दुनिया लोगों की गलतियों से व्याप्त है! गलतियों को माफ़ करे और लोगो से प्रेम करे!!!


२२ जून २०११, बैंगलुरू आश्रम 
प्रश्न: प्रिय गुरुजी, हमने पढ़ा है कि रामकृष्ण परमहंसजी को  विवेकानंदजी के  द्वारा काली माँ के दर्शन का वरदान मिला था। क्या आज भी यह संभव है?
श्री श्री रवि शंकर: रामकृष्णजी ने विवेकानंदजी  को वरदान दिया था। उन्हें बहुत से अनुभव हुए थे। वह केवल  उर्जा ही थी जिसने पूरे वातावरण को बदल दिया। उस आध्यात्मिक उर्जा ने रिश्तों और मन को परिवर्तित कर दिया।

प्रश्न: गुरुजी, एक ही जीवन काल में क्या किसी  व्यक्ति को एक से अधिक बीज मंत्र प्राप्त हो सकता  है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, इसमें कोई मुश्किल नहीं है।

प्रश्न: जब आप किशोर अवस्था में  थे तब आपका सबसे पहला लक्ष्य क्या था?
श्री श्री रवि शंकर: दिव्यता! वह अभी भी चल रहा है |

प्रश्न: मै अपने जीवन में कोई भी निर्णय लेने में भ्रमित रहता हूँ? मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर: भ्रम में रहना अच्छा है! आप की  किस्मत अच्छी है कि आप सदैव भ्रम में रहते है । इसका अर्थ है कि आप प्रगति कर रहे है। भ्रम तब होता है जब एक विचारधारा परिवर्तित होती है, और नई विचारधारा अभी बनी नहीं  है। लेकिन  यह एक अस्थायी अवस्था है। जब नई विचारधारा  आती हैं, तब आप  फ़िर से भ्रमित हो जाते है, जब वह विचारधारा कमज़ोर हो जाती  है। फिर भी आप  आगे ही बढ़ रहे है।

प्रश्न: मैं एक अहिंसक जीवन कैसे व्यतीत कर  सकता हूँ, जब मैं ऐसे माहौल में हूँ, जहाँ यदि मैं पिस्तौल नहीं रखूं तो मुझे मार दिया जाएगा? मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर: हिंसा का अर्थ आत्म रक्षा नहीं है और ना ही अहिंसा का अर्थ है अपने बचाव में कोई कमी। इसमें कोई दो मत नहीं कि आपको  अपने बचाव के लिए तैयार रहना चाहिए परन्तु  अपने मन और दिल में अहिंसा का भाव बनाए रखे । और आप  पायेंगे कि अहिंसा की मौजूदगी में, दृढ़ हिंसा और हिंसक लोगों की हिंसक प्रवित्तियाँ भी शांत हो जाती हैं।
लॉस एंजेलेस और वॉशिंगटन डीसी में मेरे साथ ऐसा हुआ है। दोनों बार एक व्यक्ति मुझ पर आक्रमण करना चाहता था। यीशुमसीह  के नाम पर उसने मुझे श्राप दिया और कहा यह सब पैशाचिक है। उसने कहा योग पैशाचिक है |जैसे ही वह ऊँचा तगड़ा  आदमी मंच पर आया , मैने कहा रुको, और वह झुक कर रोने लगा। हमारे पास तो कोई भी हथियार या अपने बचाव के लिए कुछ भी नहीं था | सब लोग अत्यंत हैरान थे क्योंकि किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि सत्संग मे कोई व्यक्ति ऐसे आक्रमण कर सकता है |बाद में उस व्यक्ति ने भी  कोर्स किया।
एक गलत धारणा के  कारण हिंसा हो सकती है। तनाव और एक तरह की पीड़ित होने  की भावना हिंसा का कारण हो सकती है। पर जब हम अहिंसा में यकीन रखते हैं और दिल में उस शक्ति के साथ आगे बढते  हैं तो आप एक बड़ा फ़र्क महसूस करेंगे। ऐसी कई घटनायें हैं।
एक बार दिल्ली में, नोएडा में हज़ारों लोग मेरी कार को आग लगाने आए। मैने सिर्फ़ इतना कहा आपको जो भी करना है, आप कर सकते है, परन्तु मुझे आपसे  बात करने के लिए सिर्फ़ दस मिनट चाहिए, और उन दस मिनटों में उनमें अत्यंत बदलाव आ गया । उन दिनो में, ८० के दशक में वह इलाका इतना प्रगतिशील नहीं था। वह पूरा जंगल था, जिसमें एक गाँव और उग्र लोग रहते थे। हमें अहिंसा में यकीन रखना चाहिए, मैं यह नहीं कहता कि आप  अपनी सुरक्षा  के लिए हथियार न रखे या  स्वयं की रक्षा करना सीखे। जब तक आप  अहिंसा में गहन रूप से  स्थापित नहीं हो जाते तब तक अपने बचाव के लिये हथियार रख सकते है और अपने बचाव का इंतज़ाम कर सकते है। यह ठीक है।
 
प्रश्न: मैने अपनी पिछली नौकरी छोड़ दी है क्योंकि वहाँ बहुत ईर्ष्या और चुगलखोरी होती  थी। इतने नाकारात्मक लोगों के साथ  कैसे काम किया जाए?
श्री श्री रवि शंकर: युक्ति के साथ। नाकारात्मक लोग आपके  बहुत सारे  कौशल को निखार देते  हैं। आपको  उन्हें धन्यवाद देना  चाहिए। वे आपको  सिखाते हैं कि आपको  उनसे कैसा व्यवहार करना चाहिए और हर परिस्थिति का कैसे सामना करते हुए आगे कैसे बढ़ना हैं । वे आपके सभी  बटन दबा देते हैं और आपको  उनसे मुक्त कर देते हैं।

प्रश्न: गुरुजी, बहुत बार मुझे बुरे सपने आते हैं, उनसे कैसे छुटकारा पाया जाए?
श्री श्री रवि शंकर: ध्यान करे ! सोने से पहले भी थोड़ा ध्यान करे और कुछ अच्छे मंत्र उच्चारण को सुनना भी मदद करेगा।

प्रश्न: बहुत समय से मेरा बुरा समय चल रहा है और मुझे लगता है मुझे सब छोड़ देना चाहिए। पिताजी कहते हैं कि हमारे परिवार पर किसी ने काला जादू किया है । क्या ऐसा होता है, और यदि  हाँ तो इससे कैसे बचा जाए?
श्री श्री रवि शंकर: साधना, सेवा और सत्संग को करे  और फिर कोई काला जादू आपको छू भी नहीं सकता। मंत्रोचारण करे और वैदिक मंत्रोचारण, रुद्रम, ॐ नम: शिवाय को सुने , यह सब मदद करेगा।

प्रश्न: जब मैं यू एस  में होता हूँ, तब  मैं भारत आना चाहता हूँ, और जब मैं भारत में होता हूँ तो यू एस  जाना चाहता हूँ। मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर: जो आप  कर रहे है वही करते रहे। आप इस जगह या उस जगह को याद करते रहे ! परन्तु  अपनी साधना, सेवा और सत्संग को न छोड़े| उसे  हर जगह पर करते रहे |

प्रश्न: गुरुजी, महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने पांडव और कौरवों दोनो की सहायता की । उन्होने कौरवों के पास अपनी पूरी सेना भेजी , फिर पांडवो के लिए एक भी अस्त्र नहीं उठाया। ऐसा क्यों?
श्री श्री रवि शंकर: भगवान श्री कृष्ण के अपने तौर तरीके थे, और वे  सब रहस्यमय है जिसे आप  समझ ही नहीं सकते। बेहतर होगा कि आप उसे  छोड़ दे । जो भी भगवान श्री कृष्ण को समझने की कोशिश करता है, वह सब व्यर्थ है। भिन्न लोग, भिन्न समूह भगवान श्री कृष्ण को अलग अलग रूप में देखते  हैं। इसीलिए उन्हे पूर्ण अवतार कहा जाता  हैं, वे हर तरफ़ से सम्पूर्ण हैं। वे बहुत ही अनूठे है ।

प्रश्न: मुझे यह तो समझ में आ गया कि ध्यान से मनोभाव  में बदलाव  आता है. पर क्या ध्यान से योग्यता  में भी बदलाव आता है?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ, बेशक!

प्रश्न: क्या आप हमें भाव समाधि के बारे में कुछ बताएंगे! क्या हम भी इसे  अनुभव कर सकते हैं?
श्री श्री रवि शंकर: हाँ | भाव समाधि में  केवल अपने आप को संगीत और भाव में डूबने दीजिये और समष्टि के साथ जुड़ाव महसूस करते हुये भाव से भर जाये, और अपनी भावना के साथ एक हो जाये । जब मन भीतर से शांत और पूर्ण  होता है, तब आप उस क्षण में नाचना चाहते है । विचार और चिंताएं समाप्त हो  जाती हैं।

प्रश्न: मुझे अपने पालकों  और अपने प्रेम में से किसी एक को क्यों  चुनना पड़ता है ? 
श्री श्री रवि शंकर: मुश्किल सवाल है! अपने मन से पूछिये, "मैं ऐसे किसी का चुनाव  क्यों करूं, जिसे मेरे पालक पसंद नहीं करते या  मेरे पालक  उसे क्यों पसंद नहीं करते हैं जिसका चुनाव मैंने किया है । यह एक तंग रस्सी पर चलने जैसा है ?

प्रश्न: क्या एक भक्त का दिव्यता के लिए प्रेम कम हो सकता है, और यदि  हाँ, तो इसे  बदलने के लिए क्या किया जा सकता है?
श्री श्री रवि शंकर: समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।

प्रश्न: भाव, मन, शरीर और क्रोध का क्या महत्व है? 
श्री श्री रवि शंकर: शरीर को स्वस्थ्य  और भाव को शुद्ध रखे! यह ऐसा पूछने के जैसा  है कि मैं अपना कुर्ता और पजामा कहाँ पहनता हूँ ! आप  कुर्ते को  ऊपर और पजामे को  निचे पहनते है! उसका उलटा नहीं। हर किसी  चीज़ का अपना स्थान  है। अहंकार का अपना स्थान  है, भाव का अपना स्थान है, हमारा शरीर स्वस्थ्य और पुष्ट होना  आवश्यक है। आपको  प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए।

प्रश्न: मुझे कैसे पता चलेगा कि जो मार्ग मैने चुना है वह सही है, जबकि मैं कितने अलग अलग मार्ग चुन सकता हूँ? 
श्री श्री रवि शंकर: जब संदेह उठता है, तो यह जान लिजिये वह  सही ही है। आमतौर पर हम उसी पर संदेह करते हैं जो सही है। जो भी अच्छा है हम उस पर ही संशय करते हैं। अगर कोई पूछता है क्या आप  खुश हो, तो आप  कहते है "हाँ, यकीन के साथ नहीं कह सकता", परन्तु  आप  अपनी उदासी पर पूर्ण विश्वास रखते है । है कि नहीं? इसी तरह अगर कोई कहता है कि वह  आपसे बहुत  प्रेम करता है तो आप संशय करते है, परन्तु आप को  नफ़रत पर कभी संशय नहीं होता।
कई  बार हमारा संशय किसी सकारात्मक चीज़ पर ही होता है। अगर आप  किसी पथ पर है जिसे आप पसंद करते है , फिर संशय उठता ही  है।

प्रश्न: यदि किसी ने धोखा दिया है तो उसे कैसे भूलें? बहुत पहले मुझे एक आदमी ने धोखा दिया था और वह मेरे मन में अभी तक परेशान करता है। योग, प्राणायाम और ध्यान से वह विचार आना बहुत कम हो गया है परन्तु  पहले वह  विचार अक्सर आता था  । इन विचारों को जड़ से खत्म करने के लिए क्या कर सकती हूँ?
श्री श्री रवि शंकर: वह पहले से तो कम है न? पहले से कितना कम हो गया है? अब वह कभी कभी ही  परेशान करता है न? तो क्या हुआ, कोई बात नहीं। जितना आप उसे  रोकने की चेष्टा करेंगे , वह उतना अधिक आएगा। इसे ऐसा मान लीजिए कि यह जीवन का एक अनुभव ही है।

प्रश्न: ऐसा कहते हैं कि अभ्यास से ही कोई पूर्ण होता है। जबकि कोई भी पूर्ण नहीं होता, तो फिर अभ्यास क्यों करें?
श्री श्री रवि शंकर: अभ्यास क्यों करें? वैसे भी सभी अपूर्ण है? आप  भोजन करते है लेकिन फ़िर भी पेट फ़िर खाली हो जाता है। आप  फ़िर से भोजन करते है  और फ़िर पेट  खाली हो जाता है! यदि  ऐसा ही है तो भोजन ही क्यों करें? अगर पेट खाली हो ही जाता है तो खाने की आवश्यकता ही क्या है?

