डैन शिलोन : आप इस युग के साथ बहुत निराश होंगें?
श्री श्री रवि शंकर : क्या मैं निराश दिखता हूँ?
डैन शिलोन : दुनिया आपके अनुसार नहीं चल रही है|
श्री श्री रवि शंकर : मेरे में सहन शक्ति और दृढ़ता है।
डैन शिलोन : आपकी उम्र क्या होगी?
श्री श्री रवि शंकर : मैं अर्द्ध शताब्दी से कुछ ज्यादा हूँ और अभी मेरे पास कुछ और वर्ष हैं| आप को पता है हर कोई शांति चाहता है| मनुष्य को जन्म से ही शांति की ज़रूरत होती है, परन्तु वे नहीं जानते नकारात्मक भावनायों.धारणायों,गुस्सा और कुंठा से पीछा कैसे छुडाएं| आज लोगों को यह सीखने की जरुरत है कि वे अपनी नकारात्मकता को कैसे जाने दें,अतीत को कैसे भुलाएं और भविष्य की ओर चलें|
डैन शिलोन : आप कहते हैं 'सफलता मुस्कान से नापी जाती है’। पर आज दुनिया मुस्कुरा नहीं रही है?
श्री श्री रवि शंकर : मुझे पता है बहुत सारा कार्य अभी करने की जरूरत है| सुधारकों के लिए बहुत सारा कार्य है| डाक्टर का कार्य मरीज़ को ठीक करने का है, यदि वह स्वयं बीमार हो जाएं तो मरीज़ के लिए क्या आशा रह जाती है! इस तरह यदि हम अपनी मुस्कान खो दें तो दूसरों को कैसे मुस्कान दे सकते हैं| हमे स्वयं में ठहराव लाना होगा, हमें मेहनत करनी होगी ताकि लोगों के चहरे पर मुस्कान आ सके|
डैन शिलोन : जब आप कहते हो 'दुनिया को दस दिन के लिए रोक दें 'तो इसका क्या मतलब है?
श्री श्री रवि शंकर : अपने मन को रोकना,मन की दौड़ को रोकना| यह हमेशा अतीत के बारे सोचता है यां हमेशा भविष्य के बारे में सोचता है| हम अतीत के प्रति गुस्सा और भविष्य के प्रति चिंतित रहते हैं| दुनिया और परिस्तिथि को नए नज़रिये से देखने के लिए जागने और समझने की जरूरत है। महात्मा गाँधी भी कहते थे अतीत की ओर मत देखो| वो कहते थे, "आओ, देखें हम अभी और भविष्य के लिए क्या कर सकतें हैं|" इससे बहुत शक्ति,उत्साह,जोश आता है। यह आपको चारों ओर राख होने पर भी उठा कर उन्नत करती है।
डैन शिलोन : और यह सब भारत से शुरू होता है?
श्री श्री रवि शंकर : बिल्कुल, शायद दुनिया के अन्य भागों में भी|
डैन शिलोन : मुझे नहीं पता क्यों हमारे बहुत से बच्चे भारत जा रहे हैं? वे इस स्थान से इतने प्रभावित क्यों हैं?
श्री श्री रवि शंकर : भारत में अध्यात्मिक उत्थान का लम्बा इतिहास रहा है| जब आप देखते हो सब ख़त्म हो रहा है,सब रास्ते बंद हो गए हैं, कोई उम्मीद बाकी नहीं है, और उदासी आने लगती है, भारत इससे परे कुछ बड़े का दृष्टिकोण देता है| आपके विचार और मन की शक्ति से आपकी वास्तविकता,आपकी दुनिया बनती है और आपको उस दिशा की और ले चलती है| ज़रुरी नहीं आप तत्काल सफल हो जाएँ परन्तु दृष्टिकोण और इरादा आपको दूर तक ले जाता है|
डैन शिलोन : एक आप हो जिन्होंने व्यापार और राजनितिक दुनिया को जोड़ने का प्रयत्न किया है| क्या यह मुमकिन है?
