अहंकार का सबसे उत्तम मारक!!!

०३
२०१२
अक्टूबर
बैंगलुरु आश्रम, भारत
प्रश्न : क्या अहंकार और स्वत्वबोधकता में रिश्ता है, और हम दोनों से मुक्ति कैसे पा सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : हाँ!
अहंकार, स्वत्वबोधकता, ईर्षा, क्रोध, लोभ सब जुड़े हुए हैं| वे सब अहंकार से जुड़े हुए हैं| अब अहंकार से कैसे मुक्ति पाएं? यह एक बड़ी समस्या है|
वास्तव में उपाय बहुत सरल है| बस केवल एक दिन के लिए मूर्ख होने के लिए सहमत हो जाएँ| बस केवल एक दिन के लिए एक पागल व्यक्ति की तरह व्यवहार कीजिये| वह काफी होगा|
अहंकार का मतलब ही यही है कि आप दूसरों को प्रभावित करने की चेष्टा कर रहे हैं| आपको अहंकार के लिए किसी दूसरे (व्यक्ति) की जरुरत पड़ती है| जब आप अपनी जगह पर अकेले होते हैं, तब वहाँ अहंकार नहीं हो सकता| अहंकार उठता है, जब कोई दूसरा होता है| यदि आप एक बच्चे जैसे होते हैं, यदि आप सहज और आरामदायक (अपने घर की तरह) महसूस करतें हैं, यह अहंकार के लिए एक सबसे अच्छा मारक है|
जब सहजता आ जाती है, तब अहंकार निर्वाह या गुजारा नहीं कर सकता, और जब आप सभी लोगों के साथ सहज हो सकते हो और सभी के साथ एक आत्मीयता रख सकते हो| यह सभी गुण आपको बदल सकते हैं| यदि अहंकार तब भी यह कहता है, "मैं हूँ", तब उस अहंकार को विस्तृत करना चाहिए| एक होता है पारदर्शी अहंकार, दूसरा होता है विस्तृत अहंकार| दोनों का मतलब एक ही है| विस्तृत अहंकार का मतलब; सभी लोग शामिल हैं, सभी मेरे अपने हैं| मैं सबकुछ हूँ| यह बहुत अच्छा है| तो या तो अपने अहंकार को विस्तृत करके उसे बहुत बड़ा बनाइये, या उसे सादगी और मासूमियत जैसे सरल कार्यों से बदल दीजिये| वह अहंकार को पारदर्शक बना देगा|

प्रश्न : गुरूजी, मैं एक ऐसी स्थिति में हूँ जहां मैं न माफ़ कर सकता हूँ न भूल सकता हूँ| कृपया मार्गदर्शन कीजिये|
श्री श्री रविशंकर : तो केवल अपनी मृत्यु के बारे में सोचिये, की आप मरने वाले हो| यदि आप (परिस्थति को) पकड़कर रखते हैं, तब भी आप समाप्त हो जायेंगे, आप इस दुनिया से चले जायेंगे| अब क्या आप उस छाप को लेकर चलना चाहते हैं? चलिए, सजग हो जाईये|
जीवन बहुत कम है और हर एक व्यक्ति एक चिथड़ों से भरी गुडिया है| उनका अपना कोई मन नहीं है| हर कोई एक चिथड़ों से भरी गुडिया की तरह है, और एक विशेष बल और उर्जा है जो हर किसी के माध्यम से काम कर रहा है| वह एक परमकरनाकरण सभी कारणों का कारण है|
यह शिव तत्व का खेल है, जो अलग अलग चीजें अलग अलग लोगों के मन में रखता है| इस अद्वैत ज्ञान को समझिए, उसे महसूस कीजिये| हम सभी उस एक पदार्थ से ही बने हैं| यह सब छोटे छोटे मन हैं, लेकिन मन उस बड़े मन से और कर्म के अनुसार भी प्रभावित होता है| इसलिए अलग अलग लोग अलग अलग तरीकों से व्यवहार करते हैं| क्या आपने देखा है कि कभी कभी आपने किसी के साथ कुछ भी गलत नहीं किया होता है, और फिर भी वे आपके शत्रु बन जाते हैं? कितने लोगों ने यह अनुभव किया है? विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिनके लिये आपने बहुत कुछ अच्छा किया है, वे आपके शत्रु बन जाते हैं| आप आश्चर्यचकित होते हो कि यह व्यक्ति मेरा सबसे अच्छा मित्र है, मैंने उसके लिए इतना कुछ किया, और यह व्यक्ति मेरा शत्रु बन गया! क्या ऐसा नहीं है? उसी तरह कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनपर आपने कोई विशेष अहसान नहीं किये हैं, फिर भी वे आपके मित्र बन जाते हैं, क्या ऐसा नहीं हुआ है? आप किसी को रेलगाड़ी में मिलते हैं और फिर वे आपकी बहुत मदद करते हैं| तो दोनों, मित्रता और शत्रुता किसी अजीब कर्म की वजह से होते हैं|
इसीलिए मित्र या शत्रु सब एक समान हैं, क्योंकि कोई दूसरी शक्ति उनके द्वारा काम कर रही हैयह जानते हुए, शांत हो जाएँउसी तरह जब आप कोई अच्छा काम करते हैं, तो कुछ लोग होते हैं जो आपकी निंदा करते हैं| कुछ लोग होते हैं जो भयानक काम करते हैं, और कुछ लोग हैं जो उनकी प्रसंशा करते हैं| आपको वह कितना अजीब लगता है| इसीलिए सब कुछ छोड़कर विश्राम कीजिये|