प्रश्न: गुरूजी यदि कोई बहुत बड़ा झूठा है और वह बार बार एक और अवसर  मांगता रहता है तो क्या करें?
श्री श्री रवि शंकर: मुझसे किसी ने प्रश्न किया  कि क्या मैं उससे नाराज़ हूँ, तो मैने कहा नहीं। परन्तु  इसका यह  अर्थ  नहीं कि आप  झूठ पर झूठ बोल सकते है । मुझे पता है कुछ लोग गलत करते हैं और लोगों के विश्वास से छल करते है, फिर कहते हैं मैने अभी गुरुजी से फ़ोन पर बात की, और उन्होने ऐसा कहा। मै क्रोध नहीं करता पर मुझे करुणा आती है क्योंकि वे  अपने ही मन को प्रदूषित कर  रहे हैं। वे  अपने लिए मुश्किल पैदा कर रहे हैं। फिर मैं उन लोगों पर क्रोध करके अपने  मन क्यों खराब करूं | मुझे उन पर  क्रोध नहीं परन्तु दया आती है जो इधर उधर जाकर मुश्किल पैदा कर रहे हैं।

पिताजी ने लिखा था, " दुनिया लोगों की गलतियों से व्याप्त है! गलतियों को माफ़ करे और लोगो से प्रेम करे !!! यह कितना सुंदर लेख  है।

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सत्य, सच्चाई, प्रेम और करुणा पर विश्वास रखे, यह भगवान के गुण हैं !!!

२१ जून २०११, बैंगलुरू आश्रम 

प्रश्न: गुरूजी आजकल युवा ड्रग्स, शराब, अश्लील चित्र और फिल्म देखने में बहुत रूचि रखते है, आपकी पालकों को क्या सलाह हैं कि वे किशोरों से कैसे निपटे और उनसे कैसे बेहतर संबंध स्थापित करे ?
श्री श्री रवि शंकर: हां यह एक नाजुक विषय है क्योंकि किशोर अवस्था के बच्चों को यह नहीं पसंद आता कि उनके पालक उन पर अधिकार जतायें | सामान्यता उस उम्र में यह प्रवृतियां होती है इसलिए पालकों को समझदारी से काम लेना होगा और एक दूसरे को समझना होगा | आपको किशोरों को व्यस्त रखना चाहिए और उन्हें भरपूर मनोरंजन और खेलकूद के  अवसर प्रदान करने चाहिए | उन्हें इतना सारा काम दीजिए कि उनके पास कुछ और करने का समय ही न रह जाए | जब वे घर पर आये तो वे इतने थके होना चाहिए कि उन्हें तुरंत ही नींद आ जाए | उन्हें जिम और तैरने जाना चाहिये| जब कोई एक घंटे तैरता है और फिर कुछ देर व्यायाम  करता है, तो उसकी पूरी उर्जा समाप्त हो जाती है और उसे फिर सिर्फ सोना होता है |सुबह जब वे ताज़गी के साथ उठते है तब उन्हें संगीत सीखना चाहिये और पहेलियां सुलझाने देना चाहिये, उन्हें अधिक से अधिक जानकारी, मनोरंजन और शिक्षा  मुहैया करानी चाहिये | इस तरह आप किशोरों को इंटरनेट पर अश्लील चित्र और फिल्म को देखने दूर रख सकते है |

प्रश्न: गुरूजी, जब आप मेरी उम्र के थे तो आप का जीवन कैसा था? मेरी उम्र १४ वर्ष है |
श्री श्री रवि शंकर:वह काफी रोमांचक थी ! मैंने अपने जीवन के शुरवाती वर्ष मेरे से बड़ी उम्र के लोगों के साथ बिताये |

प्रश्न: गुरूजी मेरे पालक नहीं चाहते कि मैं शाकाहारी बन जाऊँ | मैं उन्हें कैसे समझाऊँ ?
श्री श्री रवि शंकर: आप उनसे सिर्फ यह कह दीजिये कि ‘मैं शाकाहारी बनना चाहता  हूं’ फिर वे आपकी बात मान जायेंगे |

प्रश्न: गुरूजी, मैं भगवान पर भरोसा नहीं करता, क्या यह बुरी बात है ?
श्री श्री रवि शंकर: कोई बात नहीं, कम से कम अपने आप पर भरोसा करो | आपको पता होना चाहिये कि आप कौन है | आप सत्य, सच्चाई, प्रेम और करुणा पर विश्वास रखें, यह भगवान के गुण हैं !!

प्रश्न: गुरूजी मेरे पालक मुझ से बहुत प्रेम करते है और कई बार उनका इतना अधिक प्रेम मेरे लिए बहुत घुटन बन जाता है | मैं क्या करू ?
श्री श्री रवि शंकर: यह समस्या दो तरफा है | कभी कभी आपको लगता है कि वे आपसे प्रेम नहीं करते और वह भी सच नहीं है |कभी कभी आपको लगता है कि वे आपसे बहुत अधिक प्रेम करते है और वह घुटन लगता है |और फिर क्या करे? आपको घुटन कब महसूस होती है? जब आप कुछ गलत करने वाले होते  है | जब आप की चेतना आपसे यह कहती है कि यह गलत है ‘मुझे यह नहीं करना चाहिये’ फिर आपको आपके पालकों से घुटन महसूस होती है | जब इस किस्म का ध्यान आप पर रखा जा रहा हो तो कुछ घुटन होना भी ठीक है | कुछ गलत करने का आप में यदि पाप की भावना लाता है तो वह भी ठीक है| यह आपको  सुरक्षित करने की चेतावनी है |

प्रश्न:  गुरूजी संगीत मेरी जिंदगी है परन्तु मेरे आस पास के अधिकांश लोग ड्रग इत्यादि का सेवन करते है और उनमें बुरी आदतें है | मैं कैसे इससे बिना प्रभावित होकर अपना कृत्य करते रहूं?
श्री श्री रवि शंकर: अपनी संगीत साधना पर अटल रहें , वहीं ठीक है |

प्रश्न: ऐसा क्यों कहा जाता है कि हिंसा प्रेरित और डरावनी फिल्मों को नहीं देखना चाहिये, क्या उसका मन पर प्रभाव होता है?
श्री श्री रवि शंकर: आपको क्या लगता है? डरावनी फिल्म को देखने के बाद क्या आपको रात में डरावने सपने आते है? यदि हां, तो उसे न देखें| आप साल में उसे एक बार देख सकते है क्योंकि उसका प्रभाव काफी समय के लिये होता है, इसलिये संभवतः उसे टाल देना ही बेहतर है |

प्रश्न: गुरूजी मेरे पालक मुझ पर  बिना वजह ही हाथ उठाते है | मैं उस समय उनका कैसे सम्मान करूं और उन्हें कैसे स्वीकार करूं?
श्री श्री रवि शंकर: वे ऐसा बिना कारण नहीं करेंगे | जब वे अच्छे मनोभाव में हो तो उन्हें आर्ट ऑफ लिविंग बेसिक कोर्से करने को कहें | उन्हें बेसिक कोर्से करने के लिये मनाएं और हम उन्हें सिखायेंगे कि वे आप पर हाथ न उठायें |

प्रश्न:गुरूजी जब मैंने कोर्से किया तो दुसरे बच्चों ने बताया कि उन्हें अनूठे अनुभव आये परन्तु मुझे कोई भी अनुभव नहीं आया | मुझे इसकी बहुत जिज्ञासा हैं और मुझे भी इसे अनुभव करना है| मैं क्या करूं?
श्री श्री रवि शंकर: यह बात कि आप इसमें भाग ले रहे है तो निश्चित ही इससे आपको लाभ होगा अन्यथा आप यह प्रश्न नहीं कर रहे होते | आप दूसरों के अनुभव से अपनी तुलना न करें  | कोई व्यक्ति कहेगा कि उसे यह अनुभव हुआ और कोई अन्य व्यक्ति कुछ और कहेगा, फिर आप अपने अनुभव और अपने आप पर संशय करने लगेंगे | आपको कभी भी ऐसा नहीं करना चाहिये |

प्रश्न: गुरूजी हम आपसे कुछ न कुछ प्रश्न करते रहते है,हम आपके लिए क्या कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर: अधिक से अधिक लोगो में हमारे संदेश का प्रचार करें |

प्रश्न: कुछ लोग बिना किसी कारण निराश हो जाते है, ऐसे में हम क्या कर सकते है?
श्री श्री रवि शंकर:लोगों को अच्छे भोजन का सेवन करने की, और अच्छा स्वास्थ्य रखने की सलाह दीजिये, यह काफी जरूरी हैं |

प्रश्न:जो लोग आर्ट ऑफ लिविंग कोर्से करना वहन नहीं कर सकते उनका क्या ?
श्री श्री रवि शंकर:फिर भी हम उन्हें प्रदान करेंगे | जो लोग कोर्से का शुल्क वहन नहीं कर सकते वे शिक्षक से बात करें वे उन्हें कोर्से करवा देंगे | हजारों लोग ऐसे ही कोर्से कर रहे है |

प्रश्न: इतने लोग आपको अपना गुरु मानते है, आप इतने लोगों के गुरु कैसे हो सकते है?
श्री श्री रवि शंकर:हां! मैं अपना कृत्य अच्छे से कर रहा हूं |

प्रश्न: क्या आप हर किसी व्यक्ति पर उतना ध्यान रख पाते हैं, जितनी अपेक्षा उनको आप से है?
श्री श्री रवि शंकर:हां,मुझे लगता है कि जितना संभव हो सकता हैं,उतना मैं करता हूं| हमारी चेतना इतनी विशाल होती है और उसमें कई योग्यता होती है| इसलिए हम ऐसा कर सकते है| प्रकृति आपको उतना ही कार्य करने को देगी जितना आप कर सकते हो अन्यथा  वह आपको १ इंच वह कृत्य नहीं देगी जो आप नहीं कर सकते |

प्रश्न: मैं जानना चाहता हूं कि युद्ध के दौरान लोग देश के लिए अपनी जीवन की कुर्बानी दे देते है परन्तु शांति के दौरान लोग देश के लिए कुछ भी नहीं करते?
श्री श्री रवि शंकर: हां! विशेष तौर पर युवा ! जब वे प्रशासनिक तंत्र से परेशान हो जाते है और यह देखते है कि कुछ भी ठीक से नहीं चल रहा है तो फिर उनमें देश के लिए कुछ करने की प्रतिबद्धता आती है |उन्हें सिर्फ उचित नेतृत्व की आवश्यकता हैं जो उन्हें संकट की घड़ी में अहिंसा के मार्ग से आगे ले जाएगा, यहीं सबसे ज्यादा आवश्यक है | प्रेम और अहिंसा में शक्ति होती है | बहुत लोगों को यह नहीं मालूम होता है | उत्तर अफ्रीका में जो कुछ हो रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है | वहां के तानाशाह ने सत्ता को काबू किया है और वे लोगों को अपने बात उठाने ही नहीं देते | अब आप १५ शताब्दी में नहीं रह सकते | १५वी शताब्दी तानाशाहों की थी और अब लोग लोकतंत्र और स्वतंत्रता चाहते है और इन लोगों ने लोकतंत्र को स्वीकार कर लेना चाहिये | यह आवश्यक है |

प्रश्न: यदि किसी को मंगल दोष हो तो क्या करना चाहिये ?
श्री श्री रवि शंकर: मंगल दोष के लिए समाधान होता है| ॐ नमः शिवाय जप का मंत्रोचारण सभी दोषों से मुक्ति देता है |

प्रश्न: आध्यात्मिक पथ पर होते हुये क्या किसी  व्यक्ति का आक्रामक होना ठीक है? कई बार कार्य स्थल पर कार्य को करवाने के लिए आक्रामक होना पड़ता है |
श्री श्री रवि शंकर: आपको आक्रामक होने की जरूरत नहीं है आपको दृढ़ और प्रभावी होना चाहिये |

प्रश्न:गुरूजी, पूरा उत्तर अफ्रीका और मध्य पूर्वी देश में इस समय उथलपुथल है और लोग शासकों के विरुद्ध लड़ रहे और भारत में भी लोग भ्रष्ट शासकों के विरुद्ध लड़ रहे है| क्या  यह दिव्यता की रचना है कि ऐसा ही होना था और इसका भविष्य क्या है? कृपया कर के इस पर प्रकाश दीजिये ?
श्री श्री रवि शंकर:हां ऐसा ही प्रतीत होता है कि यह प्रकृति की रचना है कि समाज में अच्छाई आ जाये | भ्रष्ट लोगों के विरुद्ध आवाज़ उठाने का यह सही समय है |

प्रश्न: गुरूजी, पतंजलि योग सूत्र क्या है ?
श्री श्री रवि शंकर: पतंजलि ऋषि हज़ारो वर्ष पूर्व थे | शरीर की अशुद्धि को समाप्त करने के लिये उन्होंने आयुर्वेद पर कार्य किया और उस पर अपनी शोध पुस्तक लिखी| उन्होंने व्याकरण, स्वर/ध्वनि विज्ञान पर भी लिखा | ध्वनि कैसे बनती है और ध्वनि और आकार में क्या संबंध है | उन्होंने ध्वनि का अर्थ समझाया और वस्तु के प्रकृति के सम्बन्ध को समझाया | यह सब उन्होंने लिखा |यदि आपने  पतंजलि का अध्ययन नहीं किया तो आप संस्कृत को नहीं पढ़ सकते | पतंजलि ने व्याकरण पर भी लिखा है | फिर उन्होंने योग सूत्र को भी लिखा |

