तर्क भावनाओं को सांत्वना नहीं दे सकता परन्तु वहां आपकी शांत उपस्थिति अंतर ला सकती है!!!


१९ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम 

प्रश्न: गुरूजी जो कुछ भी याद रखने योग्य है, मैं उसे भूल जाता हूं और जो याद रखने योग्य नहीं है, उसे मेरी स्मृति याद करती रहती है, मन की यह कैसी विडम्बना है ?
श्री श्री रवि शंकर: कम से कम आपको यह समझ तो आ गया है | कई लोगों को यह समझ में नहीं आता | आप अपनी पीठ को थपथपाएं | आपने सही दिशी में पहला कदम रख लिया है | थोड़े प्रयासों से यह बदल जाएगा | जब आप अतीत की समीक्षा करते हैं तो आपको इसका यही निष्कर्ष निकालना चाहिए कि सब कुछ अच्छे के लिए ही हो रहा है, क्योंकि आप गलत बातों से कुछ सीखते हैं | परन्तु इसे आपको भविष्य के लिये लागू नहीं करना है | अतीत को देखते हुए यह जान कर कि जो कुछ होता है उसके लिये पीछे एक अच्छा कारण होता है, यह सोच रख कर आप भविष्य में आगे बढ़ें | परन्तु वर्तमान में यह कहना कि ‘जो कुछ होता है, वह अच्छे के लिये होता है’ यह ठीक नहीं है |

प्रश्न: जब किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाती है तो उन्हें आप कैसे समझाते हैं ? उन्हें कैसे सांत्वना दें ?
श्री श्री रवि शंकर: आपको समझाने की आवश्यकता ही क्यों है ? जब आपको किसी को सांत्वना देनी हो तो आप सिर्फ शान्ति से वहां अपनी उपस्थिति दीजिये, वहां आपकी मौजूदगी ही पर्याप्त है | हर किसी को आप शब्दों से सांत्वना प्रदान नहीं कर सकते | हर कोई यहां कुछ समय के लिए आया है, फिर उसे एक दिन ऐसे ही जाना है | कोई भी तर्क भावनाओं को सांत्वना नहीं दे सकता | इसमें तर्क की कोई भूमिका नहीं हो सकती | भावनाओं को तर्कपूर्ण निष्कर्षो या समझ से शांत करना कोई ठीक बात नहीं है |
यह बात सही है कि मन में ऐसे विचार आते है कि ‘ऐसा क्यों हुआ ?’ ऐसे प्रश्नों का उत्तर कभी नहीं देना चाहिये | आप वहां पर शान्ति, प्रेम और करुणा के साथ रहे, फिर वातावरण अपने आप ही बदल जायेगा |

प्रश्न: जब किसी पौधे या पशु की प्रजाति लुप्त हो जाती है तो क्या उसका हम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ? क्या यह प्रजातियां किसी और अन्य गृह या समरूप गृह पर मौजूद होती हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ भी पूरी  तरह से लुप्त नहीं होता, वह सिर्फ ऐसा प्रतीत होता है और उसकी संख्या ऊपर या नीचे होती रहती है | किसी भी प्रजाति को पूर्ण रूप से लुप्त होने के लिए बहुत समय लगता है | इसलिए आप चिंता न करे, कई अन्य गृह है परन्तु हमें इस गृह का ध्यान रखते हुए यही आनंद लेना और रहना है और वही पर्याप्त है |

प्रश्न: क्या समलैंगिकता पाप है? क्या मानवो में ऐसे प्रवृतियों को साधना और आध्यात्मिक अभ्यासों से बदला जा सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: ऐसी प्रवृतियां आप में इसलिए आती है क्योंकि आप अपने माता और पिता दोनों से बने है, आप उन दोनों का संयोग है | हर किसी व्यक्ति  में पुरुष और स्त्री के जीन होते है | जब पुरुष के गुणसूत्र (क्रोमोसोम) हावी होते है या जब स्त्री के गुणसूत्र (क्रोमोसोम) हावी होते है, तब इस तरह की प्रवृतियां आती जाती है | आपको अपने आप को इस तरह से कोई लेबल नहीं देना है, यह सब बदल जाएगा | इन प्रवृतियों के बदलने की पूरी संभावना है | आपको यह जान लेना है कि आप सिर्फ शरीर नहीं है | आप चमकती हुई उर्जावर्धक चेतना हैं | आप एक चमकता हुआ प्रकाश हैं और इसलिए अपने आप को उस उर्जा से और अधिक पहचानिये |

