सारी दुनिया एक ही चेतना,एक ही उर्जा और एक ही तत्व से बनी है !!!


२६ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम 
जब भगवान श्री कृष्ण समाधी में बैढे तो उन्होंने भगवत गीता सुनाई | युद्ध के उपरांत अर्जुन ने उनसे कहां आपने जो मुझे सुन्दर उपदेश युद्ध के दौरान प्रदान किया मैं उसे भूल गया क्योंकि  युद्ध भूमि में बहुत भीड़  और झंझाल था और मैं आप को ठीक से सुन नहीं पाया | आपने जो वहां पर कहा था उसे फिर से सुनाये | भगवान श्री कृष्ण ने कहां मैं वह तुम को फिर से नहीं सुना सकता क्योंकि उस समय मैं समाधी में था, और मैने तुम्हे बिठाकर वह सब सुनाया जो कुछ मुझे ज्ञात हुआ और मैं वह फिर से नहीं सुना सकता | जो कुछ भगवान श्री कृष्ण ने कहां वह कोई व्यक्ति के रूप में नहीं बोल रहे थे, परन्तु वह सम्पूर्ण ज्ञान समष्टि के द्वारा बोला जा रहा था, और यह सारा उपदेश शिव तत्व और आत्म तत्व के द्वारा आया |

उन्होंने कहा मैं ही सूर्य,वर्षा,सत्य और असत्य हूं और सबकुछ मैं ही हूं | यह एक गहरी बात है |
सबकुछ एक ही तत्व और अणु से बना  हैं | आपके माता, पिता किस तत्व से बने है | सबका शरीर एक ही मिट्टी और उसी अनाज से बना है, अनाज ग्रहण करने से शरीर बनता है |  जो कोई भी उसे खाता है उससे वे और शरीर बनता है | सभी कोई एक तत्व,शक्ति और उर्जा से बना है | वे कह रहे हैं कि सारी दुनिया एक ही चेतना,एक ही उर्जा और एक ही तत्व से बनी है |

यदि आप पंखा, माइक और लाइट को देखेंगे वे सब एक ही विद्युत तरंग के कारण चल रहे हैं | परन्तु ऐसा प्रतीत होता हैं कि पंखा, माइक और लाइट अलग अलग है | वे अलग अलग प्रतीत होते हैं लेकिन वे सब एक ही चीज से बने है | उसी तरह यदि सूर्य नहीं होता तो पृथ्वी नहीं होती | यदि पृथ्वी नहीं होती तो पौधे,पेड़ और मानव भी नहीं होते ? तो हमारा स्रोत क्या है? भौतिक स्तर पर हमारा स्रोत पृथ्वी है; उसका और सूक्ष्म स्वरुप है सूर्य| फिर सूर्य का स्रोत क्या है ? वह समष्टि उर्जा ; और फिर भगवान श्री कृष्ण कहते है कि वह समष्टि उर्जा मैं हूं |

वह आत्मा आप है, मैं हूं और सबकुछ इसी समष्टि उर्जा से बना हुआ है और आज विज्ञानिक भी यही कहते है | जो लोग क्वांटम भौतिकी पढ़ते हैं वे कहते सारी सृष्टि एक ही उर्जा से बनी हुई है | पहले कहा जाता था कि अलग अलग अणु और परमाणु  होते है और उनसे सारे कृत्य होते है, लेकिन अब वे कहते हैं कि यह सब एक ही उर्जा से होता है और सबकुछ एक ही  तरंग का कृत्य है | जिसे हम वस्तु समझते है वास्त्व में वह वस्तु नहीं है, वह शक्ति और यह सब सिर्फ उर्जा है और यह बात कई वर्षों पहेले भगवान श्री कृष्ण ने भगवद गीता में कहीं |