प्रश्न: कई बार जब लोग आप के साथ कुछ बुरा करते है जिससे आपको बुरा लगता है और आप उन्हें माफ नहीं कर पाते और जैसे समय बीतता हैं फिर उस व्यक्ति के लिये वहीं भावना बनी रहती है | परन्तु आपको उस व्यक्ति को माफ करने की इच्छा होती है और उनसे अच्छे संबंध बनाना चाहते है |
श्री श्री रवि शंकर: हां, ध्यान करने से इसमें सहायता मिलेगी | इसकी बेहतर समझ से और फायदा होगा | यदि किसी व्यक्ति ने आप के साथ कुछ बुरा किया है तो आप उसे पहले इस दृष्टिकोण से देखे वह सिर्फ एक डाकिया था जिसने आप के साथ वह किया | फिर ऐसे सोचे कि वह व्यक्ति अज्ञानी था जिसे यह नहीं मालूम था कि वह क्या कर रहा है और क्यों कर रहा है | फिर यह सोचे कि व्यक्ति स्वयं ही  पीड़ित हैं और उसने उस रूप से वह गलती करी| इस तरह से आप अपने दृष्टिकोण को व्यापक बना लेंगे | फिर आप पायेंगे कि सब कुछ बदल रहा है |

प्रश्न:आपने अपने किसी चर्चा में कहा है कि तीन बातें गृह को नष्ट करते है : गैरसमझ,गलत जानकारी और दुरुपयोग, इनसे हमें कैसे राहत मिल सकती है ?
श्री श्री रवि शंकर: हां! अपने संपर्क क्षमता में सुधार करे,बेहतर समझ रखें और लोगों पर संदेह न करें |

प्रश्न: क्या यह एक तरफा कृत्य नहीं होगा ?
श्री श्री रवि शंकर:आप अपने तरफ से कृत्य करें और फिर उसे छोड़ दीजिये |

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सारी दुनिया एक ही चेतना,एक ही उर्जा और एक ही तत्व से बनी है !!!


२६ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम 
जब भगवान श्री कृष्ण समाधी में बैढे तो उन्होंने भगवत गीता सुनाई | युद्ध के उपरांत अर्जुन ने उनसे कहां आपने जो मुझे सुन्दर उपदेश युद्ध के दौरान प्रदान किया मैं उसे भूल गया क्योंकि  युद्ध भूमि में बहुत भीड़  और झंझाल था और मैं आप को ठीक से सुन नहीं पाया | आपने जो वहां पर कहा था उसे फिर से सुनाये | भगवान श्री कृष्ण ने कहां मैं वह तुम को फिर से नहीं सुना सकता क्योंकि उस समय मैं समाधी में था, और मैने तुम्हे बिठाकर वह सब सुनाया जो कुछ मुझे ज्ञात हुआ और मैं वह फिर से नहीं सुना सकता | जो कुछ भगवान श्री कृष्ण ने कहां वह कोई व्यक्ति के रूप में नहीं बोल रहे थे, परन्तु वह सम्पूर्ण ज्ञान समष्टि के द्वारा बोला जा रहा था, और यह सारा उपदेश शिव तत्व और आत्म तत्व के द्वारा आया |

उन्होंने कहा मैं ही सूर्य,वर्षा,सत्य और असत्य हूं और सबकुछ मैं ही हूं | यह एक गहरी बात है |
सबकुछ एक ही तत्व और अणु से बना  हैं | आपके माता, पिता किस तत्व से बने है | सबका शरीर एक ही मिट्टी और उसी अनाज से बना है, अनाज ग्रहण करने से शरीर बनता है |  जो कोई भी उसे खाता है उससे वे और शरीर बनता है | सभी कोई एक तत्व,शक्ति और उर्जा से बना है | वे कह रहे हैं कि सारी दुनिया एक ही चेतना,एक ही उर्जा और एक ही तत्व से बनी है |

यदि आप पंखा, माइक और लाइट को देखेंगे वे सब एक ही विद्युत तरंग के कारण चल रहे हैं | परन्तु ऐसा प्रतीत होता हैं कि पंखा, माइक और लाइट अलग अलग है | वे अलग अलग प्रतीत होते हैं लेकिन वे सब एक ही चीज से बने है | उसी तरह यदि सूर्य नहीं होता तो पृथ्वी नहीं होती | यदि पृथ्वी नहीं होती तो पौधे,पेड़ और मानव भी नहीं होते ? तो हमारा स्रोत क्या है? भौतिक स्तर पर हमारा स्रोत पृथ्वी है; उसका और सूक्ष्म स्वरुप है सूर्य| फिर सूर्य का स्रोत क्या है ? वह समष्टि उर्जा ; और फिर भगवान श्री कृष्ण कहते है कि वह समष्टि उर्जा मैं हूं |

वह आत्मा आप है, मैं हूं और सबकुछ इसी समष्टि उर्जा से बना हुआ है और आज विज्ञानिक भी यही कहते है | जो लोग क्वांटम भौतिकी पढ़ते हैं वे कहते सारी सृष्टि एक ही उर्जा से बनी हुई है | पहले कहा जाता था कि अलग अलग अणु और परमाणु  होते है और उनसे सारे कृत्य होते है, लेकिन अब वे कहते हैं कि यह सब एक ही उर्जा से होता है और सबकुछ एक ही  तरंग का कृत्य है | जिसे हम वस्तु समझते है वास्त्व में वह वस्तु नहीं है, वह शक्ति और यह सब सिर्फ उर्जा है और यह बात कई वर्षों पहेले भगवान श्री कृष्ण ने भगवद गीता में कहीं |

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तानुमाश्रितम् परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम | ये लोग मुझे अनंत शक्ति न जानकार मनुष्य समझते है, मैं मनुष्य योनी  में तो हूं पर मुझमे जो चैतन्य है, वह परम चैतन्य है | लोग मुझे गलत समझते हैं, मैं कोई व्यक्ति नहीं, मैं शक्ति हूं |

प्रश्न: शुरुवात में जब हम कोई जप मंत्र लेते है तो वह अत्यंत विशेष लगता है | लेकिन कुछ समय उपरान्त वहीं भावना नहीं रहती| उसी भावना को कैसे बरक़रार रखा जाए और अपने मंत्र को कैसे प्रभावकारी बनाया जाए ?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ भी बनाने का प्रयास न करे | जब भी उसे याद करे, यह मान कर चले कि वह अत्यंत पवित्र और विशेष है | जब आप गंगाजी के ठन्डे पानी में पहली बार डुबकी लगाते है, तो पानी ठंडा लगता है लेकिन जैसे ही आप पानी में उतर जाते हैं तो फिर पानी उतना ठंडी नहीं महसूस होता हैं क्योंकि शरीर ने उसे स्वीकार कर लिया है और पानी को फिर से ठंडा लगने के लिए आपको फिर से बहार आना होगा | आपको इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है, आपको जब भी कृतज्ञता लगे तो उसे विशेष समझे | कृतज्ञता तरंग या लहरों के रूप में आती है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, इतने सारे मंत्र हैं, क्या आप कुछ विशेष मंत्र जैसे विष्णु सहस्त्रनाम,ललित सहस्त्रनाम और श्री विद्या मन्त्र के प्रभावों के बारे में बताएंगे ?
श्री श्री रवि शंकर: इतना अधिक विस्तार में ना जाए | विष्णु सहस्त्रनाम में कहा गया है “सोहऽमेकेन श्लोकेन स्तुत एव न संशय:” और एक शब्द सोऽहम् में  ही सब कुछ आ गया है | राम शब्द और सोऽहम् में विष्णु जी  के एक हज़ार नाम लिखे गए है कभी कभी आप विष्णु सहस्त्रनाम को सुन कर उस पर ध्यान कर सकते है सभी मन्त्रों के कुछ प्रभाव होते है पर ध्यान सबसे महत्पूर्ण है | मन्त्रों से परे जाना भी आवश्यक होता है, और सब कुछ से परे हो जाना मन को शांति प्रदान करता है |

प्रश्न : गुरुजी सारे मंत्र संस्कृत मेंमैं क्यों है? संस्कृत में  क्या विशेष है ?
श्री श्री रवि शंकर: संस्कृत की उत्पत्ति बाद में हुई, मंत्र पहले से ही थे | मन्त्रों के शब्द  पहले से ही थे बाद में  भाषायें उत्पन्न हुई | सिर्फ संस्कृत ही नहीं परन्तु यदि आप सभी भाषाओं के गहन में जायेंगे तो इन सभी  मंत्रो को पायेंगे  |

प्रश्न : गुरुजी मंत्र और यन्त्र में क्या सम्बन्ध है ? 
श्री श्री रवि शंकर: एक मंत्र  है और एक तंत्र है | मंत्र में शब्द और यन्त्र में चित्र होता है| मंत्र में ध्वनि और यन्त्र में आकार होता है|

प्रश्न : गुरुजी इतने सारे  मंत्र है यह कैसे मालूम होगा कि मेरे लिए कौन सा मंत्र उचित है ?
श्री श्री रवि शंकर: आप सहज समाधी ध्यान सीखें और आप के शिक्षक जो भी मंत्र देंगे वह आप के लिए उचित होगा|

प्रश्न : अच्छे  शिष्य  के क्या गुण है?
श्री श्री रवि शंकर: इसे आप अपना होम वर्क अभ्यास क्यों नहीं मान लेते? आप इन्हें  लिखें और मुझे बताएं | कल हम एक कागज लगा देगें  और उस पर हर कोई जा कर एक गुण लिखे | दो दिन आप इन सभी गुणों को लिखें यदि किसी ने कोई गुण को पहले से ही लिख रखा है तो उसे फिर से  पुनः  ना लिखें और कोई अन्य गुण लिखें | आपको को भी गुण लिखने का मन करे, उसे लिखे | जो लोग इस कार्यक्रम को इन्टरनेट पर देख रहे है वे भी अपने विचार भेजें कि आदर्श भक्त या शिष्य  के क्या गुण होना चाहिए|

प्रश्न : कौन सी प्राथना सबसे उत्तम है ? जिसमें तुरंत उत्तर देने के अलाबा भगवन के पास कोई विकल्प ना रह जाये ? वह प्राथना क्या है ?
श्री श्री रवि शंकर: शांति और मौन में  रहें और यह जान ले कि दिव्यता सब बात का ध्यान रख रही है वही सबसे उत्तम प्रार्थना है, ध्यान सबसे उत्तम प्राथना है |

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, क्या आप  भूत और प्रेत के बारे  में बता सकते है, क्या वे सही में होते हैं ? यदि वे आपको बहुत पसंद करने लगे तो उनसे कैसे छुटकारा पाया जाये?
श्री श्री रवि शंकर:  यह एक गंदे तालाब  में उतरने के बाद उसमें से निकलने का प्रयास करने जैसा है | जितना आप उसमें उतरेंगे उतना ही उसमें डूबेंगे | इसीलिए सबसे उतम यह होता है कि आप अपनी साधना करें और आप के आस पास के लोगों का ध्यान रखें कुछ सेवा कार्य करें , भजनो का गान करें उससे सब बातों का  ध्यान रखा जायेगा | अपना ध्यान भूत और प्रेतों के तरफ बिलकुल केंद्रित न करें |

प्रश्न :- प्रिय गुरु जी, मैं जानना चाहता हूं कि यदि मैं किसी को आशीर्वाद देता हूं तो क्या उनकी नकारात्मकता मुझ मैं आ जाती है, यदि हां तो उसका क्या समाधान है ?
श्री श्री रवि शंकर: नहीं! आप चिंता ना करें | सिर्फ जय गुरु देव कहें |

प्रश्न :गुरुजी, केंद्रीय मंत्री मंडल में कई अपराधी है , हम किस ओर  बढ़ रहे है, हमारा देश किस ओर बढ़  रहा है?
श्री श्री रवि शंकर: इसके लिए भारी परिवर्तन की आवश्यकता है और इन मंत्रियों को हटाने के लिए भारी  परिवर्तन की आवश्यकता है | हम सब को भ्रष्टाचार मिटाने का संकल्प लेना चाहिए, सब कुछ और परिस्थितियां बदलेगी  |

