कई वर्षों के बाद मैं यहाँ डरेसडेन में आया हूँ। इस स्थान में बहुत परिवर्तन आ गया है| इसी तरह से हम लोग भी बदलते रहते हैं| आज आप कल जैसे नहीं हो| जो आप दस महीने पहले थे आज आप वैसे नहीं हो| हम सब विकास के साथ प्रगति करते हैं| आपका शरीर, मन, भावनाएं, विचार बदलते रहते हैं। परन्तु एक चीज़ है जो नहीं बदलती, इसे जान लेना,पहचान लेना,इस में स्थिर होना ही आध्यत्मिकता है| परिवर्तन का पता लगाने के लिए आपको कुछ ऐसी चीज़ का पता चलाना पड़ता है जो नहीं बदलती| केवल वही सनातन और स्थिर है| जीवन में स्थिर होने के लिए आपको कुछ ऐसा पकड़ना पड़ता है जो नहीं बदलता| क्योंकि जो सनातन है, जो स्थिर है वही विश्राम और शांति ला सकता है| ठीक है? अब आप मुझे बताओ क्या आप केवल १० दिन की शांति के इच्छुक हो? नहीं| हम स्थाई और हमेशा रहने वाली शांति चाहते हैं,ऐसा प्रेम जो आपकी आत्मा को उन्नत करे,मैं इसे आध्यात्मिकता कहता हूँ|
कुछ क्षणों के लिए बादल आ सकते हैं| आपकी भावनाएं बदल सकती है परन्तु उससे आप में कुछ स्थिरता मिलती है| क्या ऐसा नहीं है? उस स्थिरता के लिए जीवन को विशाल दृष्टिकोण से देखो| विश्राम में रहना सीखो,कुछ देर के लिए रोज़ ध्यान अवश्य करो|
क्या आप सब यहाँ हो?
१०० प्रतिशत?
अब आप यहाँ हो| अब जब मैं यह प्रश्न पूछता हूँ,अचानक मन यहाँ आ जाता है|क्या ऐसा नहीं है? पता है हम अपने श्वास के बारे में नहीं सीखते| श्वास में स्वस्थ होने के लिए बहुत से गुण हैं और ध्यान में तो इससे भी ज्यादा|
प्रश्न : समय के बारे में आपके क्या विचार हैं? आधुनिक भौतिक विज्ञान के विद्वान् कहते हैं समय विकास शील है|आपका अनुभव समय के बारे क्या है?
श्री श्री रवि शंकर : वेदों में यह बहुत समय पहले ही कहा गया है| समय और मन जुड़े हुए हैं| समय और मन में सम्बन्ध आश्चर्यचकित कर देने वाला है| हमारे पास मन और समय के विषय पर एक पुस्तक है| यदि आपकी रूचि है तो आप पढ़ सकते हो|
प्रश्न : डर से कैसे निभाएं?
श्री श्री रविशंकर : प्राणायाम से मदद मिलेगी| सुदर्शन क्रिया से मदद मिलेगी| ध्यान से मदद मिलेगी| यदि आपके पास कोई डर है तो मुझे दे दो| आप मुस्काते हुए घर वापिस जाओ|
प्रश्न : आपको इतने विशाल परियोजनाओं के लिए शक्ति और विचार कहाँ से आते हैं? आप जब अस्वस्थ होते हो क्या करते हो?
श्री श्री रवि शंकर : पता है, सारी शक्ति एक ही स्रोत से आती है| जब आप उस स्रोत से जुड़ जाते हो तो सब कुछ अपने आप आने लगता है|
प्रश्न : मनुष्य होने के नाते क्या सबसे आवश्यक है?
श्री श्री रविशंकर : मनुष्य के लिए सबसे जरुरी है प्रेम, यह आपका स्वभाव है| आपको केवल शांत होने की आवश्यकता है| जब आप विश्राम में होते हो तो आपको पता चलता है कि मनुष्य जीवन का प्रयोजन क्या है|
प्रश्न : आप किसानो की आत्महत्या और बीजों में अनुवांशिक परिवर्तन के विषय में क्या कहेंगे?
श्री श्री रवि शंकर : किसानो द्वारा आत्महत्या प्रगतिशील राष्ट्रों की बहुत बड़ी समस्या है| अनुवांशिक बीज का उत्पादन कर रही कुछ कम्पनियाँ गरीब किसानो से असली बीज खरीद के जला रहे हैं| कुछ लोग लालच में आकर उनके साथ मिल गए हैं| आज किसानो को इसके बारे में शिक्षित करना बहुत ज़रुरी है| आर्ट ऑफ़ लिविंग ने ५२० गाँवो में काम किया है जहाँ किसानो को उपयुक्त शिक्षा दी गई| अब इन सब गाँवो में आत्महत्या पूरी तरह से बंद हो गई है| परन्तु अभी भी बहुत कुछ करने के लिए है| हमे और अधिक काम करने कि जरूरत है|
प्रश्न : क्या हिंसात्मक व्यक्ति को वो जैसा है वैसे स्वीकार कर सकते हैं? क्या हमे सहनशील रहना चाहिए?
