२२ मई, २०११, बैंगलुरू आश्रम
प्रश्न:जय गुरुदेव, गुरूजी मैं इस संसार को मन, बुद्धि, स्मृति, अहंकार इत्यादि से जानता हूं , परन्तु इन ६ स्तरों को छोड़ने पर ही, मैं अपने वास्तविक स्वयं को जान सकता हूं | मेरा प्रश्न है, कि इन ६ स्तरों को छोड़ने के उपरांत हम अपने स्वयं के सांतवे स्तर में कैसे स्थापित हो सकते है ?
श्री श्री रवि शंकर:आपको इन ६ स्तरों को छोड़ना नहीं है; आपको शरीर, मन, बुद्धि को छोड़ना नहीं हैं | आपको इनके साथ रहकर स्वयं को समझना है |शरीर, मन, स्मृति, बुद्धि और अहंकार हैं और उन्हें वहां रहने दीजिये |प्रतिदिन काम से पहले और काम के बाद कुछ समय के लिये ध्यान करें और उसमें विश्राम का अनुभव करें | जब आप ध्यान करते है और आपका मन शांत हो जाता है, फिर वह शांत मन भगवान का निवास स्थान हो जाता है | ऐसे आप भगवान को नहीं जान सकते पर भगवान के साथ एक हो सकते है | जब आप शांति और खुशी का अनुभव करते है और गहन ध्यान में चले जाते है तो फिर आपको अनुभव होने लगता है कि ‘ मैं ही सबकुछ हूं, और सिर्फ मैं ही हूं’ |
प्रश्न: जय गुरुदेव , गुरुदेव मैने कई आपकी, सत्य साईं बाबा और ओशो की पुस्तके पढ़ी है मुझे उनमे कोई भिन्नता नहीं लगी, वे सभी प्रेम की बात करते है और मुझे लगता है कि वे सिर्फ भिन्न भौतिक अभिव्यक्तियां है |मैं ओशो और उनके जोरबा बुद्ध के सिद्धांत से काफी प्रभावित हुई हूं | मैं इस पर आपकी राय जानना चाहती हूं |सांसारिक तत्व और आध्यात्म को साथ में रखकर उनके द्वारा की गई चर्चा मुझे बहुत पसंद है, आप इस पर क्या सोचते है, मैं उसे सुनना चाहती हूं |
श्री श्री रवि शंकर: हां, वे एक महान वक्ता थे और काफी अच्छा बोलते थे | उनका गहन बुद्धिजीवी दृष्टिकोण था और वह बहुत अच्छा हैं, लेकिन वहां मंत्रो का ज्ञान और मंत्रो की संस्कृति मौजूद नहीं थी | गौतम बुद्ध ने कहा कुछ नहीं है और सबकुछ कुछ नहीं है और उन्होंने कहा मैने परम सत्य की खोज की,मैंने आत्मा की खोज की परन्तु मैने पाया कि कोई स्वयं या आत्मा नहीं है | मैने फिर और खोज की और अंत में पाया कि कोई आत्मा नहीं है |
सनातन धर्म में आदि शंकराचार्य ने कहा , किसने खोज करी? किसे कुछ नहीं मिला ? वही आत्मा है |यह सिक्के के दो पहलु के जैसे है | वे खालीपन के बारे में बात करते है और दूसरी ओर वेदांत सम्पूर्णता के बारे में बात करता है | कोई से कोई नहीं पहला कदम है और गौतम बुद्ध वहां रुक जाते है और वेदांत आपको कोई नहीं से सबकुछ की ओर ले जाता है |
प्रश्न: प्रिय गुरूजी ऐसा कहा जाता है कि आत्मा का पुनर्जन्म के द्वारा पुनर्नवीनीकरण होता है,और इस गृह की जनसंख्या में निरंतर बढोत्तरी हो रही है, क्या दुसरे गृह के लोग पृथ्वी में जन्म लेकर हमारे साथ जुड रहे है या अन्य जीव मानव रूप में जन्म ले रहे है ?