प्रश्न : गुरुदेव एक समय इस देश में किसान धनी ओर संपन्न होते थे | वही किसान  जो सारे  देश का पेट भरते है, उनको खुद को खाली  पेट सोना पड़ता है , उनसे क्या गलती हुई और हम इसमें कैसे सुधार ला सकते है ?
श्री श्री रवि शंकर: वह मंत्री जो किसानो का शोषण कर रहा है उसे कुछ सदबुद्धि आनी चाहिए या उसे उस पद से हटा देना चाहिए |मैं भी इसी विषय पर विचार कर रहा था | जब से इस मंत्री ने अपने इस पद को संभाला है, उसने कुछ भी अच्छा कार्य नहीं किया जिससे आकाल और अनाज की कमी उत्पन्न हुई और यह आकाल प्रकृति की वजह से नहीं पड़ा |  या तो उसके पास दिल या दिमाग नहीं है या फिर तो दोनों ही नहीं है | या तो कुछ गढ़बढ़ है | कुछ भी हो जाये उन्हें कुछ भी चिंता ही  नहीं होती, उन्हें तो सिर्फ धन से मतलब होता है |इन्होने लाखों करोडो रूपये विदेश भेजा है ओर आतंकवादियों से संपर्क बनाये है | और  उन्होंने  इस देश को लूटा है |यह बहुत आवश्यक है कि इसके खिलाफ हम अपनी आवाज उठायें |

प्रश्न : गुरुजी, मैंने  दसवी कक्षा उत्तीर्ण कर ली है और दसवी कक्षा उत्तीर्ण कर लेने के वाद मैंने बारहवी कक्षा भी उत्तीर्ण कर ली है | इस दुनियां में अपनी बुद्धि को सिद्ध करने के लिए मुझे कितने बार उत्तीर्ण होना होगा ?
श्री श्री रवि शंकर: जिनके पास कुछ नहीं होता है उन्हें लगता है दूसरों के पास भी कुछ नहीं है | यहां तक मुझे भी अपने आप को बार बार सिद्ध करना पड़ता है, इसीलिए आप अपने आपको कुछ और समय तक सिद्ध करते रहें | अपनी परीक्षा को क्रीड़ा के जैसे समझे फिर उसकी चिंता आपको नहीं सताएगी | आप को अपने परीक्षा में  अच्छे से अध्ययन करके अच्छे से उत्तीर्ण करनी चाहिए | सीढ़ी टेढ़ी हो तो आप क्या करते है? आपको भी थोडा अपने आपको झुका कर उस पर कैसे भी चढना पड़ता है | यदि आपने चढ़ते समय सीढ़ी को सीधा करने का प्रयत्न किया तो फिर आप उसमें फंस सकते है | सीढ़ी यदि टेढ़ी हो  तो रेलिंग का सहारा लेकर उस पर चढें और एक बार आप जब आगे बढ़ जाते है तो सीढ़ी को ठीक करने के बारे में विचार कर सकते हैं|

प्रश्न :- गुरुजी कौनसी इच्छाओ को भगवान के समक्ष समर्पित कर देना चाहिए और कौनसी इच्छाओं को स्वयं के प्रयासों के द्वारा पूरा किया जा सकता है ? इसे कैसे समझें ?
श्री श्री रवि शंकर: प्रयास और समर्पण एक साथ चलते है, इसीलिए आप प्रयास करें और उसे समर्पित कर दीजिए | हम संकल्प  लेकर  उसे छोड़ देते हैं | पूजा में हम क्या करते है ? हम चावल, पानी ओर फूल को अपने हाथ में लेकर संकल्प लेते है और उसे छोड़ देते है | हम फूल को अपने हाथ में  पकड़ कर नहीं रखते | जब आप सिनेमा देखने जाते है तो आप पहले टिकिट खरीदते है और जब आप  सिनेमा घर में प्रवेश कर रहे होते हैं तो वह टिकिट आपको वापस कर देना पड़ता है | ३० -४० वर्ष पूर्व निश्चित ही टिकिट वापस देनी पड़ती थी |अभी भी आप को उसे वापस देना पड़ता है | इसीलिए संकल्प और समर्पण को हमें इस तरह से देखना चाहिए | आप अपना १०० प्रतिशत दीजिये और फिर उसे भगवान की इच्छा मान लीजिए |

प्रश्न : नैतिक मूल्यों के बारे में आध्यात्मिक गुरुओं की क्या भूमिका होती है ?
श्री श्री रवि शंकर: उनकी पूरी भूमिका होना चाहिए | सिर्फ दूसरों को मूल्यों के बारे में बताना पर्याप्त नहीं है | परन्तु यह बताना कि इन मूल्यों को आपको अपने जीवन में कैसे उतरना चाहिए, यह भी सिखाना भी आवश्यक है |  इन मूल्यों के साथ कैसे जीना इसे भी समझदारी के साथ बताना चाहिए | यदि कोई फिसल जाये तो फिर समझदारी  से उन्हें आगे बढ़ने के लिए  प्रोत्साहित करना चाहिए | यही इसका कौशल है |

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तर्क भावनाओं को सांत्वना नहीं दे सकता परन्तु वहां आपकी शांत उपस्थिति अंतर ला सकती है!!!


१९ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम 

प्रश्न: गुरूजी जो कुछ भी याद रखने योग्य है, मैं उसे भूल जाता हूं और जो याद रखने योग्य नहीं है, उसे मेरी स्मृति याद करती रहती है, मन की यह कैसी विडम्बना है ?
श्री श्री रवि शंकर: कम से कम आपको यह समझ तो आ गया है | कई लोगों को यह समझ में नहीं आता | आप अपनी पीठ को थपथपाएं | आपने सही दिशी में पहला कदम रख लिया है | थोड़े प्रयासों से यह बदल जाएगा | जब आप अतीत की समीक्षा करते हैं तो आपको इसका यही निष्कर्ष निकालना चाहिए कि सब कुछ अच्छे के लिए ही हो रहा है, क्योंकि आप गलत बातों से कुछ सीखते हैं | परन्तु इसे आपको भविष्य के लिये लागू नहीं करना है | अतीत को देखते हुए यह जान कर कि जो कुछ होता है उसके लिये पीछे एक अच्छा कारण होता है, यह सोच रख कर आप भविष्य में आगे बढ़ें | परन्तु वर्तमान में यह कहना कि ‘जो कुछ होता है, वह अच्छे के लिये होता है’ यह ठीक नहीं है |

प्रश्न: जब किसी प्रियजन की मृत्यु हो जाती है तो उन्हें आप कैसे समझाते हैं ? उन्हें कैसे सांत्वना दें ?
श्री श्री रवि शंकर: आपको समझाने की आवश्यकता ही क्यों है ? जब आपको किसी को सांत्वना देनी हो तो आप सिर्फ शान्ति से वहां अपनी उपस्थिति दीजिये, वहां आपकी मौजूदगी ही पर्याप्त है | हर किसी को आप शब्दों से सांत्वना प्रदान नहीं कर सकते | हर कोई यहां कुछ समय के लिए आया है, फिर उसे एक दिन ऐसे ही जाना है | कोई भी तर्क भावनाओं को सांत्वना नहीं दे सकता | इसमें तर्क की कोई भूमिका नहीं हो सकती | भावनाओं को तर्कपूर्ण निष्कर्षो या समझ से शांत करना कोई ठीक बात नहीं है |
यह बात सही है कि मन में ऐसे विचार आते है कि ‘ऐसा क्यों हुआ ?’ ऐसे प्रश्नों का उत्तर कभी नहीं देना चाहिये | आप वहां पर शान्ति, प्रेम और करुणा के साथ रहे, फिर वातावरण अपने आप ही बदल जायेगा |

प्रश्न: जब किसी पौधे या पशु की प्रजाति लुप्त हो जाती है तो क्या उसका हम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ? क्या यह प्रजातियां किसी और अन्य गृह या समरूप गृह पर मौजूद होती हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: कुछ भी पूरी  तरह से लुप्त नहीं होता, वह सिर्फ ऐसा प्रतीत होता है और उसकी संख्या ऊपर या नीचे होती रहती है | किसी भी प्रजाति को पूर्ण रूप से लुप्त होने के लिए बहुत समय लगता है | इसलिए आप चिंता न करे, कई अन्य गृह है परन्तु हमें इस गृह का ध्यान रखते हुए यही आनंद लेना और रहना है और वही पर्याप्त है |

प्रश्न: क्या समलैंगिकता पाप है? क्या मानवो में ऐसे प्रवृतियों को साधना और आध्यात्मिक अभ्यासों से बदला जा सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: ऐसी प्रवृतियां आप में इसलिए आती है क्योंकि आप अपने माता और पिता दोनों से बने है, आप उन दोनों का संयोग है | हर किसी व्यक्ति  में पुरुष और स्त्री के जीन होते है | जब पुरुष के गुणसूत्र (क्रोमोसोम) हावी होते है या जब स्त्री के गुणसूत्र (क्रोमोसोम) हावी होते है, तब इस तरह की प्रवृतियां आती जाती है | आपको अपने आप को इस तरह से कोई लेबल नहीं देना है, यह सब बदल जाएगा | इन प्रवृतियों के बदलने की पूरी संभावना है | आपको यह जान लेना है कि आप सिर्फ शरीर नहीं है | आप चमकती हुई उर्जावर्धक चेतना हैं | आप एक चमकता हुआ प्रकाश हैं और इसलिए अपने आप को उस उर्जा से और अधिक पहचानिये |

प्रश्न: मेरा आईना मुझे यह दिखाता हैं कि मैं बाहर से बड़ा हो रहा हूं, मेरी भीतर की आध्यात्मिक प्रगति को जानने के लिए मैं किस आईने का उपयोग करूं?
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप शांत, तृप्त और संतुष्ट होना महसूस करते हैं ? क्या अपने आप में फैलाव का अनुभव करते हैं ? अतीत में जाकर देखें कि आप कैसे थे और अब आप कैसे हैं | अपने स्वयं के प्रतिबिंब को इस तरह से देखने पर आपको इसकी अनुभूति होती है |

प्रश्न: गुरूजी मैं बहुत जल्दी से कुछ बनकर अपनी पहचान बनाना चाहता हूं | इस बात से कुछ फर्क नहीं पड़ता कि मैं अपने मन को कितने बार यह कहूं कि मेरे हाथ में कुछ नहीं है और मुझे सब कुछ स्वीकार कर लेना चाहिये, इससे मुझे और निराशा ही होती है | कृपया मेरा मार्गदर्शन करें |
श्री श्री रवि शंकर: अपने आप को व्यस्त रखें | सिर्फ बैठ कर अपने बारे में न सोचें | अपनी स्वयं की छवि को बनाने की सोच आपकी प्रगति में बाधा बनाती है | आप खाली और खोखले हो जाएँ | और अधिक ध्यान करे |

प्रश्न: गुरूजी अपने आसपास के संकीर्ण मन या सोच रखने वाले लोगों से कैसे निपटा जाये ?
श्री श्री रवि शंकर: उनके प्रति उदार रहें | उनके लिए सिर्फ मुस्कुराएँ | उनके लिए जैसे को तैसा वाला रुख न अपनाएं | इससे कोई लाभ नहीं होता है | उन्हें सहजता के साथ शिक्षा प्रदान करें और यह सुनिश्चित कर लें कि  आप अपनी खुशी को उनके संकीर्ण मन या सोच के कारण नहीं खोयेंगे |

प्रश्न: पैसा, मन और ध्यान मेरे नियंत्रण में नहीं है ? पैसा आता नहीं है और मन ठहरता नहीं है इसलिए ध्यान भी नहीं लगता | मेरा क्या होगा गुरूजी ?
श्री श्री रवि शंकर: आप ध्यान नहीं कर सके, ठीक है | पहले यह समझें कि आपका ध्यान क्यों नहीं लगता | आपके स्वयं का जो भाग पैसे और मन में उलझा हुआ है, उसे सुलझा कर मुझ में उलझा दीजिए | फिर ध्यान भी लगेगा और मन खुश रहेगा और पैसा भी अपने आप आने लगेगा |

प्रश्न: क्या प्रत्यक्ष पाप न करना नेक कार्य करने के समान है और क्या आवश्यक नेक काम को न करना पाप के समान है ? क्या मैं अपने कृत्य और अकृत्य के लिए जिम्मेदार हूं ? यदि मैं कुछ नहीं करता तो मेरी भूमिका क्या होगी ?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी बिना कुछ करे रह ही नहीं सकता | और जब आप कुछ करते हैं तो उससे किसी को लाभ होगा और किसी को नुकसान होगा | कोई भी बिना कुछ करे १ पल भी नहीं रह सकता | आप किसी के बारे अच्छा या बुरा सोचने लगते हैं | इसलिए कुछ अच्छा  करते रहें परन्तु उसके कारण आप में अहंकार नहीं आना चाहिये | “मैने इतने अच्छे कार्य किये है” | ‘नेकी कर और कुंए में ड़ाल’ इसलिए ऐसा नहीं हो सकता कि आप कुछ नहीं कर रहे हैं, और जब आप कुछ करते हैं तो यह देखें कि वह कृत्य सबको उठा या विकसित कर रहा है |

प्रश्न: क्या किसी के कर्म किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित होते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: निश्चित ही हां | जब आप अच्छा व्यापार करते हैं और जब आप उसे अपने बच्चों को दे देते हैं तो आपके कर्म उनके पास हस्तांतरित हो जाते हैं | उसी तरह जब आप कोई बड़ी गडबडी करते हैं तो आपके बच्चों या पालकों को भी उसे सहन करना पड़ता है | कर्म निश्चित ही कोई एकल कृत्य नहीं है और उसका प्रभाव आपके परिवार और आस पास के लोगों और राष्ट्र पर भी होता है | कर्म के भी विभिन्न स्तर होते हैं |The Art of living

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जब आप ध्यान करते है और आपका मन शांत हो जाता है, फिर वह शांत मन भगवान का निवास स्थान हो जाता है !!!