श्री श्री रविशंकर :सहनशक्ति का मतलब यह नहीं है किसी को कोई हिंसात्मक कार्य करने की आज्ञा दो, परन्तु हिंसा को हिंसा से वश में नहीं किया जा सकता| बुद्धिमत्ता से, बिना परेशान हुए,जैसे एक डाक्टर मरीज को देखता है वैसे ही हिंसा को रोकना है| हिंसा के प्रति जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया दिखाने का कोई लाभ नहीं होता। हिंसा के प्रति प्रतिक्रिया दिखाना ठीक नहीं परन्तु इसके खिलाफ कार्य करने की जरूरत है|
प्रश्न : गुरूजी,मुझे नहीं पता कि मैंने ठीक निर्णय लिया है यां नहीं| मेरा किसी के साथ सम्बन्ध था, मैंने वो संबंध खत्म कर दिया और फिर दोबारा किसी और से रिश्ता शुरू किया| क्या यह नई शुरुआत है? क्या मैंने ठीक निर्णय लिया है?
श्री श्री रविशंकर : समय आप को बता देगा! पता है जब हम परेशान होते हैं तो यह अवसर इस बात को जानने का होता है कि हम ज्ञान में कितना आगे बढ़े हैं| जब हम इस बात की जिम्मेदारी लेते है, ’मैंने किसी के साथ कुछ गलत किया है’ तो ५०% दुःख ख़त्म हो जाता है| बाकि का ५०% भी चला जाता है जब आपको पता होता है कि भविष्य में सबकुछ बदल जायेगा| एक बार एक सज्जन अपने पत्नी के साथ बहुत नाराज़ था|
जब उससे पूछा गया कि वह अपनी पत्नी के साथ नाराज़ क्यों है तो उसने कहा,"क्योंकि मैं उससे प्यार करता हूँ। यदि मुझे उसकी कोई परवाह नहीं होती तो मैं उससे क्यों लड़ता?" आप लड़ाई करते हो क्योंकि आप में स्वामित्व और अपनेपन की एक भावना होती है| इसी अपने पन की भावना की वजह से आप लड़ते हो और इसी अपनेपन की वजह से फिर मिल जाते हो| क्या ऐसा नहीं है? आप कुछ और लोगों से भी संपर्क कर सकते हो,मुझे तो इसका अनुभव नहीं है|
प्रश्न : आपके और अन्य लोगों के साथ में अंतर क्यों है?
श्री श्री रविशंकर : मुझे कोई अंतर नहीं लगता| यदि आपको कोई अंतर लगता है तो आप मुझे बताओ| जहाँ कहीं भी मैं जाता हूँ शायद सब के साथ सहज रहता हूँ| मुझे अपने लिए कोई चिंता नहीं है। मैं यह नहीं सोचता, ’मेरा क्या होगा?’ मैं हर किसी के बारे में महसूस करता हूँ चाहे वे मुझे जानते हो यां नहीं| मुझे किसी प्रकार का भय नहीं है। आपको भी शायद ऐसा ही लगता हो| यह जानना आपके लिए है| क्या आपको ऐसा नहीं लगता?
प्रश्न : मैं आपकी तरह पथ पर और सशक्त और प्रतिबद्ध कैसे हो सकता हूँ?
श्री श्री रवि शंकर : आप पहले से ही प्रतिबद्ध हो| अपने पर संदेह मत करो| आपके पास सभी गुण हैं| एक बीज के रूप में आपके पास सब है| एक कली में वह सब होता है जिससे वे फूल बन सके| केवल इसके लिए कुछ समय लगता है| सभी पंखुडियां खुल जाएँगी और यह पूर्ण रूप से खिला फूल बन जायेगा| यद्यपि यह एक कली है परन्तु इसके पास सब कुछ है| इसी तरह एक व्यक्ति के पास सब कुछ है| आपको केवल कुछ पोषण की जरूरत है| इसलिए आप जानलो कि आपके अंदर सब गुण हैं| इसके लिए कुछ समय लगता है| कुछ प्राणायाम,ध्यान करो और अच्छे साथ में आप इसे और भी जल्दी होते देखोगे|
प्रश्न : मैं बहुत से लोगों को शराब और सिगरेट पीते देखता हूँ| मैं क्या करूँ?
श्री श्री रवि शंकर : मेरे पास भी यही प्रश्न है! शिक्षा,शिक्षा! इन लोगों को किसी बड़े आनंद का अनुभव होना चाहिए| देखो सुदर्शन क्रिया के साथ वे अपनी इस आदत को कितनी जल्दी छोड़ देते हैं और इससे बाहर निकल आतें हैं|
हम इनके लिए एक कार्यक्रम करेंगे| हम ने कुछ देशों में ऐसा किया है और यह बहुत कामयाब रहा है|६५ प्रतिशत लोग बिना सिगरेट के रहे| ३०-३५ प्रतिशत वापिस सिगरेट पीने लगे परन्तु मात्रा में फर्क आया है| उनके सिगरेट यां शराब के सेवन में ८० प्रतिशत घटौती हुई है।
प्रश्न : क्या मुझे चर्च की सदस्यता छोड़ देनी चाहिए? (मैं कथोलिक चर्च से हूँ)
श्री श्री रविशंकर : यह आपकी अपनी मर्जी है| आप सदस्य बने भी रह सकते हो और यदि आप को नहीं बनना तो छोड़ भी सकते हो| आप सदस्य हो यां नहीं हो यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है| क्या महत्वपूर्ण है? क्या आप एक अच्छे इन्सान हो? क्या आप प्रेम और करुणा से परिपूर्ण हो? क्या आप दूसरों की मदद करने में रूचि लेते हो? क्या आप दूसरों के साथ जुड़ना चाहते हो?