श्री श्री रवि शंकर: अन्य जीव! दोनों संभव है, दोनों बाते हो रही है |
प्रश्न: गुरूजी, डॉ स्टीफेन हाकिंग का हमारे वर्तमान मानव जीवन पर दृढ़ विश्वास है , वे कहते है कि इस जीवन और आस्तित्व के परे कुछ भी नहीं है | मुझे नहीं पता कि उन्होंने धर्म के बारे में कितना अध्ययन किया है परन्तु मुझे पता है कि आपने भौतिक शास्त्र पढ़ा है, इस पर आप उनको क्या उत्तर देंगे ?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी विज्ञानिक ऐसा नहीं कहेगा कि ‘ उसे सब पता है और जो कुछ यहां पर है वहीं सबकुछ है और उससे परे कुछ भी नहीं है’| डॉ स्टीफेन हाकिंग ने यह नहीं कहा कि जो भी यहां है वही अंतिम है |उन्होंने कहां कई स्तर और पहलु हैं | हमारा मस्तिष्क आवृत्ति विश्लेषक होता है और वह कुछ ही आवृतियों का विश्लेषण कर सकता है| अभी यहां पर कितनी अलग अलग आवृतियां है | कोई भी विज्ञानिक आस्तित्व के विभिन्न स्तर और कई और दुनियां की बात को नहीं नकारेगा, क्योंकि बहुत सारी लहरें या तरंगे यहां पर हैं ! आप जिसे देखते है वह तरंगों का कृत्य है जिसमें असीमित तरंगे होती है, एक के भीतर एक और उनके भीतर अनेक | सूक्ष्म जीव से ब्रह्माण्ड तक कई दुनियां है और समय के कई स्तर है |
प्रश्न:जय गुरुदेव, रामकृष्ण परमहंस एक महान साधक थे, उन्होंने जीवन भर साधना की, फिर भी अंत में उन्हें क्यों अत्यंत पीड़ा सहन करनी पड़ी ?
श्री श्री रवि शंकर: कई बार गुरु शिष्यों के कर्म अपने पर ले लेते हैं | शिष्यों के कर्मो के कारण उन्हें शारीरिक पीड़ा सहन करनी पड़ी | यह कोई जरूरी नहीं है कि हर किसी को उस पीड़ा से गुजरना पड़ता है, लेकिन कुछ गुरु उसे भी चुनते है|
प्रश्न: कई बार मैं अपने काम के कारण थक जाता हूं, और फिर मैं अपने आप पर से आत्म नियंत्रण खो देता हूं| मैं स्वयं पर कैसे नियंत्रण पा सकता हूं क्योंकि इसका परिणाम मेरे लिए हानिकारक है?
श्री श्री रवि शंकर: जब आप थक जाते है तो बैठ कर ध्यान करे | प्राणायाम और ध्यान करे, इससे आपकी थकावट दूर हो जायेगी |
प्रश्न: गुरूजी मैंने देखा हैं जब भी कोई आपके फोटो पर माला पहनाता है तो वह गिर जाती है, ऐसा क्यों है?
श्री श्री रवि शंकर: माला पहनाने की कोई आवश्यकता नहीं है, मैं उसे आप को वापस कर देता हूं |
प्रश्न: गुरूजी, ऐसा कहां जाता है कि मृत्यु के समय मन में जो अंतिम विचार या स्मृति होती है,उसी पर अगला जन्म निर्भर होता है | मरे मन में इस भौतिक संसार का बहुत प्रभाव है, मैं ऐसा क्या करू कि अंतिम समय में, आपको ही याद करू ?
श्री श्री रवि शंकर: आपको अपने जीवन के अंतिम क्षण तक रूकने की जरूरत नहीं है| प्रत्येक क्षण को खुशी और आनंद के साथ जियें और सेवा, साधना और सत्संग को करे |
प्रश्न: आदरणीय गुरूजी मैं अपने देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत चिंतित हूं जो अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के कारण प्रभावित है, जापान का उदाहरण देखें तो परमाणु उर्जा भी बहुत घातक है| हमारा देश ऐसी परिस्थिति में कैसे आगे बढ़ सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: इसके लिए आम जनता में जागरूकता लानी होगी | हर किसी को पर्यावरण, लोगों के लिए और पूरे देश के लिये सोचना होगा | जब हर किसी को इसके लिये चिंता होगी तो निश्चित ही बदलाव आएगा |
प्रश्न: जय गुरुदेव, क्या भगवान होता है, उस पर कैसे विश्वास किया जाए ?
श्री श्री रवि शंकर: आपने सड़कों पर गाड़ियों को चलते हुये देखा है? उसके भीतर बैठकर उसे कोई चलता हैं या वह अपने आप ही चलती हैं | उसका एक वाहन चालक होता हैं, लेकिन गाड़ी के चलते समय हर समय आपको चालक दिखाई नहीं देता | ठीक हैं !
