"जीवन केवल ख़ुशी और करुणा के बीच चलता है"


प्रश्न : अपने आप को मोह से कैसे मुक्त करूँ,खास कर अतीत की भावनात्मक चोट से, और इसके साथ साथ विश्वास और अविश्वास से? धोखे के बाद फिर से कैसे विश्वास कर सकूँ, और इसके कारण संदेहजनक और निंदक न बनू?

श्री श्री रवि शंकर :
एक बात जो हमे याद रखनी है कि यह सारी कहानी यहीं खत्म हो जाएगी| हम सब चले जायेंगे और हमारा जीवन समाप्त हो जाएगा। यदि हम अतीत में देखें तो कितने लोगों को हम जानते थे जो अब नहीं हैं| वे जो सब हमारे साथ थे वे सब मृत्यु को प्राप्त हुए| सब चले जायेंगे और एक दिन हमें भी चले जाना है| यही स्थाई सत्य है, निश्चित सचाई यही है|

मैं आज सोच रहा था, आज मेरी माँ की दसवी पुन्य तिथि है| दस वर्ष बीत भी गए| समय चलता रहता है,चीजें बदल जाती है, जब हम जीवन को विशाल दृष्टिकोण से देखते हैं तो भावनात्मक चोट कहाँ रह जाती है? किसी ने कुछ कह दिया और हमें दुःख पहुँचता है, और हम रोते हैं, किसी ने कुछ अच्छा कह दिया तो हम खुश हो जाते हैं| इसमें कौन सी बड़ी बात है| कभी तुमने कुछ कह दिया और किसी को दुःख हुआ,परन्तु आपका यह इरादा नहीं था| क्या ऐसा आपके साथ नहीं हुआ? आप में से कितने लोगों को ऐसा अनुभव हुआ? आपने अपनी बेटी यां बेटे को कितनी बार गुस्सा किया होगा, क्या आपने ऐसा नहीं किया? यदि वे जीवन भर इसे पकड़ के बैठ जाएँ और कहें कि मैं इसे नहीं भूलूंगा, आपने मुझे दुःख पहुँचाया था| आप उनसे क्या कहोगे? आपका जवाब कुछ ऐसा होगा, "जाने दो,मेरा कहने का यह मतलब नहीं था| मैं तनाव में था, परेशान था, मेरा मूड खराब था इसलिए मैंने ऐसा कह दिया|" क्या आप लोगों से अपेक्षा नहीं करते कि वे आपके द्वारा दिए गए दुःख को भुला दें?

आप चाहते हो आपके द्वारा दिया गया दुःख लोग भुला दें| इसी तरह क्या आपको भी उनके द्वारा दिए गए दुःख को भुला नहीं देना चाहिए? यदि किसी ने आपको दुःख पहुँचाया है तो यह किसी स्वार्थ की वजह से हो सकता है, और स्वार्थ का कारण है कि वे जीवन की विशालता और सुन्दरता नहीं जानते| उनमें डर है इसलिए वे स्वार्थी हैं| वे स्वार्थी हैं यां अपने तक ही सीमित है क्योंकि उनके पास जीवन का ज्ञान नहीं है| किसी ने उनको सिखाया नहीं है की प्रेम कैसे करना है, खामोश कैसे रहना है,इस सुंदर ज्ञान में कैसे रहना है| क्या यह उनकी गलती है?यदि आपने पड़ना लिखना नहीं सीखा है तो क्या यह आपकी गलती है? आपके अध्यापक और माता पिता आपको स्कूल ले जातें हैं, तब आप सीखते हो| इसी तरह उनके पास कोई तरीका नहीं था जहाँ वे जीवन को विशाल दृष्टिकोण से देख सकते| इसलिए आप के लिए केवल दया कर सकते हो| उन्हें सीखने का अवसर नहीं मिला,कोई मार्गदर्शक यां अध्यापक नहीं मिला| उन्हें आध्यात्मिकता का पता नहीं चला| उन्हें ढंग नहीं बतया गया, यां उनको ऐसे बड़ा किया गया| तो आप किस बात को पकड़े रहोगे?

जीवन आगे बढ़ रहा है| जब आपकी मृत्यु होगी आपसे दो बातें पूछी जाएंगी - आपने कितना प्रेम किया और आपने कितना ज्ञान जीवन में प्राप्त किया? इससे आपको फरक नहीं पड़ना चाहिए कि लोगों ने आपके साथ क्या किया, परन्तु आपकी तरफ से करुणा होनी चाहिए| यदि लोग आपके प्रति अच्छे हैं तो खुश रहो| यदि वे कुछ गलत करते हैं तो दयावान रहो| जीवन केवल ख़ुशी और करुणा के बीच चलता है| कोई और तीसरा रास्ता है ही नहीं|
जब हम उदास हों, हम शक्ति के लिए प्रार्थना करें,जब हम खुश हों तो सेवा के लिए शक्ति की प्रार्थना करें|

प्रश्न : क्या जीवन में बहुत सारे प्यार की कामना करना उतावलापन है?

