लालसा और इच्छाओं को काबू में करना!!!

०८
२०१२
अक्टूबर
बैंगलुरु आश्रम, भारत

प्रश्न : मेरे प्रिय गुरुदेव, कभी कभी मेरे आस-पास के लोगों की उम्मीदें और मेरी खुद से अपनी उम्मीदों के कारण मैं सहज नहीं रह पाता| क्या करूँ जिससे मैं सहज रह पाऊँ?
श्री श्री रविशंकर : केवल कभी कभी, हमेशा नहीं, है न?
अगर ऐसा हमेशा होता है, तो मैं आपको इसका उपाय बता सकता हूँ| अगर कभी कभी ऐसा होता है, तो कोई बात नहीं|
जैसे जैसे आप ज्ञान में बढ़ते हैं, जैसे जैसे आप दुनिया की स्वप्न जैसी प्रकृति को जानते हैं, कि सब कुछ एक सपने की तरह है, सब कुछ क्षणस्थायी है, सब कुछ बदल रहा है, तब घटनाएं आप पर कम प्रभाव डालने लगती हैं| घटनाओं से अछूता रहने के लिए सिर्फ एक ही तरीका है, यह देखना कि यह सारी कहानी सिर्फ एक स्वप्न है जो मात्र क्षणस्थायी है|

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, स्वाध्याय और खुद की आलोचना करने में क्या अंतर है? आप कभी कभी हमें खुद के बारे में राय बनाने के लिए मना करते हैं, कृपया थोड़ा विस्तार से बताएं|
श्री श्री रविशंकर : आपको बीच का रास्ता अपनाना चाहिये|
कुछ होते हैं, जो हमेशा अपने किये हुए कर्मों को सही साबित करने में लगे रहते हैं, और कुछ होते हैं जो हमेशा खुद में कमी ढूँढ़ते रहते हैं| ये दोनों ही असंतुलित रहते हैं|
आपको बीच का रास्ता अपनाना चाहिये, जहाँ आप अपने कर्मों को ध्यान से देखें और समझें कि किस तरह आप और बेहतर हो सकते हैं, और साथ ही साथ आगे की ओर देखें|
ये देखिये, कि आप क्या करना चाहते हैं, आगे बढ़ें, और अतीत को भूल जाएँ| हमेशा भूतकाल की बातों का विश्लेषण करने न बैठ जाएँ|
आप अपने अतीत को केवल इतना सा थोड़ा ही देखें| (गुरुदेव अपनी उंगलियों से छोटे की परिभाषा समझते हैं)
देखिये, ये ऐसा ही है जैसे एक गाड़ी में आपके पास एक विंडशील्ड होती है जो बड़ी होती है, और एक रेयर व्यू शीशा होता है जो कि छोटा होता है| अब ज़रा कल्पना कीजिये, कि आपका रेयर व्यू शीशा बड़ा हो और विंडशील्ड छोटी हो !
अभी आपकी गाड़ी की यही स्थिति है| आपके रेयर व्यू शीशे ने आधी से ज्यादा विंडशील्ड को घेर रखा है, और इसलिए आप केवल पीछे ही देखते रहते हैं| ये सही नहीं है|
आपको भूतकाल की ओर थोड़ा सा देखना चाहिये और आगे ज्यादा देखना चाहिये|
यही सबसे उत्तम उदाहरण हो सकता है| अपनी गाड़ी के बारे में सोचिये, विंडशील्ड और रेयर व्यू शीशा| आपको पीछे देखने की ज़रूरत बहुत कम होती है|

प्रश्न : गुरुदेव, मैं अनासक्ति और निःस्वार्थता को बौद्धिक स्तर पर समझ सकता हूँ, लेकिन मैं व्यावहारिक तौर पर इसका अभ्यास नहीं कर पाता| मैं क्या करूँ?
श्री श्री रविशंकर : जीवन आपको वह पाठ भी पढ़ा देगा|
जब आप किसी चीज़ से बहुत अधिक आसक्त होते हैं, तब ज्ञान के बिना, वह आपको ज्यादा दुःख देता है|

