१८ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम
प्राचीन काल के स्वामी, साधु और लोग कहीं भी किसी भी किस्म की कलह सुनना पसंद नहीं करते थे | यदि उनके पास कोई भी आकर उनसे कोई भी शिकायत करता था तो वे उनके कान पकड़ कर उनसे कहते थे कि “तुम ही इससे निपटो |” यदि आप समाधान का हिस्सा हो तो आप के उर्जा का स्तर उच्च होता है | परन्तु यदि आप सिर्फ समस्याओं की बात करते है तो आप की उर्जा नीचे आ जाती है |
दुनिया हर समय सकारक और नकारक बातों की क्रीड़ा होती है, कुछ समस्याएं और चुनौतियां आती रहती हैं और उनके साथ उनका हल भी आता है | प्राचीन लोग अपनी उर्जा के स्तर को उच्च रखने पर केंद्रित होते थे | यदि आपकी उर्जा का स्तर उच्च होता है तो जब लोग आपके पास अपनी समस्याएं लेकर आते है तो उनका समाधान हो जाता है |
अक्सर जब लोग आपसे अपनी समस्याओं के बारे मे बात करते हैं तो क्या होता है? आपका उनकी समस्याओं के प्रति झुकाव हो जाता है | वे अपनी समस्याओं के बारे बात करते हैं तो क्या होता है ? आप उनकी समस्याओं के साथ बह जाते हैं | इसलिए एक बार इसका प्रयत्न करें ; एक दिन यदि लोग आपके पास आकर १०० शिकायत करें, आप सिर्फ अपनी उर्जा को उच्च रखें और अपनी दृष्टि और मन को भीतर की ओर केंद्रित रखे जैसे कुछ भी नहीं हुआ है, तो फिर आप अचानक अपने भीतर मुक्ति महसूस करेंगे |
आप इसे प्रयत्न कर के देखें, घर पर आपकी सास, पति और हर कोई व्यक्ति किसी भी बात की शिकायत कर सकता है | पूरी दुनिया इधर से उधर हो जाए, परन्तु आप सिर्फ एक विचार को पकड़ कर रखें कि - मैं अपनी उर्जा को उच्च रखूंगा | आप सिर्फ यह एक कदम उठायें और देखें कि समस्याएं और चुनौतियां सिर्फ इसलिए आती हैं जिससे कि आप अपने मन को भीतर की ओर केंद्रित करके रख सकें |
मन को भीतर की ओर केंद्रित करने के बजाय, जब समस्याएं ओर चुनौतियां आती हैं तो आप क्या करते हैं? आप समस्या का पीछा करते हैं और उसी दिशा में प्रवाहित हो जाते हैं और फिर आपकी उर्जा का स्तर नीचे आ जाता हैं और आपका पतन हो जाता हैं | क्या ऐसे ही होता है ना ?
कई बार करुणा और सहानुभूति के नाम पर आप उसी ओर प्रवाहित हो जाते हैं | आपकी करुणा वास्तव में आपकी समस्या का समाधान करने में सहायक नहीं है | यह बहुत चौंकाने वाली बात है कि करुणा में समस्या बढ़ जाती है और उसका समाधान नहीं हो पाता है |
जब भी कोई समस्या आती है तो वह व्यक्ति को भीतर के गहन की ओर केंद्रित करने के लिए होती है जिससे व्यक्ति वैराग्य और शान्ति की अवस्था में जा सके | इसके बजाय आप व्यक्ति को तर्क के द्वारा संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं | समस्या में व्यक्ति को संतुष्ट करना सबसे बुरी बात है | आपको उनको संतुष्ट नहीं करना चाहिए | हर किसी व्यक्ति को उनके कर्म और समस्या को सहन करना चाहिए | यदि आप दुखी या खुश हैं तो वह भी आपका कर्म है | आप अपने कर्म को बदल दीजिए | यह मनोभाव व्यक्ति को और अधिक स्वतंत्र और मुक्त करता है |
आप उनके प्रति करुणा दिखाते है और फिर उन्हें और ध्यान पाने की चाहत हो जाती है | आप और करुणामय हो जाते हैं और उन पर और अधिक ध्यान देते हैं, और फिर न तो करुणा रह जाती है और न तो आप उन पर उतना ध्यान दे पाते हैं | फिर सिर्फ परेशानी रह जाती है और उसके कारण आप भी परेशान हो जाते हो; “वह व्यक्ति कितना दुखी है, मुझे उसे खुश करना है” किसी को खुश करना बहुत बड़ा बोझ है | और उसे करने की चेष्टा न करें | यह एक नया नियम है, किसी को भी खुश करने की चेष्टा न करें, आप यह कर ही नहीं सकते !!!
