ऐसी
बातों को बढ़ावा नहीं देते| लोग ध्यान
और योग के नाम पर अपने शरीर को, खुद को
कष्ट दें, इसलिए हम ऐसी बातों
को मना करते हैं क्योंकि ये वैध नहीं हैं|
इसी तरह कुछ रिवाज़ भी ऐसे हैं, जिन में
हम बहुत सी ऐसी बातें जोड़ देते हैं जो वैध नहीं हैं, ग्रंथो में नही हैं| वह ज़रूरी नहीं हैं लेकिन लोग फिर भी उन्हें
करते हैं|
यहीं पर आपको सही और गलत को पहचानना ज़रूरी होता है, क्या गलत है और क्या नहीं, जो सही है उसको ही
अपनाइए|
प्रश्न : गुरूजी, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?
श्री
श्री रविशंकर : मैं चाहता हूँ, कि आप इस
प्रश्न को अपने साथ रखें, और समय समय पर जो आवश्यक है, वह करें| इस प्रश्न का केवल
एक उत्तर नहीं हो सकता| यह तो एक ऐसा रास्ता है, जिस पर हमें बार बार चलना है|
इस वक्त,
मैं चाहता हूँ कि आप खुश रहें| ज्ञान में डूब जाएँ और दूसरे लोगों के साथ इसे
बांटें|
प्रश्न : गुरूजी, मैं इस दुनिया में इतना अकेला महसूस करता
हूँ| मैं अपने लिए एक जीवन साथी कैसे चुनूँ, जिसके साथ जीवन के सारे सुख बाँट
सकूं?
श्री
श्री रविशंकर : मैं सोच रहा हूँ, कि
यहाँ जर्मनी और यूरोप में भी एक वैवाहिक स्थल खोलूँ| क्यों न आप ही यह सेवा ले
लें? आप इसे शुरू कर सकते हैं|
हम श्री
श्री मैट्रीमोनी (Sri Sri Matrimony) शुरू करेंगे| यहाँ बहुत से पुरुष हैं, जो
विवाह करना चाहते हैं, और बहुत सी महिलाएं भी उसी किश्ती में सवार हैं| तो हम बस
उन्हें आपस में जोड़ देंगे| आप में से हर एक कोई चुन लीजिए, और मेरे पास आ जाईये,
मैं आशीर्वाद दे दूंगा|
प्रश्न : प्रिय गुरूजी, कुछ समय पहले हम सब आपके आसपास एक
छोटे से ग्रुप में बैठें थे, और आपने कहा था, कि अभी तक आपने केवल ‘बाल-विहार’ (kindergarten/KG) तक का
ज्ञान बांटा हैं, और आप प्रतीक्षा कर रहें हैं, कि हम और ऊंचे स्तर का ज्ञान पाने
के लिए तैयार हो जाएँ| क्या हम अब यह ऊंचे स्तर का ज्ञान पाने के लिए तैयार लग
रहें हैं? और सच बताऊँ, तो मैं बहुत ज्यादा उत्सुक हूँ, और बहुत प्यासा हूँ, यह
जानने के लिए कि उच्चतम ज्ञान क्या है| कृपया हमारे साथ इसे बांटें|
श्री
श्री रविशंकर : हाँ, थोड़ी थोड़ी मात्रा
में| ज़रूर!
ब्लेसिंग
कोर्स (Blessing Course) है| आपमें से कितने लोग ब्लेसर (Blesser) बन गयें हैं?
क्या यह काम कर रहा है, हाँ! आपमें से कितने लोगों ने ब्लेसिंग कोर्स नहीं किया
है? आपको ब्लेसिंग कोर्स करना है|
आप देखेंगे
कि हर दिन आपके आस पास कितने चमत्कार होते हैं|
प्रश्न : गुरूजी! क्या आप इन नयी तकनीकों के बारें में चिंतित
नहीं हैं, खास तौर पर वे जो मानव शरीर में मशीनें लगा रहीं हैं, जो कि शायद
इंसानों के सोचने के ढंग को ही बदल दे? क्या आपको लगता है, कि भविष्य में मशीनें
प्रकृति के साथ एक हो पाएंगी?