प्रश्न : बिना शर्त के प्यार के डर से कैसे उभरें?
श्री श्री रवि शंकर : ओह! ध्यान से| जब आप अपने अंदर गहरे जाते हो तो सभी तरह के डर ख़त्म हो जाते हैं|
प्रश्न : आपको शक्ति के एक क्षेत्र और बुद्धिमत्ता को पा कर कैसा लगता है?
श्री श्री रविशंकर : अच्छा! यह बहुत कठिन प्रश्न है| पता है, मैं जहाँ भी जाता हूँ मुझे लगता है मैं अपना शक्ति क्षेत्र साथ ले जाता हूँ|
प्रश्न : हम जो मन्त्र गाते हैं क्या आप हमें उनका अर्थ समझा सकते हो?
श्री श्री रविशंकर : मन्त्र केवल एक ध्वनि है, एक तरंग है| "ॐ नम: शिवाय" पांच तत्वों को संबोधित करता है :पृथ्वी,अग्नि,वायु, जल और व्योम ..जिनसे हम सब बने हैं|
प्रश्न : क्या आप हमें २०१२ में दुनिया में होने वाले बदलाव के बारे बता सकते हो?
श्री श्री रवि शंकर : अच्छा समय होगा| लोग और अधिक अध्यात्मिक हो जायेंगे,और अधिक दयालु,कम लालची, घृणा कम हो जायेगी,और अधिक समझदार हो जायेंगे| सब बहुत अच्छा होगा, सब वास्तव में बहुत अच्छा होगा|
प्रश्न : बर्लिन और अन्य जगहों पर आर्ट ऑफ़ लिविंग के सेंटर के बारे आप का क्या ख्याल है?
श्री श्री रवि शंकर : अच्छा है। आप सब साथ रहो और कहीं पर भी केन्द्र बनाओ| ज्यादा से जयादा लोग सेंटर में आयेंगे और उनका फायदा होगा| यही मैं चाहता हूँ कि सब खुश रहे| हमें ऐसे खुशीहाल सेंटर बनाने होंगे जहाँ लोग आएं और ख़ुशी से कूदते हुए बाहर जाएं| जहाँ पर जाकर वे अपना मानसिक तनाव,परेशानी और मन की संकीर्णता भूल सकें|
प्रश्न : लोगों के लिए एक दूसरे को समझना इतना मुश्किल क्यों होता है?
श्री श्री रवि शंकर : क्योंकि वे पहले अपने आपको ही नहीं समझते| आप अपने मन को तो समझते नहीं और दूसरों के मन को समझने की कोशिश करते हो| यह बहुत मुश्किल हो जाता है|
प्रश्न : क्या समलैंगिकता एक बीमारी है? क्या आप इसके बारे में कुछ बतायेंगे?
श्री श्री रविशंकर : सबसे पहले यदि आप सोचते हो यह एक बीमारी है तो आप पहले ही इसके विषय में मन बना चुके हो| यह सब मानसिक तौर पर शारीरिक झुकाव है| ये प्रवृतियाँ बदल सकती हैं। मैं कुछ लोगों से मिला हूँ जो ४०-५० वर्ष के बाद समलैंगिक बन गए और कुछ जो पहले समलैंगिक थे बाद में उनके परिवार और बच्चे हुए| दुनिया में सब तरह की प्रवृतियाँ हैं| हमे किसी के साथ इस प्रवृति की वजह से मतभेद नहीं रखना चाहिए| हमे सभी को उनके ध्येय की ओर बढ़ने में प्रेम से मदद करनी चाहिए, जो कोई भी ध्येय उन्होंने अपने लिए बनाया हो| शरीर की सभी जरूरतें बहुत कम हैं,छोटी हैं|
यदि आप शरीर की जरूरतों में ही अटक के रह जाओगे तो हम कुछ भूल रहे है। हमारे पास इससे भी कुछ विशाल है, कुछ जिसके लिए हमने जन्म लिया है| सभी की अध्यात्मिक जरूरत पूरी होनी चाहिए| दुर्भाग्य की बात है लोग छोटी छोटी जरूरतों में ही फसे रहते हैं| भोजन,मनोरंजन,भाईचारा ही उनकी मुख्य चिंता होती है और वे जीवन का उद्देश्य - सार्वर्भौमिक आत्मा के साथ जुड़ना भूल जातें हैं| हमारे जीवन का असली अर्थ है ब्रह्मांड के साथ जुड़ना है|
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