" श्री श्री रवि शंकर श्री लंका में"


श्री लंका,
अक्तूबर ५,२००९

श्री श्री रवि शंकर
ने श्री लंका में अपने पांचवे दौरे में १०,००० से अधिक लोगों को ’सुगठ दसा’ स्टेडियम में ध्यान, प्रार्थना और पवित्र मंत्रोच्चरण करवा के आशीर्वाद दिया| इस बड़े अभियान का नाम था "Uniting Hearts and Minds" जोकि ५ अक्तूबर को हुआ जिसमें देश भर से सभी वर्गों के लोग शामिल हुए| बहुत से इसाई पादरी, इस्लाम के विद्वान्, बौद्ध संत, हिन्दू स्वामी और पादरी एक आस्था और एकता की भावना से इकट्ठे हुए| कई सौ लोग श्री श्री की एक झलक पाने के लिए जाफना,त्रिकोमली,बतिकलोया,वावुनिया,मन्नार,गल्ले,मात्र,कोलोम्बो और बहुत से दूरदराज क्षेत्रों से आये| जैसे ही श्री श्री स्टेडियम में दाखिल हुए स्कूल के बच्चों ने ठेवार्म गाया।

ध्यान है "कुछ भी ना करना"। ध्यान में उतरने के लिए तीन महत्वपूर्ण नियम हैं - मैं कुछ नहीं करता,मुझे कुछ नहीं चाहिए और मैं कुछ भी नहीं हूँ| यदि आप सोचो कि मैं कोई हूँ - अच्छा हूँ, बुरा हूँ, बुद्धिमान हूँ, मूर्ख हूँ यां कुछ भी हूँ तो ध्यान नहीं होता। इन तीन धारणाओं से आप देखोगे मन अपने आप ही कैसे स्थिर होने लगता है| ध्यान लगाने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना है। ध्यान का अर्थ ध्यान केन्द्रित करना नहीं है। ध्यान माने केवल विश्राम। ॐ का अर्थ है शांति, ॐ का अर्थ है प्रेम, - बिना शर्त के प्रेम| ध्यान आपको अपने भीतर ले जाता है, और आपको यह एहसास होता है कि ईश्वर का राज्य हमारे भीतर है| प्रेम ही ईश्वर है(अन्म्बे शिवम् "उल्ला कदक्कारा कदल ठान कदवुल", अपनी सारी परेशानिया यहीं छोड़ दो| एक नियम याद रखो-आप अपनी सारी चिंताएं यहाँ ला तो सकते हो परन्तु आप वापिस नहीं ले जा सकते| आप चिंताओं को यहाँ छोड़ सकते हो और मुस्कुराते हुए वापिस जा सकते हो, और जरूरतमंद लोगों की सेवा करो| मुस्कुराओ और सेवा करो|

प्रश्न : तमिल लोगों की श्री लंका और सारी दुनिया में क्या स्तिथि है?

श्री श्री रविशंकर :
तमिलों को बिना किसी डर के रहना चाहिए। डर केवल उनके मन में है| उन्हें डर को मन से निकाल देना चाहिए और सबके साथ मिलजुल के रहना चाहिए| उनकी संस्कृति शांति वाली है, उन्हें शांति को बढ़ावा देना चाहिए और सब के साथ मिलकर एक समृद्ध समाज का निर्माण करना चाहिए| शांति और समृद्धि साथ साथ चलती है| इसलिए अपने दिल, मन, परिवार और समाज में शांति रखो, और शांति तभी आती है जब आप में विश्वास और आत्मविश्वास होता है| कोई भी आपसे आपका आत्म सम्मान और गौरव नहीं छीन सकता| आपके पास श्री लंका और अन्य दूसरे स्थानों पर अपने जीवन में प्रगति करने के सारे अवसर हैं| शांति और प्रेम फैलाओ और समृद्धि लाओ| तमिल लोग दुनिया में सब जगह मेहनती लोग हैं, वे निश्चय ही समृद्धि लाते हैं। हमे सबको मानसिक और हृद्य के स्तर पर जोड़ना है।

प्रश्न : क्या कर्म और प्रवृतियाँ पीड़ी दर पीड़ी चलतें हैं?

श्री श्री रवि शंकर :
यह आवश्यक नहीं है कि आदतें अनुवांशिक हों, ना ही यह आवश्यक है कि हर रोग अनुवांशिक हो| यद्यपि हम माता-पिता की प्रवृतियाँ लेते हैं परन्तु हम बहुत सी प्रवृतियों और कर्मों को बदल सकतें हैं| कर्मों का अर्थ क्या है? इसका मतलब है डी एन ए पर पड़े गहरे छाप। यही तो भगवान बुद्ध ने कहा था," कर्मों को ध्यान के द्वारा मिटाया जा सकता है, शरणागती के द्वारा|"

प्रश्न : इस स्वार्थी संसार में मैं ही क्यों विशाल दृष्टिकोण रखूं?