श्री
श्री रविशंकर : आप खुद ही एक मशीन हैं,
हाँ! आपका शरीर एक बहुत ही अद्भुत मशीन है| आपका मन तो उससे भी बेहतर है, और आपकी
बुद्धि भी| आपको सिर्फ यह जानना है, कि उन्हें और बेहतर कैसे चला सकते हैं|
मैं मशीन
से ज्यादा उस मशीन को चलाने वाले के बारे में ज्यादा चिंतित हूँ|
प्रश्न : गुरूजी, अगर किसी ने जीवन में गलतियाँ करी हैं, तो
वह शान्ति कैसे प्राप्त कर सकता है? कृपया बताएं, कि जीवन में गलतियों से समझौता
कैसे करना चाहिये?
श्री
श्री रविशंकर : आप जानते हैं, कि आर्ट
ऑफ लिविंग के शुरुआत के दिनों में, मेरी कुछ पहली यात्राओं में से एक थी
स्विटज़रलैंड को, और मैं वहां कुछ लोगों के साथ रहा| अब, उनमें से एक महिला जिनके
साथ मैं रहा, उन्हें दो वास्तविकताओं को स्वीकार करने में परेशानी हो रही थी|
कुछ लोगों
का एक समूह था, जिन्हें लगता था कि KGB (Committe of State Security – Russia) ने उनके दिमाग में एक माइक लगा दिया है, और वे उनके
विचारों को रिकॉर्ड कर रहें हैं| और वे कहते थे – ‘क्या यहाँ बात करना ठीक रहेगा?’
मैं आस पास देखता था, और कहता था, ‘यह आपका अपना घर है| आपको
ऐसा क्यों लगता है, कि यहाँ बात करना सुरक्षित नहीं है?’ वे कहते थे, ‘वे हमें मोस्को में सुन
रहे हैं|’
वे
शीत-युद्ध के दिन थे| शीत-युद्ध तब भी चल रहा था| बर्लिन की दीवार सही सलामत थी,
वह टूट के बिखरी नहीं थी| और रूस भी रूस नहीं रहा था; वह USSR बन चुका था और
लोगों में इतना डर था| जब कोई कहीं जाता था, उनका कोई खुद का दोस्त या रिश्तेदार,
तो वे कहते थे, ‘आप जानते हैं, कि वह (दोस्त/रिश्तेदार
की तरफ इशारा करते हुए) KGB के एजेंट हैं|’
‘लेकिन, वह आपके ही भाई हैं|’
‘नहीं! KGB ने उनके दिमाग में माइक
लगा रखा है|’
और उनमें
से जितने भी १५-२० लोग थे, वे सभी ऐसे थे| वे सभी कोई न कोई दवाई ले रहे थे|
उनमें दो वास्तविकताएं थी – Schizophrenic या Bi-polar, कोई न कोई बीमारी उन्हें थी|
मैं सिर्फ
बैठा हुआ था, और मैंने सोचा, ‘हे भगवान! आप मुझे कहाँ
ले आये?’ यह तो बिल्कुल ही अलग दुनिया है! अब
मैं आपको क्या बताऊं!
वह एक
बिल्कुल ही अलग दुनिया थी, क्योंकि वहां लोगों के विचार इतने अलग थे| उनकी सोच और
उनके विश्वास बिल्कुल अलग थे, और उन्हें सचमुच लगता था, कि KGB उनके विचारों को
रिकॉर्ड कर रही है| उनमें से केवल दो को लगता था, कि यह काम CIA कर रही है; यह
बहुत ही हास्यप्रद था|
और ये एक
महिला थीं, जिन्होंने मेरे लिए एक अलग कमरा ऊपर बनाया था, क्योंकि मैं आ रहा था,
वह एक बहुत बड़ी बात थी| इसलिए, मेरे लिए एक अलग कमरा था, सब कुछ नया-नया, सब कुछ
अलग, सब कुछ मेरे लिए, और आधी रात को, करीब १ बजे, वे आयीं, और मेरे कमरे के
दरवाज़े पर खटखटाया और बोलीं, ‘मुझे यह घर आपके नाम करना
है| मैं यह आपको तोहफे में देना चाहती हूँ|’
मैंने कहा,
‘प्रिय, आप जाईये, और सो जाईये, हम कल
इसके बारे में बात कर सकते हैं|’
वे बोलीं, ‘नहीं! मुझे यह अभी करना है!’