प्रश्न: मेरा आईना मुझे यह दिखाता हैं कि मैं बाहर से बड़ा हो रहा हूं, मेरी भीतर की आध्यात्मिक प्रगति को जानने के लिए मैं किस आईने का उपयोग करूं?
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप शांत, तृप्त और संतुष्ट होना महसूस करते हैं ? क्या अपने आप में फैलाव का अनुभव करते हैं ? अतीत में जाकर देखें कि आप कैसे थे और अब आप कैसे हैं | अपने स्वयं के प्रतिबिंब को इस तरह से देखने पर आपको इसकी अनुभूति होती है |

प्रश्न: गुरूजी मैं बहुत जल्दी से कुछ बनकर अपनी पहचान बनाना चाहता हूं | इस बात से कुछ फर्क नहीं पड़ता कि मैं अपने मन को कितने बार यह कहूं कि मेरे हाथ में कुछ नहीं है और मुझे सब कुछ स्वीकार कर लेना चाहिये, इससे मुझे और निराशा ही होती है | कृपया मेरा मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर: अपने आप को व्यस्त रखें | सिर्फ बैठ कर अपने बारे में न सोचें | अपनी स्वयं की छवि को बनाने की सोच आपकी प्रगति में बाधा बनाती है | आप खाली और खोखले हो जाएँ | और अधिक ध्यान करे |

प्रश्न: गुरूजी अपने आसपास के संकीर्ण मन या सोच रखने वाले लोगों से कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रवि शंकर: उनके प्रति उदार रहें | उनके लिए सिर्फ मुस्कुराएँ | उनके लिए जैसे को तैसा वाला रुख न अपनाएं | इससे कोई लाभ नहीं होता है | उन्हें सहजता के साथ शिक्षा प्रदान करें और यह सुनिश्चित कर लें कि  आप अपनी खुशी को उनके संकीर्ण मन या सोच के कारण नहीं खोयेंगे |

प्रश्न: पैसा, मन और ध्यान मेरे नियंत्रण में नहीं है ? पैसा आता नहीं है और मन ठहरता नहीं है इसलिए ध्यान भी नहीं लगता | मेरा क्या होगा गुरूजी ?
श्री श्री रवि शंकर: आप ध्यान नहीं कर सके, ठीक है | पहले यह समझें कि आपका ध्यान क्यों नहीं लगता | आपके स्वयं का जो भाग पैसे और मन में उलझा हुआ है, उसे सुलझा कर मुझ में उलझा दीजिए | फिर ध्यान भी लगेगा और मन खुश रहेगा और पैसा भी अपने आप आने लगेगा |

प्रश्न: क्या प्रत्यक्ष पाप न करना नेक कार्य करने के समान है और क्या आवश्यक नेक काम को न करना पाप के समान है ? क्या मैं अपने कृत्य और अकृत्य के लिए जिम्मेदार हूं ? यदि मैं कुछ नहीं करता तो मेरी भूमिका क्या होगी ?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी बिना कुछ करे रह ही नहीं सकता | और जब आप कुछ करते हैं तो उससे किसी को लाभ होगा और किसी को नुकसान होगा | कोई भी बिना कुछ करे १ पल भी नहीं रह सकता | आप किसी के बारे अच्छा या बुरा सोचने लगते हैं | इसलिए कुछ अच्छा  करते रहें परन्तु उसके कारण आप में अहंकार नहीं आना चाहिये | “मैने इतने अच्छे कार्य किये है” | ‘नेकी कर और कुंए में ड़ाल’ इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि आप कुछ नहीं कर रहे हैं, और जब आप कुछ करते हैं तो यह देखें कि वह कृत्य सबको उठा या विकसित कर रहा है |

प्रश्न: क्या किसी के कर्म किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित होते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: निश्चित ही हां | जब आप अच्छा व्यापार करते हैं और जब आप उसे अपने बच्चों को दे देते हैं तो आपके कर्म उनके पास हस्तांतरित हो जाते हैं | उसी तरह जब आप कोई बड़ी गडबडी करते हैं तो आपके बच्चों या पालकों को भी उसे सहन करना पड़ता है | कर्म निश्चित ही कोई एकल कृत्य नहीं है और उसका प्रभाव आपके परिवार और आस पास के लोगों और राष्ट्र पर भी होता है | कर्म के भी विभिन्न स्तर होते हैं |The Art of living

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