प्रश्न : गुरुदेव, हम में से कुछ लोग आर्ट ऑफ लिविंग में काफी बाद में आये, लेकिन बाकी बहुत पहले आया गए थे| क्या ये भी हमारे पिछले कर्मों के कारण हैं? यदि मैं आपसे बहुत पहले मिल लिया होता, तो मुझे अपने जीवन में थोड़े कम दुःख झेलने पड़ते|
श्री श्री रविशंकर : फिर से मैं आपसे यही कहूँगा, कि रेयर व्यू शीशे में बहुत ज्यादा मत देखिये|

प्रश्न : प्रिय गुरुदेव, एक साधक को क्या लक्ष्य रखना चाहिये? या फिर एक साधक को सिर्फ सहजता से रहना चाहिये, और प्रकृति को अपना काम करने देना चाहिये?
श्री श्री रविशंकर : हाँ, बस यही करना है, सहज रहिये ! आप एक दम सही जगह पर हैं, बस सहज रहिये और देखिये कि कैसे सब चीज़ें हो रहीं हैं|

प्रश्न : गुरुदेव, आसक्ति, काम और इच्छाओं के विचारों पर काबू करने का सबसे आसान तरीका क्या है?
श्री श्री रविशंकर : अपने आप को व्यस्त रखिये|
अपने जोश को किसी बड़े प्रयोजन के लिए रखिये| जोश रखना ही है तो कुछ बनाने के लिए, या कुछ खड़ा करने के लिए रखिये| ज्ञान का प्रचार और धर्म का प्रसार करने में व्यस्त रहिये| दिन रात बस यही सोचिये कि किस तरह आप और लोगों तक पहुँच सकते हैं, और जीवन में कुछ अच्छा काम कर सकते हैं| या लेख लिखिए, संगीत रचिए, गाने बनाईये|
जब आप इतने व्यस्त रहते हैं, तब आप पाएंगे कि आसक्तियां आपको परेशान नहीं करती हैं|
खास तौर पर युवाओं को अपने आप को बहुत व्यस्त रखना चाहिये, तब इनमें से कुछ भी आपको तंग नहीं करेगा|
हम ऐसे ही थे, २० से २५ वर्ष की आयु में, मैं इतना व्यस्त था| सुबह छह बजे से रात के एक-दो बजे तक, मैं बस व्यस्त ही रहता था|
इसलिए, खुद को बहुत बहुत व्यस्त रखिये, खास तौर पर तब जब शरीर में होर्मोंस खेल रचाते हैं| आप पाएंगे कि आप आसानी से आसक्तिओं, काम-वासना और बाकी सब पर नियंत्रण पा सकते हैं|