मैंने कहा,
‘देखिये, मैं कोई तोहफे कबूल नहीं
करता| यह घर आपके नाम पर हो, या मेरे नाम पर, एक ही बात है, आप अभी जाईये, और आराम
करिये|’
उन दिनों में
मैं ऐसे कोई तोहफे कबूल नहीं करता था|
और वे बहुत
ही बेचैन हो गयी, और वे जाकर बाथरूम की सफाई करने लगी| और वे सफाई करती गयी,
करती गयी, करती गयी, पाँच घंटे हो गए, और पूरे घर में पानी भर गया|
उन्होंने
नल खोल दिए, और पूरे घर में पानी भर गया, हर जगह, और वे फिर भी सफाई कर रही थी|
हाँ, अगले
दिन, हमें डॉक्टर को ज़रूर बुलाना पड़ा, वे आराम नहीं कर पा रही थीं|
वे छोटे
छोटे सुन्दर तोहफे बनाती थी| उन्हें कुछ करना ज़रूरी था, वे चुपचाप नहीं बैठ सकती
थी| वे और उनकी एक मित्र छोटे छोटे सुन्दर पेपर बैग बनातीं थी और उनमें बिस्किट
वगेरह डालकर, सबके लिए गिफ्ट बनाती थी| अगर २० लोग होते थे, तो वे २०० लोगों के
लिए गिफ्ट बनाती थी, क्योंकि वे कुछ न कुछ करती रहना चाहती थी|
मैं कहता
था, ‘आराम करिये! विश्राम करिये!’
‘मैं आराम कैसे कर सकती हूँ? मुझे यह
करना है|’
‘अच्छा, ठीक है, कर लीजिए|’
बहुत रोचक
था, बहुत अच्छे लोग थे, दिल के बहुत अच्छे थे|
एक तरफ वे
बहुत बुद्धिमान थे, लेकिन वे वास्तविकता से जुड़ नहीं पा रहे थे| वे दो
वास्तविकताओं को जोड़ नहीं पा रहे थे|
आप जानते
हैं, जब आमतौर पर संतों को कहते थे, कि किसी को निर्वाण प्राप्त हो गया है, तो वे
सबसे पहले पूछते थे, ‘क्या वे पागल हो गये
हैं?’ वे यह सवाल पूछते थे|
इसीलिये,
जो लोग कहते हैं, कि ‘मैं आपकी कुण्डलिनी जगा
दूंगा, आप बस यह कर लीजिए|’, ऐसे लोगों से दूर ही
रहना चाहिये| वे आपके अंदर बस कुछ केन्द्र जागृत कर देंगे, और आप कुछ ऊर्जा महसूस
करेंगे, और आप को एक-दो दिन अच्छा महसूस होगा, और बस उसके बाद फुस्स हो जाएगा|
फिर आप
बिल्कुल पागल हो जायेंगे| आप वास्तविकता से जुड़ नहीं पाएंगे|
इसलिए, अगर
कोई आपको वादा करता है, कि वे आपकी कुण्डलिनी जगा सकते हैं, और इस तरह की बातें,
तो आप उनसे सिर्फ इतना कहिये, ‘मैं पहले से ही जगा हुआ
हूँ, मुझे वहां नहीं जाना|’
इसलिए इस
तरह के लोगों से दूर ही रहना चाहिये|
यही उत्तम
है| देखिये, कैसे एक एक कदम से हम आगे बढ़ रहे हैं|पीछे मुड़कर देखिये, कि सुदर्शन
क्रिया से पहले आपके मन की दशा क्या थी? और अब क्या है? देखिये, आपने कितनी उन्नति
कर ली है| और फिर ‘खाली और खोखला ध्यान’, धीरे धीरे, एक एक कदम, जीवन अपने आप खिल रहा है| आप खुद को
पहले से ज्यादा खुश पा रहे हैं, है न?
आपमें से
कितने लोगों को ऐसा लगता है? (सबलोग अपने हाथ खड़े करते हैं)
देखा! हमें
ऐसे ही करना चाहिये| सहजता से!