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तानुमाश्रितम् परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम | ये लोग मुझे अनंत शक्ति न जानकार मनुष्य समझते है, मैं मनुष्य योनी  में तो हूं पर मुझमे जो चैतन्य है, वह परम चैतन्य है | लोग मुझे गलत समझते हैं, मैं कोई व्यक्ति नहीं, मैं शक्ति हूं |

प्रश्न: शुरुवात में जब हम कोई जप मंत्र लेते है तो वह अत्यंत विशेष लगता है | लेकिन कुछ समय उपरान्त वहीं भावना नहीं रहती| उसी भावना को कैसे बरक़रार रखा जाए और अपने मंत्र को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए ?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ भी बनाने का प्रयास न करे | जब भी उसे याद करे, यह मान कर चले कि वह अत्यंत पवित्र और विशेष है | जब आप गंगाजी के ठन्डे पानी में पहली बार डुबकी लगाते है, तो पानी ठंडा लगता है लेकिन जैसे ही आप पानी में उतर जाते हैं तो फिर पानी उतना ठंडी नहीं महसूस होता हैं क्योंकि शरीर ने उसे स्वीकार कर लिया है और पानी को फिर से ठंडा लगने के लिए आपको फिर से बहार आना होगा | आपको इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है, आपको जब भी कृतज्ञता लगे तो उसे विशेष समझे | कृतज्ञता तरंग या लहरों के रूप में आती है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, इतने सारे मंत्र हैं, क्या आप कुछ विशेष मंत्र जैसे विष्णु सहस्त्रनाम,ललित सहस्त्रनाम और श्री विद्या मन्त्र के प्रभावों के बारे में बताएंगे ?
श्री श्री रवि शंकर: इतना अधिक विस्तार में ना जाए | विष्णु सहस्त्रनाम में कहा गया है “सोहऽमेकेन श्लोकेन स्तुत एव न संशय:” और एक शब्द सोऽहम् में  ही सब कुछ आ गया है | राम शब्द और सोऽहम् में विष्णु जी  के एक हज़ार नाम लिखे गए है कभी कभी आप विष्णु सहस्त्रनाम को सुन कर उस पर ध्यान कर सकते है सभी मन्त्रों के कुछ प्रभाव होते है पर ध्यान सबसे महत्पूर्ण है | मन्त्रों से परे जाना भी आवश्यक होता है, और सब कुछ से परे हो जाना मन को शांति प्रदान करता है |

प्रश्न : गुरुजी सारे मंत्र संस्कृत मेंमैं क्यों है? संस्कृत में  क्या विशेष है ?
श्री श्री रवि शंकर: संस्कृत की उत्पत्ति बाद में हुई, मंत्र पहले से ही थे | मन्त्रों के शब्द  पहले से ही थे बाद में  भाषायें उत्पन्न हुई | सिर्फ संस्कृत ही नहीं परन्तु यदि आप सभी भाषाओं के गहन में जायेंगे तो इन सभी  मंत्रो को पायेंगे  |

प्रश्न : गुरुजी मंत्र और यन्त्र में क्या सम्बन्ध है ? 
श्री श्री रवि शंकर: एक मंत्र  है और एक तंत्र है | मंत्र में शब्द और यन्त्र में चित्र होता है| मंत्र में ध्वनि और यन्त्र में आकार होता है|

प्रश्न : गुरुजी इतने सारे  मंत्र है यह कैसे मालूम होगा कि मेरे लिए कौन सा मंत्र उचित है ?
श्री श्री रवि शंकर: आप सहज समाधी ध्यान सीखें और आप के शिक्षक जो भी मंत्र देंगे वह आप के लिए उचित होगा|

