"वासुदेव कुटुम्बकम विषय पर वार्तालाप"


श्री श्री रविशंकर :
टोक्यो में १५ अक्तूबर को ’वासुदेव कुटुम्बकम’ विषय पर वार्तालाप
ॐ शांति शांति शांति।

जैसे की आदरनीय उचिंदा और अन्य मानणीय महोदयों ने कहा, आज हमें दुनिया को एक अलग दृष्टि कोण से देखना होगा। हम अपने अतीत से बहुत कुछ सीखते हैं और भविष्य के लिए योजना बना सकते हैं| यदि हम भूतकाल की सांसारिक सभ्यता देखें तो दुनिया में दस बड़े धर्म थे| चार मध्वर्ती पूर्व से,छह पूर्व और दूरवर्ती पूर्व से| दूरवर्ती पूर्व के छह धर्मों में कभी कोई संघर्ष नहीं हुआ।

मैंने राष्ट्रपति निक्सन के साथ होने वाली एक घटना की कहानी सुनी है| वह जापान में थे, और एक बौद्ध संत और शिंटो पादरी के साथ बैठे थे| उन्होंने शिंटो पादरी से पूछा,"जापान में शिंटोवादियों की क्या संख्या है|" शिंटो पादरी ने जबाब दिया,"८०%" | तब वे बौद्ध साधू की ओर मुड़े और उनसे पूछा जापान में बौद्ध लोगो की कितनी संख्या है? दोबारा उन्हें बताया गया ८०%| राष्ट्रपति निक्सन असमन्जस में पड़ गए। उन्होंने कहा ऐसे कैसे हो सकता है कि दोनों का जबाब एक ही हो| बौध और हिन्दू धर्म में कोई बहुत बड़ा अंतर नहीं है, और न ही बौद्ध और शिंटो में| हम मिल जुल जाते हैं और सब के साथ अपनेपन की भावना है| भारत में हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म में कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं है क्योंकि सब एक साथ सद्भावना से रहतें हैं| दुनिया को यह सीखने की ज़रूरत है| क्या आपको ऐसा नहीं लगता?

यदि दुनिया थोड़ा सा भी यह सीख ले जो जापान और भारत में हो रहा है तो आतंकवाद की समस्या खत्म हो जाएगी| आतंकवाद तब बढ़ता है जब कोई व्यक्ति यह कहता है कि सिर्फ उनका रास्ता ही सही रास्ता है| मेरा रास्ता ही केवल ईश्वर की ओर ले जाने वाला है| क्या ऐसा नहीं है?

हमें शिंटोवाद के बारे में और जानने की जरूरत है| यद्यपि यह जापान में ही जाना नाता है परन्तु भारत और दुनिया के अन्य भागों में नहीं जाना जाता| मैंने भारत में एक संस्था खोलने का न्योता दिया है जिसमें शिंटो और हिन्दू धर्म का अध्ययन हो सके, तुलनात्मक अध्ययन।

वर्तमान की भाषा विज्ञान की भाषा है| आज विज्ञान और आध्यात्मिकता साथ साथ आ गए हैं| अपने समय के महान वैज्ञानिक आइनसटाईन ने भगवद् गीता पढ़कर कहा. था कि भगवद् गीता का ज्ञान सबसे ज्यादा परिवर्तनकारी ज्ञान है जो उसे मिला है|" आज विज्ञान जो कुछ भी हो,यदि आप किसी वैज्ञानिक वक्ता को सुने तो आपको लगेगा कि आप बौद्ध धर्म को सुन रहे हो, आपको लगेगा आप वेदांत सुन रहे हो|

जर्मनी में मैंने कहा था कि हमारा शरीर जैसा हम समझते हैं वैसा नहीं है। शरीर केवल एक उर्जा है| यदि हम अपने शरीर का निरिक्षण करें तो हमारे शरीर का हर अणु एक शक्ति है और यह हर समय बदल रहा है| ठीक ऐसा ही वेदांत कहतें हैं कि हम समुद्र में बुलबुलों की तरह हैं, एक शक्ति| हम सब एक शक्ति का हिस्सा हैं|