२२ मई, २०११, बैंगलुरू आश्रम 

प्रश्न:जय गुरुदेव, गुरूजी मैं इस संसार को मन, बुद्धि, स्मृति, अहंकार इत्यादि से जानता हूं , परन्तु इन ६ स्तरों को छोड़ने पर ही, मैं अपने वास्तविक स्वयं को जान सकता हूं | मेरा प्रश्न है,  कि इन ६ स्तरों  को छोड़ने के उपरांत हम अपने स्वयं के सांतवे स्तर में कैसे स्थापित हो सकते है ?
श्री श्री रवि शंकर:आपको इन ६ स्तरों को छोड़ना नहीं है; आपको शरीर, मन, बुद्धि को छोड़ना नहीं हैं | आपको इनके साथ रहकर स्वयं को समझना है |शरीर, मन, स्मृति, बुद्धि और अहंकार हैं और उन्हें वहां रहने दीजिये |प्रतिदिन काम से पहले  और काम के बाद कुछ समय  के लिये ध्यान करें और उसमें विश्राम का अनुभव करें | जब आप ध्यान करते है और आपका मन शांत हो जाता है, फिर वह शांत मन भगवान का निवास स्थान हो जाता है | ऐसे आप भगवान को नहीं जान सकते पर भगवान के साथ एक हो सकते है | जब आप शांति और खुशी का अनुभव करते है और गहन ध्यान में चले जाते है तो फिर आपको अनुभव होने लगता है कि ‘ मैं ही  सबकुछ हूं, और सिर्फ मैं ही हूं’ |

प्रश्न: जय गुरुदेव , गुरुदेव मैने कई आपकी, सत्य साईं बाबा और ओशो की पुस्तके पढ़ी है मुझे उनमे कोई भिन्नता नहीं लगी, वे सभी प्रेम की बात करते है और मुझे लगता है कि वे सिर्फ भिन्न भौतिक अभिव्यक्तियां है |मैं ओशो और उनके जोरबा बुद्ध के सिद्धांत से काफी प्रभावित हुई हूं | मैं इस पर आपकी राय जानना चाहती हूं |सांसारिक तत्व  और आध्यात्म को साथ में रखकर उनके द्वारा की गई चर्चा मुझे बहुत पसंद है, आप इस पर क्या सोचते है, मैं उसे सुनना चाहती हूं |
श्री श्री रवि शंकर: हां, वे एक महान वक्ता थे और काफी अच्छा बोलते थे | उनका  गहन बुद्धिजीवी दृष्टिकोण था और वह बहुत अच्छा हैं, लेकिन वहां मंत्रो का ज्ञान और मंत्रो की संस्कृति मौजूद नहीं थी | गौतम बुद्ध ने कहा कुछ नहीं है और  सबकुछ कुछ नहीं है और उन्होंने कहा  मैने परम सत्य की खोज की,मैंने आत्मा की खोज की परन्तु मैने पाया कि कोई स्वयं या आत्मा नहीं है | मैने फिर और खोज की और अंत में पाया कि कोई आत्मा नहीं है |
सनातन धर्म में आदि शंकराचार्य ने कहा , किसने खोज करी? किसे कुछ नहीं मिला ? वही आत्मा है |यह सिक्के के दो पहलु के जैसे है | वे खालीपन के बारे में बात करते है और दूसरी ओर वेदांत सम्पूर्णता के बारे में बात करता है | कोई से कोई नहीं पहला कदम है और गौतम बुद्ध वहां रुक जाते है और वेदांत आपको कोई नहीं से सबकुछ की ओर ले जाता है |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी ऐसा कहा जाता है कि आत्मा का पुनर्जन्म के द्वारा पुनर्नवीनीकरण होता है,और इस गृह की जनसंख्या में निरंतर बढोत्तरी हो रही है, क्या दुसरे गृह के लोग पृथ्वी में जन्म लेकर हमारे साथ जुड रहे है या अन्य जीव मानव रूप में जन्म ले रहे है ?
श्री श्री रवि शंकर: अन्य जीव! दोनों संभव है, दोनों बाते हो रही है |

प्रश्न: गुरूजी, डॉ स्टीफेन हाकिंग  का हमारे वर्तमान मानव जीवन पर दृढ़ विश्वास है , वे कहते है कि इस जीवन और आस्तित्व के परे कुछ भी नहीं है | मुझे नहीं पता कि उन्होंने धर्म के बारे में कितना अध्ययन किया है परन्तु मुझे पता है कि आपने भौतिक शास्त्र पढ़ा है, इस पर आप उनको क्या उत्तर देंगे ?
श्री श्री रवि शंकर: कोई भी विज्ञानिक ऐसा नहीं कहेगा कि ‘ उसे सब पता है और जो कुछ यहां पर है वहीं सबकुछ है और उससे परे कुछ भी नहीं है’| डॉ स्टीफेन हाकिंग  ने यह नहीं कहा कि जो भी यहां है वही अंतिम है |उन्होंने कहां कई स्तर और पहलु हैं | हमारा मस्तिष्क आवृत्ति विश्लेषक होता है और वह कुछ ही आवृतियों का विश्लेषण कर सकता है| अभी यहां पर कितनी अलग अलग आवृतियां है | कोई भी विज्ञानिक आस्तित्व के विभिन्न स्तर और कई और दुनियां की बात को नहीं नकारेगा, क्योंकि बहुत सारी लहरें या तरंगे यहां पर हैं ! आप जिसे देखते है वह तरंगों का कृत्य है जिसमें असीमित तरंगे होती है, एक के भीतर  एक और उनके भीतर अनेक | सूक्ष्म जीव से ब्रह्माण्ड तक कई दुनियां है और समय के कई स्तर है |

प्रश्न:जय गुरुदेव, रामकृष्ण परमहंस  एक महान साधक थे, उन्होंने जीवन भर साधना की, फिर भी अंत में उन्हें क्यों अत्यंत पीड़ा सहन करनी पड़ी ?
श्री श्री रवि शंकर: कई बार गुरु शिष्यों के कर्म अपने पर ले लेते हैं | शिष्यों के कर्मो के कारण उन्हें शारीरिक पीड़ा सहन करनी पड़ी | यह कोई जरूरी नहीं है कि हर किसी को उस पीड़ा से गुजरना पड़ता है, लेकिन कुछ गुरु उसे भी चुनते है|

प्रश्न: कई बार मैं अपने काम के कारण थक जाता हूं, और फिर मैं अपने आप पर से आत्म नियंत्रण खो देता हूं| मैं स्वयं पर कैसे नियंत्रण पा सकता हूं क्योंकि इसका परिणाम मेरे लिए हानिकारक है?
श्री श्री रवि शंकर: जब आप थक जाते है तो बैठ कर ध्यान करे | प्राणायाम और ध्यान करे, इससे आपकी थकावट दूर हो जायेगी |

प्रश्न: गुरूजी मैंने देखा हैं जब भी कोई आपके फोटो पर माला  पहनाता है तो वह गिर जाती है, ऐसा क्यों है?
श्री श्री रवि शंकर: माला पहनाने की कोई आवश्यकता नहीं है, मैं उसे आप को वापस कर देता हूं |

प्रश्न: गुरूजी, ऐसा कहां जाता है कि मृत्यु के समय मन में जो अंतिम विचार या स्मृति होती है,उसी पर अगला जन्म निर्भर होता है | मरे मन में इस भौतिक संसार का बहुत प्रभाव है, मैं ऐसा क्या करू कि अंतिम समय में,  आपको ही याद करू ?
श्री श्री रवि शंकर: आपको अपने जीवन के अंतिम क्षण तक रूकने की जरूरत नहीं है| प्रत्येक क्षण को खुशी और आनंद के साथ जियें और सेवा, साधना और सत्संग को करे |

प्रश्न: आदरणीय गुरूजी मैं अपने देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत चिंतित हूं जो अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के कारण प्रभावित है, जापान का उदाहरण  देखें तो परमाणु उर्जा भी बहुत घातक है| हमारा देश ऐसी परिस्थिति में कैसे आगे बढ़ सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: इसके लिए आम जनता में जागरूकता लानी होगी | हर किसी को पर्यावरण, लोगों के लिए और पूरे देश के लिये सोचना होगा | जब हर किसी को इसके लिये चिंता होगी तो निश्चित ही बदलाव आएगा |

प्रश्न: जय गुरुदेव, क्या भगवान होता है, उस पर कैसे विश्वास किया जाए ?
श्री श्री रवि शंकर: आपने सड़कों पर गाड़ियों को चलते हुये देखा है? उसके भीतर बैठकर उसे कोई चलता हैं या वह अपने आप ही चलती हैं | उसका एक वाहन चालक होता हैं, लेकिन गाड़ी के चलते समय हर समय आपको चालक दिखाई नहीं देता | ठीक हैं !

प्रश्न : गुरुजी हर कोई मोक्ष के लिए भाग रहा है मुझे भी बताएं मोक्ष क्या है ?.
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप भी मोक्ष के लिए भाग रहे है ? यदि आप उसके लिए नहीं भाग रहे है तो क्या समस्या है जो लोग मोक्ष के लिए भाग  रहे है, मैं उन्हें बताऊंगा, आप उसकी चिंता मत करो |

प्रश्न : गुरुजी मेरे पास ३० एकड़ कृषि भूमि है जिसमें अंतिम छोर की तरफ भगवान गुरुदेव दत्तात्रेय  और साईं बाबा का एक छोटा सा मंदिर है, पश्चिम दिशा की भूमि का फैलाव उत्तर से दक्षिण की ओर है और पूर्व से पश्चिम की ओर एक ढलान है |मेरे वास्तु विशेषज्ञ कहते है कि ऐसी भूमि का होना बहुत खतरनाक  है और वे मुझे सलाह देते है कि मैं उसे बेच दूं | गुरुजी मुझे क्या करना चाहिए ?
श्री श्री रवि शंकर: ऐसी भूमि का आस्तित्व इस  गृह पर है हर भूमि  में  कुछ सकारात्मक होता है और कुछ ऐसा भी है जो इतना सकारक नहीं है फिर भी कोई बात नहीं | आप ॐ नमः शिवाय या गुरु ॐ का जप करें और फिर सारे नकारात्मक प्रभाव गायब हो जायेंगे |

प्रश्न : प्रिय गुरुजी मेरे  पति मुझसे बहुत उंची आवाज में बात करते  है और मुझ पर चिल्लाते है जब कि मैं उनसे समान्य स्वर में बात करती हूं| वे  दूसरों से  अच्छे से बात करते है , मुझे क्या करना चाहिए ?.
श्री श्री रवि शंकर: इसका अर्थ वे आप से सबसे अधिक प्रेम करते है उन्होंने यहीं पर आपमे और दूसरों में अंतर बना दिया है | अब तक आप ने संभाला है और आप को संभालना आता है इसीलिए आप उन्हें संभालें | उनसे बहुत अच्छे शब्द बोलने की उम्मीद न करें और कम से कम आप अच्छे शब्द बोलें और उन्हें कठोर ही रहने दें | इसे एक तरफा होने में भी कोई बात नहीं , फिर इससे  सामंजस्यता निर्मित होती है|

प्रश्न : गुरुजी ज्ञान का पथ बहुत कठिन है;क्या भक्ति के द्वारा ज्ञान प्राप्त हो सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: निश्चित ही हां |

प्रश्न : प्रिय गुरुजी, मैं पूरी दुनिया से अपनी तुलना करना कैसे छोडू ?.
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप के पास इतना समय है कि आप अपनी तुलना पूरी दुनिया से कर सकते है | मेरे पास इतना समय नहीं है | यदि आप के पास इतना समय है तो आप कुछ सृजनात्मक कार्य करें | अपनी दुनिया से तुलना करने का अर्थ  समय की बर्बादी है |

प्रश्न : गुरुजी हमारे धर्मं ग्रंथों में चार बातें जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष करने की बात कही जाती है और काम, क्रोध, मोह और अहंकार को त्यागने की बात कही जाती है| ऐसा क्यों है कि काम को दोनों में ही स्थान मिला है ?.
श्री श्री रवि शंकर: किसी भी बात को अधिक करना बुरा होता है और उसका  सही मात्रा उपयोग ठीक होता है| जैसे भोजन में नमक की मात्रा होती है वैसे ही पर्याप्त मात्रा में नमक ठीक होता है और अधिक  मात्रा में उपयोग ठीक नहीं है |

