भ्रष्टाचार की शुरुवात वहां से होती हैं जहां पर अपनापन खत्म होता है

२८ मई २०११, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न: हमारे जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या होना चाहिए ?
श्री श्री रवि शंकर: यदि कोई व्यक्ति आपको जीवन की अंतिम इच्छा को बताए तो वह निरर्थक हैं | इस क्षण मे जो आपकी आवश्यकता है वही आपकी इच्छा है | जब आप जीवन को बड़े दृष्टिकोण से देखते हो तो आपको स्वयं मालूम  पड़ जाता है कि आपको क्या चाहिए | फिर आप स्वाभाविक रूप से करुणामय, पर्यावरण के प्रति विचारशील होंगे, और देश के लिए कार्य करेंगे और ऐसे कार्य करते रहेंगे, और इस बात का फर्क नहीं पड़ेगा कि आपकी अंतिम इच्छा क्या है | यह जीवन क्या है, इसे आप स्वाभाविक रूप से समझ जायेंगे |

प्रश्न: आध्यात्मिक पथ पर मेरी प्रगति हो रही है, यह मैं कैसे समझ पाऊंगा ?
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप शांत हैं? क्या आप गतिशील है?  क्या आप व्यसनों और बुरी आदतों से मुक्त है और क्या आप आस पास के लोगो के साथ अपनापन महसूस करते हैं | यह कुछ उपाय हैं और सिर्फ यही अकेले उपाय नहीं हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरुजी आप अक्सर कहते हैं कि ‘आप अपनी सारी समस्याएं मुझे दे दीजिए’ मुझे कभी कभी चिंता होती है, कि मैं तो अपनी परेशानी से मुक्त हो गया लेकिन क्या मेरी चिंताएं आपको परेशान करती हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: आप चिंता मत करो | कम से कम आपकी वह परेशानी तो कम हुई, क्योंकि जब आप परेशान होते हो तो मैं परेशान हो जाता हूं | इसलिए आप खुश रहो |

प्रश्न: गुरूजी, पुराणों में ऐसा कहा गया है कि एक पत्नी अपने अगले ७ जन्मों तक उसी पति की कामना करती है, क्या यह बात सच हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: मैं इसका उत्तर देने के लिए योग्य नहीं हूं | आप अपने आस पास के लोगों से पूछ सकते हैं | कुछ लोग हां कहेंगे और कुछ लोग नहीं कहेंगे, आप सहमति और अनुभव के आधार पर निर्णय करें | अमरीका में एक महिला ने मुझे बताया कि उसके विवाह के ४० वर्ष हो गए और वह उसी पति के साथ ४० वर्षों से रह रही है | दूसरे लोग जो वहां पर मौजूद थे उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह ४० वर्षों से उसी पति के साथ कैसे रह रही हैं | फिर उसने बताया कि यदि आप एक नाव को चलाना नहीं जानते तो यदि आप नाव भी बदल लेंगे तो भी आपको उसे चलाना नहीं आयेगा | यह कहानी प्रत्येक भारतीय परिवार की है और यह संस्कृति हमारे गावों मे मौजूद है | ‘यदि आप एक नाव को चलाना नहीं जानते तो यदि आप नाव भी बदल लेंगे तो उसका भी कोई अर्थ नहीं है |
इसलिए हमारे आसपास जैसे भी लोग हों हमें उनसे किसी भी प्रयासों से अच्छे संबंध रखना चाहिए और दूसरों में अच्छे गुण देखना चाहिए | सिर्फ लोगों की आलोचना करना ठीक नहीं है | इसके बजाय आपको सेतु की भूमिका निभानी चाहिए | यदि आप सिर्फ आलोचना करेंगे तो इससे सिर्फ दूरियां ही बनेंगी | आपको उन्हें समझना होगा कि वे कहां से आ रहे हैं और वे कहां गलती कर रहे हैं | और फिर आप उन्हें प्यार से समझाएं और उनके दिल को प्यार से जीत लीजिए | इसमें थोडा समय लगता है परन्तु किसी की आलोचना करके उनसे दूरियां बना लेना आसान है | इसके लिए सिर्फ कुछ ही मिनिट लगेंगे लेकिन उनके साथ दिन रात रहना और उन्हें समझा कर उनमें बदलाव लाना बहुत कठिन और महत्वपूर्ण है | और यही करना चाहिए |

