"प्रकृति तुमसे प्रेम करती है"

बैंगलोर आश्रम, भारत
१६.०१.२०१०

प्रश्न : जितना लगाव मैं आपके लिए महसूस करता हूँ, क्या आप वैसा अनुभव करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
उससे भी ज़्यादा। कनेक्शन का मतलब है कि वहाँ एक अंतर है। मैं तो तुम से अलग ही नहीं महसूस करता।

प्रश्न : यदि सत्य विरोधाभासी है, तो सत्य को कैसे खोजें?

श्री श्री रवि शंकर :
सत्य से ना तुम बच सकते हो और ना ही उसका सामना कर सकते हो। सत्य सामने आ ही जाता है। झूठ बोलने के लिए तुम्हें उसका निर्माण करना पड़ता है पर सत्य के लिए कोइ श्रम नहीं करना पड़ता।

प्रश्न : समर्पण के बाद भी समस्याएं मुझे तंग करती हैं। मुझे क्या करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
यह ऐसा है जैसे कुछ देने के बाद भी वो तुम्हारे पास है। जितनी बार तुम्हे समस्या परेशान करती है, तुम उसका समर्पण करते जाओ।

प्रश्न : एक आदर्श भक्त के क्या लक्षण हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम हो। इसमे तुम संशय मत करो। तुम जो भी विशेषता अपने में देखना चाहते हो, वो तुम अपने में विकसित कर सकते हो।
१. जिसका मन शांत हो।
२. जो ज्ञान में रहना चाहता है। जिसे कुछ ज्ञान है और वो अधिक ज्ञान पाना चाहता हो।
३. किसे के प्रति नफ़रत की भावना ना रखता हो।
४. दया भाव रखता हो।

प्रश्न : आप हमसे क्या उम्मीद रखते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम हमेशा खुश रहो, ज्ञान में रहो, सेवा करते रहो और पथ पर दृड़ रहो। यह मेरी उम्मीद नहीं क्योंकि मैं जानता हूँ तुम ऐसा ही करोगे। पर मैं चाहता हूँ कि तुम बहुत जल्दी ऐसा करो।

प्रश्न : सच बोल के बाहर समस्या हो जाती है और झूठ बोलने से अपने भीतर। ऐसे में क्या करें?

श्री श्री रवि शंकर :
समस्या का समाधान। समस्याओं को चुनौतियों के रूप में लो। जो बहादुर है उसे चुनौती पसन्द होती है और तुम बहदुर हो।

प्रश्न : गुरुजी, जब हम ’जय गुरुदेव हैं’ कहते हैं , हम सामने वाले व्यक्ति में गुरु तत्व को ध्यान में रखते हैं याँ हम अपने में गुरु को याद करते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
मैं इसे तुम पर छोड़ता हूँ, जो भी तुम चाहते हो। इसके बहुत अर्थ हैं - नमस्ते, हैलो, तुम कैसे हो, धन्यवाद। इसमे सब कुछ आ जाता है। यह एक आदत की तरह हो गया है। मैं यह तुम पर छोड़ता हूँ, अगर तुम्हारी इच्छा है तो ही कहो।

प्रश्न : क्या शरीर और आत्मा के परे भी मेरा अस्तित्व है? अगर है तो किस रूप में?

श्री श्री रवि शंकर :
आत्मा के परे कुछ नहीं है। शरीर के परे? हाँ। अभी के लिए इस को यहीं पर छोड़ते हैं। नहीं तो यह सिर्फ़ एक और धारणा बन जाएगी। जब तुम धीरे धीरे खुद अनुभव करते हो कि तुम सिर्फ़ शरीर नहीं पर तुम्हारा अस्तित्व इससे ज़्यादा है तो तुम खुद को भी पहचान लेते हो।

प्रश्न : गुरुजी, ऐसे कई पल होते हैं जब मैं बहुत उत्साहित और खुश होता हूँ। पर दो समस्याएं है - ऐसी स्थिति में मैं चीजों को भूल जाता हूँ जैसे मेरा समान याँ कोई ज़रुरी मुलाकात। दूसरा मैं डरता हूँ कि अगर ऐसा चलता रहा तो कया होगा। यह डर विशेषकर मेरी पत्नी को है।

श्री श्री रवि शंकर :
मुझे याद है एक कोर्स में एक सज्जन ने अपनी पत्नी के साथ भाग लिया। हर ज्ञान वाणी(knowledge point) में वे एक दूसरे को कहते "देखा मैने भी ऐसा ही कहा था। मैं कब से यही बता रहा हूँ तुम्हे।" हमे उन्हे बताना पड़ा कि यह ज्ञान तुम्हारे लिए है और इसलिए नहीं के तुम इसको अपने साथी पर लाद दो। तुम अपने भीतर देखो और जहाँ किसी सुधार की ज़रुरत है वहाँ ज्ञान को इस्तेमाल करो। प्रेम, शांति और दान अपने घर से शुरू होता है। तो पहले अपने से शुरू करो।