श्री श्री रवि शंकर :
दुनिया में अच्छा और बुरा होता ही है| परन्तु हमारी चेतना को सब स्तिथियों में कुछ फायदा हो सकता है| जैसे जब बहुत अधिक बारिश या गर्मी होती है तो आप छाता लेकर अपना बचाव करते हो| उसी तरह से जागरूकता, ज्ञान, भक्ति वैसा ही छाता है जो अप्रिय परिस्तिथियों में आपको बचाता है| शांति और प्रेम वह नीव है जिस पर चल कर व्यक्तिगत, सामूहिक, राष्ट्र और दुनिया प्रगति करतें हैं| आप जानते हो पूजा शब्द, - पू का अर्थ है पूर्णता और जा का अर्थ है जो पूर्णता से आता है|जब आपका हृदय पूर्ण होता है,आप ईश्वर के आभारी होते हो| पूजा में फूलों के साथ आप ईश्वर से कहते हो," मेरा दिल इन फूलों की तरह खिल उठा है|" दुनिया पांच तत्वों से बनी है - व्योम,हवा,अग्नि,जल,और पृथ्वी| प्राचीन लोग ये सभी तत्व इस्तेमाल करते थे| मंत्रोच्चारण या ध्वनि व्योम तत्व है,अगरबती जलना हवा तत्व है,कपूर और दिया जलना अग्नि तत्व है और फिर जल और पृथ्वी तत्व।

विभिन्न प्रकार के फूल,फल,दही,शहद सभी प्रकार की चीजें इस्तेमाल की जाती हैं| मंत्रोच्चरण से अपने चारों ओर उर्जा बढ़ती है। मंत्रोचारण हजारों सालों से चला आ रहा है| मंत्रोचारण क्या है? मन जोकि बाहर(दुनयावी चीजों की ओर) जाता रहता है जब अन्तर्मुखी हो जाता है तो यह नम: बन जाता है| नमो का अर्थ है मन अंदर की ओर| हे प्रभु, आप बच्चे के अंदर हो,आप वृद्ध के अंदर हो,आप पेड़ में हो,पक्षी,जल,पानी और पत्थर में हो|आप सूरज,चाँद,आप हर जगह हो,सृष्टि में कुछ भी ऐसा नहीं है जहाँ आप नहीं हो और मैं आपकी पूजा करता हूँ,मैं आप में विलीन हो जाता हूँ और आप में मिल जाता हूँ| कपूर की तरह मेरा जीवन जलता है और आप में विलीन हो जाता हूँ|मेरा जीवन अगरबत्ती की तरह चारों ओर खुशबु फ़ैलाता है| फूलों की तरह मैं खिलता हूँ और सब को ख़ुशी देता हूँ| फलों की तरह मेरे सब कार्य फलदायक बन जाते हैं, मेरे सारे इरादे फलदायक बन जाने दो| पानी की तरह हमेशा विनम्र रहूं।यदि पानी को गिराया जाए तो हमेशा निम्नतर स्तर को जाता है| क्या ऐसा नहीं है? ऐसी विनम्रता से मुझे ऐसा निम्न स्तर ले कर समाज की सेवा करने दो| मुझे अग्नि की तरह बन जाने दो जो हमेशा उपर की ओर उठी रहती है,मेरा उत्साह हमेशा बना रहे| आप आरती करते हो, एक दिया ले कर कहते हो मेरे जीवन का प्रकाश हमेशा

ईश्वर के आसपास रहे, इसे कभी गिरने मत देना,हमेशा उत्साह बना रहे और हर किसी के जीवन में आनंद लाये| इसी को पूजा कहतें हैं| इसी भाव से हम पूजा करते हैं| मुझे अंधकार में मत रहने दो, वहां उजाला हो जाने दो,इस तरह मैं इस ज्ञान के सुंदर प्रकाश को स्वीकार करता हूँ| और तब आप मंगल आरती लेते हो| तब थोड़ा पानी दिया जाता है, आप इसे यह कहते हुए पी लेते हो मेरा हृदय शीतल रहे,भीतर ख़ुशी बनी रहे| और यह कृत्ज्ञता का सन्देश है जो पूर्णता से आता है, जिसे पूजा कहा जाता है| बोद्ध धर्म में अगरबत्ती जलाई जाती है और बुद्ध के सामने फूल चढ़ाये जाते हैं| इसी प्रकार से चर्च में किया जाता है,मोमबत्ती जला कर इसा या माँ मैरी के सामने रखी जाती है| बोद्ध धर्म में फल भी चढ़ाये जाते हैं। बाहरी कार्य कि बजाय आन्तरिक भाव अधिक महत्वपूर्ण है| केवल एक रीती को करना पर्याप्त नहीं है, यह ध्यान पूर्वक होना चाहिए| यह भाव पूर्ण होना चाहिए| आज की पूजा सभी के लिए स्वस्थ्य,ख़ुशी और शांति लाने के लिए है, खास तौर पर इस महादीप के उन पीड़ित लोगों के लिए ताकि उनको और अधिक शक्ति मिले और सारे दुःख और पीड़ा के भाव खत्म हों।देश भर में और अधिक शांतिपूर्ण, प्रेमपूर्ण और आनंद भरा वातावरण बने| आज की पूजा का यही हमारा संकल्प और इरादा है| रुद्राभिषेक के बाद सतसंग किया गया|


art of living TV

© The Art of Living Foundation For Global Spirituality