प्रश्न : अच्छे  शिष्य  के क्या गुण है?
श्री श्री रवि शंकर: इसे आप अपना होम वर्क अभ्यास क्यों नहीं मान लेते? आप इन्हें  लिखें और मुझे बताएं | कल हम एक कागज लगा देगें  और उस पर हर कोई जा कर एक गुण लिखे | दो दिन आप इन सभी गुणों को लिखें यदि किसी ने कोई गुण को पहले से ही लिख रखा है तो उसे फिर से  पुनः  ना लिखें और कोई अन्य गुण लिखें | आपको को भी गुण लिखने का मन करे, उसे लिखे | जो लोग इस कार्यक्रम को इन्टरनेट पर देख रहे है वे भी अपने विचार भेजें कि आदर्श भक्त या शिष्य  के क्या गुण होना चाहिए|

प्रश्न : कौन सी प्राथना सबसे उत्तम है ? जिसमें तुरंत उत्तर देने के अलाबा भगवन के पास कोई विकल्प ना रह जाये ? वह प्राथना क्या है ?
श्री श्री रवि शंकर: शांति और मौन में  रहें और यह जान ले कि दिव्यता सब बात का ध्यान रख रही है वही सबसे उत्तम प्रार्थना है, ध्यान सबसे उत्तम प्राथना है |

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, क्या आप  भूत और प्रेत के बारे  में बता सकते है, क्या वे सही में होते हैं ? यदि वे आपको बहुत पसंद करने लगे तो उनसे कैसे छुटकारा पाया जाये?
श्री श्री रवि शंकर:  यह एक गंदे तालाब  में उतरने के बाद उसमें से निकलने का प्रयास करने जैसा है | जितना आप उसमें उतरेंगे उतना ही उसमें डूबेंगे | इसीलिए सबसे उतम यह होता है कि आप अपनी साधना करें और आप के आस पास के लोगों का ध्यान रखें कुछ सेवा कार्य करें , भजनो का गान करें उससे सब बातों का  ध्यान रखा जायेगा | अपना ध्यान भूत और प्रेतों के तरफ बिलकुल केंद्रित न करें |

प्रश्न :- प्रिय गुरु जी, मैं जानना चाहता हूं कि यदि मैं किसी को आशीर्वाद देता हूं तो क्या उनकी नकारात्मकता मुझ मैं आ जाती है, यदि हां तो उसका क्या समाधान है ?
श्री श्री रवि शंकर: नहीं! आप चिंता ना करें | सिर्फ जय गुरु देव कहें |

प्रश्न :गुरुजी, केंद्रीय मंत्री मंडल में कई अपराधी है , हम किस ओर  बढ़ रहे है, हमारा देश किस ओर बढ़  रहा है?
श्री श्री रवि शंकर: इसके लिए भारी परिवर्तन की आवश्यकता है और इन मंत्रियों को हटाने के लिए भारी  परिवर्तन की आवश्यकता है | हम सब को भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प लेना चाहिए, सब कुछ और परिस्थितियां बदलेगी  |

प्रश्न : गुरुदेव एक समय इस देश में किसान धनी ओर संपन्न होते थे | वही किसान  जो सारे  देश का पेट भरते है, उनको खुद को खाली  पेट सोना पड़ता है , उनसे क्या गलती हुई और हम इसमें कैसे सुधार ला सकते है ?
श्री श्री रवि शंकर: वह मंत्री जो किसानो का शोषण कर रहा है उसे कुछ सदबुद्धि आनी चाहिए या उसे उस पद से हटा देना चाहिए |मैं भी इसी विषय पर विचार कर रहा था | जब से इस मंत्री ने अपने इस पद को संभाला है, उसने कुछ भी अच्छा कार्य नहीं किया जिससे आकाल और अनाज की कमी उत्पन्न हुई और यह आकाल प्रकृति की वजह से नहीं पड़ा |  या तो उसके पास दिल या दिमाग नहीं है या फिर तो दोनों ही नहीं है | या तो कुछ गढ़बढ़ है | कुछ भी हो जाये उन्हें कुछ भी चिंता ही  नहीं होती, उन्हें तो सिर्फ धन से मतलब होता है |इन्होने लाखों करोडो रूपये विदेश भेजा है ओर आतंकवादियों से संपर्क बनाये है | और  उन्होंने  इस देश को लूटा है |यह बहुत आवश्यक है कि इसके खिलाफ हम अपनी आवाज उठायें |