श्री श्री रवि शंकर : बुनियादी तौर पर हम सब मनुष्य ही हैं| हर किसी में मानवता है और मैं यह मानता हूँ कि सुधारकों,शासकों और प्रदाताओं को मिल कर कार्य करना होगा, तभी समाज को एक साथ रखा जा सकता है|
डैन शिलोन : आपको राजनितिक और व्यापारिक नेतायों के संयोग में कोई चिंता का विषय लगता है?कभी कभी इससे भ्रष्टाचार होता है| हम जानते हैं ऐसा इस देश और अन्य पश्चिमी देशों में है?
श्री श्री रवि शंकर : यह सब जगह है, यहाँ तक की भारत में भी भ्रष्टाचार है| भ्रष्टाचार तब होता है जब अपनेपन की भावना नहीं होती| यदि आप अपने इर्दगिर्द अपनेपन का दायरा बना लो तो भ्रष्टाचार इसके बाद शुरू होता है| राजनीतिको को और अधिक अध्यात्मिक होने की जरुरत है| अध्यात्मिक होने से मेरा मतलब है लोगों के प्रति और अधिक अपनापन| इस शताब्दी में महात्मा गाँधी एक उदाहरण हैं| वह एक अध्यात्मिक पुरुष थे और इसके साथ साथ राजनितिक भी थे| उनमें बलिदान की भावना थी' मुझे अपने लिये कुछ नहीं चाहिए परन्तु मुझे अपने लोगों के लिए चाहिए|' यह भावना कहीं खत्म होती जा रही है| इसीलिए भ्रष्टाचार है और सभी प्रकार के अनैतिक व्यापार होने लगें हैं| विश्वास व्यापार की रीढ़ की हड्डी है| जो हमने पिछले १० वर्षों में देखा है, साम्यवाद को ख़त्म होने के लिए १० वर्ष लगे,और पूंजीवाद को ख़त्म होने के लिए १० महीने से भी कम समय लगा| इसका कारण यही है हमने अपनी व्यापार में प्रणाली के मूल्यों और नैतिकता को नजरंदाज किया है|
हमने देखभाल और सांझेपन जैसे मानवीय मूल्यों को, और समर्पण एवं भक्ति को नजरंदाज किया है| यदि हम किसी तरह अपने नवयुवकों में यह मूल्य फिर से जगा दें तो नवयुवक इसके लिए तैयार हैं| उन्हें यह चाहिए क्योंकि उन्होंने पहली पीडी को दौड़ते हुए देखा है| यह भागना ऐसा ही है मानो दौड़ने वाली मशीन पे हों जो कहीं नहीं पंहुचती|
डैन शिलोन : दुनिया के वर्तमान नेतृत्व में क्या गलत है और शायद हमारी दूरदर्शी नेतृत्व में?
श्री श्री रवि शंकर : मैं यही कहूँगा अपनापन ख़त्म हो रहा है| वहाँ पर केवल अपने बारे में सोचने का रवैया बनता जा रहा है, बजाय इसके कि किसी उच्च कारण के लिए बलिदान किया जाए| दृष्टिकोण और इरादे की कमी हो रही है|
डैन शिलोन : एक बार आपने कहा था क्षमा एक इलाज है| क्या क्षमा ही इजरायल और अरब देशों में शांति ला सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : अतीत को जाने दो और नए भविष्य की ओर बढ़ो| पूर्ण आज़ादी से एक दूसरे पर निर्भरता की ओर| आजादी पिछले युग का नारा था| हर कोई आज़ाद होना चाहता था ताकि वे समृद्ध हो सकें परन्तु आज समृद्धि आज़ादी से नहीं आती, यह एक दूसरे पर निर्भरता की समझदारी से आती है| इसे लोगों को सिखाया जाना चाहिए| आज पहचान के लिए भी संकट है| एक व्यक्ति सोचता है 'मैं मुस्लिम हूँ' यां 'इसाई हूँ' यां 'हिन्दू हूँ' यां 'बौद्ध हूँ', और वे जो इस धर्म से नहीं हैं वे मेरे अपने नहीं हैं| वे उन्हे दुश्मन जैसे लगतें हैं| उन्हें इस तरह की सोच को बदलना होगा - सबसे पहले हमारी पहचान यह है हम सभी मानव हैं| तब हमारी पहचान लैंगिक है, यां तो स्त्री यां पुरुष| तीसरी पहचान राष्ट्र और अंत में धर्म। यदि पहचान की प्राथमिकता सही जगह हो तो टकराव आसानी से खत्म किया जा सकता है|
डैन शिलोन : आप भविष्य के नेता को कैसा देखना चाहोगे?
