बेंगलोर आश्रम,14,दिसम्बर,2009
प्रश्न : गुरूजी, मैंने कहीं पढ़ा था मृत्यु के बाद यदि नर्क में जाते हो तो वहां एक पैन में तला जाता है| यह पढ़ने के बाद मुझे बहुत डर लग रहा है| कृपया इस बारे कुछ बताइए|
श्री श्री रवि शंकर : चिंता मत करो|जब आप यहाँ पर(इस पृथ्वी पर) स्वयं में स्थिर रहते हो तो कोई दर नहीं रह जाता| यह लोगों को सही रास्ते और अच्छे काम करने के लिए एक तरीका रहा| गलत काम करने पर मरने के बाद बहुत कष्ट भुगतना पड़ेगा - यह इसीलिए कहा जाता था कि लोग सही रास्ते पर रहे| कुछ हद तक इस कर्म को बदला जा सकता है| यदि आप कर्म को बिलकुल न बदल सकते तो साधना का कोई फायदा न होता| साधना और ध्यान करते रहो|
प्रश्न : किशोरों को कितनी आजादी देनी चाहिए और किस हद तक रोक लगानी चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : आप भूल चुके हो क्योंकि आपने वह उम्र पार कर ली है,आप को याद नहीं कि इस उम्र में क्या परेशानियाँ होती है| उनके शरीर में कितने हार्मोनल बदलाव आ रहे होते है| उनके से हाथ मिलाओ और विनम्रता से उनका मार्ग दर्शन करो|
किशोरावस्था के भावनात्मक विकार कुछ सालों के लिए ही होतें है| न केवल शरीरिक परन्तु मानसिक और भावनात्मक अशांति भी उनमें बहुत होती है| तीन साल की उमर से ले कर इर्ष्या,अधिकार जमाने की इच्छा जैसी भावनाएं किशोरावस्था तक जारी रहती है| कुछ लोग किशोरावस्था से बिलकुल बाहर नहीं आते| मानसिक अशांति उनके लिए बड़ी होती है| किशोरावस्था कठिन समय है |इस उम्र के बच्चों के साथ निभाने के लिए बहुत धैर्य की जरुरत होती है|इस तरह एक मित्र और दार्शनिक की भांति बहुत धैर्य से उन्हें कुछ आजादी दो और साथ ही साथ न कहने के लिए दृढ रहो| उस समय किसी तरह की ढील मत दो|
प्रश्न : गुरूजी, भक्ति और प्रेम में क्या अंतर है?
श्री श्री रविशंकर : भक्ति प्रेम की चरम सीमा है| 'सा त्वस्मिन परम प्रेम रूपा' -अवतार के लिए परम प्रेम ही भक्ति है| आप भगवान पे अधिकार नहीं कर सकते| साधारण प्रेम सम्बन्धों में आप किसी से प्यार करते हो और बदले में वैसा ही चाहते हो| आप भगवान पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते|उस अनंत चेतना के लिए प्रेम भक्ति है|
संत नारद कहते है,"योग चित्त वृत्ति निरोध" अर्थात योग का मतलब है जो आपके मन की प्रवृतियों को शांत करे| 'तथा द्र्श्तु स्वरूपे अवस्तनम 'अर्थात योग व्यक्ति का वह कौशल है जिस से वह दृश्य की बजाय द्रष्टा में स्थिर रहता है' - भीतर गहरे जा कर द्रष्टा में स्थिर रहना| ऐसे विचार से ध्यान लगने लगता है| तब समाधि आरम्भ होती है| आप का मन पूरी तरह से शांत हो जाता है| एक क्षण के लिए आप पूरी तरह अस्तित्वहीन और शून्यता का अनुभव करते हो|
प्रश्न : प्रदक्षिणा का क्या अर्थ है?