प्रश्न : गुरुजी हर कोई मोक्ष के लिए भाग रहा है मुझे भी बताएं मोक्ष क्या है ?.
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप भी मोक्ष के लिए भाग रहे है ? यदि आप उसके लिए नहीं भाग रहे है तो क्या समस्या है जो लोग मोक्ष के लिए भाग रहे है, मैं उन्हें बताऊंगा, आप उसकी चिंता मत करो |
प्रश्न : गुरुजी मेरे पास ३० एकड़ कृषि भूमि है जिसमें अंतिम छोर की तरफ भगवान गुरुदेव दत्तात्रेय और साईं बाबा का एक छोटा सा मंदिर है, पश्चिम दिशा की भूमि का फैलाव उत्तर से दक्षिण की ओर है और पूर्व से पश्चिम की ओर एक ढलान है |मेरे वास्तु विशेषज्ञ कहते है कि ऐसी भूमि का होना बहुत खतरनाक है और वे मुझे सलाह देते है कि मैं उसे बेच दूं | गुरुजी मुझे क्या करना चाहिए ?
श्री श्री रवि शंकर: ऐसी भूमि का आस्तित्व इस गृह पर है हर भूमि में कुछ सकारात्मक होता है और कुछ ऐसा भी है जो इतना सकारक नहीं है फिर भी कोई बात नहीं | आप ॐ नमः शिवाय या गुरु ॐ का जप करें और फिर सारे नकारात्मक प्रभाव गायब हो जायेंगे |
प्रश्न : प्रिय गुरुजी मेरे पति मुझसे बहुत उंची आवाज में बात करते है और मुझ पर चिल्लाते है जब कि मैं उनसे समान्य स्वर में बात करती हूं| वे दूसरों से अच्छे से बात करते है , मुझे क्या करना चाहिए ?.
श्री श्री रवि शंकर: इसका अर्थ वे आप से सबसे अधिक प्रेम करते है उन्होंने यहीं पर आपमे और दूसरों में अंतर बना दिया है | अब तक आप ने संभाला है और आप को संभालना आता है इसीलिए आप उन्हें संभालें | उनसे बहुत अच्छे शब्द बोलने की उम्मीद न करें और कम से कम आप अच्छे शब्द बोलें और उन्हें कठोर ही रहने दें | इसे एक तरफा होने में भी कोई बात नहीं , फिर इससे सामंजस्यता निर्मित होती है|
प्रश्न : गुरुजी ज्ञान का पथ बहुत कठिन है;क्या भक्ति के द्वारा ज्ञान प्राप्त हो सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: निश्चित ही हां |
प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैं पूरी दुनिया से अपनी तुलना करना कैसे छोडू ?.
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप के पास इतना समय है कि आप अपनी तुलना पूरी दुनिया से कर सकते है | मेरे पास इतना समय नहीं है | यदि आप के पास इतना समय है तो आप कुछ सृजनात्मक कार्य करें | अपनी दुनिया से तुलना करने का अर्थ समय की बर्बादी है |
प्रश्न : गुरुजी हमारे धर्मं ग्रंथों में चार बातें जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष करने की बात कही जाती है और काम, क्रोध, मोह और अहंकार को त्यागने की बात कही जाती है| ऐसा क्यों है कि काम को दोनों में ही स्थान मिला है ?.
श्री श्री रवि शंकर: किसी भी बात को अधिक करना बुरा होता है और उसका सही मात्रा उपयोग ठीक होता है| जैसे भोजन में नमक की मात्रा होती है वैसे ही पर्याप्त मात्रा में नमक ठीक होता है और अधिक मात्रा में उपयोग ठीक नहीं है |
प्रश्न :ज्योतिषशास्त्र में ज्योतिष अंगूठी में रत्न धारण करने की सलाह देते है , क्या आप भी ऐसी सलाह देते है | यदि कोई आध्यात्म के पथ पर है तो क्या उसे रत्न धारण करने की आवश्यकता है ?.
श्री श्री रवि शंकर: नहीं आपको इन्हें धारण करने की आवश्यकता नहीं है | यह सही है कि हर चीज़ का कुछ प्रभाव होता है परन्तु आप एक पत्थर के टुकड़े (रत्न) से अधिक शक्तिशाली है | यदि आप रत्न को पसंद करते है तो उसे धारण कर सकते है अन्यथा ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जप करें | यह एक अत्यंत शक्तिशाली मन्त्र है जो इस गृह के सभी बुरे प्रभाव का निचोड़ है |
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