प्रश्न :मैं शारीरिक रूप से कई लोगों से आकर्षित हो जाता हूँ। यह प्राकृतिक है याँ इसके लिए मुझे कुछ करना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
अगर तुम अपने मन को देखो तो इसमे कितने ही विचार आते हैं। हर विचार का अनुसरन करने की कोशिश में व्यक्ति पागल हो सकता है। तुम कितने लोगो से आकर्षित होते हो और कई लोगों से प्रतिकर्षित। तुम मन में आने वाले हर विचार का अनुसरन कर ही नहीं सकते। तुम्हे अपनी समझ से काम करना है। पहले देखो कि क्या सही है और क्या गलत, क्या तुम्हे विकास की ओर ले के जा रहा है और क्या तुम्हारे विकास में बाधक है, और क्या स्थायी है और क्या बदल रहा है। यह समझना ही विवेक है। हमे अपने काम इसी विवेक से करने है। नहीं तो तुम बिना सोच समझ के काम करते हो और ऐसा कार्य तुम्हे दुख ही देता है।

प्रश्न : हम आपको इतनी चिन्ताएं समर्पण करते है। आप वो सब किसे देते हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
इसकी चिन्ता तुम मत करो। मेरे पास प्रोसेसिन्ग यूनिट है जो सब कचरे को खाद बना देती है।

प्रश्न : अगर आत्मा न खत्म होती है और ना ही पैदा होती है तो संसार में इतनी नई आत्माएं कहाँ से आती हैं? जनसंख्या कैसे बड़ती है?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम यह भूल रहे हो कि कितने जानवर भी खत्म हो रहे हैं। बाकि का उत्तर तुम सोच ही सकते हो।

प्रश्न : गुरुजी, जब मैं समस्या मे होता हूँ तो साधना करता हूँ। पर जब समस्या दूर हो जाती है तो मैं पथ से दूर हो जाता हूँ। इसके लिए मैं क्या करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम देखो इसका क्या करना है। एक कहावत है
"दु:ख मे सिमरन सब करे, सुख मे करे ना कोई।
सुख मे सिमरन जो करे, सो दु:ख काहे को होए॥
यह हम पर भी लाघु होती है। हम खुशी मे भी प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया, साधना करते हैं तो वो सुख बना रहता है।
आज ही अख़बार में था कि डिपरैशन का पूरा इलाज केवल ध्यान से ही हो सकता है। एन्टी डिपरैशन दवाइयों से पूरा ईलाज नहीं होता और कुछ समय में डिपरैशन वापिस आ जाता है। कुछ समय के लिए लगता है कि डिपरैशन ठीक हो गया है पर बाद में डिपरैशन ज़्यादा प्रबलता से वापिस आता है। आज कई लोग डिपरैशन से पीड़ित है और नहीं जानते ऐसा कुछ भी है जिससे वो डिपरैशन से बाहर आ सकते हैं। इसलिए ज़रुरी है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक यह पहुँचाएं।

प्रश्न : यहाँ आकर हमें जितनी खुशी और शांति मिली है उसका अनुभव इससे पहले कभी नहीं किय था। हम यही खुशी और शांति कश्मीर में कैसे ले के आएं?

श्री श्री रवि शंकर :
तुम भी इस पर सोचो और हम भी सोचते हैं। अच्छा होगा अगर तुम जैसे युवक यहाँ आएं और इस अनुभव के बाद वपिस जा कर वहाँ भी यह खुशी और शांति फैलाएं। अगर तुम सब ऐसा निश्चिय कर लेते हो तो हम कश्मीर में ’आर्ट ऑफ़ लिविन्ग’ ज़रुर शुरु करेंगे।

प्रश्न : ऐसा कहते हैं कि अगर कोई दु:ख अनुभव करता है तो व्यक्ति के पिछ्ले जन्म के कर्म जिम्मेदार हैं। आप इसके बारे में बताएं।

श्री श्री :
'पाप क्या पुण्य क्या तू भूलादे, कर्म कर फल की चिन्ता तू मिटादे। इसके बारे में ज़्यादा मत सोचो। अगर कुछ गलत हो गया तो हो गया। अब क्या कर सकते हो वो देखो। क्या ठीक कर सकते हैं, उसके बारे में सोचो। कर्म के बारे मे ’मौन की गूँज’ पुस्तक में कहा है मैने।

प्रश्न : गीता ज्ञान को जीवन में कैसे उतारें? मुझे ऐसा करना मुश्किल लगता है।

श्री श्री :
यह बिल्कुल मुश्किल नहीं है। सहज रहो। जीवन जैसे आता है वैसे उसको स्वीकार करो और आगे बड़ते चलो। ’आर्ट ऑफ़ लिविन्ग’ के ज्ञान के सूत्र जीवन में से ही लिए गए हैं। यह ज्ञान सहज ही जीवन में उतरता है। थोड़ा योगा, प्राणायाम और ध्यान करो, तुम देखोगे सहजता से ही जीवन परिवर्तित हो गया है।

art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality