"जीवन भावनाओं और बुद्धि के बीच एक महीन संतुलन है"

प्रश्न : गुरुजी, कई बार आपने स्पष्ट किया है कि गुरु उपस्थिति है, केवल शरीर नहीं है। लेकिन जब मैं आपको देखता हूँ तो आपके अंदाज़ व कार्य से इतना मंत्रमुग्ध हो जाता हूँ| कृपया मुझे बताइए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर : तुम बस समझ लो की तुम अपने पास जो है उसी की सराहना करते हो| तुम भी सुंदर हो| हम में से हर एक में सौंदर्य है। हम सब में ये सभी गुण हैं| कुछ गुण अभी विकसित है और कुछ जल्दी ही प्रकट होंगे|

प्रश्न : गुरुजी, क्या आपकी कोई भी अधूरी इच्छाएं है?

श्री श्री रवि शंकर : (थोड़े विराम के बाद) हाँ, मैं करोड़ों लोगों को मुस्कुराते हुए देखना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि विश्व के ये सारे मतभेद समाप्त हो जाएँ| कोई युद्ध नहीं होना चाहिए। युद्ध का अर्थ है 'अधिनियम का सबसे बुरा कार्य (war - worst act of reason)| जो लोग युद्ध में हैं, वे उनके कार्यों को न्याय संगत ठहराते हैं। लेकिन यह वास्तव में तर्क का सबसे बुरा कार्य है| विश्व में आज कल घरेलू हिंसा बहुत अधिक मात्रा में है| यह सब रोकना होगा। यह तभी हो सकता है जब लोग और अधिक दयालु और समझदर बनें|

प्रश्न : जन्म और मृत्यु के चक्र को तोड़ने के लिए हमें मुक्ति प्राप्त करनी है तो प्रबुद्ध पुरुष(Enlightened Masters) पुनः अवतार क्यूँ लेते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : केवल एक लक्ष्य के साथ - जिन्हें ज़रुरत है उनकी मदद करने के लिए।

प्रश्न : क्या पार्किंसंस सिंड्रोम से ग्रस्त एक व्यक्ति के जीवन के शांतिपूर्ण अंत के लिए प्रार्थना करना उचित है?

श्री श्री रवि शंकर : जब भी कोई पीड़ित है, उसके आसपास के लोग उस व्यक्ति से अधिक पीड़ित होते हैं| एक मानसिक रूप से मंद बच्चे के परिवार को खुद बच्चे से ज्यादा भुगतना पड़ता है
| बच्चे का मन एक अलग ही दिशा में होता है| प्रकृति किसी भी मुश्किल और पीड़ा से गुज़रने की शक्ति देती है| एक जानवर को उतनी ही भारी पूंछ दी जाती है, जिसे वह संभाल सके|
जरा कल्पना कर के देखो एक चूहे की जिसको एक हाथी की पूंछ हो| प्रकृति बहुत बुद्धिमान है। वह आपको वही समस्या देती है जिसे आप संभाल सकें|

प्रश्न : गुरुजी, मैंने कहीं पढ़ा है कि ओम का जप महिलाओं के लिए अच्छा नहीं है
कृपया विस्तार से बताएं

श्री श्री रवि शंकर : शायद वह पुस्तक किसी पुरुष ने लिखी है!(हँसी) शायद उन्हें डर है कि इससे स्त्रियाँ पुरुषों की तुलना में अधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान, स्वतंत्र और मजबूत न हो जाएँ!
यह सब सच नहीं है| मध्य युग में कुछ लोगों ने ज्ञान को केवल अपने तक सीमित रखने के स्वार्थी उद्देश्य से ये संदेश फैलाया था|

प्रश्न : क्या दान मोक्ष प्रदान कर सकता है?