श्री श्री रविशंकर : प्रदक्षिणा का अर्थ है इर्दगर्द जाना| दक्षिण का अर्थ है कुशलता से कुछ पूरा करना| अंग्रेजी का शब्द (dexterous) 'डेक्सटरोस'संस्कृत के दक्षिणा शब्द से आया है जिसका मतलब है निपुणता| प्रदक्षिणा का अर्थ है एक बहुत ही बिशेष रूप से निपुण होना,एक बहुत ही निपुण तरीका जोकि कौशल और योग्यता से बहुत निपुणता से प्राप्त किया जाता है| प्र का अर्थ है इर्दगिर्द जाना| प्रदक्षिणा का अर्थ है निपुणता से इर्दगिर्द जाने की योग्यता प्राप्त करना|
जब आप किसी मंदिर के अंदर जाते हो तो मंदिर के निर्माण की व्यवस्था के अनुसार इसके तीन घेरे होतें हैं| पहला घेरा हर्बल बगीचा होता है,जिसमें खूब सारे पेड़ पौधे होतें हैं| ये पेड़ किस दिशा में लगाये जाएँ ये मंदिर के निर्माण की व्यवस्था के अधीन आता है| सभी पेड़ पौधे दिशायों और हवा के बहाव के अनुसार लगाये जाते हैं| कुछ औषिधि वाले पौधे,फूल और पेड़ बाहरी घेरे में लगाये जातें हैं और जब आप इस हर्बल खुशबू से निकलते हो तो इससे भावनात्मक और शारीरिक समस्यायों का इलाज होता है और शरीर के असंतुलन ठीक हो जातें हैं| यह प्राय एक किलोमीटर लम्बा रहता है और इस मे से गुजरते समय सारे शरीर में संचार बेहतर हो जाता है| शरीर के लिए जरुरी तेल और सुगंध खास कर पीपल के पेड़ की,शरीर के द्वारा सोख ली जाती है| यही अकेला पेड़ है जो चौबीसों घंटे आक्सीजन छोड़ता है| बाकि के पेड़ आधा समय आक्सीजन और बाकि के समय कार्बोनडैकसाइड छोड़ते है| पेड़ एक व्यक्ति की बहुत सारी समस्याएं दूर करतें हैं खास कर इन्फ्रटीलीटीकी|
प्रदक्षिणा इश्वर के लिए या अन्य किसी और कारण से नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लाभ के लिए की जाती है|
तब दूसरा घेरा आता है जिसमें बहुत से स्त्री - परुषों की मूर्तियाँ रखी रहती हैं| पुराने समय में वहां पर बैठ के कुछ देर के लिए ध्यान करने को कहा जाता था| इस तरह से पहला घेरा आपको शरीरिक रूप से बेहतर बनाता है| वहां की हवा में सांस लेने से वात,पित्त और कफ का संतुलन ठीक होता है| दूसरे घेरे में मन की सारी कल्पनाएँ ख़त्म होती हैं| तब अंत में आप मुख्य भाग में आते - पवित्र मुख्य स्थान - जहाँ आप आँखें बंद करके बैठते हो और शून्यता का अनुभव करते हो|
प्रश्न : मुझे नहीं पता मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है?
श्री श्री रवि शंकर : वह छोड़ दो जो तुम्हे थोड़े समय के लिए ख़ुशी देतें हैं और लम्बे समय तक दुःख देतें हैं| बस इतना अपने मन में रखो|
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality
प्रश्न : गुरूजी, मैंने कहीं पढ़ा था मृत्यु के बाद यदि नर्क में जाते हो तो वहां एक पैन में तला जाता है| यह पढ़ने के बाद मुझे बहुत डर लग रहा है| कृपया इस बारे कुछ बताइए|
श्री श्री रवि शंकर : चिंता मत करो|जब आप यहाँ पर(इस पृथ्वी पर) स्वयं में स्थिर रहते हो तो कोई दर नहीं रह जाता| यह लोगों को सही रास्ते और अच्छे काम करने के लिए एक तरीका रहा| गलत काम करने पर मरने के बाद बहुत कष्ट भुगतना पड़ेगा - यह इसीलिए कहा जाता था कि लोग सही रास्ते पर रहे| कुछ हद तक इस कर्म को बदला जा सकता है| यदि आप कर्म को बिलकुल न बदल सकते तो साधना का कोई फायदा न होता| साधना और ध्यान करते रहो|
प्रश्न : किशोरों को कितनी आजादी देनी चाहिए और किस हद तक रोक लगानी चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : आप भूल चुके हो क्योंकि आपने वह उम्र पार कर ली है,आप को याद नहीं कि इस उम्र में क्या परेशानियाँ होती है| उनके शरीर में कितने हार्मोनल बदलाव आ रहे होते है| उनके से हाथ मिलाओ और विनम्रता से उनका मार्ग दर्शन करो|
किशोरावस्था के भावनात्मक विकार कुछ सालों के लिए ही होतें है| न केवल शरीरिक परन्तु मानसिक और भावनात्मक अशांति भी उनमें बहुत होती है| तीन साल की उमर से ले कर इर्ष्या,अधिकार जमाने की इच्छा जैसी भावनाएं किशोरावस्था तक जारी रहती है| कुछ लोग किशोरावस्था से बिलकुल बाहर नहीं आते| मानसिक अशांति उनके लिए बड़ी होती है| किशोरावस्था कठिन समय है |इस उम्र के बच्चों के साथ निभाने के लिए बहुत धैर्य की जरुरत होती है|इस तरह एक मित्र और दार्शनिक की भांति बहुत धैर्य से उन्हें कुछ आजादी दो और साथ ही साथ न कहने के लिए दृढ रहो| उस समय किसी तरह की ढील मत दो|
प्रश्न : गुरूजी, भक्ति और प्रेम में क्या अंतर है?
