"यदि आप ब्रह्मांड का सिद्धांत नहीं जानते तो आप स्वयं को भी नहीं जान सकते"
बैंगलोर आश्रम,8 दिसम्बर ,2009
आज का सत्संग ब्रह्मांड के रहस्यों की एक सुंदर झलक थी। ब्रह्मांड के रहस्य जो अनादि और अनंत है|
यह आचार्य रत्तानंदा(गुरूजी के पिता जी) के 86वें जन्मदिन के समारोह से शुरु हुआ| उन्होंने उस समय चल रहे टी टी सी के प्रशिक्षण के कई सौ उमीदवारों को प्यार और उत्साह भरे शब्दों से संबोधित किया|
पिताजी : आज मुझे गर्व है और मैं विनम्र हूँ :गर्व इस बात का है कि मैं एक महात्मा के निकट बैठा हूँ ,और विनम्र इस लिए हूँ कि उनके लाखों अनुयायियों में मैं एक हूँ| मैंने अपने जीवन में हमेशा कहा,"जीवन जीने के लिए है,आज मैं जानता हूँ,"जीवन केवल जीने के लिए है|"
एल.आई.एफ.ई.-जीवन प्यार (Love) है,निष्ठा(Integrity), भाईचारा (Fellowship) - सारे संसार से अपनापन, ई(Enlightenment)अध्यात्मिक जागरूकता है |मेरे लिए मेरी अध्यात्मिक जाग्रति मेरे गुरु और सिर्फ मेरे गुरु के कारण है| जीवन की प्रगति के लिए ,युवा रहो| यहाँ तक कि एक बच्चा भी आप को सिखा सकता है| हम युवा रह सकतें हैं और युवा रहना चाहिए क्यूंकि हम एक नवयुवक गुरु के अनुयायी हैं|
पिताजी के जन्मदिन का केक काटा गया|
श्री श्री रवि शंकर
"भाषण के चार स्तर हैं-पर,पश्यन्ति,मध्यमा,विकारी
जो भाषा हम इस्तेमाल करते हैं वह विकारी है। यह भाषा का सबसे प्रचलित रूप है| मनुष्य केवल चौथी प्रकार की भाषा बोलते हैं| विकारी से सूक्ष्म है मध्यमा| इसको बोलने से पहले ही आपको विचार के रूप में सतर्कता आ जाती है| जब आप इसे उस स्तर पे पकड़ लेते हो तो यह मध्यमा है| पश्यन्ति एकदम समझ आने वाला है| इसमे कुछ शब्द कहने की आवश्यकता नहीं होती| ’पर’ - अनकहा ,अप्रकट ज्ञान है जो शब्दों यां समझ से परे है|
सारा ब्रह्मांड गोलाकार है| यह न तो कभी शुरू हुआ था और न कभी इसका अंत होगा|यह अनादि और अनंत है|
तो ब्रह्मा (संसार को रचने वाले) का कार्य क्या है?यह कहा जाता है कि हर युग में बहुत से ब्रह्मा,विष्णु,और शिव होते हैं| समय और अन्तरिक्ष में ऐसा होता रहता है| तो इस सर्जन का स्रोत कहाँ है? परमे व्योम -आकाश से परे है| ज्ञान आकाश से परे है| ज्ञान पंच तत्वों से परे है|
ऋचो अक्षरे परमे व्योमन - वेदों का ज्ञान विकारी नहीं हैं| ये ज्ञान अन्तरिक्ष से परे है| सभी दैवी शक्तियाँ उस तत्व में निहित हैं जो कि सर्वव्यापी है| यह आकाश क्या है?आकाश को व्योम व्याप्ति कहा गया है जिसका अर्थ है सर्वव्यापी अर्थात सब जगह पाया जाने वाला| और वह क्या है जो आकाश से भी परे है? जो आकाश से परे है उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है| आकाश में सब कुछ विद्यमान है,सारे चार तत्व आकाश में हैं| सबसे स्थूल भूमि है,फिर जल,अग्नि,वायु और आकाश है| वायु अग्नि से सूक्ष्म है| आकाश सबसे अधिक सूक्षम है| वह क्या है जो आकाश से भी परे है? वे है मन,बुद्धि,अहम्,और महात्तत्व| इसे तत्त्व ज्ञान कहते हैं -ब्रह्मांड के सिद्धांत को जानना| जब तक आप ब्रह्मांड के सिद्धांतों को नहीं जानोगे तब तक आप स्वयं को नहीं जान सकते| जब आप आकाश से परे जाते हो यह एक अनुभवात्मक क्षेत्र है| सारा क्षेत्र आकाश के परे शुरू होता है|
प्राचीन संतों ने द्रव्य गुण सम्बन्ध यां पदार्थ और इसके गुणों के संबंधों के बारे में कहा है| पदार्थ और उसके गुणों को अलग करने को लेकर एक बहुत मनोरंजक विवाद है| यह सारा ज्ञान बहुत मज़ेदार है, और निष्कर्ष यह था कि तुम पदार्थ से गुण अलग नहीं कर सकते| क्या चीनी से मिठास हटाई जा सकती है?तो क्या यह फिर भी चीनी ही रहेगी?क्या गर्मी और रौशनी आग से अलग कि जा सकती है?और इसके बाद भी क्या वह अग्नि ही रहेगी ?
पदार्थ में गुण कहाँ से आतें हैं?पहले क्या आता है - गुण या वस्तु?बहुत सारे ऐसे प्रश्न आते हैं| जितनी गहराई में आप जाते हो आप पाते हो - परमे व्योमन.यस्मिन देवाधी विश्वे निषेदु - सभी देवी, देवता उस अनुभवात्मक क्षेत्र में रहते हैं|
ब्रह्मांड के इस आश्चर्यजनक रहस्योद्घाटन के बाद अर्चना शर्मा (Particle Physicist) जोकि सी ई र एन जनेवा स्वित्ज़रलैंड में हैं ने कुछ एल एच सी(large Hydron Collider)के द्वारा आकाश के कणों पर चल रहे प्रयोजनों के कुछ अंश दिखाए।
श्री श्री प्राय कहतें है "जहाँ विज्ञान समाप्त होता है वहां से अध्यात्म शुरू होता है|"आज के सत्संग में हमें आकाश से परे,अभिव्यक्ति से परे जो है उसके बारे में सुनने का अवसर मिला और विज्ञान के द्वारा अज्ञात की एक हल्कि झलक|
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