०२
२०१२
अक्टूबर
|
बैंगलुरु आश्रम, भारत
|
प्रश्न :
प्रिय गुरुदेव, भगवान का आध्यात्मिकता से क्या सम्बन्ध है? क्या ऐसा संभव है कि मैं भगवान में विश्वास न करूँ और फिर भी
आध्यात्मिक रहूँ?
श्री श्री
रविशंकर : हाँ!
क्या आप जानते
हैं, छह दर्शनों में से पहले तीन दर्शन तो भगवान के बारे में बात तक नहीं करते,
न्याय, वैशेषिक और सांख्य दर्शन|
गौतम महर्षि
के द्वारा रचित न्याय दर्शन ज्ञान के बारे में चर्चा करता है कि आपका ज्ञान सही है
या नहीं| ज्ञान के माध्यम को जानना कि वह सही
है या नहीं, यह है न्याय दर्शन|
उदाहरण के
लिए, आप अपनी इन्द्रियों के द्वारा ये देख पाते हैं, कि सूर्य ढल रहा है या सूर्य
निकल रहा है| लेकिन न्याय दर्शन कहता है, ‘नहीं, आप केवल उस पर विश्वास नहीं कर सकते, जो आप देख रहें
हैं, आपको उससे परे जाकर खोजना है, कि क्या वास्तव में सूर्य ढल रहा है या फिर
पृथ्वी घूम रही है?’
हमें लगता है
कि कोपरनिकस ने यह खोज की थी कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, मगर यह
बिल्कुल असत्य है| उन्होंने ज़रूर पता लगाया था, लेकिन
उसके पहले, भारत में बहुत लम्बे समय से लोग ये बात जानते थे कि पृथ्वी सूर्य की
परिक्रमा करती है|
न्याय दर्शन
इन सबके बारे में बात करता है| वह बात करता है धारणाओं की
और उन धारणाओं के संशोधन की|
और फिर आता है
वैशेषिक दर्शन, यह संसार की सभी वस्तुओं की गिनती
करता है ; जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, और फिर सारी वस्तुएं और विषय और इन
सबका विश्लेषण| यह है वैशेषिक दर्शन|
इसमें वे मन,
चेतना, बुद्धि, स्मृति और इन सबके बारे में चर्चा करते हैं|
इसके बाद है
सांख्य दर्शन|
तो ये तीन
दर्शन ईश्वर के बारे में बात नहीं करते, बल्कि वे चेतना के बारे में बात करते हैं|
केवल
योग-सूत्रों में जो कि चौथा दर्शन है वे ईश्वर के विषय पर चर्चा करते हैं|
इसलिए, आपको
ईश्वर पर विश्वास करने के लिए विवश महसूस नहीं करना है, लेकिन आपको किसी पर तो
विश्वास करना होगा| आपको कम से कम चेतना पर तो विश्वास
करना होगा|
आमतौर पर जब
हम ईश्वर के बारे में सोचते हैं, तो हम स्वर्ग में बैठे किसी व्यक्ति के बारे में
सोचते हैं, जिसने ये सृष्टि बनाई, और फिर इस सृष्टि से दूर जाकर बैठ गए और हर एक
एक के अंदर गलतियाँ निकालने में जुट गए| आप जो भी करें, वे एक डंडा
लेकर आपको सज़ा देने को तैयार बैठे हैं|
हमने ऐसे भगवान
के बारे में कभी बात नहीं करी|
भगवान ही तो
अस्तित्व है!
यह पूरी
सृष्टि एक ऐसे तत्व से बनी है जिसका नाम है प्रेम, और यही तो ईश्वर है!
आप ईश्वर से
अलग नहीं हैं|
ईश्वर के बाहर
कुछ भी नहीं है; सब कुछ ईश्वर के अंदर ही स्थापित है| तो ये अच्छा, बुरा, सही, गलत और इन सबसे परे है| सुख दुःख ये सब कोई मायने नहीं रखता|
केवल ‘एक’ है जिसका अस्तित्व है, वह ‘एक’ पूर्ण है, और यदि आप उसे
कोई नाम देना चाहें तो ईश्वर कह सकते हैं| या फिर चिंता मत करिये,
केवल स्वयं को जान जाईये|
प्रश्न :
गुरुदेव, इस हफ्ते गाँधी जयंती के उपलक्ष्य में, आर्ट ऑफ लिविंग ‘शान्ति और स्वास्थ्य’ का हफ्ता मना रही है| क्या आप शान्ति और स्वास्थ्य के आपसी सम्बन्ध के बारे में
कुछ बता सकते हैं?