प्रश्न: गुरुजी जब हम पूजा करते समय भगवान की मूर्ती को सजाते हैं तो वह बहुत सुंदर प्रतीत होती है, और जब हम ध्यान करने के लिए आँखे बंद करते हैं तो वह भी बहुत सुन्दर लगता है | फिर हमने क्या करना चाहिए, हमें देखना चाहिए या ध्यान करना चाहिये ?
श्री श्री रवि शंकर: गहन ध्यान में जाना ही सबसे उत्तम पूजा है | पूजा क्या है ? ‘येन केन प्रकरेण यस्य देहिनद, संतोषम जनायेत्प्रग्यः तदेवेश्वरापुज्नम’
पूजा या भक्ति का सबसे उत्तम स्वरुप क्या है | किसी भी तरह से लोगों और सब के दिलों मैं शांति और खुशी लाना पूजा का सबसे उत्तम स्वरुप है | ‘येन केन प्रकरेण’ को उस समय मे कहा गया | अब यह नहीं हो सकता | वास्तविक खुशी सिर्फ ध्यान से प्राप्त हो सकती है |

प्रश्न: गुरूजी इस देश मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध की शुरुवात हो चुकी है | इस युद्ध मैं आप राम हैं, बाबा रामदेव लक्ष्मण हैं और अन्ना हज़ारेजी हनुमान हैं | लेकिन राम अभी तक रणभूमि मे नहीं दिख रहे हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: आपने अरविंद केजरीवाल को छोड़ दिया है | मैं सबके भीतर और सबसे साथ हूं | जो भी लोग भ्रष्टाचार विरोध के मार्ग पर हैं, अरविंद उनका सूत्रधार है |
भ्रष्टाचार समाज के कई स्तर पर होता है | भ्रष्टाचार का सबसे पहला स्तर आम जनता के मन मे होता है और उसे निकालना आवश्यक है | हम देवी और देवताओं को भी रिश्वत देते हैं | हम भगवान से कहते हैं कि आप मेरा यह काम कर दीजिए तो फिर मैं आपको यह भेंट करूंगा | मैं आपको नारियल भेट करूंगा | मैं वैष्णव देवी चढूंगा | जो लोग मन्नत या इच्छाएं मांगते हैं, वह भी एक किस्म का भ्रष्टाचार ही है | यह भी ठीक है जब कोई सामान्य व्यक्ति भगवान को कभी कुछ अर्पित करना चाहे | यह मत कहो कि मेरा काम होने पर मैं यह दूंगा | भगवान को आप जो भी अर्पित करना चाहें उसे अर्पित करें वह ठीक है, परन्तु उसे अपनी इच्छाओं और जरूरतों से जोड़ना गलत है | यह परंपरा सभी धर्मो में  प्रचलित है, सिर्फ हिंदू धर्म मे ही नहीं, यह ईसाई, इस्लाम और बौद्ध धर्मो में भी प्रचलित है | मन की यह स्थिति कि मेरा काम होने पर मैं यह या वह करूंगा, वह गलत है | यह नहीं होना चाहिये | जब आम जनता भ्रष्टाचार के विरोध मे खड़ी होकर रिश्वत नहीं देगी तो फिर कोई रिश्वत कैसे लेगा ? इसलिए हमे सबसे पहले रिश्वत देने वालों को ठीक करना होगा | उन्हें बताएं कि रिश्वत नहीं देना है | हमें एक आध्यात्मिक लहर लानी होगी | फिर लोगो में एक आत्मविश्वास जागेगा और वे  रिश्वत नहीं देंगे | जब आप वापस जायेंगे तो आप प्रत्येक व्यक्ति १०० लोगों को प्रतिज्ञा करवाएं कि आप किसी को भी किसी किस्म की रिश्वत नहीं देंगे | जब आप किसी व्यक्ति को पैसा दिखाते हैं तो उसे अपनी पत्नी और बच्चे याद आ जाते हैं और वह यह सोचता हैं कि मैं इसे ले लेता हूं | इसलिए जो लोग रिश्वत देते हैं, उन्हें रोकना जरूरी है |
