मौन सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना है


प्रश्न : आपको मिलने के लिए इतना प्रयास क्यों करना पड़ता है? क्या गुरु ऐसा किसी कारण करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं तो सहज ही मौजूद हूँ। तुम्हे मेहनत करने में मज़ा आता है। मेहनत करके जो मिलता है उसका फल ज़्यादा आनंद देता है। इंन्सान आसानी से मिली हुइ वस्तु का आनंद नहीं ले पाता। हमारा अहंकार मुश्किल काम करने में गर्व अनुभव करता है। यह कहकर कि तुमने कुछ अलग याँ मुश्किल काम किया, तुम गर्व महसूस करते हो।
मैं यह नहीं कह रहा कि यह सही हैं याँ गलत, पर यह कुछ प्राकृतिक नियम हैं जिनके प्रति हमें सजग होना चाहिए। दिल पुराने की चाह करता है। हम पुरानी दोस्ती में गर्व महसूस करते हैं। मन नए की चाह करता है। हम नइ चीज़ें इस्तेमाल करना चाहते हैं। अहंकार मुश्किल याँ बिल्कुल अलग काम करके, याँ ऐसी वस्तु प्राप्त करने में जो किसी के पास न हो गर्व अनुभव करता है। जैसे माउन्ट एवरेस्ट चड़ना। और स्मृति बुराइ को पकड़ती है। यदि हमारे साथ दस अच्छे अनुभव हुए और एक बुरा, तो स्मृति उस एक बुरे अनुभव को पकड़ लेती है। आत्मा वो है जो इन सभ का साक्षी है, तुम्हारे भीतर का वो तत्व जो कभी नहीं बदलता। मन, बुद्धि, स्मृति याँ अहंकार में होने वाली किसी भी हलचल से अशुद्ध नहीं होता। उपनिष्दों में भी लिखा है कि अगर तुम एक बार अपने भीतर के उस तत्व की झलक पा लेते हो तो कोई भी घटना तुम्हें विचलित नहीं करती। इस का ज्ञान बाकी के स्तरों को भी प्रभावित करता है। जब तुम केन्द्रित होते हो तो बुद्धि और स्मृति तीव्र होते हैं, शरीर तेजस्वी बनता है।

प्रश्न : आध्यात्मिक मार्ग में कब चेष्टा करनी है और कब धैर्य रखना है, यह कैसे जाने?

श्री श्री रवि शंकर :
पथ पर शुरुआत करने के लिए चेष्टा करनी पड़ती है। जैसे यहाँ आने में कई चीज़े बाधा पैदा कर सकती हैं याँ तुम्हे विचलित कर सकती हैं। उस समय तुम्हे चेष्टा करनी पड़ती है और अपने संकल्प से तुम यहाँ आते हो। पर जब तुम एक बार पथ पर आ जाते हो तो तुम्हें विश्राम मिलता है।

प्रश्न : आध्यात्मिक पथ पर आने के बावजूद भी मुझमें ज़्वरता है। मैं इस ज़्वरता से कैसे मुक्त हो सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
थोड़ी ज़्वरता होना अच्छा है। पातान्जली योगसुत्र में भी बताया है कि थोड़ी ज़्वरता पथ पर प्रगति के लिए अच्छी है। उससे तुम आलस और विलंब में नहीं पड़ते।

प्रश्न : हर धर्म और जाति के लोगों को एक साथ कैसे ला सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
हम पहले ही यह कर रहे हैं और आगे भी यही करते रहना है। सब को एकसाथ बुलाकर सतसंग और सेवा करो।

प्रश्न: मौन और प्रार्थना में क्या संबंध है?

श्री श्री रवि शंकर :
मौन सबसे श्रेष्ठ प्रार्थना है। हम अकसर किसी भाषा में प्रार्थना करते है - हिन्दी, अंग्रेज़ी, जर्मन...। वास्तव में सभी का एक ही मतलब है। मौन उससे अगला कदम है। मौन वो भाषा है जिसे सारी सृष्टि समझती है। शब्दों में की गई प्रार्थना का मक्सद भी भीतर मौन पैदा करना है। शब्दों का उद्देश्य मौन पैदा करना और श्रम का उद्देश्य विश्राम देना है। गहरा विश्राम तृप्त करता है। वही तृप्ति और पूर्णता तुम्हें आनंदित करता है। प्रेम का मकसद तुम्हारे भीतर आनंद की लहर जगाना है।

प्रश्न : प्रार्थना और ध्यान में क्या अन्तर है?

