वासुदेव कुटुम्बकम विषय पर वार्तालाप

पिछली पोस्ट के शेष अंग:

प्रश्न : बहुत से लोग ऐसे हैं जो बुरा कर रहे हैं| यहाँ तक की ज्ञान को सुनकर भी उनके हृदय नहीं पिघलते| ऐसे लोगों के लिए जो वास्तव में बहुत बुरा कर रहे हैं हम क्या कर सकते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
केवल इस विचार से कि ’लोगों की मदद की जाए’ कौन उन तक नहीं पहुँच सकता।.यदि बहुत से लोगों के मन में यह विचार आ जाए तो यह संभव है| बहुत से ऐसे स्वयं सेवक हैं जो इस प्रकार से कार्य कर रहें हैं| रुथ कुओक मुझे बता रहा था जब मनीला में बाढ़ आई ३००,००० लोग बेघर हो गए| आर्ट ऑफ़ लिविंग के स्वयंसेवक राहत कार्य करने में जुट गए| और अब रेड क्रोस उन्हें ध्यान और श्वास से राहत कार्य सिखाने के लिए कह रहे हैं| सामूहिक रूप से कार्य करने से अच्छा होगा| हम सब दूसरों के लिए कुछ करना चाहते हैं|

प्रश्न : सूचनाओं के अनुसार ३० वर्षों में दुनिया खत्म हो जाएगी| हम क्या कर सकतें है?

श्री श्री रवि शंकर :
यह मेरी भी चिंता है| पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र के United millenium goals में आर्ट ऑफ़ लिविंग का २५% योगदान रहा| १०.८ मिलियन लोगों ने ५५.६ लाख पेड़ एक वर्ष में लगाये| यदि हर कोई इसी तरह से अपना योगदान देने लगे ,कम प्रदूषण करे, तो ही इस ग्रह पर जीवन के लिए आव्शयक वातावरण रह पाएगा ।जब हम सब मिलकर काम करेंगे तो यह संभव है।

प्रश्न : यदि आप ध्यान करने लगो तो कौन सा समय सही है,जब आप ध्यान कर रहे हो आपको क्या सोचना चाहिए?

श्री श्री रवि शंकर :
सबसे पहले हमें ध्यान कब करना चाहिए? ध्यान सुबह के समय, दोपहर में, यां शाम में कभी भी भोजन से पहले किया जा सकता है| नाश्ते, दोपहर और रात के भोजन से पहले ध्यान कर सकते हैं|
जब विचार आते हैं तब हम आम तौर पर उनका पीछा करने लगते हैं| जितना आप इनका पीछा करते हो ये उतने ही बढ़ते जाते हैं और आप को पकड़ लेते हैं| अच्छे विचार आते हैं तो आप कहते हो आओ आओ| बुरे विचार आते हैं तो आप उनसे भागने की कोशिश करते हो| आपको चतुर होना होगा, विचार अच्छा हो यां बुरा आप उनसे लड़ते नहीं हैं।ठीक है आओ, यहाँ रहो,उन्हें अपनाना होगा, और वे गायब हो जायेंगे| विचार आपसे ज्यादा डरते हैं, इस तरह विचार भाग जाते हैं|इसीलिए ध्यान आरम्भ करने के लिए इसे सांकेतिक सी डी, या सांकेतिक ध्यान के साथ करें|शुरू में इससे मदद हो जाती है, और बाद में आप इसके बिना कर सकते हो|

प्रश्न : अपने सपनो को कैसे पूरा करें?

श्री श्री रविशंकर :
जब मन स्थिर होता है, इसमें किसी भी विचार को पूरा करने की शक्ति आ जाती है| इस तरह न केवल आप अपने विचार ही पूरे कर सकते हो बल्कि दूसरों के विचार पूरे हो जायें ऐसा आशीर्वाद भी दे सकते हो| यह विचार ऐसा होना चाहिए जिसमें आपको विश्वास हो और जो व्यवहारिक हो| यह कोई ऐसा नहीं हो सकता जैसे आप अभी चाँद पर जाना चाहें| कोई भी व्यवहारिक,संभव विचार हो इसके लिए इरादा बनाओ और यह पूरा होने लगेगा| इसका आधार है मन का खाली होना|

प्रश्न : खालीपन क्या है,शून्य मन? क्या आप इसके बारे और बताएँगे?

श्री श्री रविशंकर :
श्री श्री खाली आकाश की ओर इशारा करते हैं| समझ गए क्या?यही खालीपन है यदि नहीं तो पहले ही से मन खाली है|

प्रश्न : हमे वेदों के बारे में अध्ययन का एक अवसर मिला| ये कहते हैं आप परिणाम की इच्छा किए बिना केवल कार्य करो|जोकि मुश्किल है| कृपया कोई सुझव दें|

श्री श्री रवि शंकर :
देखो मानलो आप किसी व्यक्ति की मदद करते हो और वे आपको धन्यवाद नहीं करते। आपको कैसा लगता है? क्या आप उदास हो जाते हो? दुखी? केवल एक धन्यवाद आपका दिमाग खराब कर सकता है, आपके अच्छे काम के बावजूद| क्या यह ठीक है?अपेक्षा आपके आनंद को कम कर देती है|कोई भी चीज आपके पास अनजाने आ जाये तो आपको ख़ुशी देती है| क्या ऐसा नहीं होता?

प्रश्न : ऐसे लोगों के साथ कैसे निभाएं जो बुरा कहते और करते हैं?

श्री श्री रविशंकर :
सबसे पहले इसे स्वीकर करो चाहे वे जैसे भी हों| दूसरा उनको ऐसे देखो कि वे बदल जायेंगे| कल,अगले सप्ताह,या अगले वर्ष वे बदल जायेंगे| अपना मन खुला रखो। शायद ५,१० बर्षों में,अगले जन्म में वे बदल जायेंगे| जब आप जान लेते हो वे ऐसे हैं और बदल सकते हैं तो आपका मन शांत हो जाता है| कोइ भी परेशान करने वाली स्तिथि हो तो उसका मज़ाक बना सकते हैं| यदि आप थोड़े से भी मजाकिया हों तो आप दुःख देने वाली परिस्तिथि से निकल सकते हो| परन्तु आपको दो पल में सामान्य होना होगा| पता है किसी और के व्यवहार की वजह से अपने मन की शांति खो देना बिलकुल बुद्धिमानी नहीं है| क्या आप ऐसा नहीं सोचते?

प्रश्न : भारत और नेपाल में सभी संत दुनिया एक परिवार है के लिए एक जुट होकर कैसे कार्य कर रहे हैं?

श्री श्री रविशंकर :
सभी का इरादा दुनिया को एक परिवार के रूप में जोड़ने का है| तरीके और कार्य क्षेत्र अलग हैं पर एक ही लक्ष्य है|


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