प्रश्न : गुरुदेव, किशोरों को व्यावहारिक मदिरापान (सोशल ड्रिंकिंग) से कैसे रोकें?
श्री श्री रविशंकर : उन्हें कहिये कि ये सबसे खतरनाक चीज़ हैं, चाहे वह सोशल मदिरापान (ड्रिंकिंग) हो या प्राइवेट ड्रिंकिंग, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता| उसके लिए बिल्कुल साफ़ मना कर दीजिए, बस, बात खत्म !
बल्कि, आपको तो अपने सामजिक ग्रुप में ना कहने में गर्व होना चाहिये|
अगर आप ना कहने में गर्व महसूस करेंगे, नहीं, मैं शराब को हाथ भी नहीं लगाता, तब आपको अपने दोस्तों के बीच भी एक तरह का सम्मान मिलेगा|
आपको खुद अपने मूल्यों पर ज़ोर देना चाहिये| चाहे आप किसी ग्रुप में ही क्यों न हो, अपनी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद और अपनी वैयक्तिकता को आप साथ लेकर चल सकते हैं|
हम तो ये हमेशा करते हैं| हम इन बड़ी बड़ी मीटिंग्स और समारोहों में जाते हैं, हर जगह हम अपनी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद रखते हैं|
आप जानते हैं, कि अब विश्व भी इसको पहचानने लगा है| जिस भी संस्था ने मुझे डॉक्टरेट की उपाधि दी, बहुत सी जगहों में, और मैं जहाँ भी गया, सिर्फ मेरे सम्मान में उन्होंने केवल शाकाहारी भोजन ही रखा और कोई शराब नहीं रखी|
आम तौर पर युनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) में वे शराब और मांसाहारी भोजन रखते हैं| लेकिन मैं जहाँ भी गया, चाहे वह कॉर्डोबा हो, या नेदेर्लंड्स, या न्येंरोड युनिवर्सिटी जहाँ उन्होंने मुझे डॉक्टरेट की उपाधि दी, तब रिसेप्शन में उन्होंने केवल शाकाहारी भोजन और शरबत ही रखें|
यहाँ तक कि विश्व के बड़े बड़े समारोहों में, जैसे HIV-AIDS के ऊपर जो UN का समारोह होता है, वहां उन्होंने शाकाहारी भोजन को एक अलग हिस्से में रखा है| ऐसा पहले कभी नहीं होता था|
यहाँ तक कि विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) में भी अगर आप शाकाहारी हैं, तो वे उसका सम्मान करते हैं, और शाकाहारियों के लिए उनका अलग क्षेत्र होता है|
ऐसा पहले नहीं होता था| आज से १०-२० साल पहले, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता था| बल्कि १० साल पहले तक तो आप अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ऐसा नहीं देख सकते थे| लेकिन अब ये बदल गया है क्योंकि हम हमेशा अपनी बात पर टिके रहें हैं, कि हम शराब और मांसाहारी भोजन को हाथ नहीं लगाएंगे| और अब पूरा विश्व इसका सम्मान करता है| इसलिए आपके दोस्त भी उसका सम्मान करेंगे|
पिछले दस सालों में तो अब एयरलाइन्स भी इसका ख्याल रखती हैं| पहले ऐसा नहीं था| अब तो एयरलाइन्स में जैन भोजन भी मिलता है, मतलब जिसमें आलू, गाजर वगेरह न हो|
आप उन्हें बता सकते हैं, कि आपको किस तरह का भोजन पसंद है|
इसलिए, आपको अपनी व्यक्तिगत आदतें रखनी चाहिये, और उन पर ज़ोर देना चाहिये| नहीं तो पहले आप सामाजिक तौर पर शराब पीते हैं, और बाद में ये एक व्यक्तिगत बुरी आदत बन जाती है|

प्रश्न : गुरुदेव, भगवान नारायण के सेवक, जय और विजय अपनी सेवा कर रहें थे, लेकिन फिर भी उन्हें श्राप मिल गया| अगर कोई सिर्फ अपनी सेवा करते रहें, तो क्या फिर भी उन्हें श्राप मिल सकता है?
श्री श्री रविशंकर : उन श्रापों के पीछे छुपा हुआ जो कारण था, वह संपूर्ण मानवजाति के लिए लाभकारी था| किसी भी संत के द्वारा दिए गए श्राप से कभी भी कुछ अनिष्ट नहीं हुआ, ना ही किसी का विनाश हुआ है| विश्व का इतना लाभ संतों के श्रापों के कारण ही संभव हुआ है, भगवान राम आये, भगवान कृष्ण आये, और उनके बाद जो कुछ भी हुआ, वह सब हुआ| इसीलिये, कहा गया है कि एक मूर्ख का प्रेम भी परेशानियां खड़ी कर सकता है, और एक ज्ञानी का क्रोध भी अपने साथ आशीर्वाद ला सकता है|