श्री श्री रवि शंकर : दान संपत्ति को शुद्धता प्रदान करता है|
घी भोजन को शुद्ध करता है|
ज्ञान बुद्धि को शुद्ध करता है|
भजन मन को शुद्ध करता है और सेवा कार्य को शुद्ध बनाती है|

प्रश्न : आत्म-सम्मान और अहंकार के बीच क्या अंतर है? अगर कोई कठोर शब्द सुनाता है तो पीड़ा होती है| ये अहंकार है या आत्म सम्मान?

श्री श्री रवि शंकर : तुम्हारा आत्म-सम्मान तुमसे कोई नहीं छीन सकता| यदि तुम्हें कुछ चुभता है तो वह अहंकार या तुम्हारी मूर्खता के कारण है। यदि कोई तुम्हारे साथ कठोर है तो चोट लगना स्वाभाविक है लेकिन तुम्हे उस से ऊपर उठना आना चाहिए| केवल ज्ञान से हम दुख की भावना से बाहर आ सकते हैं|

प्रश्न : यदि सब कुछ पूर्व-निर्धारित है, तो कर्म की क्या जरूरत है?

श्री श्री रवि शंकर : हम कर्म के बिना नहीं रह सकते| एक पशु के लिए सब पूर्व-निर्धारित है लेकिन मनुष्य के लिए नहीं| कुछ बातें पहले से तय हैं और कुछ नहीं| यदि सब कुछ पहले से तय होता, तो हम यहाँ भजन किस लिए कर रहे होते? तब तो ये एक जानवर होने से बिलकुल भिन्न नहीं होता|
मनुष्य की कुछ जिम्मेदारियां हैं और मनुष्य ज़िम्मेदारी लेता भी है| एक पशु को न तो कोई ज़िम्मेदारी और न ही उसकी कोई मांग है| मनुष्य की कुछ जिम्मेदारियाँ और कुछ माँग हैं। मनुष्य के पास स्वतंत्रता है और साथ ही बुद्धि भी है|

प्रश्न : लोग जैसे हैं वैसे उनका स्वीकार करने में और वे जैसे हैं वैसे उन्हें अंकित(label) करने में क्या अंतर है?

श्री श्री रवि शंकर : उत्तर तुम मुझे बताओ| अगर तुम्हें सचमुच जवाब चाहिए तो बैठ कर इसके बारे में सोचो| यदि तुम्हारे मन में यह सवाल उत्पन्न हो गया है, तो इसका जवाब भी आ जाएगा| तुम्हारे मन में स्वीकृति और लेबलिंग के लिए पहले ही कोई धारणा है| यही कारण है कि तुम दो अलग अलग शब्दों का प्रयोग कर रहे हो| तुम केला और banana के बीच का अंतर नहीं पूछोगे| तुम्हें अपने मन में पता है और एक छोटा-सा आत्मनिरीक्षण तुम्हे इसका जवाब दे देगा|

प्रश्न : मुझे ध्यान के दौरान कुछ तस्वीरें दिखतीं हैं
क्या ये ठीक है?

श्री श्री रवि शंकर : उस पर ध्यान देने की कोई जरूरत नहीं है| यह सिर्फ एक अनुभव है। क्रिया या ध्यान में आप कुछ सुन सकते हो, कुछ छवियों या रूपों को देख सकते हो, लेकिन ये सब आते जाते रहते हैं। यह तनाव मुक्त होने का ही एक रुप है|

प्रश्न : आपकी पुस्तकों में आप ने कहा है कि धर्म केले के छिलके की तरह है और आध्यात्मिकता अंदर का फल है
क्या इसका अर्थ ये है कि जो आध्यात्मिक है उसे धर्म से कोई लेना देना नहीं है?

श्री श्री रवि शंकर : धर्म अनिवार्य है| तुम्हारे जन्म के समय से धर्म तुम्हारे साथ है|
तुम्हारा नाम ही सूचित कर देता है कि तुम किस धर्म से हो| तुम इससे इंकार नहीं कर सकते|
आध्यात्मिकता सभी धर्मों को एकजुट करती है| ये सभी धर्मों का निचोड़ है|

प्रश्न : यदि एक रिश्ता आसानी से नहीं चल रहा है, तो क्या किया जाये?