संस्कृत में एक कहावत है जो कहती है, “कश्तस्य सुखस्य नकोपी दता”| कोई भी खुशी या दुःख नहीं दे सकता | वह अपने स्वयं या मन से निर्मित होती है | जब कोई अपनी समस्या बताता हैं तो घूम कर दूसरी दिशा में चले जाएँ और उनसे कहें कि अपनी समस्या से स्वयं ही निपटें | फिर आप स्वतंत्रता या मुक्ति को प्राप्त करेंगे, और लोगों में परस्पर निर्भरता आती है जिसके वजह से आप अपने आप को आत्म निर्भर बना सकते हैं |
मैं यह बात साधकों और आप सब लोगों से कह रहा हूं, जो वैसे भी इस पथ पर हैं | लेकिन इसका प्रयोग तब न करें जब सड़क पर कोई गाड़ी में बैठने के लिए गुहार लगा रहा हो और आप उससे कहें कि ‘गुरूजी ने कहा हैं कि उन्हें उससे स्वयं ही निपटने दीजिये’ इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकता’ | यदि आपकी गाड़ी में जगह है तो उनकी मदद करें | वहां पर करुणा की आवश्यकता है, परन्तु वह संबंधों में आवश्यक नहीं है | जब आप लोगों से जुड़ते हैं तो वहां पर एकाएक करुणा के कृत्य आवश्यक हैं | जिस को आप जानते नहीं हैं उनके प्रति करुणामय रहें |
वैराग्य के लिए उत्साहित रहें |
आपका मन कैसे लोगों की भावनाओं, चिंताओं और उनके दुखों में फंस जाता है | आप उसके लिए क्या कर सकते हैं और आप कहां चले गए हैं ? आपको क्या हो गया है ? आप पूरी तरह से बिखर जाते हैं | इसलिए ऐसा कहा जाता है कि आस पास के सभी जाल और तार को काट दो और सिर्फ एक दिव्यता के तार के साथ जुड़े रहो |
यह मत कहो, गुरूजी ने मेरे तरफ देखा नहीं शायद भगवान मुझ से नाराज़ है और बहुत कुछ | यह सब नहीं कहना है | सब कुछ प्रसाद है, यदि मुझे निकाल दिया जाता है तो वह भी प्रसाद है | यदि मुझे डांटा जाता है तो वह भी प्रसाद है | सब कुछ प्रसाद है | यह मनोभाव सबसे अच्छा है, इसलिए यदि आप पर ध्यान नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं है | ठीक है |
प्रश्न: गुरूजी यदि हम ऐसा करेंगे तो वे सोचेंगे कि हम असंवेदनशील हैं |
श्री श्री रवि शंकर: उन्हें जो कहना हैं, उन्हें कहने दीजिये | आप उन्हें खुश करने का प्रयास ही तो कर रहे हैं | मैं असंवेदनशील नहीं हूं, मैं संवेदनशील हूं |
जैसे मैने कहा आपका जो भी काम हैं उसे करें, लेकिन सिर्फ बैठ कर उनकी समस्याओं को न सुनें, और उसी हवा में प्रवाहित न हो जाएँ |
प्रश्न: पार्ट १ कोर्स में ३ ध्वनि के बारे में बताया जाता है और जब उन तीनों को एक साथ रखा जाये तो वे ‘ॐ, आमेन और अमीन’ की ध्वनि सुनाई पड़ती है |
श्री श्री रवि शंकर: नहीं! वह सब सामान है | ‘आ’ और ‘म’ की ध्वनि निश्चित ही काफी सामान है | अँगरेज़ी भाषा संस्कृत का बिगड़ा हुआ स्वरुप है | अँगरेज़ी के कई शब्द संस्कृत भाषा से ही उत्पन्न हुए हैं | मैं तो कहूंगा पूरे १००% शब्द | Brother - भ्राता, Sister - स्वस, Mother - माता इत्यादि |
जब भाषा बदलती है तो सामान्यता उसमे विकृति उत्पन्न होती है |
जैसे बंगाली में कई बदलाव हुए हैं | ‘विष्णु’ ‘बिष्णु’ बन गया हैं, ‘विश्वास’ ‘बिश्वास’ बन गया |
बंगाली लोग कहते है, ‘जल खाबे’ खाबे का अर्थ है ‘खाना’ लेकिन वे कहते हैं ‘जल खाबे’ ‘जल’ बन जाता हैं ‘जोल’ ‘जोल खाबे’ प्रत्येक भाषा की अपनी विशेषता होती है |
अँगरेज़ी में भी उनके उच्चारण बदल जाते हैं | ‘वेस्ट बंगाल’ को वे कहते हैं ‘बेस्ट बंगाल’ ‘डोंट बेस्ट फूड’ (अन्न को बर्बाद मत करो) ‘वेस्ट’ को वे ‘बेस्ट’ कहते हैं | यह ऐसा ही हैं और इसे हमें स्वीकारना पड़ता है |
यू लाइक् बाइट’ (आपको सफेद पसंद हैं) ‘यू आलवेज बियर बाइट’ (आप हर समय सफेद पहनते हैं) वे वास्तव में कह रहे हैं ‘यू आलवेज वियर वाइट’ (आप हर समय सफेद पहनते हैं) ‘गुरूजी लाइकस बाइट’ - (गुरूजी को सफेद रंग पसंद हैं) यह एक विशिष्ट उच्चारण है | गुजरात में लाँन (मैदान) बन जाता है ‘लोन’, हॉल (बड़ा कमरा) ‘होल’ बन जाता है, ‘द लोन इज़ इन फ्रंट आफ होल’ (मैदान के सामने हॉल हैं) |
प्रश्न : अमावस के दिन हम हमारे प्रियजनों के पितृ के सम्मान मे तर्पन अर्पित करते हैं, क्या यह वैज्ञानिक है या सिर्फ एक रीती रिवाज़ है ?