श्री श्री रवि शंकर : मुझे लगता है शिक्षा के द्वारा हम लोगों के दिल और मन जोड़ सकते हैं| यह उन लोगों के द्वारा नहीं हो सकता जो सत्ता में हैं| ये कोई स्वयंसेवी संस्थाएं, समाज सेवक और सुधारक, जिन्हें सोचने के ढंग में परिवर्तन लाना हो और दिलों को पास लाना हो, ऐसा कर सकतें हैं|
डैन शिलोन : क्या आप जिम्मी वाल्स की तरह आशावादी हो?
श्री श्री रवि शंकर : मैं यथार्थवादी हूँ| आशावाद केवल आशा है, परन्तु जब आप इसे संभव मानो तो यह व्यवहारिक है। मुझे लगता है मैं यथार्थवादी हूँ| लोग तनाव और चिंता लम्बे समय तक सहन नहीं कर सकते, कहीं पर जा कर हिम्मत छोड़ देते हैं| आप बहुत समय तक मुट्ठी बंद नहीं रख सकते, किसी एक क्षण में जाकर आपको विश्राम करना ही पड़ता है, और जब आप विश्राम करते हो तो आप देखते हो सारा आकाश आपके हाथ में होता है| यह दुनिया में शुरू हो चुका है| फ़्रांस, जर्मनी और सारे पश्चमी यूरोप को देखो| पिछले युग में वहां कितना संघर्ष था, परन्तु अब सारी सीमाएं ख़त्म हो चुकी हैं| इसमें एक ही मुद्रा आ चुकी है जोकि १९वीं शताब्दी में सोचा भी नहीं जा सकता था| इसी तरह से मुझे लगता है मध्यवर्ती पूर्व का संकट भी लोगों में बहु-सांस्कृतिक, बहुधार्मिक शिक्षा के द्वारा, और ज्ञान के विशाल दृष्टिकोण से ख़त्म हो जायेगा|
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality
श्री श्री रवि शंकर : क्या मैं निराश दिखता हूँ?
डैन शिलोन : दुनिया आपके अनुसार नहीं चल रही है|
श्री श्री रवि शंकर : मेरे में सहन शक्ति और दृढ़ता है।
डैन शिलोन : आपकी उम्र क्या होगी?
श्री श्री रवि शंकर : मैं अर्द्ध शताब्दी से कुछ ज्यादा हूँ और अभी मेरे पास कुछ और वर्ष हैं| आप को पता है हर कोई शांति चाहता है| मनुष्य को जन्म से ही शांति की ज़रूरत होती है, परन्तु वे नहीं जानते नकारात्मक भावनायों.धारणायों,गुस्सा और कुंठा से पीछा कैसे छुडाएं| आज लोगों को यह सीखने की जरुरत है कि वे अपनी नकारात्मकता को कैसे जाने दें,अतीत को कैसे भुलाएं और भविष्य की ओर चलें|
डैन शिलोन : आप कहते हैं 'सफलता मुस्कान से नापी जाती है’। पर आज दुनिया मुस्कुरा नहीं रही है?
श्री श्री रवि शंकर : मुझे पता है बहुत सारा कार्य अभी करने की जरूरत है| सुधारकों के लिए बहुत सारा कार्य है| डाक्टर का कार्य मरीज़ को ठीक करने का है, यदि वह स्वयं बीमार हो जाएं तो मरीज़ के लिए क्या आशा रह जाती है! इस तरह यदि हम अपनी मुस्कान खो दें तो दूसरों को कैसे मुस्कान दे सकते हैं| हमे स्वयं में ठहराव लाना होगा, हमें मेहनत करनी होगी ताकि लोगों के चहरे पर मुस्कान आ सके|
डैन शिलोन : जब आप कहते हो 'दुनिया को दस दिन के लिए रोक दें 'तो इसका क्या मतलब है?