श्री श्री
रविशंकर : यह
कितना स्पष्ट है, यदि आप स्वस्थ है, तो आप अधिक शांत है|
स्वास्थ्य में
शान्ति भी शामिल है| यदि आप शांत नहीं है, तो आप अपने आप
को स्वस्थ नहीं कह सकते| अगर मन परेशान है, तो शरीर
भी परेशान है|
बीमारी केवल
शरीर में ही नहीं होती, मन में भी हो सकती है, बुद्धि में भी हो सकती है, वह आपकी
बुद्धि के संकोच में हो सकती है, या आपकी आत्मा के दुःख में हो सकती है, ये सभी
अस्वस्थता माना जाएगा| इसीलिये, ‘स्वस्थ’ शब्द का इतना गहरा अर्थ है|
यदि आप बाली
में जायेंगे, तो वे आपका अभिवादन करते हुए कहेंगे, ‘ओम्
स्वस्थी रस्तु’|
ये ऐसे है,
जैसे हम लोग नमस्ते या हेलो कहते हैं|
बाली में वे
कहते हैं, ‘ओम् स्वस्थी रस्तु’, जिसका अर्थ है ‘आप स्वयं में स्थापित रहें’|
यदि आप स्वयं
में स्थापित हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शांत हैं, आपमें कोई संकोच नहीं है, आपका
मन साफ है, आपके मन में कोई नकारात्मक भावना नहीं है और आपका शरीर स्वस्थ है|
संस्कृत में
इन सबको साथ में स्वास्थ्य कहते हैं, एक स्वस्थ व्यक्ति|
प्रश्न : आर्ट
ऑफ लिविंग में आने के बाद, मुझे ये श्रद्धा हो गयी है कि मेरा जो भी काम है, वो हो
जाएगा| लेकिन कभी कभी ऐसा नहीं होता| ऐसा क्यों?
श्री श्री
रविशंकर : हाँ,
कभी कभी ऐसा होता है| ऐसे समय में इतना जानिये कि उससे भी
बेहतर कुछ होने वाला है|
देखिये, जीवन
में सुख दुःख, उतार चढ़ाव, आदर अनादर, ये सब कुछ चलता रहता है| लेकिन, इन सबके बीच में अपना संतुलन बनाये रखना, बस यही
आवश्यक है| कठिन समय ही बताते हैं, कि आप कितने
संतुलन में हैं|
जब आपके साथ
सब कुछ अच्छा चल रहा है, तब आप कह सकते हैं, ‘मेरे अंदर बहुत श्रद्धा है,
बहुत भक्ति है’, लेकिन ऐसा कहने में कोई बड़ी बात
नहीं है| लेकिन जब सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा हो,
और तब भी आप अपनी श्रद्धा और भक्ति को बनाये रखें, तब वह सच्ची श्रद्धा है, दृढ़
श्रद्धा है|
प्रकृति आपके
मार्ग में ऐसी बहुत से घटनाएं रखेगी, जिससे आपकी श्रद्धा हिलेगी, लेकिन अगर फिर भी
आपकी श्रद्धा बरकरार रहती है, तब आप वास्तव में सिद्ध और पूर्ण व्यक्ति बन चुके
हैं| और उसके बाद जीवन बहुत सरल हो जाएगा|
प्रकृति में
ऐसा ही होता है|
प्रश्न : मैं
ऐसा क्या करूँ कि मेरे अंदर सकारात्मक गुण बढ़ें?
श्री श्री
रविशंकर : सकारात्मक
गुणों को सुधारने के लिए और उन्हें और अधिक खिलाने के लिए, साधना और सेवा करिये| और यदि सेवा करते हुए कोई आपको अपशब्द कहे, तो आप केवल उसे
सुन लें| उन्हें कहिये, ‘आईये, मुझे अपशब्द कहिये!’
देखिये, जब हम
गाली खाने के लिए भी तैयार हो जाते हैं, तब ही हमारी चेतना खिलना शुरू करती है|
लेकिन, अगर हम ये कहें, ‘तुम मुझसे ऐसे कैसे बात कर
सकते हो, मुझे गाली मत दो’, और हम उसका विरोध करते
हैं, तब हम खिल नहीं पाते हैं|
इसलिए, साधना
करते रहिये और ध्यान करिये| जैसे जैसे हम अपनी साधना
करते हैं, हमारी चेतना खिलती है और हमारे सकरात्मक गुण आगे आते रहते हैं|
प्रश्न :
गुरुदेव, करोड़ो लोगों का आदर्श बनना आपको कैसा लगता है?
श्री श्री
रविशंकर : खाली
और खोखला, और फिर भी पूर्ण!
प्रश्न : गुरुदेव,
उपनयनम बैच से मिलते समय आपने हमसे कहा था, कि हमें ब्रह्मयग्न – चारों वेदों में से चार मन्त्र सीखने चाहिये| कृपया क्या आप
हमें इन मन्त्रों के अर्थ बता सकते हैं?
श्री श्री
रविशंकर : मन्त्रों
से होने वाली तरंगें, उनके अर्थ से ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं| ये मन्त्र ऋषियों द्वारा डाउनलोड किये गए थे| वे ध्यान में बैठे, और उन्हें कुछ प्राप्त हुआ, जिसे
उन्होंने डाउनलोड करके लोगों को सौंप दिया| तो इसे एक तरंग के रूप में प्राप्त
किया गया, इसे बुद्धि की सजगता से बैठ कर, लिख कर नहीं किया गया था|
ये मन्त्र
अंतर्ज्ञान के स्तर से आये हैं, शुद्ध चेतना से आये हैं|
देखिये, यदि
आप बैठ कर सोचेंगे और फिर कुछ करेंगे, और कुछ शब्दों को जोड़कर उन्हें अर्थ देंगे,
तो वो एक अलग बात हो जाती है| लेकिन, ऐसा कुछ जो आपके
अंदर से आता है, जैसे कोई कविता, जैसे अंतर्ज्ञान, तब उसका विस्तार हो सकता है और
आने वाली पीढ़ियों में उसे और अधिक जाना जा सकता है| और
जब जब आप उसका विश्लेषण करेंगे, तो कोई न कोई नया अर्थ सामने आएगा और इन्ही को
मन्त्र कहते हैं|
‘मनन त्रायते इति मन्त्रः’ - जब आप इस पर मनन करते हैं, तो आपकी ऊर्जा बढ़ती है ऐसा कहा
गया है| मन्त्रों के अर्थ ज़रूर होते हैं, लेकिन इनका अर्थ केवल हिमशिला के कोने
जैसा है| अर्थ इतना ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, उसकी तरंगें ज्यादा महत्वपूर्ण हैं|
प्रश्न :
गुरुदेव, जब हम गायत्री मंत्र का उच्चारण करते हैं, तो हम कितनी बार उसका उच्चारण
करते हैं, क्या यह महत्वपूर्ण है? यदि हम थोड़ा ज्यादा या थोड़ा कम करते हैं, तो क्या
उसका कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, या केवल भाव ही महत्वपूर्ण है?
श्री श्री
रविशंकर : हाँ,
पूरे भाव के साथ उच्चारण करिये, वही काफी है|
आपको कोई सज़ा
नहीं मिलेगी| अगर कोई कुछ कहता भी है, तो उनसे
कहिये कि आपके पास एक वकील है| अगर कुछ होता है, तो मैं
आपका वकील बन जाऊँगा|
बहुत से पंडित
लोगों में ये भ्रान्ति पैदा कर देते हैं, कि कुछ हो जाएगा| या महिलाओं को गायत्री मंत्र का उच्चारण नहीं करना चाहिये| ये सब गलत है, ऐसा कुछ भी नहीं है|
इसे प्रेम से
जपिये, डर से नहीं|
प्रश्न : मैं
नकारात्मक न सोचने का बहुत अधिक प्रयास करता हूँ, लेकिन फिर भी नकारात्मक विचार
मेरे मन में आते ही रहते हैं| क्या करूँ?
श्री श्री
रविशंकर : अगर
आप नकारात्मक विचारों का विरोध करेंगे, या उन्हें भगाने का प्रयास करेंगे, तब वे
एक भूत की तरह आपका पीछा करेंगे|
अपने
नकारात्मक विचारों के साथ हाथ मिलाईये| उन्हें कहिये, ‘आओ, मेरे साथ यहाँ बैठो| मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा|’ और आप देखेंगे कि कितनी जल्दी वे गायब हो जाते हैं| विचार आपसे डरते हैं|
अगर आप नकारात्मक विचारों से डरेंगे, तब वे आप पर नियंत्रण करेंगे| लेकिन अगर आप उनसे हाथ मिला लेंगे, तब वे गायब हो जायेंगे|
प्रश्न :
गुरुदेव, पाप और गलती में क्या फ़र्क है, क्या ये दोनों माफ़ी के काबिल है?