श्री श्री रवि शंकर: तर्पण का अर्थ होता है संतुष्ठ करना | तर्प तृप्ति से बनता है जिसका अर्थ होता है संतुष्ठ होना | आपके पूर्वज की कुछ इच्छाएं थी उसे पूरा करना या यह मान लेना की वह पूरी हो गयी है, ऐसा करने से फिर किसी बात की तृष्णा नहीं रह जाती | साल मे पितरों को एक बार याद करना तर्पण कहलाता है |
ईसाई और इस्लाम धर्म में भी विशेष रूप से साल में एक बार पितरों के लिए ऐसा किया जाता है | भारत मे प्राचीन काल में अमावस की रात को पितरों को याद किया जाता था और पूर्णिमा पर दिव्यता की विभिन्न अभिव्यक्तिओं को याद किया जाता है | इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक अमावस्या की रात को कुछ किया जाये परन्तु उनको याद करके उनकी स्मृति में कुछ अच्छा कार्य करना अच्छा होता है |
प्रश्न: गुरुजी आप ने हमें बताया है की गुरु का काम शिष्य को भ्रमित करना होता है | फिर हम उत्तर प्राप्त करने के लिए किसके पास जाएँ ?
श्री श्री रवि शंकर: आप वैसे भी कहां जा सकते हैं ? आप जहां भी जायेंगे वहां और भी भ्रमित होंगे | जहां से भ्रम मिला है वहीं से उत्तर या समाधान मिलेगा |
प्रश्न : गुरु जी कभी कभी हमारे मन की अवस्था ऐसी होती है कि हम किसी से कभी भी बात कर सकते हैं और कभी ऐसा नहीं होता | मन की अवस्था वैसी ही होने के लिए क्या कर सकते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: आप का मतलब है घर मे पत्नी के साथ ? ऐसा होता है और लोग शिकायत करते हैं कि, मेरा पति घर पर मुझसे बात ही नहीं करता, लेकिन घर पर कोई अतिथि आते हैं तो वह बहुत बातें करते हैं | और जब मैं उनके साथ घर मे अकेली होती हूं तो वे मुझसे बिलकुल बात नहीं करते ; यही समस्या है ना ? आप का मन ऐसा ही है – कभी कभी आप बोलना चाहते हैं और कभी कभी आप इतना अधिक बोल कर थक जाते है | इसीलिए आप बोलना ही पसंद नहीं करते और फिर बोलने के लिए आप के प्राण को उच्च स्तर पर लाना होगा, यह प्रकृति है | बोलने के लिए आप को अपने आप पर जोर नहीं डालना चाहिए और मुक्त रहना चाहिए |
प्रश्न : जय गुरुदेव, आप इतने आकर्षक हैं क्या यह मेरे इस पथ पर बाधा है ? यदि मैं आकार में ही फँस गया तो मैं आकार से परे देखने के लिए क्या करूं ?
श्री श्री रवि शंकर: आप अपने आप को हर बात से पृथक कर लें | फिर यह भी अपने आप गायब हो जायेगा | फिर आप मुझको और अधिक देख सकेंगे जो आकार से भिन्न है |
प्रश्न : गुरुजी देवदूत के बारे मे कुछ चर्चा करें उनकी भूमिका और उद्देश्य क्या होता है | क्या हर किसी व्यक्ति का कोई देवदूत पालक होता है जो उनका ध्यान रखता है ?
श्री श्री रवि शंकर: हां, देवदूत सकारात्मक उर्जा होते हैं |
प्रश्न : स्वर योग क्या होता है कृपया करके इसे समझाएं ?