प्रश्न :ज्योतिषशास्त्र में  ज्योतिष अंगूठी में रत्न धारण करने की सलाह देते है , क्या आप भी ऐसी सलाह देते है | यदि कोई आध्यात्म के पथ पर है तो क्या उसे रत्न धारण करने की आवश्यकता है ?.
श्री श्री रवि शंकर: नहीं आपको इन्हें धारण करने की आवश्यकता नहीं है | यह सही है कि हर चीज़ का कुछ प्रभाव होता है परन्तु आप एक पत्थर के टुकड़े (रत्न) से अधिक  शक्तिशाली है | यदि आप रत्न को पसंद करते है तो उसे धारण कर सकते है अन्यथा ॐ नमः शिवाय मन्त्र का जप  करें | यह एक अत्यंत शक्तिशाली मन्त्र है जो इस गृह के सभी बुरे प्रभाव का निचोड़ है |

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भ्रष्टाचार की शुरुवात वहां से होती हैं जहां पर अपनापन खत्म होता है

२८ मई २०११, बैंगलुरु आश्रम
प्रश्न: हमारे जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या होना चाहिए ?
श्री श्री रवि शंकर: यदि कोई व्यक्ति आपको जीवन की अंतिम इच्छा को बताए तो वह निरर्थक हैं | इस क्षण मे जो आपकी आवश्यकता है वही आपकी इच्छा है | जब आप जीवन को बड़े दृष्टिकोण से देखते हो तो आपको स्वयं मालूम  पड़ जाता है कि आपको क्या चाहिए | फिर आप स्वाभाविक रूप से करुणामय, पर्यावरण के प्रति विचारशील होंगे, और देश के लिए कार्य करेंगे और ऐसे कार्य करते रहेंगे, और इस बात का फर्क नहीं पड़ेगा कि आपकी अंतिम इच्छा क्या है | यह जीवन क्या है, इसे आप स्वाभाविक रूप से समझ जायेंगे |

प्रश्न: आध्यात्मिक पथ पर मेरी प्रगति हो रही है, यह मैं कैसे समझ पाऊंगा ?
श्री श्री रवि शंकर: क्या आप शांत हैं? क्या आप गतिशील है?  क्या आप व्यसनों और बुरी आदतों से मुक्त है और क्या आप आस पास के लोगो के साथ अपनापन महसूस करते हैं | यह कुछ उपाय हैं और सिर्फ यही अकेले उपाय नहीं हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरुजी आप अक्सर कहते हैं कि ‘आप अपनी सारी समस्याएं मुझे दे दीजिए’ मुझे कभी कभी चिंता होती है, कि मैं तो अपनी परेशानी से मुक्त हो गया लेकिन क्या मेरी चिंताएं आपको परेशान करती हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: आप चिंता मत करो | कम से कम आपकी वह परेशानी तो कम हुई, क्योंकि जब आप परेशान होते हो तो मैं परेशान हो जाता हूं | इसलिए आप खुश रहो |

प्रश्न: गुरूजी, पुराणों में ऐसा कहा गया है कि एक पत्नी अपने अगले ७ जन्मों तक उसी पति की कामना करती है, क्या यह बात सच हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: मैं इसका उत्तर देने के लिए योग्य नहीं हूं | आप अपने आस पास के लोगों से पूछ सकते हैं | कुछ लोग हां कहेंगे और कुछ लोग नहीं कहेंगे, आप सहमति और अनुभव के आधार पर निर्णय करें | अमरीका में एक महिला ने मुझे बताया कि उसके विवाह के ४० वर्ष हो गए और वह उसी पति के साथ ४० वर्षों से रह रही है | दूसरे लोग जो वहां पर मौजूद थे उन्हें आश्चर्य हुआ कि वह ४० वर्षों से उसी पति के साथ कैसे रह रही हैं | फिर उसने बताया कि यदि आप एक नाव को चलाना नहीं जानते तो यदि आप नाव भी बदल लेंगे तो भी आपको उसे चलाना नहीं आयेगा | यह कहानी प्रत्येक भारतीय परिवार की है और यह संस्कृति हमारे गावों मे मौजूद है | ‘यदि आप एक नाव को चलाना नहीं जानते तो यदि आप नाव भी बदल लेंगे तो उसका भी कोई अर्थ नहीं है |
इसलिए हमारे आसपास जैसे भी लोग हों हमें उनसे किसी भी प्रयासों से अच्छे संबंध रखना चाहिए और दूसरों में अच्छे गुण देखना चाहिए | सिर्फ लोगों की आलोचना करना ठीक नहीं है | इसके बजाय आपको सेतु की भूमिका निभानी चाहिए | यदि आप सिर्फ आलोचना करेंगे तो इससे सिर्फ दूरियां ही बनेंगी | आपको उन्हें समझना होगा कि वे कहां से आ रहे हैं और वे कहां गलती कर रहे हैं | और फिर आप उन्हें प्यार से समझाएं और उनके दिल को प्यार से जीत लीजिए | इसमें थोडा समय लगता है परन्तु किसी की आलोचना करके उनसे दूरियां बना लेना आसान है | इसके लिए सिर्फ कुछ ही मिनिट लगेंगे लेकिन उनके साथ दिन रात रहना और उन्हें समझा कर उनमें बदलाव लाना बहुत कठिन और महत्वपूर्ण है | और यही करना चाहिए |

प्रश्न: गुरुजी जब हम पूजा करते समय भगवान की मूर्ती को सजाते हैं तो वह बहुत सुंदर प्रतीत होती है, और जब हम ध्यान करने के लिए आँखे बंद करते हैं तो वह भी बहुत सुन्दर लगता है | फिर हमने क्या करना चाहिए, हमें देखना चाहिए या ध्यान करना चाहिये ?
श्री श्री रवि शंकर: गहन ध्यान में जाना ही सबसे उत्तम पूजा है | पूजा क्या है ? ‘येन केन प्रकरेण यस्य देहिनद, संतोषम जनायेत्प्रग्यः तदेवेश्वरापुज्नम’
पूजा या भक्ति का सबसे उत्तम स्वरुप क्या है | किसी भी तरह से लोगों और सब के दिलों मैं शांति और खुशी लाना पूजा का सबसे उत्तम स्वरुप है | ‘येन केन प्रकरेण’ को उस समय मे कहा गया | अब यह नहीं हो सकता | वास्तविक खुशी सिर्फ ध्यान से प्राप्त हो सकती है |

प्रश्न: गुरूजी इस देश मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध की शुरुवात हो चुकी है | इस युद्ध मैं आप राम हैं, बाबा रामदेव लक्ष्मण हैं और अन्ना हज़ारेजी हनुमान हैं | लेकिन राम अभी तक रणभूमि मे नहीं दिख रहे हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: आपने अरविंद केजरीवाल को छोड़ दिया है | मैं सबके भीतर और सबसे साथ हूं | जो भी लोग भ्रष्टाचार विरोध के मार्ग पर हैं, अरविंद उनका सूत्रधार है |
भ्रष्टाचार समाज के कई स्तर पर होता है | भ्रष्टाचार का सबसे पहला स्तर आम जनता के मन मे होता है और उसे निकालना आवश्यक है | हम देवी और देवताओं को भी रिश्वत देते हैं | हम भगवान से कहते हैं कि आप मेरा यह काम कर दीजिए तो फिर मैं आपको यह भेंट करूंगा | मैं आपको नारियल भेट करूंगा | मैं वैष्णव देवी चढूंगा | जो लोग मन्नत या इच्छाएं मांगते हैं, वह भी एक किस्म का भ्रष्टाचार ही है | यह भी ठीक है जब कोई सामान्य व्यक्ति भगवान को कभी कुछ अर्पित करना चाहे | यह मत कहो कि मेरा काम होने पर मैं यह दूंगा | भगवान को आप जो भी अर्पित करना चाहें उसे अर्पित करें वह ठीक है, परन्तु उसे अपनी इच्छाओं और जरूरतों से जोड़ना गलत है | यह परंपरा सभी धर्मो में  प्रचलित है, सिर्फ हिंदू धर्म मे ही नहीं, यह ईसाई, इस्लाम और बौद्ध धर्मो में भी प्रचलित है | मन की यह स्थिति कि मेरा काम होने पर मैं यह या वह करूंगा, वह गलत है | यह नहीं होना चाहिये | जब आम जनता भ्रष्टाचार के विरोध मे खड़ी होकर रिश्वत नहीं देगी तो फिर कोई रिश्वत कैसे लेगा ? इसलिए हमे सबसे पहले रिश्वत देने वालों को ठीक करना होगा | उन्हें बताएं कि रिश्वत नहीं देना है | हमें एक आध्यात्मिक लहर लानी होगी | फिर लोगो में एक आत्मविश्वास जागेगा और वे  रिश्वत नहीं देंगे | जब आप वापस जायेंगे तो आप प्रत्येक व्यक्ति १०० लोगों को प्रतिज्ञा करवाएं कि आप किसी को भी किसी किस्म की रिश्वत नहीं देंगे | जब आप किसी व्यक्ति को पैसा दिखाते हैं तो उसे अपनी पत्नी और बच्चे याद आ जाते हैं और वह यह सोचता हैं कि मैं इसे ले लेता हूं | इसलिए जो लोग रिश्वत देते हैं, उन्हें रोकना जरूरी है |
दूसरे किस्म का भ्रष्टाचार अधिकारियों के स्तर पर होता है | कई स्वयंसेवी यह कार्य कर रहे है; वे सरकारी अधिकारियों के टेबल पर एक पट्टी चिपका देते हैं जिस पर लिखा होता है ‘हम रिश्वत नहीं लेते’ | यह यहां पर शुरू हो गया है लेकिन इसकी शुरुवात कई राज्यों मे होनी है | महाराष्ट्र में इसकी शुरुवात नहीं हुई है; जहां भी इसकी शुरुवात नहीं हुई है वहां पर स्वयंसेवियों ने अधिकरियों के पास जाकर उनके टेबल, कुर्सी, दरवाजे या कहीं पर भी यह पट्टी चिपका देनी चाहिये जिस पर लिखा होगा ‘हम रिश्वत नहीं लेते’ फिर जो लोग रिश्वत देते हैं, वे भी इसे पढ़ कर रिश्वत नहीं देंगे |
तीसरे किस्म का भ्रष्टाचार मंत्री स्तर पर होता है, और लोकपाल विधेयक के द्वारा उस पर काफी काम हो रहा है, अरविन्दजी, अन्नाजी, स्वामीजी और किरण बेदी उस उद्देश्य के पूर्ती के लिए दिन रात काम कर रहे हैं | लोकपाल विधेयक के पारित होने के बाद काफी बदलाव आयेगा | लेकिन सिर्फ विधेयक से बात नहीं बनेगी और समाज में उसके प्रति सजगता लानी होगी कि यह विधेयक क्या है और कैसे किसी को कानूनी सजा मिलेगी जब कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार मे लुप्त होगा | यह कार्य अभी हो रहा है | यह कार्य समाज के हर स्तर पर करना होगा और लोगों का मनोभाव बदलना सबसे जरूरी है, और यह सिर्फ आध्यात्म के द्वारा ही हो सकता है क्योंकि भ्रष्टाचार की शुरुवात वहां से होती है जहां पर अपनापन खत्म होता है | कोई भी अपने परिवार और अपने लोगों से रिश्वत नहीं मांगता | और अपनेपन का प्रचार करने का माध्यम है आध्यात्म और इसे करना होगा | हमें सब में यह विश्वास जगाना होगा कि जो कुछ भी उसका है, वह उसे मिलेगा | इस किस्म का आत्मविश्वास और सजगता लोगों में जगानी होगी | इसके साथ हमें देश मे काफी बदलाव लाना होगा |
तमिलनाडु में इतना भ्रष्टाचार था और चुनाव के पहले लोगों पैसे दिए जा रहे थे और उनके बच्चों के सिर पर हाथ रखकर कसम ली जा रही थी वे उनके उम्मीदवार को अपना मत दें | मैंने लोगों से प्रत्येक जिले मे जाकर लोगों से यह कहने को कहा कि पैसा ले लीजिए पर उन्हें मत नहीं दीजिए क्योंकि यह आपका  ही पैसा आप को दे रहे हैं | वे इतने गरीब लोग हैं कि वे पैसा ले लेते थे | मैने उनसे कहा कि पैसे के बदले मे अपना मत उन्हें न दें और आप पाप की चिंता न करें उसे मुझे दे दीजिए, मैं सारा पाप अपने पर ले लूंगा, इसकी कोई समस्या नहीं है | और हमें तमिलनाडु मे सफलता मिली | हम भाग्यशाली हैं कि चुनाव आयुक्त भी हमारे साथ दृढ़ता के साथ खड़े रहे और और अपनी स्वीकृति और सहयोग प्रदान किया | हम सब को काम करना होगा | हम को प्रत्येक गावों मे जाकर यह सजगता लानी होगी कि हम भ्रष्टाचार का विरोध करते हैं और जैसे समाज चाहता हैं, उसमे वैसा बड़ा बदलाव लायेंगे |
प्रत्येक व्यक्ति को यह लगना चाहिये कि हमे सब को साथ मे लेकर चलना होगा | विभिन्न किस्म के लोग, विश्वास और सम्प्रदाय हैं और हमें सब को गले लगाकर चलना होगा | आपको यह नहीं कहना चाहिये, कि सिर्फ मेरा ही मार्ग सही है | भारत की विशेषता यही है कि इसमें कई समुदाय, धर्म और विश्वास हैं और हमें सबका सम्मान करते हुए साथ मिलकर आगे बढ़ना हैं |

