"खुशी केवल तुम्हारे मन पर आधारित है"
प्रश्न : गुरुजी आप इतनी कम नींद लेते हैं तो क्या आप को इससे कोई परेशानी नहीं होती?
श्री श्री रवि शंकर : एक योगी ऐसी बातों की चिन्ता नहीं करता। योगा से कुछ भी मुमकिन है।
प्रश्न : भक्ति के अनुभव के लिए मुझे कहाँ जाना होगा?
श्री श्री रवि शंकर : भक्ति के लिए कहीं जाने की ज़रुरत नहीं। भक्ति केवल स्मरण से ही उजागर हो जाती है। तुम कहीं भी हो याँ किसी भी काम में लगे हो, तुम भक्त हो सकते हो।
प्रश्न : ’आर्ट ऑफ लिविंग’ से मुझे बहुत कुछ मिला है। मैं कैसे योगदान कर सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर : तुम आश्रम में किसी भी समय आकर सेवा कर सकते हो।
प्रश्न : मेरा अतीत मुझे बहुत परेशान करता है। मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : जो हुआ सो हुआ। किसी को माफ करना भी भूल जाओ। माफ करने के लिए भी तुम्हें याद करना पड़ता है। उसे एक सपने की तरह देखो। किसी भी बाधा को तुम्हे आगे बड़ने से मत रोकने दो।
प्रश्न : मैं जहाँ भी जाता हूँ दुख ही अनुभव करता हूँ। मुझे कहाँ जाना चाहिए और कया करना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : अपने भीतर - अन्तरमुख।
प्रश्न : मैं सी.डी से ध्यान करते समय आपके निर्देशों का अनुसरण नहीं कर पाता।
श्री श्री रवि शंकर : ध्यान में मुझे सुनने की कोशिश मत करो। जो होता है, उसे होने दो। उसे एक सलाह की तरह लो। तुम ध्यान में बैठे हो, यही बहुत है।
प्रश्न : जीवन की परिभाषा क्या है? हुम एक खुशहाल जीवन के लिए क्या कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: ’आर्ट ऑफ लिविंग’ इसी के बारे में है। जीवन परिभाषा से परे है। जीवन इतना विशाल है कि कुछ शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। खुशी हमारा स्वभाव है पर उसकी खोज में कहीं हम वो खो देते है। आध्यात्मिकता का अर्थ है ऐसी मुसकान लाना जो तुमसे कोई ले नहीं सकता। एक बार यह पा लेने के बाद तुम्हे सारा अतीत एक सपने जैसा लगता है। वर्तमान क्षण मे खुशी ही है और अपनी खुशी के लिए तुम दूसरों पर निर्भर नहीं हो। खुशी केवल अपने मन पर निर्भर करती है। जब मन अतीत की छापों और भविष्य की चिन्ता से मुक्त होता है, तो खुशी इसी पल मौजूद है।
प्रश्न : मैं जन्म से मांसाहारी हूँ और मुझे यह समझ में नहीं आता कि माँस क्यों नहीं खाना चाहिए?
श्री श्री रवि शंकर : थोड़ी देर के लिए आध्यात्म के बारे में भूल जाओ। एक खोज के अनुसार एक किलो माँस पैदा करने में जितनी खपत होती है उससे ४०० व्यक्ति भोजन कर सकते हैं। एक और खोज के अनुसर अगर केवल १० प्रतिशत लोग मांसाहार छोड़ दें तो ग्लोबल वार्मिंग की समस्या खत्म हो जाएगी। इस आधार पर इस ग्रह के लिए और तांकि सब लोगों को भोजन मिल सके, इस के लिए मांसाहारी भोजन की खपत कम करना ज़रुरी है। भगवान ने हमें धरती की और धरती पर रहने वालों की देखभाल करने की होश तो दी है।
हम जितना भोजन उगाते हैं उससे ४० - ५० प्रतिशत अधिक इस्तेमाल करते हैं। ध्यान के साथ साथ पेड़ उगाना, जानवरों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी और शाकाहारी होना भी आध्यात्म का हिस्सा है।
प्रश्न : क्या कभी ऐसा होगा कि दुनिया में हिंसा ना हो और सिर्फ शांति ही हो?
श्री श्री रवि शंकर : हाँ, इसी के लिए हमे कार्य करते रहना चाहिए। सारी दुनिया एक ही परिवार है - वासुदेव कुटुम्बकम।
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