श्री श्री रवि शंकर :
मानलो आप जेरुसलम जाना चाहते हो| आप इसके बारे में सोचते हो और तब चले जाते हो| उतावला होना है - 'ओह मुझे जेरुसलम जाना है, ओह मैं जाना चाहती/चाहता हूँ|’ आप केवल उसी के बारे में सोचते रहते हो तो यह ज्वरता है।इस तरह आप देख सकते हो यह उतवलापन है या नहीं?

प्रश : मैं अपने आपको निर्भरता और आत्मनिर्भरता - इन दो विपरीत स्तिथियों से कैसे मुक्त कर सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
जीवन में सम्पूर्ण आत्मनिर्भरता जैसा कुछ नहीं है| इसे भूल जाओ| यदि आप सोचते हो कि मैं पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर हो जायूं तो ऐसा नहीं होगा| १५, १६ यां १७ साल की आयु तक आप आत्मनिर्भर नहीं थे| आप आश्रित ही पैदा हुए थे|आप अपने आप उठ भी नहीं सकते थे, और कोई और आपको उठाता था।कोई आपके डायपर बदलता था| कोई आपको नहलाता था| कोई खिलाता था| कोई सुलाता था| आप एक आश्रित ही पैदा हुए थे और अंत में भी आश्रित ही रहोगे| जब आपकी मृत्यु हो जाती है तो आप अपने शरीर को अपने आप नहीं जला यां
दफना सकते| जब आप बीमार होते हो किसी को आपका ध्यान रखना होता है| आप अपने डाक्टर नहीं बन सकते| ५०-६० वर्ष की आयु के बाद यह बिलकुल स्पष्ट हो जाता है कि आप किसी पर निभर होते हो|

किसी हद तक आप नहीं कह सकते कि, "मैं पूरी तरह से आत्म निर्भर हूँ"|आपको किसी ना किसी की सहायता लेनी ही पड़ती है। अच्छा, फिर यह भी धारणा है कि आप पैसे से आत्मनिर्भर बनते हो। हमें अपनी ज़रुरत पूरा करने के लिए कुछ पैसा चाहिए, पर मानलो कोई भी आपके लिए कार्य करना न चाहे, तो आपका क्या होगा? आपकी धारणा गलत है कि पैसा आपको आत्मनिर्भर बनाता है|

पर इसके साथ साथ आप अपने आप को आत्मनिर्भर मान सकते हो, आप अपने कार्यों के लिए स्वतंत्र हो, आप अपनी भावनायों को नियंत्रित करने के लिए मुक्त हो, यदि आप अच्छा महसूस करना चाहते हो तो यह आपके अपने हाथ में हैं| यदि आप अच्छा महसूस नहीं करना चाहते तो यह भी आपके अपने हाथ में हैं|

आपको अष्टवक्र गीता सुननी चाहिए| मैंने इसके बारे में बताया है| जीवन निर्भरता और आत्म -निर्भरता का संयोग है| यदि आप दयालु होना चाहते हो, तो आपको पूरी स्वतंत्रता है ऐसा बनने की| यदि आप चाहते हो आपका शिष्टाचार अच्छा हो,आप मीठे बोल बोलो तो यह पूर्ण रूप से आपके उपर निर्भर करता है| आप सोच सकते हो वित्तीय रूप से आप स्वतंत्र हो परन्तु मैं आपको बता देना चाहूँगा यदि आप अपने मित्रों, परिवारजनों यां और भी किसी के अपमानजनक शब्द सहन कर लेते हो तो आप स्वतंत्र हो| यदि आपको कोई दोष देता है और आपके लिए बुरा भला कहता है, आप इसे किस तरह से लेते हो यही निर्धारित करता है कि आप कितने स्वतंत्र हो| यदि आप वास्तव में मुक्त हो तो कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता| आप उत्साह से, द्रष्टा बन कर और मुस्कान के साथ आगे बढ़ सकते हो|

प्रश्न : जीवन में आनंद कैसे प्राप्त करें?