श्री श्री रविशंकर : भक्ति प्रेम की चरम सीमा है| 'सा त्वस्मिन परम प्रेम रूपा' -अवतार के लिए परम प्रेम ही भक्ति है| आप भगवान पे अधिकार नहीं कर सकते| साधारण प्रेम सम्बन्धों में आप किसी से प्यार करते हो और बदले में वैसा ही चाहते हो| आप भगवान पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते|उस अनंत चेतना के लिए प्रेम भक्ति है|
संत नारद कहते है,"योग चित्त वृत्ति निरोध" अर्थात योग का मतलब है जो आपके मन की प्रवृतियों को शांत करे| 'तथा द्र्श्तु स्वरूपे अवस्तनम 'अर्थात योग व्यक्ति का वह कौशल है जिस से वह दृश्य की बजाय द्रष्टा में स्थिर रहता है' - भीतर गहरे जा कर द्रष्टा में स्थिर रहना| ऐसे विचार से ध्यान लगने लगता है| तब समाधि आरम्भ होती है| आप का मन पूरी तरह से शांत हो जाता है| एक क्षण के लिए आप पूरी तरह अस्तित्वहीन और शून्यता का अनुभव करते हो|
प्रश्न : प्रदक्षिणा का क्या अर्थ है?
श्री श्री रविशंकर : प्रदक्षिणा का अर्थ है इर्दगर्द जाना| दक्षिण का अर्थ है कुशलता से कुछ पूरा करना| अंग्रेजी का शब्द (dexterous) 'डेक्सटरोस'संस्कृत के दक्षिणा शब्द से आया है जिसका मतलब है निपुणता| प्रदक्षिणा का अर्थ है एक बहुत ही बिशेष रूप से निपुण होना,एक बहुत ही निपुण तरीका जोकि कौशल और योग्यता से बहुत निपुणता से प्राप्त किया जाता है| प्र का अर्थ है इर्दगिर्द जाना| प्रदक्षिणा का अर्थ है निपुणता से इर्दगिर्द जाने की योग्यता प्राप्त करना|
जब आप किसी मंदिर के अंदर जाते हो तो मंदिर के निर्माण की व्यवस्था के अनुसार इसके तीन घेरे होतें हैं| पहला घेरा हर्बल बगीचा होता है,जिसमें खूब सारे पेड़ पौधे होतें हैं| ये पेड़ किस दिशा में लगाये जाएँ ये मंदिर के निर्माण की व्यवस्था के अधीन आता है| सभी पेड़ पौधे दिशायों और हवा के बहाव के अनुसार लगाये जाते हैं| कुछ औषिधि वाले पौधे,फूल और पेड़ बाहरी घेरे में लगाये जातें हैं और जब आप इस हर्बल खुशबू से निकलते हो तो इससे भावनात्मक और शारीरिक समस्यायों का इलाज होता है और शरीर के असंतुलन ठीक हो जातें हैं| यह प्राय एक किलोमीटर लम्बा रहता है और इस मे से गुजरते समय सारे शरीर में संचार बेहतर हो जाता है| शरीर के लिए जरुरी तेल और सुगंध खास कर पीपल के पेड़ की,शरीर के द्वारा सोख ली जाती है| यही अकेला पेड़ है जो चौबीसों घंटे आक्सीजन छोड़ता है| बाकि के पेड़ आधा समय आक्सीजन और बाकि के समय कार्बोनडैकसाइड छोड़ते है| पेड़ एक व्यक्ति की बहुत सारी समस्याएं दूर करतें हैं खास कर इन्फ्रटीलीटीकी|
प्रदक्षिणा इश्वर के लिए या अन्य किसी और कारण से नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लाभ के लिए की जाती है|
तब दूसरा घेरा आता है जिसमें बहुत से स्त्री - परुषों की मूर्तियाँ रखी रहती हैं| पुराने समय में वहां पर बैठ के कुछ देर के लिए ध्यान करने को कहा जाता था| इस तरह से पहला घेरा आपको शरीरिक रूप से बेहतर बनाता है| वहां की हवा में सांस लेने से वात,पित्त और कफ का संतुलन ठीक होता है| दूसरे घेरे में मन की सारी कल्पनाएँ ख़त्म होती हैं| तब अंत में आप मुख्य भाग में आते - पवित्र मुख्य स्थान - जहाँ आप आँखें बंद करके बैठते हो और शून्यता का अनुभव करते हो|
प्रश्न : मुझे नहीं पता मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा है?
श्री श्री रवि शंकर : वह छोड़ दो जो तुम्हे थोड़े समय के लिए ख़ुशी देतें हैं और लम्बे समय तक दुःख देतें हैं| बस इतना अपने मन में रखो|
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality