जीवन और इसकी चुनौतियां

०७
२०१२
अक्तूबर
बैंगलुरु आश्रम, भारत

प्रश्न : हम अपने भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को कैसे संतुलित कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : क्या आपको साइकल चलानी आती है? आप इसे कैसे संतुलित करते हैं? उसी प्रकार से अपने जीवन को भी संतुलित करिये। जीवन में दोनों को साथ लेकर चलिये।
जब आप आध्यात्मिकता पर अत्यधिक केंद्रित हो जाते हैं, तो मैं कहता हूँ कि घर की जिम्मेदारियों का भी ध्यान रखें। और यदि आप स्वयं को भौतिक गतिविधियों में डुबो लेते हैं और अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान नहीं देते तो मैं आपसे कहता हूँ कि इस कीचड़ में मत फंसे रहिये और अपने आध्यात्मिक अभ्यास को शुरु कर दीजिये।
जब आप टेलिविज़न देखते हैं तो क्या आप ऐसा कह सकते हैं कि मैं पहले देखूँगा और फिर सुनूँगा?’
कुछ लोग कहते हैं कि, मैं अपने सारे सांसारिक कार्य समाप्त कर लूँगा, तब आध्यात्मिकता की ओर चलूँगा।
तो मैं आपको बता दूँ कि ऐसा कभी नहीं होगा। दोनों को साथ चलना होगा। जीवन में दोनों की ही आवश्यकता है।
हमें मन की शांति, प्रेम और आनन्द की आवश्यकता है, और हमें अपने जीवन में जिम्मेदारियों का ध्यान रखने की भी आवश्यकता है।

प्रश्न : गुरुजी, कृपया हाल ही में आविष्कृत गॉड पार्टिकल पर कुछ प्रकाश डालेंगे?
श्री श्री रविशंकर : गॉड पार्टिकल के आविष्कार में, वैज्ञानिकों का कहना है कि समस्त ब्रह्मांड एक ही तत्व से बना है, एक ही पदार्थ से, और वह एक पदार्थ ही फिर अनेक हो जाता है।वेदांत में भी यही बात कही गई है। प्राचीन समय में, यह कहा जाता था कि समस्त ब्रह्मांड एक ही चेतना से बना है। यह एक चेतना ही स्वयं को अनेक चीज़ों में प्रदर्शित करती है।
वैसे ही जैसे कि आप एक गेंहू से ब्रेड, रोटी, समोसा और हलवा बना लेते हैं।
ब्रह्मांड में इतनी विविधता है, परंतु फिर भी, यह एक ही तरंग, एक ही चेतना से बना है, और इसी को वे गॉड पार्टिकल कह रहे हैं।
यह वही एक पदार्थ है, जिससे कि इस बहुसंख्यक सृष्टि का निर्माण हुआ है।

प्रश्न : जब मन संदेह से भरा होता है या तनावग्रस्त होता है, तो मैं स्वयं को यह विश्वास कैसे दिलाऊँ कि जो डर महसूस हो रहे हैं, वे सत्य नहीं हैं?
श्री श्री रविशंकर : जब मन संदेह से भरा होता है या तनावग्रस्त होता है, तो इसका अर्थ है कि प्राणशक्ति का स्तर कम हो गया है। जब प्राण शक्ति का स्तर कम हो जाता है तो संदेह उत्पन्न होते हैं और हम उदास हो जाते हैं। तो उपचार यह है कि हम प्राणायाम, सही भोजन, व्यायाम, संगीत और उपवास के द्वारा प्राणशक्ति को बढ़ायें।
कुछ दिनों के लिये केवल फलों का ही भोजन लें। हम भोजन ठूंसते रहते हैं, चाहे भूख हो या नहीं।

प्रश्न : विशालाक्षी मंडप अति सुंदर है। मुझे इसे देख कर बहुत प्रसन्नता मिलती है। क्या आप हमें इसके विषय में थोड़ा और बता सकते हैं? क्या यह वास्तु शास्त्र के अनुसार बना है?
श्री श्री रविशंकर : मैंने तो बस एक रेखाचित्र खींच दिया था कि इसे कैसा दिखना चाहिये। इस इमारत के पीछे कोई बहुत बड़ा वास्तुविद नहीं है।
हाँ, जब वास्तु विशेषज्ञों ने इमारत का निरीक्षण किया, तो उन्होंने बताया कि इमारत की रूपरेखा बहुत बढ़िया है, और वास्तु-शास्त्र के नियमों के अनुसार है।

प्रश्न : पुराने समय में, साधु ध्यान के लिये जानवरों की छाल पर बैठते थे। जबकि, हम जब क्रिया करते हैं तो हमें चमड़े की सभी चीज़ें उतारने को कहा जाता है। ऐसा क्यों?
श्री श्री रविशंकर : पुराने समय में, वे केवल मृग की छाल का ही प्रयोग करते थे। और वे केवल उसी मृग की छाल लेते थे,जिसकी कि प्राकृतिक रूप से मृत्यु होती थी।
तब उनके पास गद्दियां नहीं होती थी, इसलिये वे मृगछाल का प्रयोग करते थे।
छाल का प्रयोग न करने के और भी कारण हैं। आप उन्हें भी जान जायेंगे, जब आप टीचर्स ट्रेनिंग कोर्स करेंगे।

प्रश्न : मेरा चौबीस वर्षीय पुत्र अवसादग्रस्त हो गया और तीन माह पूर्व उसने आत्महत्या कर ली। यह विचार कि मैं उसे और बेहतर समझ पाता तो उसे बचा सकता था, हमेशा मेरा पीछा करता रहता है।
श्री श्री रविशंकर : हमारे देश में और कर्नाटक में बहुत से ऐसे युवा हैं जोकि आत्महत्या कर रहे हैं। उसकी जीवन अवधि इतनी ही थी। इस विषय में सोच सोच कर अपना स्वास्थ्य खराब मत करो। युवावर्ग को इस मार्ग, जहाँ पर कि गान, ज्ञान और ध्यान है, पर लाने के लिये और उनके जीवन में नया प्रकाश भरने के लिये कार्य करो।  

प्रश्न : मेरे पति के फेफड़े में ट्यूमर है। डॉक्टर कह रहे हैं कि यह कैंसर भी हो सकता है।
श्री श्री रविशंकर : उन्हें प्राणायाम करवायें और शक्ति ड्रॉप्स पिलायें। शक्ति ड्रॉप्स प्रतिरक्षी तंत्र को बेहतर बनाती हैं।कल ही एक कैंसर रोग विशेषज्ञ बता रहे थे कि उन्होंने तीन चार रोगियों पर शोध करने पर पाया है कि शक्ति ड्रॉप्स के प्रयोग से केवल अड़तालीस घंटे में ही कैंसर के किटाणु चालीस प्रतिशत तक कम हो गये।
वे आगे और शोध करने वाले हैं। अभी हम दावे के साथ तो कुछ नहीं कह सकते पर वे इस शोध को लेकर बहुत उत्साहित हैं।
बहुत से लोगों को शक्ति ड्रॉप्स से लाभ पहुँचा है। आप सबको इसका प्रयोग करना चाहिये।

प्रश्न : गुरुजी, आपके अनुसार, विद्यार्थी जीवन में पढ़ाई के अतिरिक्त और कौन सी मूल प्राथमिकतायें हैं?  
श्री श्री रविशंकर : मूल प्राथमिकता तो विद्याभ्यासी बनना और अच्छे से पढ़ाई करना ही है।
साथ ही, एक विज़न(vision) अपने लिये रखना, और एक अपने देश के लिये।

प्रश्न : क्या हम इस संसार को छोड़ कर चली गई आत्माओं से बात कर सकते हैं?
श्री श्री रविशंकर : पहले, जो जीवित हैं उनसे तो जुड़िये! यह अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है! भारत में इतनी अधिक भाषायें हैं, जोकि आपसी सम्पर्क को इतना कठिन बना देती हैं।
हाँ, बिछुड़ी आत्माओं से जुड़ने के भी रास्ते हैं। ध्यान करिये, और वो रास्ता भी खुल जायेगा।