श्री श्री रविशंकर :
आनंद को भूल जाओ, यह अपने आप आपके पास आयेगा| आप केवल विश्राम करो|

प्रश्न : मैं बहुत खुश रहने वाली महिला हूँ और बहुत सी बातो के लिए धन्य हूँ फिर भी मैं अपने मोटापे के लिए परेशान क्यों हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
आपको पता है, कोई भी बिना परेशानी के नहीं रह सकता है| इसीलिए मैंने आर्ट ऑफ़ लिविंग शुरू किया ताकि मैं और अधिक परेशानियाँ ले सकूँ| इस तरह से यह एक अच्छी परेशानी है, इससे आप एक और चम्मच आइस क्रीम नहीं लोगी| आप अपना हाथ कुछ और मीठा खाने के लिए नहीं बढ़ाओगी और बीच रास्ते में ही रुक जाओगी| इस विषय में थोड़ी चिंता करना अच्छा है, नहीं तो जब आप वृद्ध हो जाओगी तो डाक्टर को बिल देने पड़ेंगे| इसलिए अच्छा है आप अपने मोटापे की ओर ध्यान दें यदि आप डाक्टरों को और अमीर नहीं बनाना चाहते| यह आपकी मर्जी है|

प्रश्न : मैं अपने इस अपराध बोध का क्या करूँ की मैं अपने कुछ परिवार जनो और यहाँ तक नजदीकी रिश्तेदारों से भी प्रेम से नहीं रह पाया?

श्री श्री रवि शंकर :
अपने पर प्यार करने के लिए जोर मत दो| इस बात को जान लो कि कुछ भावनाएं,सम्बन्ध और प्रेम पहले से ही होता है| आप इसका निरीक्षण हर दिन नहीं करते रहते हो,ठीक है? हो सकता है आपको उनका व्यवहार अच्छा नहीं लगता| यदि आपके माता पिता बूढ़े हैं और निंदक हैं,आप चिड़ सकते हो यां आपको उनका साथ अच्छा नहीं लग सकता क्योंकि वे निंदा करते रहतें हैं, और पुरानी बातें दोहराते रहते हैं| पसंद और नापसंद मन में होती है| मुझे पूरा विश्वास है आपके हृदय में गहरे में कहीं प्रेम है, कोई भावना है| क्योंकि यह है इसलिए आप प्रश्न पूछ रहे हो| सिर्फ यही है कि आप उनके लिए प्रेम को नहीं पहचानना चाहते हो| आपका एक गहरा सम्बन्ध है, पर आप को उनका व्यवहार पसंद नहीं हो सकता, उनकी विचारधारा यां कार्य करने का तरीका पसंद नहीं हो सकता| लेकिन यह केवल एक बाहिरी बात है| दूसरों के प्रति अपने प्रेम पर संदेह मत करो| इस बात को समझ लो की प्रेम हमेशा होता है और रहेगा|

प्रश्न : व्यवसायिक रूप से इस वर्ष मैंने जो कुछ भी किया, मैं उसमें सफल नहीं हुआ| मैंने हिंदी,मसाज,भौतिक चिकित्सा और शारीरिक संरचना के बारे में पढ़ा| मैं वास्तव में सफल होना चाहता हूँ| कृपया मेरी मदद करें|

श्री श्री रवि शंकर :
इसके लिए बहुत काम करना है| बहुत सी जरूरतें हैं|३०% यूरोप के लोग अवसाद में हैं और हमारे पास यह सुंदर ज्ञान है जो लोगों को अवसाद और आत्महत्या के विचारों से उबरने में मदद कर सकता है| यह हम सबके लिए बहुत अच्छा होगा कि हम एक ऐसे दुनिया को नजर में रखते हुए साथ में मिल कर काम करें जिसमें कम दुख होगा| मैं चाहूँगा बहुत से युवा लोग पूरी तरह से आर्ट ऑफ़ लिविंग के लिए कार्य करें| ३-४ दिन के लिए कहीं जायें और सब को सिखाएं| एक बार आप शिक्षक बन जाओ तो आप सिखा सकते हो,आर्ट ऑफ़ लिविंग का एक समुदाय बना सकते हो| हर कोई अपना कार्य करे और योगदान भी दे| यह सबका साँझा काम हैं, जहाँ सब योगदान दे सकतें हैं| आप एक सामुदायिक रसोई शुरू कर सकते हो| आपको किराने की खरीददारी की चिंता नहीं करनी पड़ेगी| एक व्यक्ति जाकर खरीद सकता है,एक खाना पका सकता है और हर कोई बारी बारी से यह सब कर सकता है| ६०-१०० लोगों का छोटा सा समुदाय ऐसे रह सकता है| वहां उत्सव,ध्यान और योग किया जा सकता है| बैंगलोर आश्रम में ८०० लोग इकट्ठे रहतें हैं| इससे पहले हम केवल १०-१२ लोग ही थे| अभी बहुत सारे लोग आकर आश्रम में रहना चाहतें हैं परन्तु हमारे पास जगह नहीं है| क्योंकि किसी को बिजली के बिल,घर टैक्स और भोजन के लिए चिंता नहीं करनी पड़ती, इन सब का ध्यान रखा जाता है तो हर कोई अपने संभव तरीके से योगदान देते हैं|