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यह एक नया नियम हैं, किसी भी को खुश करने की चेष्टा न करे, आप यह कर ही नहीं सकते


१८ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम

प्राचीन काल के स्वामी, साधु और लोग कहीं भी किसी भी किस्म की कलह सुनना पसंद नहीं करते थे | यदि उनके पास कोई भी आकर उनसे कोई भी शिकायत करता था तो वे उनके कान पकड़ कर उनसे कहते थे कि “तुम ही इससे निपटो |”  यदि आप समाधान का हिस्सा हो तो आप के उर्जा का स्तर उच्च होता है | परन्तु यदि आप सिर्फ समस्याओं की बात करते है तो आप की उर्जा नीचे आ जाती है |
दुनिया हर समय सकारक और नकारक बातों की क्रीड़ा होती है, कुछ समस्याएं और चुनौतियां आती रहती हैं और उनके साथ उनका हल भी आता है | प्राचीन लोग अपनी उर्जा के स्तर को उच्च रखने पर केंद्रित होते थे | यदि आपकी उर्जा का स्तर उच्च होता है तो जब लोग आपके पास अपनी समस्याएं लेकर आते है तो उनका समाधान हो जाता है |
अक्सर जब लोग आपसे अपनी समस्याओं के बारे मे बात करते हैं तो क्या होता है? आपका  उनकी समस्याओं के प्रति  झुकाव हो जाता है | वे अपनी समस्याओं के बारे बात करते हैं तो क्या होता है ? आप उनकी समस्याओं के साथ बह जाते हैं | इसलिए एक बार इसका प्रयत्न करें ; एक दिन यदि लोग आपके पास आकर १०० शिकायत करें, आप सिर्फ अपनी उर्जा को उच्च रखें और अपनी दृष्टि और मन को भीतर की ओर केंद्रित रखे जैसे कुछ भी नहीं हुआ है, तो फिर आप अचानक अपने भीतर मुक्ति महसूस करेंगे |
आप इसे प्रयत्न कर के देखें, घर पर आपकी सास, पति और हर कोई व्यक्ति किसी भी बात की शिकायत कर सकता है | पूरी दुनिया इधर से उधर हो जाए, परन्तु आप सिर्फ एक विचार को पकड़ कर रखें कि - मैं अपनी उर्जा को उच्च रखूंगा | आप सिर्फ यह एक कदम उठायें और देखें कि समस्याएं और चुनौतियां सिर्फ इसलिए आती हैं जिससे कि आप अपने मन को भीतर की ओर केंद्रित करके रख सकें |
मन को भीतर की ओर केंद्रित करने के बजाय, जब समस्याएं ओर चुनौतियां आती हैं तो आप क्या करते हैं? आप समस्या का पीछा करते हैं और उसी दिशा में प्रवाहित हो जाते हैं और फिर आपकी उर्जा का स्तर नीचे आ जाता हैं और आपका पतन हो जाता हैं | क्या ऐसे ही होता है ना ?
कई बार करुणा और सहानुभूति के नाम पर आप उसी ओर प्रवाहित हो जाते हैं | आपकी करुणा वास्तव में आपकी समस्या का समाधान करने में सहायक नहीं है | यह बहुत चौंकाने वाली बात है कि करुणा में समस्या बढ़ जाती है और उसका समाधान नहीं हो पाता है |
जब भी कोई समस्या आती है तो वह व्यक्ति को भीतर के गहन की ओर केंद्रित करने के लिए होती है जिससे व्यक्ति वैराग्य और शान्ति की अवस्था में जा सके | इसके बजाय आप व्यक्ति को तर्क के द्वारा संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं | समस्या में व्यक्ति को संतुष्ट करना सबसे बुरी बात है | आपको उनको संतुष्ट नहीं करना चाहिए | हर किसी व्यक्ति को उनके कर्म और समस्या को सहन करना चाहिए | यदि आप दुखी या खुश हैं तो वह भी आपका कर्म है | आप अपने कर्म को बदल दीजिए | यह मनोभाव व्यक्ति को और अधिक स्वतंत्र और मुक्त करता है |
आप उनके प्रति करुणा दिखाते है और फिर उन्हें और ध्यान पाने की चाहत हो जाती है |  आप और करुणामय हो जाते हैं और उन पर और अधिक ध्यान देते हैं, और फिर न तो करुणा रह जाती है और न तो आप उन पर उतना ध्यान दे पाते हैं | फिर सिर्फ परेशानी रह जाती है और उसके कारण आप भी परेशान हो जाते हो; “वह व्यक्ति कितना दुखी है, मुझे उसे खुश करना है” किसी को खुश करना बहुत बड़ा बोझ है | और उसे करने की चेष्टा न करें | यह एक नया नियम है, किसी को भी खुश करने की चेष्टा न करें, आप यह कर ही नहीं सकते !!!
संस्कृत में एक कहावत है जो कहती है, “कश्तस्य सुखस्य नकोपी दता”| कोई भी खुशी या दुःख नहीं दे सकता | वह अपने स्वयं या मन से निर्मित होती है | जब कोई अपनी समस्या बताता हैं तो घूम कर दूसरी दिशा में चले जाएँ और उनसे कहें कि अपनी समस्या से स्वयं ही निपटें | फिर आप स्वतंत्रता या मुक्ति को प्राप्त करेंगे, और लोगों में परस्पर निर्भरता आती है जिसके वजह से आप अपने आप को आत्म निर्भर बना सकते हैं |
मैं यह बात साधकों और आप सब लोगों से कह रहा हूं, जो वैसे भी इस पथ पर हैं | लेकिन इसका प्रयोग तब न करें जब सड़क पर कोई गाड़ी में बैठने के लिए गुहार लगा रहा हो और आप उससे कहें कि ‘गुरूजी ने कहा हैं कि उन्हें उससे स्वयं ही निपटने दीजिये’ इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकता’ | यदि आपकी गाड़ी में जगह है तो उनकी मदद करें | वहां पर करुणा की आवश्यकता है, परन्तु वह संबंधों में आवश्यक नहीं है | जब आप लोगों से जुड़ते हैं तो वहां पर एकाएक करुणा के कृत्य आवश्यक हैं | जिस को आप जानते नहीं हैं उनके प्रति करुणामय रहें |
वैराग्य के लिए उत्साहित रहें |
आपका मन कैसे लोगों की भावनाओं, चिंताओं और उनके दुखों में फंस जाता है | आप उसके लिए क्या कर सकते हैं और आप कहां चले गए हैं ? आपको क्या हो गया है ? आप पूरी तरह से बिखर जाते हैं | इसलिए ऐसा कहा जाता है कि आस पास के सभी जाल और तार को काट दो और सिर्फ एक दिव्यता के तार के साथ जुड़े रहो |
यह मत कहो, गुरूजी ने मेरे तरफ देखा नहीं शायद भगवान मुझ से नाराज़ है और बहुत कुछ | यह सब नहीं कहना है | सब कुछ प्रसाद है, यदि मुझे निकाल दिया जाता है तो वह भी प्रसाद है | यदि मुझे डांटा जाता है तो वह भी प्रसाद है | सब कुछ प्रसाद है | यह मनोभाव सबसे अच्छा है, इसलिए यदि आप पर ध्यान नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं है | ठीक है |

प्रश्न: गुरूजी यदि हम ऐसा करेंगे तो वे सोचेंगे कि हम असंवेदनशील हैं |
श्री श्री रवि शंकर: उन्हें जो कहना हैं, उन्हें कहने दीजिये | आप उन्हें खुश करने का प्रयास ही तो कर रहे हैं | मैं असंवेदनशील नहीं हूं, मैं संवेदनशील हूं |
जैसे मैने कहा आपका जो भी काम हैं उसे करें, लेकिन सिर्फ बैठ कर उनकी समस्याओं को न सुनें, और उसी हवा में प्रवाहित न हो जाएँ |

प्रश्न: पार्ट १ कोर्स में ३ ध्वनि के बारे में बताया जाता है और जब उन तीनों को एक साथ रखा जाये तो वे ‘ॐ, आमेन और अमीन’ की ध्वनि सुनाई पड़ती है |
श्री श्री रवि शंकर: नहीं! वह सब सामान है | ‘आ’ और ‘म’ की ध्वनि निश्चित ही काफी सामान  है | अँगरेज़ी भाषा संस्कृत का बिगड़ा हुआ स्वरुप है | अँगरेज़ी के कई शब्द संस्कृत भाषा से ही उत्पन्न हुए हैं | मैं तो कहूंगा पूरे १००% शब्द | Brother - भ्राता, Sister - स्वस,  Mother - माता इत्यादि |
जब भाषा बदलती है तो सामान्यता उसमे विकृति उत्पन्न होती है |
जैसे बंगाली में कई बदलाव हुए हैं | ‘विष्णु’ ‘बिष्णु’ बन गया हैं, ‘विश्वास’ ‘बिश्वास’ बन गया |
बंगाली लोग कहते है, ‘जल खाबे’ खाबे का अर्थ है ‘खाना’ लेकिन वे कहते हैं ‘जल खाबे’ ‘जल’ बन जाता हैं ‘जोल’ ‘जोल खाबे’ प्रत्येक भाषा की अपनी विशेषता होती है |
अँगरेज़ी में भी उनके उच्चारण बदल जाते हैं | ‘वेस्ट बंगाल’ को वे कहते हैं ‘बेस्ट बंगाल’ ‘डोंट बेस्ट फूड’ (अन्न को बर्बाद मत करो) ‘वेस्ट’ को वे ‘बेस्ट’ कहते हैं | यह ऐसा ही हैं और इसे हमें स्वीकारना पड़ता है |
यू लाइक् बाइट’ (आपको सफेद पसंद हैं) ‘यू आलवेज बियर बाइट’ (आप हर समय सफेद पहनते हैं)  वे वास्तव में कह रहे हैं  ‘यू आलवेज वियर वाइट’ (आप हर समय सफेद पहनते हैं) ‘गुरूजी लाइकस बाइट’ - (गुरूजी को सफेद रंग पसंद हैं) यह एक विशिष्ट उच्चारण है | गुजरात में लाँन (मैदान) बन जाता है ‘लोन’, हॉल (बड़ा कमरा) ‘होल’ बन जाता है, ‘द लोन इज़ इन फ्रंट आफ होल’ (मैदान के सामने हॉल हैं) |

प्रश्न : अमावस के दिन हम हमारे प्रियजनों के पितृ के सम्मान मे तर्पन अर्पित करते हैं, क्या यह वैज्ञानिक है या सिर्फ एक रीती रिवाज़ है ?
श्री श्री रवि शंकर: तर्पण का अर्थ होता है संतुष्ठ करना | तर्प तृप्ति से बनता है जिसका अर्थ होता है संतुष्ठ होना | आपके पूर्वज की कुछ इच्छाएं थी उसे पूरा करना या यह मान लेना की वह पूरी हो गयी है, ऐसा करने से फिर किसी बात की तृष्णा नहीं रह जाती | साल मे पितरों को एक बार याद करना तर्पण कहलाता है |
ईसाई और इस्लाम धर्म में भी विशेष रूप से साल में एक बार पितरों के लिए ऐसा किया जाता है | भारत मे प्राचीन काल में अमावस की रात को पितरों को याद किया जाता था और पूर्णिमा पर दिव्यता की विभिन्न अभिव्यक्तिओं को याद किया जाता है | इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक अमावस्या की रात को कुछ किया जाये परन्तु उनको याद करके उनकी स्मृति में कुछ अच्छा कार्य करना अच्छा होता है |

प्रश्न: गुरुजी आप ने हमें बताया है की गुरु का काम शिष्य को भ्रमित करना होता है | फिर हम उत्तर प्राप्त करने के लिए किसके पास जाएँ ?
श्री श्री रवि शंकर: आप वैसे भी कहां जा सकते हैं ? आप जहां भी जायेंगे वहां और भी भ्रमित होंगे | जहां से भ्रम मिला है वहीं से उत्तर या समाधान मिलेगा |

प्रश्न : गुरु जी कभी कभी हमारे मन की अवस्था ऐसी होती है कि हम किसी से कभी भी बात कर सकते हैं और कभी ऐसा नहीं होता | मन की अवस्था वैसी ही होने के लिए क्या कर सकते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: आप का मतलब है घर मे पत्नी के साथ ? ऐसा होता है और लोग शिकायत करते हैं कि, मेरा पति घर पर मुझसे बात ही नहीं करता, लेकिन घर पर कोई अतिथि आते हैं तो वह बहुत बातें करते हैं | और जब मैं उनके साथ घर मे अकेली होती हूं तो वे मुझसे बिलकुल बात नहीं करते ; यही समस्या है ना ? आप का मन ऐसा ही है – कभी कभी आप बोलना चाहते हैं और कभी कभी आप इतना अधिक बोल कर थक जाते है | इसीलिए आप बोलना ही पसंद नहीं करते और फिर बोलने के लिए आप के प्राण को उच्च स्तर पर लाना  होगा, यह प्रकृति है | बोलने के लिए आप को अपने आप पर जोर नहीं डालना चाहिए और मुक्त रहना चाहिए |