श्री श्री रवि शंकर: सबसे पहले नाडी शोधन प्राणायाम करें और प्राणायाम के द्वारा स्वयं के गहन में उतर कर देखें फिर आप महसूस कर सकेंगे कि दिन भर में दोनों नासिकाओं के मध्य मे कैसे श्वास बदलती रहती है |
प्रश्न : गुरुजी क्या जीवित रहते हुए हम स्वयं के लिए के तर्पण कर सकते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: ध्यान के द्वारा तृप्त हो जाओ, यही तर्पण है |
प्रश्न : प्रारब्ध और संचित कर्म के बारे मे कुछ बताएं ?
श्री श्री रवि शंकर: संचित कर्म भक्ति के द्वारा कम किया जा सकता है जबकि प्रारब्ध कर्म का कुछ अंश सहन करते हुए अनुभव करना पड़ता है |
प्रश्न : गुरु जी मेरा बॉस चाहता है की मैं व्यवहार कुशल बन जाऊं क्योंकि उसे लगता है कि यह संपर्क बनाने के लिए बहुत महत्म्पूर्ण है परन्तु मैं एक सीधा साधा व्यक्ति हूँ और व्यवहार कुशल नहीं बन सकता | इसमें क्या करना ठीक है ?
श्री श्री रवि शंकर: अपने सिर पर कोई लेवल क्यों अंकित कर लेते हो, ‘मैं एक सीधा सच्चा व्यक्ति हूं’ एक सीधे सच्चे व्यक्ति को व्यवहार कुशल क्यों नहीं होना चाहिए | एक सच्चे साधे व्यक्ति को हर समय अशिष्ट होने की आवश्यकता नहीं है और इसीलिए आप सीधे सच्चे होते हुए इस तथ्य को छिपाएँ कि आप अशिष्ट हैं | और अपनी अशिष्टता को उचित ठहराने का यह कोई उचित तरीका नहीं है | सरलता और व्यवहार कुशलता दोनों आवश्यक है और यह दोनों आप में होना चाहिए | जब आप किसी अंधे व्यक्ति से मिलते हैं तो आप उस व्यक्ति से यह नहीं कह सकते कि ‘आप अंधे व्यक्ति हो’| आप कहेंगे मैं तो सीधा सच्चा व्यक्ति हूं और मैं सही बात कह रहा हूं, लेकिन आप को ऐसा नहीं करना चाहिए | व्यवहार कुशलता जीवन के अंश हैं और यह कौशल आपमे होना चाहिए | व्यवहार कुशलता का अर्थ यह नहीं है कि कोई सीधा सच्चा नहीं है क्योंकि यह सीधे सच्चे का विरोधाभास है, इन दोनों बातो को साथ मे चलना होता है |
प्रश्न : गुरुजी आप को कैसे पता पड़ता है कि हमारे मन मे क्या चलता है जबकि आप हम से हजारों किलो मीटर दूर होते हैं | आप हमारी इच्छाओं को कैसे पूरा करते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: यह मेरा रहस्य है | यदि आप ब्लेसिंग कोर्स मे भाग लेगें तो यह आप भी कर सकते हैं |
प्रश्न : गुरुजी अमावस और दीवाली के दौरान हमें यह बताया जाता है कि हमें रात मे सैर नहीं करना चाहिए और नुकीले औजारों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, इसके पीछे क्या मंशा है ?
श्री श्री रवि शंकर: चंद्र का मन पर गहरा प्रभाव होता है पूर्णिमा पर आप की मन की स्थिति अलग होती है और अमावस पर भी आप के मन की स्थिति अलग होती है | अमावस की रात काफी काली होती है इसीलिए प्राचीन काल मे यह कहा जाता था कि नुकीले औजारों का प्रयोग न करें क्योंकि उससे आप को ही चोट लग सकती है परन्तु आज विद्युत होने के कारण इसका महत्व नहीं रह गया है |
प्रश्न : गुरुजी जो पत्र आप के पास आते हैं उनका क्या होता है ?
श्री श्री रवि शंकर: आप चिंता मत करो वे सब मेरे पास पहुंच जाते हैं |
प्रश्न : गुरुजी कुछ लोग कहते हैं कि अंतिम संस्कार में नहीं जाना चाहिए और कुछ लोग कहते हैं कि अंतिम संस्कार में जाना चाहिए, इन दोनों में से क्या ठीक है ?
श्री श्री रवि शंकर: आप अंतिम संस्कार मे जा सकते हैं, यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है | अंतिम संस्कार मे जाने में कोई समस्या नहीं है | सामान्यतः अंतिम संस्कार से लौटने के बाद आप स्नान करते हैं क्योंकि उर्जा का स्तर बदल जाता है |
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