श्री श्री
रविशंकर : बिल्कुल,
दोनों को माफ किया जा सकता है|
एक पाप के
पीछे थोड़ी बहुत मन्शा हो सकती है, लेकिन एक गलती आपकी सजगता के बिना होती है; जब आप
सजग नहीं होते हैं|
जब आप कोई पाप
कर रहे होते हैं, तब आप जानते थे कि यह सही नहीं है, लेकिन फिर भी आपने वह किया|
ये अंतर हो
सकता है| लेकिन, जो भी हो ये दोनों ही चले
जायेंगे, इसलिए चिंता मत करिये| छोड़ दीजिए!
प्रश्न :
गुरुदेव, अगर सब कुछ पहले से ही लिखा हुआ है, तो कर्म का क्या योगदान है?
श्री श्री
रविशंकर : आप
कह रहें हैं, कि सब कुछ लिखा हुआ है, लेकिन ऐसा नहीं है|
कुछ चीज़ें
भाग्य से हैं, और कुछ आपके श्रम से होता है|
उदाहरण के
लिए, मान लीजिए कि बारिश हो रही है, यह प्रारब्ध है| आप
उसमें भीगे या नहीं, यह आपकी इच्छा है| अगर आप एक छाता ले लेते
हैं, तो आप भीगेंगे नहीं| अगर आप ऐसे ही चले जायेंगे, तो आप भीग जायेंगे|
इसलिए, सब कुछ
पहले से ही निश्चित नहीं है, आपके पास भी थोड़ी बहुत स्वतंत्रता होती है|
प्रश्न :
गुरुदेव, जब बच्चों को पालने की बात आती है, तो क्या ज्यादा ज़रूरी होता है; ये
देखना कि मेरे बच्चों को पैसे से मिलने वाली सभी सुख सुविधायें मिलें, या फिर मेरा
समय?
श्री श्री
रविशंकर : सुनिए,
आपके मन में दुविधा चल रही है, क्योंकि आप काम करते हैं और आप अपने बच्चों को समय
नहीं दे पा रहे हैं| कोई बात नहीं, आप जितना भी समय दे
रहे हैं, निश्चित करिये, कि वह गुणवत्ता समय है| वह
ज़रूरी है|
प्रश्न : गुरुदेव,
मैं बहुत आसानी से भूल जाता हूँ, मैं अपनी याददाश्त को कैसे दुरुस्त करूँ?
श्री श्री
रविशंकर : कुछ
आयुर्वेदिक दवाईयां लेना बहुत लाभकारी होता है जैसे, शंखपुष्पी, ब्राह्मी रसायन,
मेधा रसायन| ये बहुत अच्छी हैं, और ये याददाश्त
को बहुत फ़ायदा देती हैं|
youtube और टीवी बहुत घंटों तक मत देखिये| आप इनपर कुछ समय बिता सकते हैं, लेकिन बहुत सारे घंटे नहीं,
और एक साथ नहीं|
कभी कभी आप
इंटरनेट पर बैठते हैं, और पाँच-छह घंटों तक बैठे रहते हैं| चार से पाँच घंटे, आप एक के बाद फिल्में देखते हैं| ये सब मत करिये|
प्रश्न :
प्रिय गुरुदेव, नशे की लंबी आदत से कैसे छुटकारा पाएं?
श्री श्री
रविशंकर : बस
ये वादा करिये, कि जब आप यहाँ से जायेंगे, तो आप उन्हें फिर कभी नहीं छुएंगे! और
अगर आप ये सवाल किसी और के लिए पूछ रहे हैं तो उन्हें यहाँ ले आईये, और उन्हें
सुदर्शन क्रिया करने दीजिए, और ये सारी आदतें चली जाएँगी|
हज़ारों लोगों
ने नशे का सेवन करना छोड़ दिया है, जब उन्होंने प्राणायाम, सुदर्शन क्रिया और सहज
समाधि ध्यान करना शुरू किया|
प्रश्न : गुरुदेव,
एक ऋषिमुख पत्रिका में मैंने पढ़ा कि भगवान विष्णु सारे भगवानों के भगवान हैं,
लेकिन फिर शिव भगवान विष्णु भगवान के भी गुरु कैसे हुए?
श्री श्री
रविशंकर : हाँ,
भगवान शिव – देवों के देव महादेव|
देखिये, ये सब
एक ही हैं| हरि और हरा अलग नहीं है, वे ‘एक’ ही हैं|
शिव और विष्णु
‘एक’ हैं|
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