प्रश्न : गुरुजी, मैंने  दसवी कक्षा उत्तीर्ण कर ली है और दसवी कक्षा उत्तीर्ण कर लेने के वाद मैंने बारहवी कक्षा भी उत्तीर्ण कर ली है | इस दुनियां में अपनी बुद्धि को सिद्ध करने के लिए मुझे कितने बार उत्तीर्ण होना होगा ?
श्री श्री रवि शंकर: जिनके पास कुछ नहीं होता है उन्हें लगता है दूसरों के पास भी कुछ नहीं है | यहां तक मुझे भी अपने आप को बार बार सिद्ध करना पड़ता है, इसीलिए आप अपने आपको कुछ और समय तक सिद्ध करते रहें | अपनी परीक्षा को क्रीड़ा के जैसे समझे फिर उसकी चिंता आपको नहीं सताएगी | आप को अपने परीक्षा में  अच्छे से अध्ययन करके अच्छे से उत्तीर्ण करनी चाहिए | सीढ़ी टेढ़ी हो तो आप क्या करते है? आपको भी थोडा अपने आपको झुका कर उस पर कैसे भी चढना पड़ता है | यदि आपने चढ़ते समय सीढ़ी को सीधा करने का प्रयत्न किया तो फिर आप उसमें फंस सकते है | सीढ़ी यदि टेढ़ी हो  तो रेलिंग का सहारा लेकर उस पर चढें और एक बार आप जब आगे बढ़ जाते है तो सीढ़ी को ठीक करने के बारे में विचार कर सकते हैं|

प्रश्न :- गुरुजी कौनसी इच्छाओ को भगवान के समक्ष समर्पित कर देना चाहिए और कौनसी इच्छाओं को स्वयं के प्रयासों के द्वारा पूरा किया जा सकता है ? इसे कैसे समझें ?
श्री श्री रवि शंकर: प्रयास और समर्पण एक साथ चलते है, इसीलिए आप प्रयास करें और उसे समर्पित कर दीजिए | हम संकल्प  लेकर  उसे छोड़ देते हैं | पूजा में हम क्या करते है ? हम चावल, पानी ओर फूल को अपने हाथ में लेकर संकल्प लेते है और उसे छोड़ देते है | हम फूल को अपने हाथ में  पकड़ कर नहीं रखते | जब आप सिनेमा देखने जाते है तो आप पहले टिकिट खरीदते है और जब आप  सिनेमा घर में प्रवेश कर रहे होते हैं तो वह टिकिट आपको वापस कर देना पड़ता है | ३० -४० वर्ष पूर्व निश्चित ही टिकिट वापस देनी पड़ती थी |अभी भी आप को उसे वापस देना पड़ता है | इसीलिए संकल्प और समर्पण को हमें इस तरह से देखना चाहिए | आप अपना १०० प्रतिशत दीजिये और फिर उसे भगवान की इच्छा मान लीजिए |

प्रश्न : नैतिक मूल्यों के बारे में आध्यात्मिक गुरुओं की क्या भूमिका होती है ?
श्री श्री रवि शंकर: उनकी पूरी भूमिका होना चाहिए | सिर्फ दूसरों को मूल्यों के बारे में बताना पर्याप्त नहीं है | परन्तु यह बताना कि इन मूल्यों को आपको अपने जीवन में कैसे उतरना चाहिए, यह भी सिखाना भी आवश्यक है |  इन मूल्यों के साथ कैसे जीना इसे भी समझदारी के साथ बताना चाहिए | यदि कोई फिसल जाये तो फिर समझदारी  से उन्हें आगे बढ़ने के लिए  प्रोत्साहित करना चाहिए | यही इसका कौशल है |

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