श्री श्री रवि शंकर : अपने मन को रोकना,मन की दौड़ को रोकना| यह हमेशा अतीत के बारे सोचता है यां हमेशा भविष्य के बारे में सोचता है| हम अतीत के प्रति गुस्सा और भविष्य के प्रति चिंतित रहते हैं| दुनिया और परिस्तिथि को नए नज़रिये से देखने के लिए जागने और समझने की जरूरत है। महात्मा गाँधी भी कहते थे अतीत की ओर मत देखो| वो कहते थे, "आओ, देखें हम अभी और भविष्य के लिए क्या कर सकतें हैं|" इससे बहुत शक्ति,उत्साह,जोश आता है। यह आपको चारों ओर राख होने पर भी उठा कर उन्नत करती है।
डैन शिलोन : और यह सब भारत से शुरू होता है?
श्री श्री रवि शंकर : बिल्कुल, शायद दुनिया के अन्य भागों में भी|
डैन शिलोन : मुझे नहीं पता क्यों हमारे बहुत से बच्चे भारत जा रहे हैं? वे इस स्थान से इतने प्रभावित क्यों हैं?
श्री श्री रवि शंकर : भारत में अध्यात्मिक उत्थान का लम्बा इतिहास रहा है| जब आप देखते हो सब ख़त्म हो रहा है,सब रास्ते बंद हो गए हैं, कोई उम्मीद बाकी नहीं है, और उदासी आने लगती है, भारत इससे परे कुछ बड़े का दृष्टिकोण देता है| आपके विचार और मन की शक्ति से आपकी वास्तविकता,आपकी दुनिया बनती है और आपको उस दिशा की और ले चलती है| ज़रुरी नहीं आप तत्काल सफल हो जाएँ परन्तु दृष्टिकोण और इरादा आपको दूर तक ले जाता है|
डैन शिलोन : एक आप हो जिन्होंने व्यापार और राजनितिक दुनिया को जोड़ने का प्रयत्न किया है| क्या यह मुमकिन है?
श्री श्री रवि शंकर : बुनियादी तौर पर हम सब मनुष्य ही हैं| हर किसी में मानवता है और मैं यह मानता हूँ कि सुधारकों,शासकों और प्रदाताओं को मिल कर कार्य करना होगा, तभी समाज को एक साथ रखा जा सकता है|
डैन शिलोन : आपको राजनितिक और व्यापारिक नेतायों के संयोग में कोई चिंता का विषय लगता है?कभी कभी इससे भ्रष्टाचार होता है| हम जानते हैं ऐसा इस देश और अन्य पश्चिमी देशों में है?
श्री श्री रवि शंकर : यह सब जगह है, यहाँ तक की भारत में भी भ्रष्टाचार है| भ्रष्टाचार तब होता है जब अपनेपन की भावना नहीं होती| यदि आप अपने इर्दगिर्द अपनेपन का दायरा बना लो तो भ्रष्टाचार इसके बाद शुरू होता है| राजनीतिको को और अधिक अध्यात्मिक होने की जरुरत है| अध्यात्मिक होने से मेरा मतलब है लोगों के प्रति और अधिक अपनापन| इस शताब्दी में महात्मा गाँधी एक उदाहरण हैं| वह एक अध्यात्मिक पुरुष थे और इसके साथ साथ राजनितिक भी थे| उनमें बलिदान की भावना थी' मुझे अपने लिये कुछ नहीं चाहिए परन्तु मुझे अपने लोगों के लिए चाहिए|' यह भावना कहीं खत्म होती जा रही है| इसीलिए भ्रष्टाचार है और सभी प्रकार के अनैतिक व्यापार होने लगें हैं| विश्वास व्यापार की रीढ़ की हड्डी है| जो हमने पिछले १० वर्षों में देखा है, साम्यवाद को ख़त्म होने के लिए १० वर्ष लगे,और पूंजीवाद को ख़त्म होने के लिए १० महीने से भी कम समय लगा| इसका कारण यही है हमने अपनी व्यापार में प्रणाली के मूल्यों और नैतिकता को नजरंदाज किया है|
हमने देखभाल और सांझेपन जैसे मानवीय मूल्यों को, और समर्पण एवं भक्ति को नजरंदाज किया है| यदि हम किसी तरह अपने नवयुवकों में यह मूल्य फिर से जगा दें तो नवयुवक इसके लिए तैयार हैं| उन्हें यह चाहिए क्योंकि उन्होंने पहली पीडी को दौड़ते हुए देखा है| यह भागना ऐसा ही है मानो दौड़ने वाली मशीन पे हों जो कहीं नहीं पंहुचती|
डैन शिलोन : दुनिया के वर्तमान नेतृत्व में क्या गलत है और शायद हमारी दूरदर्शी नेतृत्व में?