प्रश्न : जय गुरुदेव, आप इतने आकर्षक हैं क्या यह मेरे इस पथ पर बाधा है ? यदि मैं आकार में ही फँस गया तो मैं आकार से परे देखने के लिए क्या करूं ?
श्री श्री रवि शंकर: आप अपने आप को हर बात से पृथक कर लें | फिर यह भी अपने आप गायब हो जायेगा | फिर आप मुझको और अधिक देख सकेंगे जो आकार से भिन्न है |

प्रश्न : गुरुजी देवदूत के बारे मे कुछ चर्चा करें उनकी भूमिका और उद्देश्य क्या होता है | क्या हर किसी व्यक्ति का कोई देवदूत पालक होता है जो उनका ध्यान रखता है ?
श्री श्री रवि शंकर: हां, देवदूत सकारात्मक उर्जा होते हैं |

प्रश्न : स्वर योग क्या होता है कृपया करके इसे समझाएं ?
श्री श्री रवि शंकर: सबसे पहले नाडी शोधन प्राणायाम करें और प्राणायाम के द्वारा स्वयं के गहन में उतर कर देखें फिर आप महसूस कर सकेंगे कि दिन भर में दोनों नासिकाओं के मध्य मे कैसे श्वास बदलती रहती है |

प्रश्न : गुरुजी क्या जीवित रहते हुए हम स्वयं के लिए के तर्पण कर सकते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: ध्यान के द्वारा तृप्त हो जाओ, यही तर्पण है |

प्रश्न : प्रारब्ध और संचित कर्म के बारे मे कुछ बताएं ?
श्री श्री रवि शंकर: संचित कर्म भक्ति के द्वारा कम किया जा सकता है जबकि प्रारब्ध कर्म का कुछ अंश सहन करते हुए अनुभव करना पड़ता है |

प्रश्न : गुरु जी मेरा बॉस चाहता है की मैं व्यवहार कुशल बन जाऊं क्योंकि उसे लगता है कि यह संपर्क बनाने के लिए बहुत महत्म्पूर्ण है परन्तु मैं एक सीधा साधा व्यक्ति हूँ और व्यवहार कुशल नहीं बन सकता | इसमें क्या करना ठीक है ?
श्री श्री रवि शंकर: अपने सिर पर कोई लेवल क्यों अंकित कर लेते हो, ‘मैं एक सीधा सच्चा  व्यक्ति हूं’  एक सीधे सच्चे व्यक्ति को व्यवहार कुशल क्यों नहीं होना चाहिए | एक सच्चे साधे  व्यक्ति को हर समय अशिष्ट होने की आवश्यकता नहीं है और इसीलिए आप सीधे सच्चे होते हुए इस तथ्य को छिपाएँ कि आप अशिष्ट हैं | और अपनी अशिष्टता को उचित ठहराने का यह कोई उचित तरीका नहीं है | सरलता और व्यवहार कुशलता दोनों आवश्यक है और यह दोनों आप में होना चाहिए | जब आप किसी अंधे व्यक्ति से मिलते हैं तो आप उस व्यक्ति से यह नहीं कह सकते कि ‘आप अंधे व्यक्ति हो’| आप कहेंगे मैं तो सीधा सच्चा व्यक्ति हूं और मैं सही बात कह रहा हूं, लेकिन आप को ऐसा नहीं करना चाहिए | व्यवहार कुशलता जीवन के अंश हैं और यह कौशल आपमे होना चाहिए | व्यवहार कुशलता का अर्थ यह नहीं है कि कोई सीधा सच्चा नहीं है क्योंकि यह सीधे सच्चे का विरोधाभास है, इन दोनों बातो को साथ मे चलना होता है |

प्रश्न : गुरुजी आप को कैसे पता पड़ता है कि हमारे मन मे क्या चलता है जबकि आप हम से हजारों किलो मीटर दूर होते हैं | आप हमारी इच्छाओं को कैसे पूरा करते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: यह मेरा रहस्य है | यदि आप ब्लेसिंग कोर्स मे भाग लेगें तो यह आप भी कर सकते हैं |

प्रश्न : गुरुजी अमावस और दीवाली के दौरान हमें यह बताया जाता है कि हमें रात मे सैर नहीं करना चाहिए और नुकीले औजारों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, इसके पीछे क्या मंशा है ?
श्री श्री रवि शंकर: चंद्र का मन पर गहरा प्रभाव होता है पूर्णिमा पर आप की मन की स्थिति अलग होती है और अमावस पर भी आप के मन की स्थिति अलग होती है | अमावस की रात काफी काली होती है इसीलिए प्राचीन काल मे यह कहा जाता था कि नुकीले औजारों का प्रयोग न करें क्योंकि उससे आप को ही चोट लग सकती है परन्तु आज विद्युत होने के कारण इसका महत्व नहीं रह गया है |

प्रश्न : गुरुजी जो पत्र आप के पास आते हैं उनका क्या होता है ?
श्री श्री रवि शंकर: आप चिंता मत करो वे सब मेरे पास पहुंच जाते हैं |

प्रश्न : गुरुजी कुछ लोग कहते हैं कि अंतिम संस्कार में नहीं जाना चाहिए और कुछ लोग कहते हैं कि अंतिम संस्कार में जाना चाहिए, इन दोनों में से क्या ठीक है ?
श्री श्री रवि शंकर: आप अंतिम संस्कार मे जा सकते हैं, यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है | अंतिम संस्कार मे जाने में कोई समस्या नहीं है | सामान्यतः अंतिम संस्कार से लौटने के बाद आप स्नान करते हैं क्योंकि उर्जा का स्तर बदल जाता है |

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आध्यात्म की शुरूआत आनंद से होती हैं !!!


२३ मई २०११, बैंगलुरू आश्रम 

प्रश्न : गुरुजी क्या अध्यात्म को विज्ञान के द्वारा समझाया जा सकता है ? कभी कभी मुझे इस सृष्टि पर आश्चर्य होता है जिसे अभी भी विज्ञान के द्वारा समझना शेष है | क्या वेद में इसका समाधान है ?
श्री श्री रवि शंकर: योग की शुरुआत आनंद से होती है, जब आप आनंदमय होते हैं  तो आप सत्य की खोज शुरू कर देते हैं और आपकी यात्रा की शुरुआत हो जाती है | यह भी ठीक है ‘विस्मयो योग भूमिका | आध्यात्म की शुरुआत आनंद से होती है और फिर वह हर समय मनोरंजन उद्यान मे रहने के सामान है | आप आश्चर्य चकित हो जाते हैं, ओह, यह ऐसा है ? यह संसार क्या है ? इसमें विभिन्न किस्म के वृक्ष पौधे, फूल, पत्तियां ,सब्जियां, फूल  और लोग है फिर यह सब क्या है ? जब इस प्रकार का विचार आप मे आते है, तो ज्ञान का उदय होता है |

प्रश्न : गुरुजी यदि हम परिस्तिथि जैसी है उसे वैसे ही स्वीकार करते , तो हम सृजनात्मक कैसे हो सकते हैं ?
श्री श्री रवि शंकर: यह आप ने आर्ट ऑफ लिविंग बेसिक कोर्स पार्ट १ मे समझा होगा, ठीक है ? स्वीकार करने का अर्थ कृत्य न करना नहीं होता है | वास्तव मे स्वीकार करने का अर्थ वर्तमान परिस्तिथि को समझना होता है
हर बच्चे को यह मालूम होना चाहिए की वह विश्व की हर परम्परा का अंश है | पाकिस्तान के कई पूर्वज हिंदू, बौद्ध, और जैन धर्म से थे और उनके कई पूर्वज इन प्राचीन संस्कृति से ही थे | कुछ तो पारसी भी थे | पाकिस्तान मे बच्चों को उपनिषद, थोडा योग और ध्यान सिखाया जाना चाहिए | योग का जन्म पाकिस्तान मे हुआ था | जन्म का तात्पर्य है की उसे वहां पर सिखाया और उसका प्रचार किया जाता था जिसे आज हम पाकिस्तान कहते हैं |
हजारों लोग सब किस्म के उपदेशों का पालन करते है क्योंकि उन्हें अध्यामिक ज्ञान के बारे मे पता नहीं है | इसीलिए हमारा यह महत्पूर्ण कर्त्तव्य है कि हम लोगों को अध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करें | क्या आप को ऐसा नहीं लगता ?
इसीलिए हम को और भी सक्रिय होना पड़ेगा कि समाज मे अच्छे काम करने के लिए कैसे कट्टरपन करुणा और प्रतिबद्धता मैं परिवर्तित हो सके |  इसके लिये हम सब को मिल जुल कर काम करना होगा |

प्रश्न : गुरु जी क्या सुदर्शन क्रिया से डी.एन.ए. में बदलाव आ सकता है ?
श्री श्री रवि शंकर: हां |

प्रश्न : गुरुजी आलोचना को स्वीकार करने के लिए मैं अपने आप को कैसे मजबूत कर सकता हूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: आप स्वीकार करें या ना करें आलोचना तो हो चुकी है, ठीक है ? आप के पास कोई विकल्प ही नहीं रह जाता | किसी के बोलने के बाद ही आप को यह समझ मे आता है कि उन्होंने आपकी आलोचना की है | उनके बोलने के पहले आप को इसके बारे मे कैसे मालूम पड़ेगा ? किसी की आलोचना करने से पहले इसके बारे मे मालुम नहीं होता है | उनके आलोचना करने के बाद वह घटना घट चुकी होती है | फिर आपके पास क्या विकल्प रह जाता है ? यदि आप उसे स्वीकार नहीं करते तो आप के साथ क्या होगा ? आप और दुखी हो जायेंगे | यदि आप बुद्धिमान है तो आप उसे स्वीकार करेंगे और यदि आप बुद्धिमान नहीं है तो आप उस पीड़ा से पीड़ित रहेंगे | इसका यही उपाय है और आप इसे कर सकते हैं |

प्रश्न: गुरूजी, मैने देखा है कि आपकी मुझ पर अपार कृपा है | मुझे जो कुछ भी चाहिए या मेरी कोई भी इच्छा हो तो आप उसे पूरा कर देते हैं | ऐसा कभी नहीं हुआ कि मैने कुछ इच्छा की हो और वह पूरी नहीं हुई है | परन्तु मेरी मांगे ऐसी हैं कि उनका अंत ही नहीं हो रहा है, और मुझे अब अपने इस व्यहवार पर शर्म आने लगी है, इसके लिए मैं क्या करूँ ?
श्री श्री रवि शंकर: अब आप इसके बारे में सजग हो गए हैं तो अब आप सही पथ पर आ गए हैं | अब आपकी गाड़ी सही मार्ग पर आ गयी है और उसने यू टर्न ले लिया है | कुछ बड़ा मांगो | आप कुछ छोटी चीज़ क्यों मांगते हैं ? और सिर्फ अपने लिए ही नहीं मांगे, सब के लिए मांगे | आप जो भी मांगेगे, वह आपको मिल जाएगा |

प्रश्न: जिस स्कूल में मेरा बालक पढ़ रहा हैं, उससे मैं खुश नहीं हूं | क्या मैं उसे उस स्कूल से निकाल कर अपने घर में ही शिक्षा प्रदान करूं ?
श्री श्री रवि शंकर: नहीं, क्योंकि स्कूल का वातावरण ठीक नहीं हैं, इसलिए घर में रहना भी ठीक नहीं हैं | फिर बच्चे मंद बन जायेंगे | हमको स्कूल की व्यवस्था में सुधार लाना होगा और यह कार्य हो रहा है | हम कई स्कूल शुरू कर रहे हैं | हमने भारत में अब तक करीब १०० स्कूल खोले हैं |

प्रश्न: प्रिय गुरूजी, मेरी सास दुसरे धर्मों के लोगो को प्रसाद वितरित नहीं करती | उनका तर्क हैं कि जिसे प्रसाद का महत्त्व नहीं समझता, उन्हें लाभ नहीं होगा | मैं कैसे उन्हें अन्यथा सोचने के लिए कहूं ?
श्री श्री रवि शंकर: कोई बात नहीं, यदि वो नहीं करती तो आप उसे हर किसी में वितरित करें | प्रसाद सामान्यतः स्वादिष्ट व्यंजन होता है | हर किसी की अपनी व्यक्तिगत राय होती है, उसे रहने दीजिए | आप अपनी राय रखे, इसमें कोई द्वंद नहीं है | आप वह करे जो आपको करना है |

प्रश्न: क्या महत्वपूण हैं: वेदांत, ज्ञान या प्रेम ?
श्री श्री रवि शंकर: वेदांत, ज्ञान और प्रेम हर समय साथ में चलते हैं | कभी किसी को महत्त्व दिया जाता है तो कभी किसी अन्य को महत्त्व दिया जाता है | इसलिए आपको तीनों को साथ में लेकर चलना होगा |
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