आध्यात्मिकता के लिए यह संदर्भ अवश्यक है| इस संदर्भ की कमी से तनाव और परेशानी हमारे जीवन में भर चुकी है| जब हम तनाव में हों तो दो बातें हो सकती हैं, यां तो हम बहुत उदास हो जायेंगे और आत्महत्या के विचार आ सकते हैं, यां फिर आक्रामक और हिंसात्मक बन जाते हैं। इसीलिए समाज में अपराध हो रहा है,लोग आत्महत्या कर रहे हैं और उदास हो रहे हैं| ये दो बातें होतीं हैं| यह सुन कर दुख होता है जापान में भी बहुत से लोग आत्म हत्या कर रहे हैं। जब भी मैं यह सुनता हूँ मुझे लगता है मैं कुछ कर सकता था क्योंकि यह श्वास, मन और ध्यान का ज्ञान आत्महत्या करने की प्रवृति से बाहर आने में, उदासी और हिंसात्मक प्रवृतियों से निकलने में मदद करता है| सारा रहस्य श्वास,कुछ समय के ध्यान में है, और ध्यान से शक्ति का स्तर भी बढ़ जाता है| जब मन की शक्ति बढ़ती है तो उदासी और आत्महत्या की प्रवृति ख़त्म हो जाती है|
(आप हमे इनके लाभ के बारे में कुछ विस्तार से बता सकते हैं?)

सबसे पहले तो एक हिंसा रहित समाज बनेगा| हमने लगभग दुनिया भर के जेलों में २,००,००० लोगों को सिखाया| उन सब को परिवर्तनकारी अनुभव हुए हैं| मुझे नहीं लगता हमने अभी जापान में यह कार्यक्रम शुरू किये हैं? हम जापान में भी कैदियों के लिए यह कार्यक्रम शुरु करना चाहेंगे| उनका गुस्सा और नफरत पूरी तरह से खत्म हो जायेगी| इसलिए हिंसा रहित समाज, चाहे हिंसा घरेलू हो,महिलायों पर हो, यां माता-पिता और बच्चों के बीच हो इन सब को रोका जा सकता है यदि हम उनको श्वास के द्वारा अपनी नकारात्मक भावनायों पर काम करना सिखाएं|
हाँ, क्या आप सब यही हों?

इस तरह हिंसा-रहित समाज, दूसरा रोग मुक्त शरीर| आज वैज्ञानिको ने अनुसन्धान किया है यदि आप श्वांस के तकनीक, सुदर्शन क्रिया करते रहे तो रोगों से बचाव की क्षमता तीन गुणा बढ़ जाती है| इससे हृदय को अघात, उच्च रक्तचाप,मधुमेह और बहुत से शरीरिक और मानसिक रोगों से बचा जा सकता है|
इस तरह से रोग मुक्त शरीर, दूसरा बिना कम्पन के श्वास,दुविधा के बिना मन,अवरोध के बिना बुद्धि होती है| लोगों का अतीत में पक्षपात हुआ करता था| वह पक्षपात आज समाप्त हो रहा है,बहुत कम हो गया है परन्तु इसे और भी कम करना है| जातिय पक्षपात,लैंगिक,आयु सम्बन्धी,धार्मिक,भाषा सम्बन्धी,राष्ट्रीय ये सभी तरह के पक्षपात।जब आप ध्यान करने लगते हो तो स्वभाविक रूप से आप दुनिया में सबके साथ सम्बंध महसूस करने लगते हो|
पता है जहाँ कहीं भी मैं गया हूँ सबके साथ अपनापन लगता है चाहे यह दक्षिणी ध्रुव हो या उत्तरी ध्रुव|
इस तरह पक्षपात से मुक्त और सभी को अपना लेने का रवैया और उदासी से मुक्त आत्मा!

* अहिंसा रहित समाज
* रोग मुक्त शरीर
* कम्पन रहित श्वास
* भ्रम से मुक्त मन
* अवरोध से मुक्त बुद्धि
* सबको अपनाने वाला अहम
* उदासी से मुक्त आत्मा


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