दूसरे किस्म का भ्रष्टाचार अधिकारियों के स्तर पर होता है | कई स्वयंसेवी यह कार्य कर रहे है; वे सरकारी अधिकारियों के टेबल पर एक पट्टी चिपका देते हैं जिस पर लिखा होता है ‘हम रिश्वत नहीं लेते’ | यह यहां पर शुरू हो गया है लेकिन इसकी शुरुवात कई राज्यों मे होनी है | महाराष्ट्र में इसकी शुरुवात नहीं हुई है; जहां भी इसकी शुरुवात नहीं हुई है वहां पर स्वयंसेवियों ने अधिकरियों के पास जाकर उनके टेबल, कुर्सी, दरवाजे या कहीं पर भी यह पट्टी चिपका देनी चाहिये जिस पर लिखा होगा ‘हम रिश्वत नहीं लेते’ फिर जो लोग रिश्वत देते हैं, वे भी इसे पढ़ कर रिश्वत नहीं देंगे |
तीसरे किस्म का भ्रष्टाचार मंत्री स्तर पर होता है, और लोकपाल विधेयक के द्वारा उस पर काफी काम हो रहा है, अरविन्दजी, अन्नाजी, स्वामीजी और किरण बेदी उस उद्देश्य के पूर्ती के लिए दिन रात काम कर रहे हैं | लोकपाल विधेयक के पारित होने के बाद काफी बदलाव आयेगा | लेकिन सिर्फ विधेयक से बात नहीं बनेगी और समाज में उसके प्रति सजगता लानी होगी कि यह विधेयक क्या है और कैसे किसी को कानूनी सजा मिलेगी जब कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार मे लुप्त होगा | यह कार्य अभी हो रहा है | यह कार्य समाज के हर स्तर पर करना होगा और लोगों का मनोभाव बदलना सबसे जरूरी है, और यह सिर्फ आध्यात्म के द्वारा ही हो सकता है क्योंकि भ्रष्टाचार की शुरुवात वहां से होती है जहां पर अपनापन खत्म होता है | कोई भी अपने परिवार और अपने लोगों से रिश्वत नहीं मांगता | और अपनेपन का प्रचार करने का माध्यम है आध्यात्म और इसे करना होगा | हमें सब में यह विश्वास जगाना होगा कि जो कुछ भी उसका है, वह उसे मिलेगा | इस किस्म का आत्मविश्वास और सजगता लोगों में जगानी होगी | इसके साथ हमें देश मे काफी बदलाव लाना होगा |
तमिलनाडु में इतना भ्रष्टाचार था और चुनाव के पहले लोगों पैसे दिए जा रहे थे और उनके बच्चों के सिर पर हाथ रखकर कसम ली जा रही थी वे उनके उम्मीदवार को अपना मत दें | मैंने लोगों से प्रत्येक जिले मे जाकर लोगों से यह कहने को कहा कि पैसा ले लीजिए पर उन्हें मत नहीं दीजिए क्योंकि यह आपका  ही पैसा आप को दे रहे हैं | वे इतने गरीब लोग हैं कि वे पैसा ले लेते थे | मैने उनसे कहा कि पैसे के बदले मे अपना मत उन्हें न दें और आप पाप की चिंता न करें उसे मुझे दे दीजिए, मैं सारा पाप अपने पर ले लूंगा, इसकी कोई समस्या नहीं है | और हमें तमिलनाडु मे सफलता मिली | हम भाग्यशाली हैं कि चुनाव आयुक्त भी हमारे साथ दृढ़ता के साथ खड़े रहे और और अपनी स्वीकृति और सहयोग प्रदान किया | हम सब को काम करना होगा | हम को प्रत्येक गावों मे जाकर यह सजगता लानी होगी कि हम भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं और जैसे समाज चाहता हैं, उसमे वैसा बड़ा बदलाव लायेंगे |
प्रत्येक व्यक्ति को यह लगना चाहिये कि हमे सब को साथ मे लेकर चलना होगा | विभिन्न किस्म के लोग, विश्वास और सम्प्रदाय हैं और हमें सब को गले लगाकर चलना होगा | आपको यह नहीं कहना चाहिये, कि सिर्फ मेरा ही मार्ग सही है | भारत की विशेषता यही है कि इसमें कई समुदाय, धर्म और विश्वास हैं और हमें सबका सम्मान करते हुए साथ मिलकर आगे बढ़ना हैं |

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