श्री श्री रवि शंकर :
ईश्वर से माँगना प्रार्थना है और ईश्वर को सुनना ध्यान है।

प्रश्न: आलोचनात्मक प्रवृति को कैसे बदल सकते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जिस समय तुम इसके प्रति सजग हो जाते हो तुम इससे बाहर आ ही चुके हो। यह सजगता कि तुम आलोचनात्मक हो रहे हो, का मतलब ही यही है कि तुम उससे बाहर हो।

प्रश्न : गुरूजी, आप कहते हैं कि आपमे और मुझमे कोई फ़र्क नहीं है, पर मुझे ऐसी अनुभूती कैसे हो सकती है?

श्री श्री रवि शंकर :
मौन और सेवा में।

प्रश्न : मन पैसे, ग्लैमर और शोहरत के पीछे भागता है। क्या यह सभ ज़रुरी है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुमने पहले यह समझा कि मन भाग रहा है, तभी तो तुम्हें यह प्रश्न सूझा। यह प्रश्न मैं तुम पर छोड़ता हूँ। यह बहुत ही व्यक्तिगत है। मेरे हिसाब से यह ज़रुरी नहीं है पर मेरा उत्तर तुम्हें संतुष्ट नहीं करेगा। यह अपने भीतर से उठना चाहिए। नहीं तो यह केवल मूड बनाने जैसा ही होगा। मन का एक हिस्सा कहेगा मुझे यह सब नहीं चाहिए पर कहीं तो यह खटकता रहेगा। इस तरह मन में एक युद्ध चलता रहता है। पर जब तुम यह देखते हो कि यह सब होने के बावजूद भी लोग अन्दर से खोखले हैं तो सहज ही यह समझ में आता है कि इन सब में कोई महत्व नहीं है। तब न तो इसके लिए लालसा तंग करती है, और ना ही तुम इसको छोड़ने का प्रयास करते हो। जब तुम यह अनुभव करते हो कि सुर्य की मौजूदगी में मोबत्ती की आव्श्यकता नहीं, तो वह अनुभव, तुम्हारा सच्चा अनुभव है। जब तुम ऐसी भ्रम पैदा करने वाली चीज़ों के पीछे भागते हो तो तुम पाते हो यह केवल तुम्हें पीड़ा ही दे रहा है , और वो नहीं जो तुम असल में चाहते हो। तब भीतर से ऐसी उर्जा जगती है कि इन सब के होने याँ ना होने का तुम पर कोई प्रभाव नहीं होता।

प्रश्न : कुछ बुरा होने पर जैसे किसी करीबी इंसान की मृत्यु, हम अपने मन को कैसे शांत रख सखते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
उठ कर देखो यह सब एक सपना है। सपने में कुछ अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। बुद्धिमान व्यक्ति सपने में हुइ घटना के किए दुखी नहीं होते।

प्रश्न : गुरुजी, हम कैसे जाने कब वैराग्य इस्तेमाल करना है और कब दया?

श्री श्री रवि शंकर :
जब किसी चीज़ के प्रति लगाव परेशान करे तो वैराग्य और बाकी हर समय करुणा का इस्तेमाल करो। असल में तुम दया का इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि याँ तो तुम दयालु हो, याँ नहीं हो। यह किसी औज़ार की तरह नहीं है जिसका तुम कभी इस्तेमाल कर सकते हो और कभी नहीं।

प्रश्न : सफ़ेद चीनी और चाय का क्या वैकल्पिक उपाय(alternative) है।

श्री श्री रवि शंकर :
किसी भी धारणा पर एक ज़रुरत से ज़्यादा मत अड़ो। तुम्हारे शरीर में खुद को ढालने की योग्यता है। गुड़ का प्रयोग करना श्रेष्ठ है| पर ऐसा हर समय संभव नहीं भी हो सकता। जैविक खाना सबसे बेहतर है पर ऐसा नहीं कि कुछ और खाते ही तुम बीमार पड़ जओगे। जो लोग खाने के लिए बहुत चिंतित रहते हैं उनका प्रतिरक्षा प्रणाली(immune system) इतना मज़बूत नहीं रहता। इसलिए कभी कभी प्रतिरक्षा प्रणाली को काम करने का मौका भी देना चाहिए। पर ऐसा करना अपनी आदत नहीं बनानी चाहिए। एक बीच क रास्ता चुनो।

प्रश्न: हमे कैसे पता चलता है कि हम बीच के रास्ते पर हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
जब तुम गिरते नहीं हो तो तुम मध्य मार्ग पर होते हो।

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