श्री श्री रवि शंकर : मैं यही कहूँगा अपनापन ख़त्म हो रहा है| वहाँ पर केवल अपने बारे में सोचने का रवैया बनता जा रहा है, बजाय इसके कि किसी उच्च कारण के लिए बलिदान किया जाए| दृष्टिकोण और इरादे की कमी हो रही है|
डैन शिलोन : एक बार आपने कहा था क्षमा एक इलाज है| क्या क्षमा ही इजरायल और अरब देशों में शांति ला सकता है?
श्री श्री रवि शंकर : अतीत को जाने दो और नए भविष्य की ओर बढ़ो| पूर्ण आज़ादी से एक दूसरे पर निर्भरता की ओर| आजादी पिछले युग का नारा था| हर कोई आज़ाद होना चाहता था ताकि वे समृद्ध हो सकें परन्तु आज समृद्धि आज़ादी से नहीं आती, यह एक दूसरे पर निर्भरता की समझदारी से आती है| इसे लोगों को सिखाया जाना चाहिए| आज पहचान के लिए भी संकट है| एक व्यक्ति सोचता है 'मैं मुस्लिम हूँ' यां 'इसाई हूँ' यां 'हिन्दू हूँ' यां 'बौद्ध हूँ', और वे जो इस धर्म से नहीं हैं वे मेरे अपने नहीं हैं| वे उन्हे दुश्मन जैसे लगतें हैं| उन्हें इस तरह की सोच को बदलना होगा - सबसे पहले हमारी पहचान यह है हम सभी मानव हैं| तब हमारी पहचान लैंगिक है, यां तो स्त्री यां पुरुष| तीसरी पहचान राष्ट्र और अंत में धर्म। यदि पहचान की प्राथमिकता सही जगह हो तो टकराव आसानी से खत्म किया जा सकता है|
डैन शिलोन : आप भविष्य के नेता को कैसा देखना चाहोगे?
श्री श्री रवि शंकर : मुझे लगता है शिक्षा के द्वारा हम लोगों के दिल और मन जोड़ सकते हैं| यह उन लोगों के द्वारा नहीं हो सकता जो सत्ता में हैं| ये कोई स्वयंसेवी संस्थाएं, समाज सेवक और सुधारक, जिन्हें सोचने के ढंग में परिवर्तन लाना हो और दिलों को पास लाना हो, ऐसा कर सकतें हैं|
डैन शिलोन : क्या आप जिम्मी वाल्स की तरह आशावादी हो?
श्री श्री रवि शंकर : मैं यथार्थवादी हूँ| आशावाद केवल आशा है, परन्तु जब आप इसे संभव मानो तो यह व्यवहारिक है। मुझे लगता है मैं यथार्थवादी हूँ| लोग तनाव और चिंता लम्बे समय तक सहन नहीं कर सकते, कहीं पर जा कर हिम्मत छोड़ देते हैं| आप बहुत समय तक मुट्ठी बंद नहीं रख सकते, किसी एक क्षण में जाकर आपको विश्राम करना ही पड़ता है, और जब आप विश्राम करते हो तो आप देखते हो सारा आकाश आपके हाथ में होता है| यह दुनिया में शुरू हो चुका है| फ़्रांस, जर्मनी और सारे पश्चमी यूरोप को देखो| पिछले युग में वहां कितना संघर्ष था, परन्तु अब सारी सीमाएं ख़त्म हो चुकी हैं| इसमें एक ही मुद्रा आ चुकी है जोकि १९वीं शताब्दी में सोचा भी नहीं जा सकता था| इसी तरह से मुझे लगता है मध्यवर्ती पूर्व का संकट भी लोगों में बहु-सांस्कृतिक, बहुधार्मिक शिक्षा के द्वारा, और ज्ञान के विशाल दृष्टिकोण से ख़त्म हो जायेगा|
© The Art of Living Foundation For Global Spirituality