इसी तरह से जर्मनी,कनाडा,यू एस ए और हाल ही में अर्जेंटीना में आश्रम हैं| यह छोटा सा जीवन अनावश्यक और फालतू चीजों में गवाने के लिए नहीं है| क्या आपको अगले ४०-५० वर्ष, जितना भी आप इस पृथ्वी पर रहोगे, अपनी सेवा कराने के लिए कोग चाहिएं यां आप दूसरों और समाज के लिए कुछ करना चाहोगे? दूसरों की मदद करना और समाज की सेवा करना क्या एक अच्छा विचार नहीं है? कोई न कोई ऐसा होना चाहिए जो दूसरों के लिए सोचे, उनका ध्यान रखे और मदद करे| मैं चाहता हूँ कि आप सब इस बारे में सोचें|

प्रश्न : ऐसे आश्रम के लिए आपकी दृष्टि है?

श्री श्री रवि शंकर :
आश्रम वह होता है जहाँ वृद्ध,युवा,बच्चे और हर कोई साथ साथ रहता है| इस तरह युवा पीढ़ी पुरानी पीड़ी के लोगों के अनुभव से सीख सके, और वृद्ध लोग युवाओं के साथ जोश का अनुभव कर सके| हम इस तरह का वातावरण बना सकते हैं, क्या कहते हो आप?

प्रश्न : मैं डरपोक हूँ| मैं सारा जीवन छोटी छोटी चीजों से डरता रहा| मुझे हर बात में खतरा और जोखिम दिखता था और हर चीज से और हर किसी से डरता रहा| मुझे चोट लगने का डर लगता था| मैं इस सब से कैसे पार जा सकता हूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
सबसे पहले अपने उपर से यह लेबल हटा दो - 'मैं डरपोक हूँ'। कौन कहता है आप डरपोक हो? जब आप ऐसे लेबल लगा देते हो तो आप वैसे बन जाते हो। बाइबल में भी कहा गया है' जैसा आप बोयोगे वैसा ही काटोगे| आप उसी को बढ़ावा देते रहते हो| आप बहुत अच्छे हो| हम सब यहाँ आपका समर्थन करते हैं| अपने आपको कमजोर मत समझो| इस विचार को मन से निकल दो|

प्रश्न : क्या कोई घर पर भी hollow and empty mediation कर सकता है?

श्री श्री रविशंकर :
घर पर आपको यह करने कि जरूरत नहीं है| केवल बैठ जाओ, ऐसा होने लगेगा| आप एक कार को गेराज में पूरी सफाई के लिए देते हो और वापिस मिलने पर इसे चलाने लगते हो| यह पहले से ही तैयार होती है| हर दिन घर पर आपको इसकी पूरी सफाई की जरूरत नहीं होती| इसलिए इसी तरह आप बस आंखें बंद करो और ध्यान करो|

प्रश्न : मैंने लोगों को जैसे हैं वैसे ही स्वीकार कर लिया है| यद्यपि हमने उत्तरदायित्व के विचार को भी समझा है| मेरा बेटा १३ बर्ष का है| वह प्रौढ़ है,नियम तोड़ता है,स्कूल बीच में छोड़ देता है,सीखता नहीं,घर समय से नहीं आता और दोस्तों के साथ घूमता रहता है|मुझे उसकी चिंता होती है| मैं कैसे माँ होने का दायित्व पूरा करूँ,उसे और स्तिथि को कैसे स्वीकार करूँ?

श्री श्री रवि शंकर :
आप पहले ही ये सब कर रही हो| किशोरों के साथ निभाना बहुत मुश्किल होता है| कभी कभी आपको बहुत सख्त होने की ज़रूरत होती है, और इसके साथ साथ प्रेम भी दिखाना पड़ता है| यह एक घुड़सवारी की तरह है| कभी आप इसे ढीला छोड़ते हो और कभी आपको इसे ज़ोर से पकड़ना पड़ता है| इस तरह किशोरों के साथ निभाना घुड़सवारी करने जैसा है|


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