श्री श्री रवि शंकर :तुम्हें रिश्ते में एक जगह छोड़नी चाहिए।किसी रिश्ते की मजबूती विपरीत परीस्थितियों को संभालने की क्षमता में निहित है। अन्यथा तुम्हें कैसे मालूम पड़ेगा कि तुम कितने मिलनसार, समझदार और विचारशील हो| ये गुण तुम्हारे जीवन में विपरीत परीस्थियों से गुज़रने पर ही खिलते हैं| ऐसी परिस्थिति को यह सब गुण उजागर करने के अवसर क़ी तरह देखो| तुम्हे दूसरे व्यक्ति को बदलने की बजाय अपने व्यक्तित्व के पूर्ण विकास करने पर ध्यान देना चाहिए|

प्रश्न : गुरुजी, हम किस हद तक एक रिश्ते को बनाए रखने के लिए झुक सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर : तुम बहुत ज्यादा भी झुक नहीं सकते। यदि अन्य व्यक्ति हिंसक हो रहा है या तुम्हारा लाभ ले रहा है तब तुम स्पष्ट रूप से प्रकट करो| इन सब से निपटने के लिए तुम अपनी भावनाओं का नहीं, बुद्धि का उपयोग करो|
संघर्ष हमेशा भावनात्मक होता है| संकल्प बौद्धिक है। भावनात्मक संघर्ष भावनाओं से नहीं संभाला जा सकता| इसी प्रकार एक बौद्धिक तर्क बुद्धि से नहीं निपटा सकते -उसके भावनात्मक पक्ष को ध्यान में लिया जाना चाहिए| अगर तुम ध्यान से देखोगे तो पाओगे कि एक बौद्धिक तर्क के पीछे भावनाओं की एक धारा है। जीवन भावनाओं और बुद्धि के बीच एक महीन संतुलन है|
कब किसका उपयोग करना है, यही असली बुद्धिमता है| और यह ज्ञान कैसे प्राप्त करते हैं? जवाब है ध्यान, ध्यान और ध्यान !

प्रश्न : हमें 'नाड़ी शोधन'(Alternate nostril) प्राणायाम के बारे में कुछ बताएं

श्री श्री रवि शंकर : हमारे शरीर में १,८२,००० नाड़ियाँ हैं| जब हम साँस लेते हैं ये सक्रिय हो जाती हैं|
इसीलिए हम जीवित है| जब हम बाईं नथना से साँस लेते हैं तो कुछ नाड़ियाँ कार्यान्वित होती हैं। दायीं नथना से साँस लेने पर बाकी की नाड़ियाँ सक्रिय होती हैं| जब हम वैकल्पिक नाड़ी(Alternate nostril) से सांस लेते हैं, हमारे शरीर में कुछ बदलाव आते हैं| हमारा शरीर शुद्ध होता है| ताज़ा ऊर्जा का प्रवाह तनाव दूर कर देता  है।शरीर में जैव रासायनिक परिवर्तन आते हैं! इससे विभिन्न ग्रंथियां बेहतर काम करती हैं व शरीर का कोई भी असंतुलन जड़ मूल से निकल जाता है
प्राणायाम के कई लाभ हैं

प्रश्न : गुरुजी, आज कल अखबार इतने अस्पष्ट और निरर्थक ख़बरों से भरे होते हैं?। क्या हम पर्यावरण पर एक पूरा पृष्ठ नहीं पा सकते?

श्री श्री रवि शंकर : क्या आप लेख लिखते हैं?मैं चाहता हूँ कि वे सब जिनके पास अच्छा लेखन कौशल है, एक साथ बैठें और लेखों का कुछ संग्रह करे।

"वह जो तुम व्यक्त नहीं कर सकते, प्रेम है
जो कि तुम अस्वीकार याँ त्याग नहीं सकते, सौंदर्य है
जिसे तुम टाल नहीं सकते, सत्य है"
~ परम पूज्य श्री श्री रवि शंकर

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