प्रश्न : गुरुदेव, क्या जीवन में कोई लक्ष्य होना वश्यक है, या हमें उनके साथ चलना चाहिए जो हमारे पास आता है ?
श्री श्री रविशंकर : आपके पास एक व्यक्तिगत लक्ष्य होना चाहिए कि आपको जीवन में क्या करना है| जब एक लक्ष्य होता है, जीवन एक नदी की तरह चलती है| जब कोई लक्ष्य नहीं होता, तो जीवन उस पानी की तरह होता है जो पूरे खेत में फैला/बिखरा पड़ा हैलक्ष्य प्रतिबद्धता के लिए होता है| इसलिए आपके पास कोई एक लक्ष्य होना चाहिए| और लक्ष्य क्या है? लक्ष्य है उच्चतम को हासिल करना, योगी बनना; एक ध्यानी बनना और दुनिया की सेवा करना| दुनिया की सेवा ही एक असली पूजा है (प्रार्थना)|

प्रश्न : गुरुदेव, कुछ अवसरों पर मैं लोगों को और परिस्थितियों को जैसे है वैसे स्वीकार कर सकता हूँ, लेकिन कुछ अवसरों पर मैं उन्हें स्वीकार नहीं कर पाता हूँ| मुझे पता नहीं क्यों| मुझे यह पता नहीं है कि कैसे हमेशा लोगों और परिस्थितियों को स्वीकार करें|
श्री श्री रविशंकर : यह आवश्यक नहीं है| आपको यह हमेशा करने की जरुरत नहीं है| आपको उन्हें स्वीकार करने की जरुरत नहीं है| लड़िये!
कितनी बड़ी राहत मिली, है ना? आपको लड़ने की अनुमति मिली! जाईये और ख़ुशी से लड़िये, मैं कहता हूँ| देखिये, जो आप नहीं कर सकते हो, उसे आपको करना नहीं है| जो आप कर सकते हो वही कीजिये| यदि स्वीकार करना इतना मुश्किल है, तो स्वीकार ना करें| यदि स्वीकार नहीं करना आसान है, वह अच्छा है, लेकिन यदि स्वीकार करना आसान है, तो उसे कीजिये|

प्रश्न : आम तौर पर, जो लोग सदाचारी हैं वे दुखी हैं, और जो लोग व्यभिचारी हैं वे संतुष्ट और खुश हैं| वास्तव में उनकी प्रसंशा की जाती है और वे मजबूत स्थिति में होते हैं| ऐसा क्यों?
श्री श्री रविशंकर : क्या मैं दुखी लगता हूँ? क्या यहाँ पर जो स्वामीजी है वह दुखी लग रहे हैं? देखिये, स्वामीजी हंस रहे हैं| आसपास देखिये, यह सब आम और साधारण लोग हैं| क्या वे आपको उदास लग रहे हैं? क्या वे आपको यहाँ पर खुश नहीं लग रहे? क्या आपने रसोईघर में, स्वागत क्षेत्र में देखा, लोग खुश हैं, नहीं ? (उत्तर : हाँ)|
यदि आप ख़ुशी का पीछा करते हैं, तो दुःख आपके पीछे आता है| यदि आप ज्ञान का पालन करते हैं, तो ख़ुशी आपका पीछा करती है|

प्रश्न : मेरी इच्छाशक्ति बहुत कमजोर है| मैंने बहुत बार कोशिश की, लेकिन दस में से आठ बार मुझे विफलता मिली| मेरी इच्छाशक्ति में सुधर लाने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर : पहली बात, आपने अपने आप का एक वर्गीकरण कर दिया है कि आपकी इच्छा शक्ति कमजोर है| इससे बात खत्म हो गयी| आपको अपना वर्गीकरण नहीं करना चाहिए| बाद में, छोटी छोटी बातों से अभ्यास करना चाहिए, अल्पावधि, समयबद्ध संकल्प कीजिये| उदहारण के लिए, दस दिनों तक मैं रोज व्यायाम करूँगा; दस दिनों तक मैं किसी भी अपशब्द का उपयोग नहीं करूँगा| एक बार यदि आप यह कर सकते हो, तो आप उसे लम्बे समय के लिए कर सकते हैं|

प्रश्न : मैं लम्बे समय से ध्यान कर रहा हूँ| हाल ही में, एक ध्यान के दौरान, आप प्रकट हुए और मुझे प्रसाद दिया| मेरी आखें बंद थीं, लेकिन आप सबकुछ देख रहे थे| मेरा प्रश्न है, क्या वह आप थे, या आपके रूप में इश्वर थे?
श्री श्री रविशंकर : एक साधक को अपने जीवन में कई सारे अनुभव होते हैं| उनकी जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है| बस आगे बढिए| बीते हुए कल का अनुभव बीते हुए कल का है, आज का अनुभव आज के लिए है, और आने वाले कल में आपको एक नया अनुभव होगा| चाहे वह एक सुखद अनुभव था या दुखद अनुभव, आपको आगे बढ़ना चाहिए|